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________________ -२. ११५] बिदुओ महाधियारो [६९ तेदालं लक्खाणं छस्सयसोलससहस्सछासट्ठी । दुतिभागो वित्थारो रोरुगणामस्स' णादवो ॥ ११० ४३१६६६६ ।। पणुवीससहस्साधियजोषणवादाललक्खपरिमाणो । भतिदयस्स भणिदो वित्थारो पढमपुढवीए ॥ १११ १२२५०००। एकत्तालं लक्खा तेत्तीससहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला तिविहत्ता उभंतयरुंदपरिमाणं ॥ ११२ ४१३३३३३ । । । चालीसं लक्खाणि इगिदालसहस्सछस्सयं होदि । छावट्ठी दोणि कला वासो संभतणामम्मि ॥ ११३ ४०४१६६६।२। उणदालं लक्खाणिं पण्णाससहस्सजोयणाणि पि । होदि असंभंतिदयवित्थारो पढमपुढवीए ॥ ११४ ३९५००००। अट्टत्तीसं लक्खा अडवण्णसहस्सतिसयतेत्तीसं । एककला तिविहत्ता वासो विभंतणामम्मि ॥ ११५ ३८५८३३३ ।। रौरुक (रौरव ) नामक तृतीय इन्द्रकका विस्तार तेतालीस लाख सोलह हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागमात्र जानना चाहिये ॥ ११० ॥ ४४०८३३३३ - ९१६६६३ = ४३१६६६६३ । प्रथम पृथिवीमें भ्रान्त नामक चतुर्थ इन्द्रकका विस्तार व्यालीस लाख पच्चीस हजार योजन प्रमाण कहा गया है ॥ १११ ॥ ४३१६६६६३ - ९१६६६३ = ४२२५०००।। उद्भ्रान्त नामक पांचवें इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण इकतालीस लाख तेतीस हजार तीनसौ तेतीस योजन और योजनके तीन भागोंमेंसे एक भाग है ॥ ११२ ॥ ४२२५००० - ९१६६६३ = ४१३३३३३३ । सम्भ्रान्त नामक छठे इन्द्रकका विस्तार चालीस लाख इकतालीस हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ ११३ ॥ ४१३३३३३, - ९१६६६२ = ४०४१६६६३ । प्रथम पृथिवीमें असम्भ्रान्त नामक सातवें इन्द्रकका विस्तार उनतालीस लाख पचास हजार योजनप्रमाण है ॥ ११४ ॥ ४०४१६६६३ - ९१६६६३ = ३९५०००० । विभ्रान्त नामक आठवें इन्द्रकका विस्तार अड़तीस लाख अट्रावन हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीन भागों में से एक भागप्रमाण है ॥ ११५ ॥ ___३९५०००० - ९१६६६३ = ३८५८३३३३ । १ दब क्रियारा. २ द लोरुगणामस्स. ३ द णादव्वा. ४ द तीससइसगं. ५ द व कला तिविभत्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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