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________________ ८८ भामम-युग का जैन-वर्शन अर्थत् परमाणु चार प्रकार के हैं १. द्रव्य-परमाणु २. क्षेत्र-परमाणु ३. काल-परमाणु ४. भाव-परमाणु वर्णादिपर्याय की अविवक्षा से सूक्ष्मतम द्रव्य परमाणु कहा जाता है । यही पुद्गल परमाणु है जिसे अन्य दार्शनिकोंने भी परमाणु कहा है,आकाश द्रव्य का सूक्ष्मतम प्रदेश क्षेत्रपरमाणु है । सूक्ष्मतम समय कालपरमाणु है । जब द्रव्य परमाणु में रूपादिपर्याय प्रधानतया विवक्षित हों, तब वह भावपरमाणु है। . द्रव्य परमाणु अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य है । क्षेत्रपरमाणु अनर्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाग है। कालपरमाणु अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है। भावपरमाणु वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त है । दूसरे दार्शनिकों ने द्रव्यपरमाणु को एकान्त नित्य माना है, तब भगवान् महावीर ने उसे स्पष्ट रूप से नित्यानित्य बताया है “परमाणपोग्गले णं भंते कि सासए प्रसासए ?" "गोयमा, सिय सासए सिए प्रसासए"। "से केणढणं ?" "गोयमा, दव्वट्ठयाए सासए वन्नपज्जवेहिं जाव फासपाहि प्रसासए ।" भगवती-१४.४.५१२, . अर्थात् परमाणु पुद्गल द्रव्यदृष्टि से शाश्वत है और वही वर्ण, रस, गंध और स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत है। अन्यत्र द्रव्यदृष्टि से परमाणु की शाश्वतता का प्रतिपादन इन शब्दों में किया है "एस गं भंते, पोग्गले तीतमणतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्य सिया ?" "हंता गोयमा, एस णं पोग्गले......सिया।" ७४ भगवती २०.५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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