SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० आगम-युग का जैन-दर्शन उत्पाद और व्यय-शील नहीं माना है। द्रव्य-नय के प्राधान्य से जब वस्तुदर्शन होता है, तब हम इसी परिणाम पर पहुँचते हैं। किन्तु वस्तु केवल द्रव्य अर्थात् गुण-पर्याय शून्य नहीं है, और न स्वभिन्न गुण पर्यायों का अधिष्ठानमात्र । वह तो वस्तुतः गुणपर्यायसमय है। हम पर्याय-नय के प्राधान्य से वस्तु को एकरूपता के साथ नानारूप में भी देखते हैं । अनादि-अनन्तकाल प्रवाह में उत्पन्न और विनष्ट होने वाले नानागुण-पर्यायों के बीच हम संकलित ध्र वता भी पाते हैं । यह ध्रुवांश कूटस्थ न होकर सांख्यसंमत प्रकृति की तरह परिणामीनित्य प्रतीत होता है। यही कारण है कि आचार्य ने पर्यायों में केवल उत्पाद और व्यय ही नहीं, किन्तु स्थिति भी मानी है। सत्कार्यवाद-असत्कार्यवाद का समन्वय : सभी कार्यों के मूल में एकरूप कारण को मानने वाले दार्शनिकों ने, चाहे वे सांख्य हों या प्राचीन वेदान्ती भर्तृ प्रपञ्च आदि या मध्यकालीन वल्लभाचार्य.3 आदि, सत्कार्यवाद को माना है। उनके मत में कार्य अपने-अपने कारण में सत् होता है । तात्पर्य यह है कि असत् की उत्पत्ति नहीं, और सत् का विनाश नहीं। इसके विपरीत न्याय वैशेषिक और पूर्वमीमांसा का मत है, कि कार्य अपने कारण में सत् नहीं होता । पहले असत् ऐसा अर्थात् अपूर्व ही उत्पन्न होता है । तात्पर्य यह हुआ कि असत् की उत्पत्ति और उत्पन्न सत् का विनाश होता है। आगमों के अभ्यास से हमने देखा है, कि द्रव्य और पर्याय दृष्टि से एक ही वस्तु में नित्यानित्यता सिद्ध की गई है। उसी तत्त्व का आश्रय लेकर प्राचार्य कुन्दकुन्द ने सत्कार्यवाद-परिणामवाद और असत्कार्यवाद-प्रारम्भवाद का समन्वय करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने द्रव्य-नय का प्राश्रय लेकर सत्कार्यवाद का समर्थन किया है, कि "भावस्स णत्थि णासो णस्थि अभावस्स उप्पादो।" (पंचा० १५) द्रव्यदृष्टि से २ प्रवचन० २.६ । पंचा० ११ । ८२ प्रमाणमी० प्रस्ता० पृ० ७ । ८४ वही पृ० ७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy