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________________ १२ ७ ८. सर्व्वानेतान्भाविनष्पा ( : पा ) थि [ वे ] न्द्राद्भू (न् भू ) यो भूयो याचे (च) ते रामभद्रः । सामा[न्यो] - परमार अभिलेख य (यं) धर्म्मसेतुर्नृपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः ।। [४ ।। ] इति कमलदलाम्बु (म्बु) वि (बि) दुलोलां [ श्रि] - यमनुचिन्त्य मनुष्यजीवित ( तं ) च । सकलमिदमुदाहृत (तं) च वु (बु) द्ध्वा न हि पुरुषैष्प (षैः प ) रकीर्त - यो विलोप्याः || [५॥] ९. इति । सं० १०२६ आश्विन वदि १५ [] स्वयमाज्ञा दापकश्चात्र श्री कन्हपैकः । १०. श्री सीयकस्य स्वहस्तोयं (ऽयम्) । (४) धरमपुरी का वाक्पतिराजदेव द्वितीय का ताम्रपत्र ( संवत् १०३१ = = ९७४ ई० ) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर खुदा हुआ है । ये ताम्रपत्र धार जिले में धरमपुरी के पास एक किसान को अपने खेत में हल जोतते समय १९वीं शती के उत्तरार्द्ध में प्राप्त हुए थे । इसका प्रथम सम्पादन एफ. ई. हाल ने ज. ए. सो. बं. भाग ३०, १८६१, पृष्ठ १९५-२१० पर किया था। इसके बाद सन् १८७७ में नीलकंठ जनार्दन कीर्तने ने इसका पुनः सम्पादन इं. ऐं. भाग ६, पृष्ठ ४८-५५ पर किया । ताम्रपत्र इस समय इंडिया आफिस लाइब्रेरी, लंदन में सुरक्षित हैं । ताम्रपत्र आकार में ३१x२२ सें. मी. है। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा हुआ है । दोनों में छेद हैं | किनारे कुछ मोटे हैं व अन्दर की ओर मुड़े हैं । अभिलेख ३४ पंक्तियों का है -- प्रथम ताम्रपत्र पर १८ व द्वितीय पर १६ पंक्तियां खुदी हुई हैं। प्रत्येक पंक्ति में प्रायः ३५ अक्षर खुदे हैं । इसमें अक्षरों की बनावट सुन्दर है व सारा अभिलेख बहुत अच्छी हालत में है । दूसरे ताम्रपत्र पर अन्त में नरेश के हस्ताक्षर हैं । इसी ताम्रपत्र में नीचे बायें कोने में एक दोहरी पंक्ति का चौकोर बना है । इसमें उड़ते हुए गरुड़ की आकृति बनी हुई है जिसका शरीर मनुष्य के समान है परन्तु मुखाकृति पक्षी की है । इसके दाहिने हाथ में एक फणदार नाग है । यह परमार राजवंशीय चिह्न है । अभिलेख के अक्षरों की बनावट दसवीं शती की नागरी लिपि है। यह पूर्ववणित हरसोल के प्रथम अभिलेख से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। इस की भाषा संस्कृत है व पद्य गद्यमय है । इसमें कुल नौ श्लोक हैं। शेष सारा अभिलेख गद्य में है । Jain Education International व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से इस में कुछ विचारणीय तथ्य हैं । ब के स्थान पर सभी स्थलों पर व का प्रयोग किया गया है । र के बाद का व्यंजन दोहरा कर दिया गया है जैसे नर्मदा पंक्ति ८-९ सर्व्वदा पंक्ति २४ आदि । श के स्थान पर स का प्रयोग जैसे पिसाच पंक्ति १३, चतुर्द्दस्याम पंक्ति १४ । श्लोक एवं बाक्यों के अन्त में म् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया गया है । कहीं कहीं पर शब्द ही गलत लिखे हैं जैसे संवत्सरे के स्थान पर सम्वत्सरे, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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