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________________ पाणाहेड़ा अभिलेख भोग्यपुर, पानाछ्य, मण्डलद्रह तथा मंडलेश्वर ग्रामों में कुछ भूमियां दान करने का उल्लेख है । श्लोक ५२ के अनुसार स्त्रियों के पांवों के पायजेबों की झंकार से मुखरित पाणाहेडा नगर शिवजी के भोग के लिये प्रदान किया गया । श्लोक ५३ में उस नगर में शुद्ध द्रव्य, भूमि एवं घाट आदि का दान किया गया। सभी दान मण्डलीक के द्वारा दिये गये थे। ___अभिलेख में उल्लिखित मालवा के परमार राजवंश तथा वागड शाखा के शासकों के नाम एवं क्रम की अन्य अभिलेखों से पुष्टि होती है। राजवंशीय नरेश सर्वश्री सीयक द्वितीय, मुंजदेव, सिंधुराजदेव तथा भोजदेव पूर्ववणित अभिलेखों में इसी क्रम में मिलते हैं। जयसिंहदेव प्रथम का, भोजदेव के उत्तराधिकारी के रूप में, उल्लेख उसके पूर्ववणित मांधाता अभिलेख (क्रमांक १९) में मिलता है। प्रस्तुत अभिलेख के आधार पर जयसिंह प्रथम के शासनकाल में ४ वर्ष की वद्धि होती है। वागड शाखा के शासकों में धनिक, चच्च, सत्यराज, लिम्बराज तथा मण्डलीक है। इनमें दो नाम कंकदेव एवं चंडप नहीं हैं जो अर्थणा के संवत् ११३६ के चामुण्डराज के अभिलेख में हैं (एपि. इं., भाग १४, पृष्ट २९५ व आगे) । संभव है कि प्रस्तुत अभिलेख के क्षतिग्रस्त श्लोकों में ये नाम भी रहे हों । भौगोलिक स्थानों में पांशुलाखेटक प्रस्तुत अभिलेख का प्राप्तिस्थान पाणाहेडा है। नट्टपाटक वर्तमान नाटावाड ग्राम है । यह पाणाहेडा से पश्चिम की ओर दो मील है । देउलपाटक आधुनिक देलवाड़ा है जो जगपुड़ा से दक्षिण-पश्चिम की ओर ४ मील है। भोग्यपुरा भगोरा है। यह पाणाहेडा से उत्तर-पश्चिम में ३ मील है। पानाछ्य पाणाहेडा से ४ मील दूर पानासी है। मण्डलग्रह मादल्डा है जो नाटापाडा से पश्चिम को ४ मील है। नग्नतडाग नागेला तालाब है जो पाणाहेडा में मंडलेश्वर मंदिर के पास है। खलिघट्ट नर्मदा के किनारे खलघाट है। यह बम्बई-इन्दौर मार्ग पर स्थित है । विंशोपक एक सिक्का था। डी. आर. भण्डारकर के अनुसार यह तांबे का होता था। इसका मूल्य द्रम्म का बीसवां भाग होता था (कार्माइकल लेक्चर्स, पृष्ठ २०८ ) । मूलपाठ (श्लोक १. २. ५२ - आर्या; ३. ४. ५.६.८.११. १३. १४. १५. २३. २६ . २९. ३१. ३२. ३९. ६०-शार्दूलविक्रीडित; ७.१६-वसन्ततिलका; ९. १०. १२. १७. १८ . २२. ३३-स्रग्धरा; १९. २०. २४. २५. २७. २८. ३०. ३४. ३६ . ३७. ४४--५१ . ५३--५९. ६१--अनुष्टुभ; २१--मालिनी; ३५--शालिनी; ३८---उपजाति; ४०-४३-तोटक) १. ओं। ओं नम: शिवाय। धृतगगनसिंधुपट्टः शैलसुताशालभंजिकासुभगः । जयति जगत्रयमंडप मूलस्तंभो महादेवः ।।१।। जयति शिवो यन्मू[नि]- - - - - - - । - - - - - - - - - - - - - - ।।२।। --- --[श] - शांककलया सद्यः प्रपद्यामतं वामः प्राप्य सुरां जगाम गरलग्रासादघोरः सुखं । ईशानेन समुद्रमंथन विधौ नेचोकृत: पन्नगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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