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________________ -४. १४९१] चउत्थो महाधियारो [३३९ पढमो विसाहणामो पुढिल्लो खत्तिभो जो जागो । सिद्धत्थो धिदिसेणो विजओ बुद्धिल्लगंगदेवा य ॥ १४८५ एकरसो य सुधम्मो दसपुग्वधरा इमे सुविक्खादा । पारंपरिओवगदो तेसीदि सदं च ताण वासाणि ॥ १४८६ सम्वेसु वि कालवसा तेसु अदीदेसु भरहखेत्तम्मि । वियसंतभव्वकमला ण संति दसपुग्विदिवसयरा ॥ १४८७ । दसपुवी । णक्खत्तो जयपालो पंडुयधुवसेणकैसाइरिया । एक्कारसंगधारी पंच इमे वीरतित्थम्मि ॥ १४८८ दोणि सया वीसजुदा वासाणं ताण पिंडपरिमाणं । तेसु अतीदे णस्थि हु भरहे एक्कारसंगधरा ॥ १४८९ २२० । । एक्कारसंगधरा । पढमो सुभद्दणामो जसभद्दो तह य होदि जसबाहू । तुरिमो य लोहणामों एदे आयारअंगधरा ॥ १४९० सेसेकरसंगाणं चोदसपुव्वाणमेक्कदेसधरा । एकसयं अट्ठारसवासजुदं ताण परिमाणं ॥ १४९१ ११८। । आचारंगधरा । प्रथम विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और सुधर्म, ये ग्यारह आचार्य दश पूर्वके धारी विख्यात हुए हैं। परंपरासे प्राप्त इन सबका काल एकसौ तेरासी वर्ष है ॥ १४८५-१४८६ ॥ १८३ । कालके वश उन सब श्रुतकेवलियोंके अतीत होनेपर भरतक्षेत्रमें भव्यरूपी कमलों को विकसित करनेवाले दशपूर्वधररूप सूर्य फिर नहीं होते हैं ॥ १४८७ ॥ दशपूर्वियोंका कथन समाप्त हुआ। - नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस, ये पांच आचार्य वीर भगवान्के तीर्थमें ग्यारह अंगके धारी हुए ॥ १४८८ ॥ इनके कालका प्रमाण पिण्डरूपसे दोसौ बीस वर्ष है । इनके स्वर्गस्थ होनेपर फिर भरतक्षेत्रमें कोई ग्यारह अंगोंके धारक नहीं रहे ॥ १४८९ ॥ २२० । ग्यारह अंगोंके धारकोंका कथन समाप्त हुआ। प्रथम सुभद्र, तथा फिर यशोभद्र, यशोबाहु और चतुर्थ लोहार्य, ये चार आचार्य आचारांगके धारक हुए ॥ १४९० ॥ ... उक्त चारों आचार्य आचारांगके सिवाय शेष ग्यारह अंग और चौदह पूर्वोके एक देशके धारक थे। इनके कालका प्रमाण एकसौ अठारह वर्ष है ॥ १४९१ ॥ ११८ । आचारांगधारियोंका वर्णन समाप्त हुआ। . १ ब पारंपरिओवगमदो. २ व कमलाणि सति. ३ द पंडुमधुसेण, व पंडसधुसेण. ४ द ब लोयणामो. ५दय संगाणिं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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