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________________ दोनों ही महापुरुषों के प्राप्त जीवन वृत्तों का अवलोकन करते हैं, तो यह 'अभय' की ज्योतिर्मयी वृत्ति दोनों में ही इतनी अधिक प्रकाशमान है कि सहसा विस्मयमुग्ध हो जाता है अन्तर्मन । भयंकर से भयंकरतम, विकट से विकटतम लोमहर्षक प्रसंग हैं, दो-चार नहीं अनेक-अनेक, यदि कोई दूसरा हो तो एक क्षण भी खड़े पैरों नहीं रह सकता; तत्काल धराशायी होता नजर आए । परन्तु ये वे वीर पुरुष हैं, जो एक पल भी विचलित हुए बिना धैर्य एवं साहस के साथ जूझते रहे हैं भय एवं आतंक के समक्ष । यह बात और है कि जूझने के अन्तिम क्षण तक, विजय पाने के तौर तरीके दोनों के अपने-अपने भिन्न हैं । परन्तु यह अक्षुण्ण सत्य है कि हैं दोनों ही महान अपराजित व्यक्तित्व के धनी । भयमुक्ति के सन्देश में अन्तर कहाँ है ? आत्मा के अविनाशी स्वरूप को माध्यम बनाकर दोनों ही विराट भयमुक्त आत्माओं ने भयमुक्ति का सन्देश दिया है । उपयोगितावाद की दृष्टि से अविनाशी सिद्धान्त का पर्यवसान भयमुक्ति में ही होता है । किन्तु दोनों के मुक्ति आदर्शों में एक गूढ सी रहस्यमयी भेदरेखा है, जिसे जान लेना आवश्यक है । श्रीकृष्णने यह भयमुक्ति का सन्देश कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया है । अर्जुन युद्ध का दृढ संकल्प लेकर समरांगण में उतरता है । परन्तु अपने गुरुजनों एवं बन्धु बान्धवों को सामने युद्धार्थ सन्नद्ध देखकर उसके मन को ऐसा कुछ हो जाता है कि उसके हाथ पैर शिथिल हो जाते हैं, मुख सूख जाता है, शरीर काँपने लगता है और रोमांचित हो जाता है । उसकी त्वचा जलने लगती है । विजय का एक मात्र साधन गांडीव धनुष हाथ से गिरने लगता है । और वह सचमुच ही धनुष बाण एक ओर फेंक कर रथ में धम से बैठ जाता है । उसका दिमाग चक्कर खाने लगा । वह खड़ा नहीं रह सका । इस सम्बन्ध में स्वयं अर्जुन के शब्द हैं गीता के प्रथम अध्याय में, जो उसने अपने आराध्य भगवान कृष्ण से कहे हैं --- सीदन्ति मम गात्राणि, मुखं च परिशुष्यति । वेपथुश्च शरीरे मे, रोमहर्षश्च जायते ॥ गाण्डीवं संम्रते हस्तात् त्वक्चैव परिदह्यते न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ।। १।२९.३० ।। (१३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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