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________________ और अधिक अच्छा बनाओ । और यदि बुरा गया है, तो रोते क्यों हो ? जैसा भी था चला गया । चला गया क्या, वह तो मर चुका है । अतीत के रूप में अब मात्र उसका शव है, लाश है । वह मृत अब फिर जीवित नहीं होने वाला है। मरे हुए को कोई हजार वर्ष भी रोए तो क्या मरा जिन्दा हो सकता है ? नहीं, कभी नहीं । यह असंभव है, असंभव ' जो बीत गई सो बात गई ।' अब तो आपके हाथों में यह जीता-जागता नया वर्ष है । जो भी करना चाहो, कर सकते हो । जो भी बनना चाहो, बन सकते हो । हर क्षण इतिहास का क्षण है, यदि कोई दृढ़ संकल्प से अपने इतिहास का निर्माण करना चाहे तो । मानव अपने इतिहास का स्वयं निर्माता है । कौन है वह, जो कहीं दूर गगन में बैठा मनुष्य के इतिहास की भली-बुरी घड़ियों का निर्माण कर रहा है ? मानव किसी अन्य के हाथ की कठपुतली नहीं है । जो कुछ भी है, वह अपने हाथ का है । धरती पर मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जो ऊँचे आकाश में अपना मस्तक ऊँचा किए चलता है । कर्म के क्षेत्र में हताशा और निराशा का शीर्षासन स्वास्थ्यकारी नहीं है । मस्तक में विवेक का प्रकाश जगमगाता रहे और हाथों में कर्म का सुदर्शन चक्र घूमता रहे । फिर कौन है, जो मानव को जीवन-संघर्ष में पराजित कर सके । । गए कल में तुम क्या थे, कैसे थे, यह प्रश्न नहीं है वाले कल में तुम क्या होना चाहते हो, कैसा होना चाहते हो परखा हुआ उत्तर है, आज जैसी तुम्हारी श्रद्धा है, जैसा तुम्हारा विश्वास है, और जैसे श्रद्धा एवं विश्वास के अनुरूप तुम्हारा कर्म है, आने वाले कल में तुम वैसे ही होओगे । ध्यान रखों, क्या सोचते हो, कैसा सोचते हो ? क्या होना चाहते हो, और उसके लिए तन-मन की पूरी शक्ति से क्या करना चाहते हो ? तीर्थंकर महावीर की दिव्य वाणी आज भी शास्त्रों में गूँज रही है सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला हवंति। दुचिण्णा कम्मा दुचिण्ण फला हवंति ।' अर्थात् अच्छे कर्मों का अच्छा फल होता है और बुरे कर्मों का बुरा फल और कर्मयोग के अमर गायक श्रीकृष्ण कह रहे हैं – 'श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छद्ध स एव स ।' अर्थात् मानव श्रद्धारूप है । जो जैसी श्रद्धा रखता है, वह वैसा ही बनता है । " (१२३) Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रश्न है, आने www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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