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________________ [भगवान् ऋषभदेव और उनका परिवार : २५ सम्बन्धों के विविध पहलुओं के बारे में आवश्यक सबक सीख सकते हैं और जरूरी बल भी पा सकते हैं। भरत सुन्दरी के साथ विवाह करना चाहता था। सुन्दरी, भरत को अपात्र गिनती हो, यह बात तो नहीं थी, पर विवाह करना ही नहीं चाहती थी। वह ब्राह्मी का अनुसरण करके संन्यास-धर्म अंगीकार करना चाहती थी। यद्यपि वह उस समय की समाज-रचना तथा कुटुम्ब-रचना एवं कुटुम्बमर्यादा के अनुसार बिलकुल स्वतन्त्र रूप से पली हुई थी, फिर भी उसने भरत की इच्छा का स्पष्ट शब्दों में इन्कार न करके उग्रतप द्वारा सौन्दर्य को नष्ट करके भरत का आकर्षण मिटाने का मार्ग स्वीकार किया।1 सून्दरी का यह व्यवहार ऋषभ की पूत्री या बाहुबली की बहन को शोभा दे, ऐसा है या मध्ययुग की किसी अबला के लिए लागू हो, ऐसा है ? विचारक को सुन्दरी के इस तपोनुष्ठान में ऐकान्तिक निवृत्तिधर्म के युग की छाप मालूम हुए बिना शायद ही रह सके । चाहे जो हो, पर इस स्थान पर सुन्दरी और भरत के युगल की ऋग्वेद के यम-यमी युगल के साथ खास तुलना करने योग्य है । ऋग्वेद में यमी अपने सगे भाई यम को अपने साथ विवाह करने की प्रार्थना करती है । जब भाई यम उसको किसी दूसरे पुरुष को पसन्द करने तथा अपने को न चुनने के लिए कहता है, तो यमी चण्डी का रूप धारण करके भाई यम को हिजड़ा तक कहकर उसका तिरस्कार किन्तु देवो यदाद्यगाद् दिग्विजयाय तदाद्यसौ । आचामाम्लानि कुरुते प्राणत्राणाय केवलं ॥७४६।। तथा यदैव देवेन प्रव्रजन्ती न्यषिध्यत । ततः प्रभृत्यसौ तस्थौ भावतः संयतैव हि ॥७४५।। अनुज्ञाता नरेन्द्रेण मुदितेन व्रताय सा। तपःकृशाऽप्यकृशेव प्रमदोच्छ्वसिताऽभवत् ॥७५४॥ -त्रिषष्टि० १.४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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