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________________ १८] तिलोयपण्णत्ती [ २.५१ मार्कदे णिरुद्ध विमद्दणो यदिणिरुडणामो य । तुरिमो महाविमद्दणणामो पुग्वादिसु दिसासु ॥ ५१ हिमदयन्हि होंति हु णीला पंका य तह य महणीला । महपंका पुण्वादिसु सेढीबद्धा इमे चउरो ॥ ५२ कालो रोवणामो महकालो पुब्वपहुदिदिब्भाए । महरोरभो चउत्थो अवधीठाणस्स चिंतेदि ॥ ५३ अवसेसईदयाणं पुव्वादिदिसासु सेढिबद्धाणं । पढाई णामाई पढमाणं बिदियपहुदिठीणं ॥ ५४ दिसविदिसाणं मिलिदा अट्ठासीदीजुदा य तिष्णि सया । सीमंतएण जुत्ता उणणवदी समधिया होंति ॥ ५५ ३८८ । ३८९ । उणवदी तिणि सया पढमाए पढमपत्थले होंति । बिदियादिसु हीभंते माघविया पुढं पंच ॥ ५६ ३८९ । अट्ठाणं पि दिसाणं एक्केकं दीयदे जहाकमसो । एक्केकदीयमाणे पंच चिय होंति परिहाणे ॥ ५७ इदियमाणं रुजणं अट्ठताडिया' णियमा । उणणवदीतिसएसुं अवणिय सेसा हवंति' य प्पडला ॥ ५८ तमक इन्द्रकबिलके समीप निरोध, विमर्दन, अतिनिरोध और चौथा महाविमर्दन, ऐसे चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक चारों दिशाओं में विद्यमान हैं ॥ ५१ ॥ हिम इन्द्रक बिलके समीप नीला, पंका, महानीला और महापंका, ये चार श्रेणीबद्ध बिल क्रमसे पूर्वादिक दिशाओंमें स्थित हैं ॥ ५२ ॥ अवधिस्थान इन्द्रक बिलके समीप पूर्वादिक चारों दिशाओंमें काल, रौरव, महाकाल और चतुर्थ महारौरव ये चार श्रेणीबद्ध बिल हैं ॥ ५३ ॥ शेष द्वितीयादिक इन्द्रकबिलोंके समीप पूर्वादिक दिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध बिलोंके और पहिले इन्द्रत्रिलोके समीपमें स्थित द्वितीयादिक श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम नष्ट हो गये हैं ॥ ५४ ॥ दिशा और विदिशाओंके मिलकर कुल तीनसौ अठासी श्रेणीबद्ध बिल हैं । इनमें सीमन्त इन्द्रक बिलके मिला देनेपर सब तीन सौ नवासी होते हैं ॥ ५५ ॥ सीमन्त इन्द्रकसम्बन्धी श्रे. ब. बिल ३८८ सीमन्तसहित ३८९ । इसप्रकार प्रथम पृथिवीके प्रथम पाथड़ेमें इन्द्रकसहित श्रेणीबद्ध बिल तीनसौ नवासी हैं । इसके आगे द्वितीयादिक पृथिवियों में हीन होते होते माघवी पृथिवीमें सिर्फ पांच ही इन्द्रक व श्रेणीबद्ध बिल रह गये हैं ॥ ५६ ॥ धर्मा पृथिवीके प्रथम पाथड़ेमें स्थित इं. व श्रे. ब. बिल ३८९ । आठों ही दिशाओंमें यथाक्रमसे एक एक बिल कम होता गया है । इसप्रकार एक एकके कम होने से सम्पूर्ण हानिके होनेपर अन्तमें पांच ही बिल शेष रह जाते हैं ।। ५७ ॥ इष्ट इन्द्रकप्रमाणमेंसे एक कम कर अवशिष्टको आठसे गुणा करने पर जो गुणनफल प्राप्त हो, उसे तीन सौ नवासीमेंसे घटा देने पर शेष नियमसे विवक्षित पाथड़ेके श्रेणीबद्धसहित इन्द्रकका प्रमाण होता है ॥ ५८ ॥ उदाहरण --- चतुर्थ पाथडेके इन्द्रकसहित श्रे. ब. बिल, - २४ = ३६५ | ३८९ १. द ब तम किंडये. २ द ब यदिणिधुणामो. ५ द इट्ठतदिया. ६ द हुवंति. Jain Education International ३ द ब ताई. For Private & Personal Use Only ४ १ × ८ = २४; ४ द यंरजियं, ब यंरज्जियं. www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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