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________________ ६७ प्रस्तावना दार्शनिकवादोनी विस्तृत चर्चाओथी आ ग्रंथ परिपूर्ण छे, ए जोतां नयचक्रकार आचार्यश्री मल्लवादी तथा टीकाकारश्री सिंहसूरिक्षमाश्रमण अनेक शास्त्रोनुं केवु अगाध पांडित्य धरावता हता, ए स्पष्ट जोई शकाय छ । दार्शनिक प्रतिवादीओनी सामे एकेक विषयमा अनेक विकल्पो रजु करीने तेमनुं खंडन करवामां मल्लवादी अत्यंत कुशळ हता ए आखा ग्रंथमां सर्वत्र जोई शकाय छे । दार्शनिक चर्चाओमां हजारो भांगाओनी जाळ उभी करवी ए मल्लवादीनी खास विशिष्टता छ, जुओ पृ० ३११ पं० ६, २५ । नयचक्रमां अंते पृ० -२ मां अनेकान्तवादनी सिद्धि पदोना संयोगोथी थता १६७६९०२५ भांगाथी करी छ । सम्मतिटीकामां पण मल्लवादीजीए पोतानी विशिष्ट शैली प्रमाणे करोडो भांगाओनी रचना करी हशे एम सम्मतिटीकामां अभयदेवसूरिजी महाराज तथा अष्टसहस्रीतात्पर्यविवरणमा उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजे करेला उल्लेख उपरथी जणाय छे, एटले प्रतिवादीओनी सामे विकल्पजाल अने भंगजालनी रचना ऊभी करीने सामा पक्षनो पराजय करवो ए मल्लवादीनी खास विशिष्टता छ । आ प्रमाणे नयचक्रमा उल्लिखित ग्रंथ, ग्रंथकार, वाद वगेरेनो स्वल्प परिचय आपीने हवे आ प्रथम भागमा प्रकाशित करेला चार अरनो विषय अहिं संक्षेपमा जणावीए छीए । विस्तारार्थीओए विषयानुक्रम ज जोई लेखो। चार अरोनो विषय ___ ग्रंथना प्रारंभमां मंगलाचरणमां अनेकान्तवादात्मक जैनशासननी स्तुति करीने पछी जैनेतरदर्शनो विधिनियमभङ्गवृत्तिव्यतिरिक्त होवाथी असत्य छे, अर्थात् विधिनियमभङ्गवृत्तियुक्त होवाथी जैनशासन ज सत्य छे एम जणावता विधिनियमभङ्गवृत्तिव्यतिरिक्तत्वादनर्थकवचोवत् । जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधर्म्यम् ॥ आ प्राचीन गाथासूत्रनो उपन्यास करीने तेना विवरणमां विधि आदि बार नयोनो ग्रंथकारे नामोल्लेख कर्यो छ । पछी 'यथोद्देशं निर्देशः' ए न्यायथी विधिनयनुं निरूपण ग्रंथकारे शरू कयुं छे । प्रथम विधि अर पहेलां परपक्षनुं खंडन, पछी खमतनुं स्थापन, पछी ते ते नयसंमत शब्दार्थ तथा वाक्यार्थनिरूपण, पछी ते ते नयनो नैगमादिनयमां यथायोग्य अंतर्भाव अने जैनदर्शन सर्वनयसमूहात्मक होवाथी जैनागमोमां ते ते नयवादनुं क्या बीज रहेलुं छे ए दरेक नयने अंते बताव्युं छे । आ प्रतिपादनशैली आखा य ग्रंथमां व्यापक छ । ए शैलीप्रमाणे विधिवादी पहेलां परमतना खंडननो प्रारंभ करे छे । 'यथालोकग्राहं वस्तु' लोकोमा जे रीते अनुभव थाय छे ते प्रमाणे ज वस्तुनुं खरूप छे, एवी विधिनयनी मान्यता छ। एकांत १ बौद्ध ग्रंथोमां भंग माटे विभंग शब्दनो प्रयोग जोवामां आवे छे. पदोना संयोगोथी थता आवा अनेक विभंगोनुं वर्णन अमिधर्मपिटकना विभंगप्रकरण वगेरे ग्रंथोमा छे जुओ The Methodology of Vibhangaprakarana by Lr. D. Dhammaratana. The Nava-Nalandā-Mahavlhāra Research Publication Volume II pp. 235-320 ॥ २ जुओ प्राक्कथन पृ० १७ टि० ४ ॥ ३ विधिनयनी मान्यता तथा दिनाग, वार्षगण्य, कणाद आदिनुं तेणे करेलुं खंडन कया कया स्थाने छे ते वगेरे जाणवा माटे जुओ प्राकथन पृ० २६ ॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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