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________________ -१. १७९६ ] चउत्थो महाधियारो [३७७ उड्डे कमहाणीए पणवीससहस्सजोयणा गंतुं । जुगवं संकुलिदो सो चत्तारि सयाणि चउणउदी ॥ १७९१ २५०००। ४९४ । एवं जोयणलक्ख उच्छेहो सयलपव्वदपहुस्स । णिलयस्स सुरवराणं अणाइणिहणस्स मेरुस्स ॥ १७९२ मुहभूविसेसमद्विय वग्गगेदं उदयवग्गसंजुत्तं । जे तस्स वग्गमूलं पव्वदरायस्सै तस्स पस्सभुजा ॥ १७९३ णवणउदिसहस्साणिं एकसयं दोणि जोयणाणि तहा । सविसेसाई' एसा मंदरसेलस्स पस्सभुजा ॥ १७९४ ९९१०२। चालीसजायणाई मेरुगिरिंदस्स चूलियामाणं । बारह तब्भूवासं चत्तारि हवेदि मुहवासं ॥ १७९५ ४०।१२।४। मुहभूमीण विसेसे उच्छेहहिदम्मि भूमुहाहितो। हाणिचयं णिद्दिदं तस्स पमाणं ह पंचसो ॥ १७९६ फिर ऊपर क्रमसे हानिरूप होकर पच्चीस हजार योजन जानेपर वह पर्वत युगपत् चारसौ चौरानबै योजनप्रमाण संकुचित होगया है ॥ १७९१ ।। क्रमहानि २५००० । संकोच ४९४ । इसप्रकार सम्पूर्ण पर्वतोंके प्रभु और उत्तम देवोंके आलयस्वरूप उस अनादिनिधन मेरुपर्वतकी ऊंचाई एक लाख योजनप्रमाण है ॥ १७९२ ॥ १००० + ५०० + ११००० + ५१५०० + ११००० + २५००० = १००००० यो. भूमिमेंसे मुखको कम करके उसका आधा करनेपर जो संख्या प्राप्त हो उसके वर्गमें उंचाईके वर्गको मिलानेपर जो उसका वर्गमूल हो उतना उस पर्वतराजकी पार्श्वभुजाका प्रमाण है ॥ १७९३ ॥ (१ ० ० ० ० - १०००) + ९९००० = / २०२५०००० + ९८०१०००००० = ९९१०२ योजन । ___ निन्यानबै हजार एकसौ दो योजन तथा कुछ अधिक (६), यह मन्दरपर्वतकी पार्श्वभुजाका प्रमाण है ॥ १७९४ ॥ ९९१०२ ।। - मेरुपर्वतकी चूलिकाका प्रमाण चालीस योजन, भूविस्तार बारह योजन और मुखविस्तार चार योजन है ॥ १७९५ ॥ ४० । १२ । ४ । भूमिमेंसे मुखको कम करके उत्सेधका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना भूमिकी अपेक्षा हानि और मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण बतलाया गया है । वह हानि-वृद्धिका प्रमाण यहां योजनका पांचवां भाग होता है ।। १७९६ ॥ (१२-४ ) + ४० = ४ = ६ हानि-वृद्धिका प्रमाण । १द मंगगदं. २द मंगमूल, ३दब पदहत्यसमस्स, ४ दब सविसेसेई. ५ दब पंचंसा. TP 48. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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