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________________ १४०० गोकर्मकाण्डे कहीं नामका आदि बक्षर ही संदृष्टि बन जाता है। यथा लक्षके ल, कोटिके लिए को, जघन्यके लिए ज, इत्यादि । लक्ष कोटिको ल को, जान्य ज्ञानको ज जा द्वारा निरूपित करते हैं। इसी प्रकार कोटाकोटिके लिए को २ ( अर्थात् कोटिवर्ग) द्वितीय मूलके लिए मू २ ( अर्थात् किसी राशिके वर्गमूलका ममूल ) प्रयुक्त है। अंतःकोटाकोटिको ५१२ अंकोर द्वारा निरूपित करते हैं जिसका अर्थ १ और (१०) के बीच स्थित कोई भी प्राकृत संख्या होता है । ६५००० को लिखने हेतु ६५० का उपयोग किया गया . यह बिन्दु बढ़ानेको प्रक्रियाके लिए नवीन संकेतनाका उपयोग है । इसी प्रकार तिलोयपण्णत्ती ( ९, १२४-२४ ) में ९० । ९६ । ५००। ८ । ८ । ८ । ८ । ८ । ८ । ८ । ८ । का अर्थ (१०००) (९६) (५००) (८) है । अब संख्यामान संबंधी प्राचीन संकेतोंका उल्लेख करेंगे-संख्यातको १ द्वारा, असंख्यातको द्वारा, और अनन्तको ख द्वारा प्ररूपित किया जाता रहा है। इसी प्रकार जघन्य संख्यातके लिए २, उत्कृष्ट संख्यातके लिए १५, जघन्य परीत असंख्यातके लिए १६ सहनानी रूप है। आवलीकी सहनानी भी २ है। उत्कृष्ट परीत असंख्यातके लिए २ अथवा आवली ऋण एक संकेत है। जघन्य युक्त असंख्यात भी आवलीके समान २ संकेत द्वारा निरूपित होता है। वह उत्कृष्ट परीत असंख्यातसे एक अधिक है। उत्कृष्ट युक्ता संख्यातकी सहनानी ४ है, अर्थात् प्रतरावलो ऋण एक। यह जघन्य असंख्यात असंख्यातसे एक कम है, क्योंकि यह प्रतरावली मात्र अथवा ४ है जो आवलीका वर्ग है । घनावलीका संकेत ८ है। यह आवली समय राशिका घन करनेपर प्राप्त होती है। उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात की सहनानी २५६ है । यह जघन्य परीतानन्तसे एक कम है । जघन्य परीतानन्तका संकेत २५६ है । उत्कृष्ट परीतानन्तको सहनानी ज जु अ है । जघन्य युक्तानन्तका संकेत ज जु अ है । वर्ग का संकेत व है। इस प्रकार उत्कृष्ट युक्तानन्तका संकेत ज जु अव है। यह जघन्य अनन्तानन्तसे एक कम है क्योंकि जघन्य अनन्तानन्तका संकेत ज जु अव है। जघन्य अनन्तानन्त वास्तवमें जघन्ययुक्त अनन्तका वर्ग होता है। अब निम्नलिखित सहनानियाँ प्रकृत रूपमें सरलतासे समझी जा सकती हैंसम्पूर्ण जीव राशि : स्पष्ट है कि संसारी जीवराशि और सिद्ध जीव संसारी जीव राशि मिलकर सम्पूर्ण जीवराशि बनती है। सिद्ध जीव राशि पुद्गल परमाणु राशि १६ ख : स्पष्ट है कि यह राशि सम्पूर्ण जीव राशिसे अनन्त गुणी है। काल समय राशि १६ ख ख : यहाँ काल समय राशि पुद्गल परमाणु राशिसे अनन्त गुणी निर्शित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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