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________________ २६२ चिंतन की मनोभूमि सहयोग, विनम्रता आदि हजारों रूप इसके हो सकते हैं और उन सबका विकास करना ही जीवन को पूर्णता की ओर ले जाना है। माध्यस्थ्य वृत्ति - एक तटस्थ स्थिति है। असफलता की स्थिति में मनुष्य का उत्साह निराशा में न बदले, मन उत्पीड़ित न हो और मोह-क्षोभ अर्थात् रागद्वेष के विकल्पों से मन परास्त न हो-इस रोग का उपचार तटस्थता है, माध्यस्थ्य भावना है। एक में अनेक : जीवन को सर्वांग सुन्दर बनाने के लिए सर्वांगीण विकास करना आवश्यक है। जीवन में समस्त सद्गुणों का उद्भव और पल्लवन किए बिना मानवता के मधुरतम फल नहीं प्राप्त हो सकता। किसी भी एक सद्गुण को लेकर और उसके जितने भी स्रोत हैं, जितने भी अंग हैं, उन सबका विकास करके ही उसमें पूर्णता और समग्रता का निखार आ सकता है । जैन दर्शन ही क्या, समस्त भारतीय दर्शनों का यह सिद्धान्त है एक में अनेक और अनेक में एक । किसी भी एक गुण को लेकर उसके अनन्त गुणों का विकास किया जा सकता है। उदाहरण मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत किया है कि अहिंसा का एक गुण ही जीवन के समग्र गुणों का मूल बन सकता है। विनम्रता, मधुरता, कोमलता, मैत्री एवं प्रमोद भावना, करुणा और माध्यस्थवृत्ति ये सब अहिंसा के ही अंग हैं। अहिंसा का संपूर्ण विकास तभी हो पाएगा, जब जीवन में सद्वृत्तियों का विकास हो पाएगा, तभी हमारी साधना, जो सहस्रधारा के रूप में बहती आयी है, समग्र साधना बन सकती है और जीवन तथा जगत् के समस्त परिपार्श्वों को परिप्लावित कर सकती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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