SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नं० भाषाटिप्पणानां विषयानुक्रमणिका । पृ० पं० नं० पृष्ठ पं० आचार्यों का निर्देश ५० १० के भेदाभेदवाद का संक्षिप्त इतिहास ५२ कल्पना शब्द की अनेक अर्थों में और गुण-पर्याय तथा द्रव्य के भेदाभेदप्रसिद्धि होने की सूचना ५१ ८ वाद के बारे में दार्शनिकों के मन्तव्यों ५३ जैमिनी के प्रत्यक्ष सूत्र की व्याख्या के का दिग्दर्शम ५४ १७ विषय में मीमांसकों के मतभेदों का ५७ केवल नित्यत्व आदि भिन्न २ वादों के निर्देश और उस सूत्रका खण्डन करने समर्थन में सभी दार्शनिकों के द्वारा वाले दार्शनिकों का निर्देश ५१२० प्रयुक्त बंध-मोक्ष की व्यवस्था आदि ५४ सांख्यदर्शनप्रसिद्ध प्रत्यक्षलक्षण के तीन समानयुक्तियों का ऐतिहासिक दिग्दर्शन ५७ २१ प्रकारों का निर्देश और उनके कुछ ५८ सन्तान का वर्णन और उसका खण्डन खण्डन करनेवालों की सूचना ५२ १६ करने वालों का निर्देश ६० २० ५५ प्रमाण की विषयभूत वस्तु के स्वरूप ५६ अनेकान्तवाद के इतिहास पर दृष्टिपात ६१ ५ तथा वस्तुस्वरूपनिश्चायक कसौटिओं ६० अनेकान्तवाद पर दिये जाने वाले दोषों के बारे में दार्शनिकों के मन्तव्यों का की संख्या विषयक भिन्न भिन्न परंपराओं दिग्दर्शन। बौद्धों की अर्थक्रियाकारित्व का ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन ६५ ८ रूप कसौटी का अपने पक्ष की सिद्धि ६१ फल के स्वरूप और प्रमाण-फल के में आचार्य द्वारा किये गये उपयोग भेदामेदवाद के विषय में वैदिक, बौद्ध का निर्देश और जैन परंपरा के मन्तव्यों का ऐति५६ व्याकरण, जैन तथा जैनेतर दार्शनिक हासिक दृष्टि से तुलनात्मक वर्णन ६६ ७ साहित्य में द्रव्य शब्द की भिन्न भिन्न ६२ आत्मा के स्वरूप के बारे में दार्शनिकों अर्थों में प्रसिद्धि का ऐतिहासिक सिंहा के मन्तव्यों का संक्षिप्त वर्णन ७० ८ वलोकन । जैनपरंपराप्रसिद्ध गुण-पर्याय द्वितीयाहिक । ६३ भिन्न भिन्न दार्शनिकों के द्वारा रचित उसके स्वरूप और प्रामाण्य के बारे में । स्मरण के लक्षणों के भिन्न भिन्न आधारों दार्शनिकों के मन्तव्यों की तुलना ७६ २५ का दिग्दर्शन ७२ २ ६६ हेमचन्द्र द्वारा स्वीकृत अर्चटोक्त व्याप्ति ६४ अधिक से अधिक संस्कारोबोधक का रहस्योद्घाटन ७८ २५ निमित्तों के संग्राहक न्यायसूत्र का निर्देश ७२ १६ ७० अनुमान और प्रत्यक्ष के स्वार्थ-परार्थरूप ६५ स्मृति ज्ञान के प्रामाण्य और अप्रामाण्य दो भेदों के विषय में दार्शनिकों का के विषय में दार्शनिकों की युक्तियों मन्तव्य ८० १६ का ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक ७१ हेतु के स्वरूप के बारे में दार्शनिकों की दिग्दर्शन ७२ २१ भिन्न-भिन्न परंपराओं का ऐतिहासिक ६६ 'नाकारणं विषयः' इस विषय में सौत्रा दृष्टि से तुलनात्मक विचार ८०३० म्तिक और नैयायिकों के मन्तव्य की ७२ हेतु के प्रकारोंके बारे में जैनाचार्यों के तुलना ७४ २४ मन्तव्यों का ऐतिहासिक दृष्टि से ६७ प्रत्यभिज्ञा के स्वरूप और प्रामाण्य के अवलोकन ८३ २३ बारे में दार्शनिकों के मतभेद का ७३ कारणलिङ्गक अनुमान के विषय में तुलनात्मक दिग्दर्शन ७५ ३. धर्मकीर्ति के साथ अपना मतभेद होने ६५ ऊह और तर्क शब्दों का निर्देश तथा पर भी हेमचन्द्र ने उनके लिये 'सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy