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________________ Yo प्रमेयकमलमार्तण्डे युक्त जब पिण्ड को देखता है, तब वाक्यार्थ के स्मरण के साथ उसे जो गो की समानता से विशिष्ट पिण्ड का ऐसा ज्ञान होता है कि यही रोझ है सो ऐसा ज्ञान ही उपमान प्रमाण कहलाता है, क्योंकि वह उपमितिरूप प्रमा के प्रति करण हुआ है । चौथे शब्द प्रमाण का लक्षण "आप्तवाक्यं शब्दः । प्राप्तस्तु यथाभूतस्यार्थस्योपदेष्टा" पुरुषः । वाक्यं तु आकांक्षा-योग्यता-सन्निधिमतां पदानां समूहः ॥ प्राप्त पुरुष का वाक्य शब्द प्रमाण कहलाता है, जैसा पदार्थ है वैसा ही उसका उपदेश देने वाला पुरुष आप्त माना गया है, आकांक्षा योग्यता और सन्निधिनिकटतावाले-पदोंके समूहको वाक्य कहा गया है, इसप्रकार चारों प्रमाणों में "प्रमाकरणं प्रमाणं" यह प्रमाण का लक्षण घटित होता है। जो करण है वह सन्निकर्ष है, अतः सन्निकर्ष ही प्रमाण है; यह सिद्ध हो जाता है । यहां पर अनुमानादि प्रमाणों यह संक्षेप से वर्णन किया है, विशेष जानना हो तो तर्कभाषा आदि ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिये। अत्यलम् . * पूर्वपक्ष समाप्त * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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