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________________ २११ षष्ठः समुद्देशः व्यतिरेकोदाहरणाभासमाहव्यतिरेकेऽसिद्धतद्वयतिरेकाः परमाण्विन्द्रियसुखाऽऽकाशवत् ॥४४॥ अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादित्यत्रवासिद्धाः साध्यसाधनोभयव्यतिरेका यत्रेति विग्रहः । तत्रासिद्धसाध्यव्यतिरेकः परमाणुस्तस्यापौरुषेयत्वात् । इन्द्रियसुखमसिद्धसाधनव्यतिरेकम् । आकाशं त्वसिद्धोभयव्यतिरेकमिति । साध्याभावे साधनव्यावृत्तिरिति व्यतिरेकोदाहरणप्रघट्टके स्थापितम्, तत्र तद्विपरीतमपि तदाभासमित्युपदर्शयतिविपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयम् ॥ ४५ ॥ बालव्युत्पत्त्यर्थं तत्त्रयोपगम इत्युक्तम् । इदानी तान् प्रत्येव कियद्धीनतायां प्रयोगाभासमाह बालप्रयोगाभासः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता ॥ ४६ ॥ व्यतिरेकोदाहरणभास के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ-व्यतिरेक दृष्टान्ताभास में तीन भेद हैं-असिद्ध साध्य व्यतिरेक, असिद्ध साधन व्यतिरेक और असिद्धोभय व्यतिरेक । परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाश इनके क्रम से उदाहरण हैं ॥४४॥ शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से, इस अनुमान में असिद्ध हैं साध्य, साधन और उभय व्यतिरेक जिस दृष्टान्त में, ऐसा विग्रह करना चाहिए। उनमें असिद्ध साध्य व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरण परमाणु है, क्योंकि परमाणु अपौरुषेय है । इन्द्रिय सुख असिद्ध साधन व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरण है। असिद्धोभय व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरण आकाश है। साध्य के अभाव में साधन की व्यावृत्ति को व्यतिरेक व्याप्ति कहते हैं । यह बात व्यतिरेकोदाहरण प्रकरण में सिद्ध की जा चुकी है। उससे विपरीत व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, इस बात को बतलाते हैं सत्रार्थ-जो अमूर्त नहीं है, वह अपौरुषेय नहीं है, यह विपरीत व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरण है ॥४५॥ बालव्युत्पत्ति के लिए उदाहरण, उपनय और निगमन स्वीकार किए गए हैं, यह बात पहले ही कही जा चुकी है। उगवालजनों के प्रति कुछ अवयवों के कम प्रयोग करने पर वे प्रयोगाभास हैं, इसके विषय में कहते हैं सूत्रार्थ-पाँच अवयवों (प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन ) में से कितने ही कम अवयवों का प्रयोग करना बालप्रयोगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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