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________________ ५ १० १३८६ च ॥ गो० कर्मकाण्डे गोम्मटसंग सुत्तं गोम्मटदेवेण गोम्मटं रइयं । कम्माण णिज्जरट्ठ तच्चट्ठवधारणट्ठ च ॥ ९६५ ॥ गोम्मट संग्रहसूत्रं गोम्मटदेवेन गोम्मटं रचितं । कर्मणां निर्ज्जरात्थं तत्त्वार्थावधारणात्थं ई गुम्मटसारसंग्रहसूत्रं गुम्मटदेवनिदं श्रीवीरवर्द्धमानदेवनिदं गुम्मटनयप्रमाणविषधर्म - दंते रचितं रचिसल्पटुदेकें दोडे ज्ञानावरणादिकम्मंगळ निर्जरा निमित्तमागियुं तस्वात्थंगळ निश्चयनिमित्तमागियुं । जहि गुणा विस्संता गणहरदेवा दिइढिपत्ताणं । सो अजियसेणणाहो जस्स गुरू जयउ सो राओ || ९६६ ॥ यस्मिन्गुणा विश्रांता गणधर देवादिऋद्धिप्राप्तानां । सोऽजितसेननाथो यस्य गुरुर्जयतु स राजा ॥ गणधर देवादिऋद्धिप्राप्त रुगळ गुणंगळावनोव्वंनोळ विश्रमिसल्पटुवं तप्पजित सेननाथ नावनोवं व्रतगुरुवा राजं सर्वोत्कर्षादिदं वत्तिसुत्तिर्क । इदं गोम्मटसारसंग्रहसूत्रं गोम्मटदेवेन श्रीवर्धमानदेवेन गोम्मटं नयप्रमाणविषयं रचितं । किमर्थ ? १५ ज्ञानावरणादिकर्मनिर्जरार्थ च ।। ९६५ ।। गणधर देवादीनां ऋद्धिप्राप्तानां गुणा यस्मिन् विश्रान्ताः सोऽनित सेननाथो यस्य गुरुः स राजा सर्वोत्कर्षेण वर्ततम् ॥ ९६६॥ प्रन्थकार प्रशस्ति आगे प्रन्थकार आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ग्रन्थ समाप्ति के सम्बन्ध मे २० कहते हैं यह गोम्मटसार नामक संग्रह गाथा गोम्मटदेव श्रीवर्धमानदेवने कर्मोंकी निर्जराके लिए और तत्त्वार्थके अवधारणा के लिए रचा है। नय और प्रमाणके विषयको लेकर रचा है ||९६५ ॥ विशेषार्थ - टीकाकारने गाथामें आये गोम्मटदेवका अर्थ वर्धमान स्वामी किया है । २५ वह हमें ठीक प्रतीत नहीं होता। क्योंकि ग्रन्थ रचनाका एक उद्देश्य कर्मोंकी निर्जरा भी है। भगवान् महावीर कर्मों की निर्जराके लिए प्रन्थ क्यों रचेंगे ? इसी प्रकार दूसरे गोम्मटका अर्थ 'नय प्रमाण विषय' किया है। किन्तु इस ग्रन्थ में नय-प्रमाणकी चर्चा तो नहीं है । स्थान और मार्गणाओंकी चर्चा है । या कर्म सिद्धान्तकी चर्चा है । इसीसे पं. टोडरमलजी साहबने इसके भावार्थ में कहा है कि यह ग्रन्थ वर्धमान ३० स्वामीकी वाणीके अनुसार बना है । ऋद्धिको प्राप्त गणधरदेव आदिके गुण जिसमें पाये जाते हैं ऐसे अजितसेनाचार्य जिसके गुरु हैं वह राजा गोम्मट - चामुण्डराय जयवन्त होओ ॥ ९६६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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