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________________ पर्युषण-प्रवचन “मैं बालक हूँ, मेरा शरीर बालक है, पर मेरी आत्मा बालक नहीं है । अभी मेरा पाँचवाँ वर्ष भी पूरा नहीं हुआ, किन्तु यदि इन समस्त विचारों के मूल तत्त्व के सम्बन्ध में विवाद करना चाहें, तो कर सकते हैं ।" यह गर्वोक्ति नहीं है । यह इतिहास का अलंकार भी नहीं है जो इतिहास में जोड़ दिया गया हो । यह तो उन तेजस्वी आत्माओं के दर्शन हैं, चमत्कार हैं, जो आत्माएँ निखर कर ऊपर आ जाती हैं । कौन था यह बालक ? ये थे हमारे दर्शन - उपवन के माली आचार्य हेमचन्द्र । साथियों के बीच : अतिमुक्त राजकुमार अतिमुक्त भी एक तेजस्वी बालक था । किन्तु उसका जीवन कितना विराट्, कितना सरल और रम्य था । राजकुमार होकर भी वह साधारण बच्चों के बीच खेल रहा है, धमा चौकड़ी चल रही है, बच्चों की किलकारियों से आकाश गूँज रहा है । सारे संसार का वैभव और खेल का आनन्द मानो उनके खेल के मैदान में सिमट कर आ गया हो । यह हमारे भारतवर्ष की पुरानी संस्कृति है, जिसमें कोई भेद-भाव नहीं । बच्चे सब एक हैं । बालक्रीड़ा के मैदान में राजपुत्र, श्रेष्ठपुत्र और सेवकपुत्र सब समान हैं । बच्चों की दुनिया में छोटे-बड़े की भूमिका, भेदभाव का दानव नजर नहीं आता । उस समय मनुष्य को मनुष्य के रूप में रहने की कला सिखाई जाती थी, इसलिए उनको मनोवृत्ति भी सरल थी । भारतवर्ष तो आज भी वही है, हम अपने को उसी प्राचीन संस्कृति के पुजारी कहते हैं, परन्तु उस युग की और आज की स्थिति में कितना अन्तर है ? आज तो बच्चे पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाता है कि अमुक के साथ नहीं खेलना, क्योंकि उससे हमारा मनमुटाव हो गया है । निम्न श्रेणी या साधारण वर्ग के बालकों में घुलने-मिलने नहीं दिया जाता बच्चे को । उन्हें शिक्षा ही इसी प्रकार की मिलती है कि तुम उच्च वर्ग के हो, अच्छे खानदान के हो । अतः निम्न कोटि के बालकों के साथ मत खेलो । आज हमारी बहिनें क्या और भाई क्या सभी इन बालकों के पवित्र मन में भेद भाव-मूलक-वृत्ति का जहर भर रहे हैं, धन और सत्ता का अहंकार भर रहे हैं, घृणा और द्वेष के संस्कार भर रहे हैं, जातीयता के अहंकार का इंजेक्शन दे रहे हैं और जब बच्चे इन इंजेक्शनों और संस्कारों तथा विचारों को पाकर Jain Education International १०४ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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