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________________ ६७२ प्रमेयकमलमार्तण्डे दिवदेव । प्रतिसूक्ष्मत्वात्तदप्रत्यक्षत्वे तद्गतार्थप्रतिबिम्बप्रत्यक्षतापि न स्यात्, मूर्तस्य चेन्द्रियादिद्वारेणैव संवेदनसम्भवात् । तदभावेऽसं विदितत्वप्रसङ्गश्च । सर्वथा परोक्षत्वाभ्युपगमे चास्या मीमांसकमतानुषङ्गः। शंका-बुद्धि अतिसूक्ष्म है, इसलिये वह अप्रत्यक्ष रहती है, अर्थात् बाह्यन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने में नहीं आती। समाधान-तो फिर उसकी अप्रत्यक्षता में उस बुद्धि में पड़ा हुआ जो प्रतिबिम्ब -प्राकारहै उसे भी अप्रत्यक्ष ही रहना चाहिये-बाह्येन्द्रिय द्वारा उसका भी ग्रहण नहीं होना चाहिये, इस तरह यह बात सिद्ध हो जाती है कि जो मूर्तिक होता है उसका बाह्य इन्द्रियादि द्वारा ही संवेदन होता है, और किसी के द्वारा नहीं, यदि बुद्धि का इन्द्रिय से या अन्य किसी से ग्रहण होना नहीं माना जाय तो वह असंविदित हो जायगी और इस तरह उसकी सर्वथा असंविदितता में-सर्वथा परोक्षरूपता में आपका प्रवेश मीमांसक मत में हो जावेगा, अतः आपका बुद्धि को-(ज्ञान को) अचेतन मानना किसी भी युक्ति से सिद्ध नहीं होता है। * सांख्याभिमत प्रचेतनज्ञानवाद का खंडन समाप्त * अचेतनज्ञानवाद के खंडन का सारांश सांख्य ज्ञान को अचेतन मानते हैं, उनका कहना है कि प्रधान (प्रकृति) महान् बुद्धि को उत्पन्न करता है अत: वह अचेतन है। हां उस महान्रूप बुद्धि का संसर्ग पुरुष के साथ होता है, इसलिये हमें यह आत्मारूप मालूम पड़ती है । जैसे लोहे का गोला और अग्नि भिन्न होकर भी अभिन्न दिखाई देते हैं। दूसरा एक कारण और है कि बुद्धि प्राकारवती है अतः वह अचेतन है । चेतन में आकार नहीं है । सो इस मत का खंडन आचार्य ने इस प्रकार से किया है कि ज्ञान चेतन का धर्म है जैसा कि देखना दृष्टत्व धर्म चेतन का है, कर्तृत्व आदि धर्म भी चेतन के ही हैं । आपने जो ऐसा कहा कि बुद्धि आत्मा के साथ संसर्गित होने से चेतनरूप मालूम पड़ती है सो चेतन के बारे में भी ऐसा ही कह सकते हैं अर्थात् चेतन के संसर्ग से प्रात्मा चेतन दिखाई देता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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