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________________ आत्मद्रव्यवादः ननु सक्रियत्वे सत्यात्मनोऽनित्यत्वं स्याद्घटादिवत्; इत्यपि वार्त्तम्; परमाणुभिर्मनसा चानेकान्तात् । किंच, अस्यातः कथञ्चिदनित्यत्वं साध्येत, सर्वथा वा ? कथञ्चिच्चेत्; सिद्धसाधनम् । सर्वथा चानित्यत्वस्य घटादावप्यसिद्धत्वात्साध्य विव.लता दृष्टान्तस्य । ३५६ किंच, प्रात्मनो निष्क्रियत्वे संसाराभावो भवेत् । संसारो हि शरीरस्य, मनसः, श्रात्मनो वा स्यात् ? न तावच्छरीरस्य; मनुष्यलोके भस्मीभूतस्यामरपुराऽगमनात् । नापि मनसः ; निष्क्रियस्यास्यापि तद्विरहात् । सत्रियत्वेपि तत्क्रियायास्ततोऽभेदे तद्वत्तदनित्यत्वप्रसङ्गान्नास्य क्वचित्क्षणमात्रमवस्थानं स्यात् । भेदे सम्बन्धासिद्धि:, समवायनिषेधात् । शंका — ग्रात्मा को सक्रिय मानेंगे तो अनित्य भी मानना होगा, जैसे घट आदि पदार्थ सक्रिय होने से अनित्य दिखायी देते हैं ? समाधान- यह शंका भी व्यर्थ है, क्योंकि सक्रियत्व और अनित्यत्व का अविनाभाव स्वीकार करेंगे तो परमाणु तथा मनके साथ व्यभिचार प्रायेगा, अर्थात्-मन तथा परमाणु सक्रिय हैं किन्तु अनित्य नहीं हैं । तथा सक्रिय होने से आत्मा घटादि की तरह अनित्य है, ऐसा कहा सो 'सक्रियत्वात् ' हेतु से ग्रात्मा को कथंचित् अनित्य सिद्ध करना है या सर्वथा अनित्य सिद्ध करना है ? कथंचित् कहो तो सिद्ध साधन है, क्योंकि आत्मा को कथंचित् प्रनित्य तो हम जैन मानते ही हैं । सर्वथा अनित्य सिद्ध करना अशक्य है, सर्वथा अनित्यपना घट आदि पदार्थों में भी नहीं होता श्रतः घटादि के समान आत्मा अनित्य है ऐसा ष्टांत देना साध्य विकल ठहरता है । दूसरी बात यह है कि आप वैशेषिक आत्माको निष्क्रिय मानते हैं किन्तु इससे संसार का प्रभाव होने का प्रसंग प्राता है, संसार किसके होता है, शरीर के, मनके या आत्मा के ? शरीर के हो नहीं सकता, क्योंकि शरीर तो यहीं मनुष्य लोक में भस्मीभूत हो जाता है वह देवलोक में नहीं जाता । [ फिर संसार काहे का ? संसार तो चतुर्गतियों में भ्रमण करने का नाम है ? ] Jain Education International मनके संसार होता है ऐसा कहना भी गलत है, मन भी निष्क्रिय है अतः उसके संसार होना शक्य नहीं । मनको सक्रिय माने तो मनकी क्रिया मनसे भिन्न है कि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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