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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ९१७ यतीय राशिगळं कूडुत्तं विरल मिध्यावृष्टिय सर्व्वाल्पतर बंधभंगंगळवु । ४४६०९४३५ । उभययोगं मिध्यादृष्टिय सर्व्वावस्थितबंधभंगप्रमाणमवकुं । ८९२१८८७० ॥ अनंत मंतु साधितंगळप्प मिथ्यादृष्टिय भुजाकाराल्पतरभंगसमासमं पेळदपरु :भुजगारपदराणं भंगसमासो समो हु मिच्छस्स । पणतीसं चउणवदी सट्ठी चोदालमंककमे || ५७१ ॥ भुजाकाराल्पतराणां भंगसमासः समोहमिथ्यादृष्टेः । पंचत्रिशच्चतुन्नवतिः षष्टिश्चश्चत्वारिशवंकक्रमे ॥ मिथ्यादृष्टिय सव्वंभुजाकाराल्पतरंगळ भंगयुतिसदृशमवकुं स्फुटमांगि। एनितु प्रमाणंगळे - बोर्ड अंकक्रमबोळ पंचत्रिंशच्चतुन्नवतियं षष्टियुं चतुश्चत्वारिंशत्प्रमितंगळप्पुवु । ४४६०९४३५ ॥ अनंतरमसंयतन भुजाकाराविगळं पेव्वपरा : कस्य २९।४२९१०७२० । मिलित्वा मिथ्यादृष्टेः सर्वभूजाकारभंगा भवन्ति ४४६०९४३५ । तदल्पतरभंगास्तु उपरितः त्रिशत्कादिभंगरघस्तनाघस्तनां कसंयोगैर्गुणिते सति भवन्ति । संदृष्टिः लब्धं गुष्यं गुणकार: ९३७० १२२ ११३ ८१ ११ ४६४० ३० ९२४८ २९ ९ २८ ३२ २६ २५ । ७० Jain Education International ४३४७६८०० ११२८२५६ १०१७ २५९२ ७७० अमो पंच राशयो मिलिताः ४४६०९४३५ उभययोगः मिथ्यादृष्टेः सर्वावस्थितबन्धभंगाः ८९२१८८७० ॥५७० ॥ मिथ्यादृष्टेरुक्तो भुजाकारभंग समासो ऽल्पतरभंग समासश्च खलु सदृशः । तहि किसंख्यः ? अंकक्रमेण पंचत्रिचतुर्नवतिषष्टिचतुश्चत्वारिंशन्मात्रः ४४६०९४३५ ।। ५७१ ।। असंयतस्य तानाह १० भुजाकार भंग ४४६०९४३५ होते हैं। उसके अल्पतर भंग लानेके लिये ऊपर के तीस आदि स्थानोंके भंगों से नीचे के सब भंगको जोड़-गुणा करनेपर अल्पतर होते हैं। यह कथन ऊपर कर आये हैं । उसकी संदृष्टि ऊपर संस्कृत टीकासे जानना । उसका जोड़ भी ४४६०९४३५ होता है । भुजाकार और अल्पतर दोनोंको जोड़नेपर मिध्यादृष्टिके अवस्थित भंग २० ८९२१८८७० होते हैं ।। ५७० ।। १५ मिथ्यादृष्टिके कहे मुजाकार और अल्पतर भंगोकी संख्या समान है उसकी संख्या अंकोके क्रमसे पैतीस चौरानवे साठ चवालीस है । इन्हें क्रमसे लिखने पर चार करोड़ छियालीस लाख नौ हजार चार सौ पैतीस ४४६०९४३५ होती है । इतने भुजाकार है और इतने ही अल्पतर हैं । इन दोनोंको मिलानेपर आठ करोड़ बानवे लाख अठारह हजार २५ आठ सौ सत्तर ८९२१८८७० होते हैं इतने ही अवस्थित भंग हैं; क्योंकि मुजाकार या अल्पतर भंगो में जिस जिस प्रकृति भंगका बन्ध होता है उस ही का बन्ध द्वितीयादि समय में होनेपर अवस्थित बन्ध होता है ।।५७१ ॥ आगे असंयत में कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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