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________________ ५९४ ] तिलोयपण्णत्ती [५.२७६ समुद्दो त्ति । तत्थ अंतिमवियप्पंवत्तइस्सामोतं जहा-सयंभूरमणदीवस्स आदिमसूईमज्झे रज्जूए चाउब्भागं पुणो पंचहत्तरिसहस्सजोयणाणि संमिलिदे सयंभूरमणसमुदस्स आइमसूई होदि । तस्स ठवणा । धण जोयणाणि ७५०००। पुणो तद्दीवस्स मझिमसूइम्मि तियरज्जूण अट्ठमभागं पुणो एकलक्ख-बारससहस्सपंचसयजोयणाणि संमिलिदे सयंभरमणसमुदस्स मझिमसूई होइ - ३ धण जोयणाणि ११२५०० । पुणो सयंभूरमणदीवस्स बाहिरसूईमझे रज्जूए अद्धं पुणो दिवड्डलक्खजोयणेण मेलिदे चरिमसमुद्दअंतिम- ५ सूई होइ । तस्स हवणा-5, धण जोयणाणि १५०००० । एत्थ वड्डीण आणयणहेदुमिमं गाहासुतंधादइसंडप्पहुदि इच्छियदीओदहीण रुंदद्धं । दुतिचउरूवेहि हदो तिहाणे होति परिवडी ॥ २७६ दूने दूने क्रमसे मिलाते जाना चाहिये । उनमें अन्तिम विकल्पको कहते हैं । वह इस प्रकार है- स्वयंभूरमणद्वीपकी आदिम सूचीमें राजुके चतुर्थ भाग और पचत्तर हजार योजनोंको मिलानेपर स्वयंभूरमणसमुद्रकी आदिम सूची होती है । उसकी स्थापना - रा. + यो. ७५००० । पुनः इसी द्वीपकी मध्यम सूचीमें तीन राजुओंके आठवें भाग और एक लाख बारह हजार पांचसौ योजनोंको मिलानेपर स्वयंभूरमणसमुद्रकी मध्यम सूची होती है- रा. + यो. ११२५०० । पुनः स्वयंभूरमणद्वीपकी बाह्य सूचीमें राजुके अर्ध भाग और डेढ़ लाख योजनोंको मिलानेपर उपरिम ( स्वयंभूरमण ) समुद्रकी अन्तिम सूची होती है। उसकी स्थापना- रा. ३ + यो. १५००००। यहां वृद्धियों के लानेके लिये यह गाथासूत्र है धातकीखण्डप्रभृति इच्छित द्वीप-समुद्रोंके आधे विस्तारको दो, तीन और चारसे गुणा करनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो उतनी क्रमसे तीनों स्थानोंमें वृद्धि होती है ॥ २७६ ॥ __उदाहरण- (१) कालोदकसमुद्रका विस्तार आठ लाख यो. है; अतः इला. x २ = ८ ला. आदिमसूचीवृद्धि । इला. x ३ = १२ ला. म. सू. वृद्धि । इला. x ४ = १६ ला. अं. सू. वृद्धि । (२) स्वयंभूरमणद्वीपकी आदिसूची ? रा. - २२५००० यो.; मध्यसूची ३ रा. - १८७५००; अन्तसूची ३ रा. - १५०००० यो.; स्वयंभूरमणसमुद्रका विस्तार ? रा. + ७५००० यो.; अतएव स्वयंभूरमणसमुद्रकी सूचियोंको लाने के लिये ( रा. + ७५०००) २ को क्रमशः २, ३ व ४ से गुणा करनेपर वे ही प्रक्षेप राशियां उत्पन्न होंगी जो ऊपर बतला चुके हैं। इनको स्वयंभूरमणद्वीपकी उपर्युक्त सूचियोंमें मिलानेसे क्रमशः स्वयंभूरमणसमुद्रकी सूचियां इस प्रकार प्राप्त होती हैं - १द ब पिंडं. २द ब मेलिदोपरिम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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