SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० श्रागम युग का जैन-दर्शन किञ्चित्साधम्र्योपनीत के उदाहरण हैं । जैसा मंदर - मेरु है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षप है, वैसा मंदर है; जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । जैसा आदित्य है वैसा खद्योत है, जैसा खद्योत है वैसा आदित्य है । जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है ।४५ प्रायः साधर्म्यापनीत के उदाहरण हैं । जैसा गौ है वैसा गवय है, जैसा गवय है वँसा गौ है । ४६ सर्वसाधर्म्यापनीत -- वस्तुतः सर्वसाधर्म्यापमान हो नहीं सकता फिर भी किसी व्यक्ति की उसी से उपमा की जाती है, यह व्यवहार देखकर उपमान का यह भेद भी शास्त्रकार ने मान्य रखा है । इसके उदाहरण बताए हैं कि - अरिहंत ने अरिहंत जैसा ही किया, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती जैसा ही किया इत्यादि । ४७ वैधम्र्योपनीत भी तीन प्रकार का है१. किञ्चिद्वै २. प्रायोवैधर्म्य ३. सर्ववैधर्म्य १. किञ्चिद्व धर्म्य का उदाहरण दिया है, कि जैसा शाबलेय है वैसा बाहुलेय नहीं । जैसा बाहुलेय है वैसा शाबलेय नहीं ।" २. प्रायोवैधर्म्य का उदाहरण है— जैसा वायस है वैसा पायस नहीं है । जैसा पायस है वैसा वायस नहीं है । ४९ ३. सर्ववैधर्म्य - सब प्रकार से वैधर्म्य तो किसी का किसी से 6'2 "जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्यं. जहा गोप्ययं तहा समुद्दो । जहा श्राइच्चो तहा खज्जोतो, जहा जोतो तहा श्राइच्चो, जहा चन्दो तहा कुमुदो जहा कुमुदो तहा चन्वो ।" ४६ "जहा गो तहा गवप्रो, जहा गवश्रो तहा गो ।" 619 16 'सव्व साहम्मे प्रवम्मे नत्थि, तहावि तेणेव तस्स श्रवम्मं कोरइ, जहा श्ररिहतेणं अरिहंतसरिसं कयं" इत्यादि - ૮ जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, जहा बाहुलेरो न तहा सामलेरो ।” ० ९ जहा वायसो न तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy