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________________ पुद्रस्कन्ध। १२३ ६१२ पुद्गलस्कन्ध । मा० कुन्दकुन्दने स्कन्धके छ मेद बताये हैं जो वाचकके तत्वार्थमें तथा आगोंमें उस रूपमें देखे नहीं जाते। वे छ: मेद ये हैं१पतिस्थूलस्थूल-पृथ्वी, पर्वतादि । २ स्थूढ़-घृत, जल, तैलादि । ३.स्यूलसूक्ष्म - छाया, आतप आदि । १ सूक्ष्म-स्थूल-स्पर्शन, रसन, प्राण और श्रोत्रेन्द्रियके विषयभूत स्कन्ध । ५ सूक्ष्म-कार्मणवर्गणाप्रायोग्य स्कन्ध । ६ अतिसूक्ष्म-कार्मणवर्गणाके मी योग्य जो न हों ऐसे अतिसूक्ष्म स्कंध । ११३ परमाणुचर्चा । भागमवर्णित द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव परमाणुकी तथा उसकी नित्यानित्यताविषयक चर्चा हमने पहले की है। वाचकने परमाणुके विषयमें 'उक्तं च' कह करके किसीके परमाणुलक्षणको उद्धृत किया है वह इस प्रकार है "कारणमेव सदस्य सुमो नित्यच भवति परमाणुः । एकरसगन्धवों हिस्पर्शः कार्यलिशया" इस लक्षणमें निम्न बातें स्पष्ट है१ विप्रदेशादि समी स्कन्धोंका असकारण परमाणु है । २ परमाणु सूक्ष्म है। १ नित्य है। १ परमाणुमें एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण, दो स्पर्श होते हैं। ५ परमाणुकी सिद्धि कार्यसे होती है। इन पांच बातोंके अलावा वाचकने 'मेदादणुः' (५.२७) इस सूत्रसे परमाणुकी उत्पत्ति मी बताई है। अत एव यह स्पष्ट है कि वाचकने परमाणुकी नित्यानित्यताका स्वीकार किया है जो आगममें प्रतिपादित है। परमाणुके सम्बन्धमें आचार्य कुन्दकुन्दने परमाणुके उक्त लक्षणको और भी स्पष्ट किया है। इतना ही नहीं किन्तु उसे दूसरे दार्शनिकों की परिभाषामें समझानेका प्रयन भी किया है । परमाणुके मूल गुणोंमें शब्दको स्थान नहीं है तब पुग्नल शब्दरूप कैसे और कब होता है (पंचा० ८६.) इस बातका भी स्पष्टीकरण किया है। भा० कुन्दकुन्दके परमाणुलक्षणमें निम्न बातें हैं। १, समी स्कन्धोंका अंतिमभाग परमाणु है। २ परमाणु शाश्वत है। ३ अशन्द है। फिर मी शब्दका कारण है। १ अविभाज्य ऐसा एक है। ५ मूर्त है। पंचा० ४४,४५,60, नियमसार २५-२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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