SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा : जीवन को अन्तगंगा वे सभी प्राणियों को अपने समान समझें ।१६ इस विश्व में अपने प्राणों से प्यारी दूसरी कोई वस्तु नहीं है। इसलिए मानव जैसे अपने ऊपर दयाभाव चाहता है, उसी प्रकार दूसरों पर भी दया करे ।१७ दयालु आत्मा ही सभी प्राणियों को अभयदान देता है, और उसे भी सभी अभयदान देते हैं।१८ अहिंसा ही एकमात्र पूर्ण धर्म है । हिंसा, धर्म और तप का नाश करने वाली है। १६ अत: यह स्पष्ट है कि वैदिक धर्म भी अहिंसा की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार करता है। इस्लामधर्म में अहिंसा-भावना इस्लामधर्म की अट्टालिका भी अहिंसा की नींव पर टिकी हुई है। इस्लामधर्म में कहा गया है.---"खुदा सारी दुनिया (खल्क) का पिता (खालिक) है। विश्व में जितने प्राणी हैं, वे सब खुदा के पुत्र (बंदे) हैं ।” कुरानशरीफ की शुरूआत में ही 'अल्लाहताला खुदा' का विशेषण दिया है-"विस्मिल्लाह रहिमानुर्रहीम'-इस प्रकार का मंगलाचरण दे कर यह बताया गया है कि सब जीवों पर रहम करो। मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी हजरत अली साहब ने कहा है-"हे मानव ! तू पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत बना" अर्थात् पशु-पक्षियों को मार कर उनको अपना भोजन मत बनाओ। इसी प्रकार 'दीने इलाही' के प्रवर्तक मुगलसम्राट अकबर ने कहा है-"मैं अपने पेट को दूसरे जीवों का कब्रिस्तान बनाना नहीं चाहता । जिसने किसी की जान बचाई-उसने मानो सारे इन्सानों को जिन्दगी बख्शी ।"२० उपर्युक्त उदाहरणों से यही प्रतिभासित होता है कि इस्लामधर्म भी अमुक अंश में अपने साथ अहिंसा की दृष्टि को ले कर चला है । १६ प्राणा यथात्मनोऽभीष्टाः भूतानामपि ते तथा । आत्मौपम्येन गन्तव्यं बुद्धिमद्भिर्महात्मभिः ।। -महाभारत-अनुशासनपर्व, २१५११६ १७ नहि प्राणात् प्रियतरं लोके किञ्चन विद्यते । तस्माद् दयां नरः कुर्यात् यथात्मनि तथा परे । -महाभारत-अनुशासनपर्व, ११६।८ १८ अभयं सर्वभूतेभ्यो यो ददाति दयापरः । अभयं तस्य भूतानि ददतीत्यनुशुश्रुम । -महाभारत-अनुशासनपर्व, ११६।१३ १६ अहिंसा सकलो धर्मः। -महाभारत-शान्तिपर्व । २० व मन् अहया हा अकअन्नया अह्यन्नास जमीअनः । -कुरानशरीफ ५।३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgil
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy