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________________ १४ परमार अभिलेख प्रस्तुत अभिलेख वाक्पतिराज देव द्वितीय उपनाम मुंज द्वारा निस्सृत अभिलेखों में सर्वप्रथम है। इसकी तिथि ९७४ ई० है । उसके पिता सीयक द्वितीय का इससे पूर्व अहमदाबाद का अभिलेख ९६९ ई० का है । वाक्पतिराज द्वितीय मालव राजसिंहासन पर इन दोनों तिथियों के मध्य संभवतः ९७२ ई० में आसीन हुआ था । साथ ही यह तथ्य भी रुचिकर है कि प्रस्तुत ताम्रपत्र मालव भूमि पर दान में दिया गया सर्वप्रथम राजकीय अभिलेख है । इससे पूर्व दानपुत्र गुजरात से निस्सृत किये गये थे । • अभिलेख में प्राप्त भौगोलिक नामों में उज्जयिनी, नर्मदा, अहिछत्र ( रोहिल खण्ड, उत्तरप्रदेश में) सर्वविदित हैं । पिपरिका धार जिले की मनावर तहसील में आधुनिक पिप्परी ग्राम है जो नर्मदा नदी के उत्तर में ६-७ किलोमीटर की दूरी पर है । चिखल्लिका संभवतः चिखिलदा है जो पिप्परी से २८ किलोमीटर दक्षिण-दक्षिण पश्चिम की ओर है । १. ओं । २ ३ ४. ५. मूल पाठ ( प्रथम ताम्रपत्र ) ( श्लोक १ - २ शार्दुलविक्रीडित, ३-७ वसंततिलका, ४-५ अनुष्टुभ, ६ इन्द्रवज्रा ८ शालिनी, ९ पुष्पिताग्रा) याः स्फुर्ज्जत्फणभृद्विषानलमिलम प्रभाः प्रोल्लसमूर्द्धाद्धशशांको (ङको ) टिघटिता या: सैं हि (हि) के योपमाः । याश्चंचगिरिजाकपोललुलिताः कस्तूरिकाविभ्रमास्ताः श्रीकण्ठकठोर कण्ठरुचय : श्रेयान्सि पुष्णन्तु वः ॥ [ १ ॥ ] यल्लक्ष्मीवदनेन्दुना न सुखितं यन्नाssद्रितम्वारिधे aafa यन्न निजेन नाभिसर ल्लद्वपुः पातु वः ।। [२] परमभट्टारकः- महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीकृष्ण राजदेव पादानुध्यात- परमभ ६. ट्टारक- महाराजाधिराज - परमेश्वर श्रीवैरिसिङह (सिंह) देव- पादानुध्यात- परमभट्टारक महाराजाधिरा सीपन शान्तिंगतं (तम्) । यच्छेषाहिफणासहस्रमधुरश्वासैर्न चाss श्वसितं तद्राधाविरहातुरं मुररिपोर्व्वे Jain Education International ७. ज-परमेश्वर-श्रीसीयकदेव पादानुध्यात- परमभट्टारक- महाराजाधिराज- परमेश्वर - श्रीमदमो८. घवर्षदेवापराभिधान- श्रीमद्वाक्पतिराजदेव पृथ्वीवल्लभ श्रीवल्लभ-नरेन्द्रदेवः कुशली । श्रीनदातटे गर्भपानीयभोगे गर्दभपानीय-सम्वद्धि ( बंधि ) नी उत्तरस्यां दिशि पिपरिकानाम्ना तडारे (गे) स ९. १०. मुपगतान्समस्त- राजपुरुषान्त्रा (ब्रा) ह्मणोत्तरान्प्रतिवासिपट्टकिल जनपदादींश्च बोधयत्य ( यति अ ) स्तु वः स ११. विदितं । यथा तडारो (गो ? ) sयमस्माभिराघाटाः पूर्व्वस्यां दिशि । अगारवाहला मर्यादा | तथोउत (थोत्त) रस्यां १२. दिशि चिखिल्लिका सत्क (सप्त) गर्ताया समायता सा मर्यादा । तथा पश्चिमदिशौ (शि) गर्दभ नदी मर्यादा । त १३. था दक्षिणस्यां दिशौ श्री पिसाचदेवत्ति (ती) र्थमर्यादा । एवं चतुराघाटोपलक्षिताभिरेक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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