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________________ लिए जो मचल पड़ते हैं, जूझने लगते हैं, वस्तुत: वे ही मानव हैं, जो सृष्टि के सर्वोत्तम प्राणी हैं। उनकी देन वह अमर देन है, जिसके ऋण से विश्व कभी मुक्त न हो सकेगा । वे इतिहास-पुरुष हैं। उनके विना इतिहास एक कदम भी आगे नहीं चल सकता | उनकी जीवनज्योति, वह अमर ज्योति है, जो निरवधि भविष्य में युग-युगान्तरों तक भावी मानव को अपने और विश्व के नवनिर्माण के हेतु प्रेरणा का प्रकाश देती रहेगी। कभी-कभी घटना देखने में बहुत मामूली होती है । यों कोई उसका मूल्य नहीं होता । साधारण व्यक्ति तो उस पर ध्यान ही नहीं दे पाता कि क्या बात है, जरा देखें तो सही । परन्तु जिनके अन्दर की विवेकदृष्टि, विश्लेषण शक्ति तीक्ष्ण होती है, उनकी रहस्य-भेदी पैनी आँखें वस्तुस्थिति को तत्काल पकड़ लेती हैं । और फिर उस पर इतना गहरा तलस्पर्शी चिन्तन मनन होता है, विचारमन्थन होता है कि सत्य का नवनीत उभर कर जब बाहर आता है, तो संसार सहसा चकित रह जाता है । विश्व के अनेक महान आविष्कार इसी तरह की साधारण-सी दिखाई देनेवाली घटनाओं के अन्तर्निरीक्षण से ही आविर्भूत हुए हैं, जिनसे आज विश्व कितना लाभान्वित है । 'जेम्सवाट बड़ा ही शरारती खिलाड़ी लड़का । पढ़ने-लिखने में बिल्कुल मन नहीं । एक दिन यों ही रसोई घर में बैठा था कि उसे खन खन की आवाज सुनाई दी। इधर-उधर नजर दौड़ाई, पर कुछ पता न चला । ज्यों ही घटना की तलाश में नजर घूमती हुई चूल्हे पर रखी केतली पर गई, तो क्या देखा कि केतली पर का ढक्कन बार-बार ऊपर उठता है, नीचे गिरता है, जिससे खन-खन की आवाज होती है । उसने देखा कि पानी गरम होने से भाप बनती है, जिसके ऊपर उठने से ढक्कन ऊपर उठता है और जब वह निकल जाती है तो ढक्कन नीचे गिर पड़ता है। उसने ढक्कन पर कोयले का बड़ा सा टुकड़ा रखा, फिर भी भाप से ढक्कन ऊपर उठ गया । और इस तरह वाट को भाप की शक्ति का पता लग गया और उसने इसका प्रयोग करने के लिए आगे चलकर एक मशीन बनाई । और यह मशीन ही स्टीफेंसन के द्वारा विकसित होकर रेल का इंजन बना, जो आज प्रतिदिन करोड़ों आदमियों को और करोड़ों टन माल को जन्नाटे से भूतलपर इधर उधर करता फिरता है । इस प्रकार रेलों के जन्म का मूल श्रेय साधारण-सी घटना का विश्लेषण करने वाली जेम्स की सूझ-बूझ को है। (१७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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