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________________ शक्तिस्वरूपविचारः ५४७ दिप्रत्ययप्रतिभासभेदो, न पुना रूपाद्यने कस्वभावभेदादिति । तन्त्र प्रमाणप्रतिपन्नत्वाद्र पादिवच्छक्तीनामपलापो युक्त इति । प्रोट लेकर कोई वर्तमान के जैनाभासी करते हैं और ऊपरसे अपने को अनंत पुरुषार्थी अनंत पुरुषार्थ को करनेवाले-बतलाते हैं ? यह तो साक्षात् स्ववचनबाधित बात है ? जब उपादान के अनुसार निमित्त हाजिर होगा, और कार्य अपने पाप होगा, तब हमने क्या किया ? अनंतपुरुषार्थ कौनसा हुआ ? इस उपादान निमित्त विषयक वास्तविक सिद्धांत पर श्री प्रभाचन्द्राचार्यने महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है । द्रव्यशक्ति, पर्यायशक्ति प्रादि का विवेचन मनकी अनेक मिथ्याधारणाओं को दूर करता है । वे अतीन्द्रिय शक्तियां अनेक हैं एवं पदार्थों से कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न हैं । इसप्रकार शक्ति संबंधी वर्णन करके अंत में नैयायिक को भी अतीन्द्रिय शक्ति मानने के लिये बाध्य किया है । * शक्ति स्वरूपविचार समाप्त * शक्तिस्वरूपविचार का सारांश नैयायिक-वस्तु का जो स्वरूप है वही सब कुछ है, वही कार्य करने में समर्थ है, अतः जैन आदि प्रतिवादी अतीन्द्रिय शक्ति को कार्य करने में कारण मानते हैं वह व्यर्थ है, अतीन्द्रिय शक्ति को ग्रहण करने वाला कोई भी प्रमाण नहीं है । प्रत्यक्ष प्रमाण तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसका प्रतीन्द्रिय विषय ही नहीं है । अनुमान प्रमाण भी अविनाभावी लिंग से होगा और अतीन्द्रिय शक्ति के साथ हेतु का अविनाभाव संबंध है या नहीं वह कैसे जाने ? इसी तरह अर्थापत्ति आदि प्रमाण भी शक्ति को ग्रहण नहीं करते हैं। प्रमाण के द्वारा ग्रहण न होने पर भी आपके कहने से उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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