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________________ अच्छा होता कि आपके द्वारा यहाँ कितना जन-कल्याण हुआ है, जनता की कितनी कायापलट हुई है । लोकोक्ति है 'अपनी आँख का शहतीर दिखाई नहीं देता, दूसरों की आँख का तिनका अंधेरे में भी दिखाई देता है ।' रात आत्म विकत्थन का भयंकर रोग लगा है हमारी वाणी को । दिन 'अहं - अहं' का स्वर गूँजता रहता है । 'मैं' के दर्द ने आज मानव की सहज विनम्र चेतना को मार कर ढेर कर दिया है । आज किसे पड़ी है समाज की, देश और धर्म की । बस, एक 'मैं' की पड़ी है, जिसके फलस्वरूप मानव पागल कुत्ते की तरह दिशाहीन दौड़ रहा है । महर्षि व्यास ने आत्म प्रशंसा को, भले ही वह प्रशंसा सत्य ही क्यों न हो, आत्महत्या के समान कहा है । यह ठीक है कि अपने स्व को गरिमा देने की मनुष्य के मन की एक चिरन्तन भूख है । मुझे इस पर खास आपत्ति भी नहीं है । मेरी आपत्ति है इस भूख की अनर्गलता पर । 'अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने की भी तो कोई सीमा होनी चाहिए न ? राजनीति का क्षेत्र भी आज वाणी के द्वारा इतना गंदा हो रहा है, कि कुछ पूछो नहीं । जिधर देखो उधर नेताओं की और पार्टियों की बाढ आई हुई है । मन में नहीं, वाणी में देशोद्धार का, भारतीय संस्कृति का लोकतंत्र का और न मालूम किस-किस का क्या क्या दर्द है कि चारों ओर शोर मच रहा है चीखने चिल्लाने का । कभी-कभी अखबारों की सुर्खियाँ पढ़ लेता हूँ तो अन्तर्मन ग्लानि से भर जाता है कि कुछ पूछो नहीं । इतने झूठे, बेबुनियाद आरोप राष्ट्र के ऊँचे आसनों पर लगाए जाते हैं कि साधारण जनता विभ्रम में पड़ जाती है । एक जबांदराज नेता अपने लगे बंधे पिट्टुओं में यों ही कोई एक अफवाह छोड़ देता है. और पिट्ठू वेद-मंत्र की तरह सस्वर पाठ करते हुए उसे ले दौड़ते हैं जनता में । इस तरह अच्छे-से-अच्छे जन नायकों की तस्वीरों को गंदा किया जा रहा है, उनके व्यक्तित्व की भव्य प्रतिमाओं को तोड़ा जा रहा है । और सब भ्रष्टाचारी हैं, देश को बर्बाद करने वाले हैं, यदि कोई दूध के धुले सदाचारी हैं, तो बस, हम दो और हमारे दो । जन-कल्याण के नाम पर, भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर उत्तेजनात्मक भाषण होते हैं, मर्यादाहीन नारे लगते हैं, और फिर शुरु हो जाता है- तोड़फोड़, ढेले पत्थर, आगजनी, हत्या और लूटमार का सिलसिला । और फिर चलने लगती हैं, लाठियाँ और गोलियाँ । जनता में से कुछ अनजान निरपराध मर जाते हैं और नेता शानदार होटलों में या अपने पार्टी भवनों में आनन्द से गर्म चाय एवं कॉफी की चुस्कियाँ लेते हैं, भविष्य में इससे (५७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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