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________________ गो० कर्मकाण्डे अंतरं तद्बाद रैकेंद्रियलब्ध्यपर्थ्यामजीवपरिणामयोगोत्कृष्टस्थानद सूक्ष्मपर्याप्तजीवपरि णामयोग जघन्य स्थानद द्वितीयांत रगतश्रेण्यसंख्यातैकभागमात्रयोगस्थानविकल्पंगळनतिक्रमिसि उपर्य्यपि पुनः मेलेयुं मत्ते तत्पूर्णानां च आ सूक्ष्मैकेंद्रियपय्र्याप्तजीवंगळ बादरैकेंद्रिय पर्य्याप्त जो दंगळ जघन्यपरिणाम योगस्थानंगमा सूक्ष्मबादरपर्याप्तजीवंगळ परिणामयोगोत्कृष्टस्थानंगलु भिन्तु ५ नालकुं स्थानंगळ पल्यासंख्यातैकभागगुणितक्रमंगळवु । ४१ । ४२ । ४३ । ४४ ।। उपध्यंतरितं मेले तृतीयांत रगतश्रेण्यसंख्या तक भागस्थानं गळनंत रिसल्पटुतपुर्व त्रसपंचलब्धेः द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरंद्रिय पंचेद्रियासंज्ञि पंचेद्रियसंज्ञि लब्ध्यपर्य्याप्तजीवंगळ एकान्तानुवृद्धियोग जघन्यस्थानंगलुमय्तु मवरुत्कृष्टस्थानगळु मय्दुमिन्तु १० पत्तुं स्थानंगळु पल्यासंख्यातैकभागगुणितक्रमंगळ । ४५ । ४६ । ४७ । ४८ । ४९ । ५० । ५१ । ५२ । ५३ ॥ ५४ ॥ लद्धीणिव्वत्तीणं परिणामेयंत वड्ढिठाणाओ । परिणामट्ठाणाओ अंतरियंतरिय उवरुवरिं || २४०॥ लब्धिनिर्वृत्तीनां परिणामेकान्तवृद्धिस्थानानि परिणामस्थानानि च अंतरियांतरित्वो - पर्युपरि ॥ मत्तमा संज्ञिपंचेंद्रियलब्ध्यपर्याप्तजी वैकान्तानुवृधियोगोत्कृष्टस्थानद द्वींद्रियलब्ध्यपयति१५ जीवपरिणामयोगजघन्यस्थानव चतुर्थांतरगतश्रेण्यसंख्या तक भागस्थान विकल्पंगळनतिक्रमिति लब्ध्यपर्याप्त द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रिय असज्ञिपंचेंद्रिय संज्ञिपंचेंद्रियजीवंगळ जघन्यपरिणामयोग १० ३४८ तत उपरि श्रेण्यसंख्या तकभागमात्रयोगस्थानानि द्वितीयमंतरं । तदतीत्य पुनः तत्सूक्ष्मवादरे केंद्रियापर्यातयोः परिणामयोगस्य जघन्योत्कृष्टानि पत्या संख्यातगुणक्रमाणि ४१ । ४२ । ४३ । ४४ । उपरि तृतीयांतर श्रेण्यसंख्यातैकभागस्थानान्यतीत्य द्वित्रिचतुरसंज्ञिपंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्तानामे कांतानुवृद्धेर्जघन्योत्कृष्टानि दशपल्या२० संख्यातगुणक्रमाणि ४५ । ४६ । ४७ । ४८ । ४९ । ५० । ५१ । ५२ । ५३ । ५४ ॥२३२॥ ( पुनः तत्संज्ञिलब्ध्यपर्याप्त कांतानुवृद्धियोगोत्कृष्टद्वींद्रिय लब्ध्यपर्याप्तत्रिणामयोगजघन्ययोरंतरगतं ) २५ इसके बाद दूसर अन्तर है अर्थात् बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के उत्कृष्ट परिणाम योगस्थानके पश्चात जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण योगस्थान ऐसे हैं जिनका कोई स्वामी नहीं है । अतः इनको छोड़कर सूक्ष्म एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके जघन्य और उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान ये चार अनुक्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ४१ | ४२|४३|४४ | उसके ऊपर तीसरा अन्तर है अर्थात् बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त के उत्कृष्ट परिणाम योगस्थानके पश्चात् जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग योगस्थान ऐसे हैं जिनका कोई स्वामी नहीं हैं । उनको छोड़कर दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तके जघन्य और उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थान ये दस अनुक्रमसे पल्य के असंख्यातवें भाग गुणे हैं ४५ ४६ ४७ ४८ | ४९/५०/५१/५२/५३/५४ ।। २३९ ।। इसके पश्चात् चौथा अन्तर है । अर्थात् संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थानके पश्चात् जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग योगस्थानोंका कोई स्वामी नहीं १. कोष्ठकान्तर्गतपाठो नास्ति ब प्रतौ । ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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