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________________ ५ ७३० गो० कर्मकाण्डे अनंतरं सर्वोदयस्थान संख्ये युमनवर प्रकृतिसंख्येयुमं पेदपरःबारससयते सीदी ठाणवियप्पेहिं मोहिदा जीवा । पणसीदिसदसगेहिं पयडिवियप्पेहिं ओघम्मि || ४८७ || द्वादशशतत्रयशी तिस्थानविकल्पैम्मोहिताः जीवाः पंचाशीतिशत सप्तभिः प्रकृतिविकल्पैरोघे । ओघे गुणस्थानदोळु सर्व्वं मोहनीयोदयस्थानं गळ १० | ९ ८ ७ ६ | ५ १ ' ६ ११ | ११ | ११ | ९ यितु द्विपंचाशत्प्रमितंगळप्पुवु ५२ । इवक्के प्रत्येकं चतुव्विशतिस्थानं गळा गुत्तं विरल | ५२ । २४ । गुणिर्स सासिरदिन्नूर नावत्ते टप्पुववरोळ १२४८ । द्विप्रकृत्युदयभंगंगळ चतुव्विशतिप्रमितंगळ मनेक प्रकृत्युदय भंगंगळु मेकादश प्रमितंगळप्पुवंतु मूवत्तय्दु स्थानं गळं ३५ । प्रक्षेपिसुत्तिरलु सर्व्वमोहनीयोदयस्थानंगळु सासिरदिन्नू रणभत्तमूरु स्थानंगळप्पुवु १२८३ । इतनित मोहोदयस्थानं१० गळदं त्रिकालत्रिलोकोदरवत चराचरजीवंगळु मोहिसल्पटुवा स्थानंगळ सर्व्वं प्रकृतिगळ १० । ५४ । ८८ । ७७ । ६६ । ४५ । १२ । कूडि मूनूरध्वर्त्तरडु प्रकृतिगळप्पु ३५२ । विवक्के प्रत्येकं सूक्ष्मसां पराये मोहनीय बंधरहित एको भंगः || ४८६ ॥ अथ सर्वोदयस्थान संख्यास्तत्प्रतिसंख्याश्चाहओधे गुणस्थानेषु सर्वमोहनीयोदयस्थानानीमानि - १० १ २ ११ १ मिलित्वा त्रिपंचाशत् । प्रत्येकं चतुर्विंशतिभंगानीति तावता संगुण्यैकप्रकृतिकस्यैकादशभिर्युतानि त्र्यशी१५ त्यग्रद्वादशशतानि तत्प्रकृतयोऽमू: १० । ५४ । ८८ । ७७ । ६६ । ४५ । १२ । २ । मिलित्वा चतुःपंचाशत् ९ ८ ६ ११ Jain Education International ७ ६ ४ ११ ५ ९ दो और एक भंग होते हैं । और सूक्ष्म साम्पराय में मोहनीयका बन्ध नहीं होता । वहाँ सूक्ष्मलोभके उदयरूप स्थानमें एक भंग है । इस तरह ग्यारह भंग हैं ||४८६ || आगे सब उदयस्थानोंकी और उनकी प्रकृतियोंकी संख्या कहते हैं गुणस्थानों में मोहनीयके सब उदयस्थान दस प्रकृतिरूप एक, नौ रूप छह, आठ, सात, २० छह प्रकृतिरूप ग्यारह ग्यारह, पाँचरूप नौ, चार रूप तीन, दो रूप एक, सब मिलकर तिरपन हुए। एक-एक के चौबीस चौबीस भंग होनेसे चौबीससे तिरपनको गुणा करनेपर बारह सौ बहत्तर हुए। तथा एक प्रकृतिरूप स्थानके ग्यारह भंग मिलाकर बारह सौ तिरासी हुए । अब उन स्थानोंकी प्रकृतियों की अपेक्षा कहते हैं ४ ३ दस प्रकृतिरूप एक स्थानकी प्रकृति दस | नौ रूप छह स्थानोंकी चौवन, आठरूप २५ ग्यारह स्थानों की अठासी, सातरूप ग्यारह स्थानोंकी सतहत्तर | छह रूप ग्यारह स्थानोंकी छियासठ । पाँचरूप नौ स्थानोंकी पैंतालीस । चार रूप तीन स्थानोंकी बारह । दोरूप एक १. दशसंख्यावच्छिन्नसामान्योदयकूटमों 'दु नव संख्यावच्छिन्नसामान्योदयकूट आरु इंतु मुंदेयुं ॥ २. हत्तु प्रकृत्युदयवनुळ्ळ स्थानमोदप्पुदरि प्रकृतियुहत्ते अभत्तु प्रकृत्युदयस्थानं गळारदरिवल्लि नवगुणितषद्स्थानप्रकृतिगळु ५४ मुंदयमित सामान्यस्थान ५२ इवं विशेषि १२४८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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