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________________ गो० कर्मकाण्डे ५ प्रथमसमयप्रथमानु कृष्टि खंडजघन्य विशुद्धिपरिणामस्थानं जिनदृष्टमष्टांक मक्कु - 1 मदं नोडल तदुत्कृष्टविशुद्धिस्थानमनंतगुणमक्कु दोडा खंड जघन्याष्टकस्थानदमेर्ल अनंतभागवुद्धिस्थानं गळु सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्रगळु नडेबु ओर्म असंख्यात भागवृद्धिस्थानमक्कुमवर मेले मुन्निनंते अनंतभागव द्विस्थानंगळ सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्रस्थानंगळु नडेदु मत्तोम्यसंख्यात भागवृद्धिस्थानमक्कु । मितनंतभागवृद्धिस्थानंगळ सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्रंगळु नडवो संख्यातैक भाग वृद्धिस्थानंगळागुत्तं विरल मा असंख्यात भागवृद्धिस्थानंगळु सूच्यंगुला संख्यातेक भाग मात्र वृद्धिस्थानंगळप्पुवंतागुतं विरलु मत्तमनंतभागवृद्धिस्थानंगळ सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्रंगळ नडदो संख्यात भाग वृद्धिस्थान मक्कु -1 मदर मेले मुन्निनंर्तयनंत भागवृद्धिस्थानं गळागि योम्मोंम्म यसंख्यात भाग वृद्धिस्थानंगळागुत्तमुमा असंख्यात भागवृद्धिस्थानंगळु सूच्यंगुलासं ख्यातक भागमात्रंगळागि मुंबनंतभागवृद्धिस्थानंगळ सूच्यंगुला संख्या तकभागमात्र गळ नडबु मत्तमो संख्यात भागवृद्धिस्थानमक्कुमी प्रकारविवमो संख्यात भागवृद्धिस्थानंगळं सूचयंगुलासंख्यातैकभागमात्र गळागुतं विरल मुंबे मत्तमनंत भागाविवृद्धिस्थानंगळ सूच्यंगुला संख्यातकभागमात्र गळु नडनडदो संख्यातगुणवृद्धिस्थानमक्कु -1 मिंतु मुन्निनंत अनंगभागवृद्धिस्थानं गळं असंख्यातैकभागवृद्धिस्थानंगळ संख्यातैकभागवृद्धिस्थानंगळ, मासि यावत्तसि योम्मों संख्यात गुणवृद्धिस्थानं गळागुत्तमा संख्यातगुणवृद्धिस्थानंगळ, सूच्यंगुला संख्यातैकभागवृद्धिस्थानंग१५ ठप्पुवु । १० १२६४ स्पर्धको दयस्थानानामनंतानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोषादिकषायैरेवोदयादत्राप्रमत्ते उदयो नास्ति । अधःप्रवृत्तकरणप्रथमसमयप्रथमानुकृष्टिखण्डस्य जघन्यविशुद्धिपरिणामस्थानं जिनदृष्टोऽष्टांकः । ततस्तदुत्कृष्टमनन्तगुणं । कुतः ? तस्योपर्यनन्तभागवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्राण्यतीत्य सकृदसंख्यात भागवृद्धिस्थानं । तस्योपरि पूर्ववदनन्तभागवृद्धिस्थानानि सूच्यगुलासंख्यातैकमागमात्राणि गत्वा पुनरेकवारमसंख्यात भागवृद्धि - २० स्थानं । एवमसंख्यात भागवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्राणि स्युस्तदा पुनरनन्तभागवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्राणि गत्वैकवारं संख्यात भागवृद्धिस्थानं स्यात् तस्योपरि पूर्ववदनन्तभागवृद्धिसहचरितासंख्यातभागवृद्धिस्यानानि सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्राणि । तदग्रेऽनन्तभागवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्राणि गत्वा पुनरेकवारं संख्यातभागवृद्धिस्थानं । एवं संख्यात भागवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्राणि नीत्वाग्रे पुनरनन्तभागादिवृद्धिस्थानानि सूच्यंगुला संख्यातैकभागमात्राण्यतीत्यैकवारं संख्यात २५ का है । उसमें जो संज्वलन कषायके देशघातिस्पर्धकोंके उदयरूप विशुद्धिपरिणामोंके स्थान ta अन्य प्रत्याख्यानादि कषायोंके साथ उदयमें आनेवाले संज्वलन कषायके सर्वघाती स्पर्द्धकोंके उदयरूप संक्लेश स्थानोंके असंख्यातवें भाग हैं फिर भी वे असंख्यात लोकप्रमाण हैं। वहाँ भी अनुकृष्टिका जघन्य पहले खण्डका जघन्य विशुद्धिपरिणाम स्थान सर्वज्ञके द्वारा देखे गये अष्टांक प्रमाण अनन्त गुण वृद्धिको लिये हुए है । अर्थात् पूर्वं परिणाम के ३० अविभाग प्रतिच्छेदोंके प्रमाणसे अनन्तगुणे अविभाग प्रतिच्छेदोंका समूहरूप स्थान है । कषायके उदयरूप स्थान असंख्यात हैं । उनमें अविभाग प्रतिच्छेदोंके रूपमें परिणामोंका प्रमाण अनन्त हैं । सो जैसे-जैसे निर्मलता होती है वैसे-वैसे विशुद्धता के अविभाग प्रतिच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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