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________________ तियंच, सासादनसम्यग्न दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क एकेन्द्रिय बादर] ११८-२६ पृथिवी, अप.व | (सम्यग्मिथ्यावनस्पतिकायिक || शतार-सह- दृष्टि का प्रत्येकशरीर || गर्भज, पर्याप्त वस्रार कल्पवा-मरण सम्भव | पर्याप्त तथा || संख्यातवर्षायुष्क सी देवों तक नहीं। सूत्र पंचेन्द्रिय संज्ञी १३०) गर्भज पर्याप्त संख्यातवर्षायु. सौधर्म-ईशान १३१-३३ से लेकर आरण-अच्युत कल्प तक तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क| - तिर्यंच मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क भवनवासी,१३४-३६ व व्यन्तर और१३७(मिश्र में ज्योतिषी देव | मरण नहीं) तिर्यच असंयतसम्यगदृष्टि असंख्यातवर्षा सौधर्म-ईशान कल्पवासी १३८-४० युष्क मनुष्य मनुष्य पर्याप्त मिथ्या- सब दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क | नारक सब तिर्यंच | सब मनुष्य भवनवासियों| १४१-४६ | से लेकर नौ ग्रेवेयकों तक मनुष्य अपर्याप्त १४७-४६ असंख्यातवर्षा- | असंख्यातवर्षा युष्कों को छोड़- युष्कों को छोड़। कर सब तिर्यंच | सब मनुष्य मनुष्य सासादनसम्यग-1 - | एकेन्द्रिय बादर गर्भज, पर्याप्त | भवनवासियों| १५०-६१ दृष्टि संख्यातवर्षायष्क पृथिवी, अप, वन- संख्यात व असं-[ से लेकर नौ| (मिश्र गुण स्पतिकाय, प्रत्येक ख्यातवर्षायुष्क | ग्रेवेयकों तक स्थान में मरण शरीर तथा संज्ञी, सम्भव नहीं) गर्भज पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य सम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क सौधर्म-ईशान । १६३-६५ से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक परिशिष्ट १ / ७७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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