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________________ उसमें उन्होंने क्या लिखा था यह वहाँ स्पष्ट नहीं है। किन्तु इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार में यह कहा गया है कि उस समय ब्रह्मचारी के हाथ से उस लेख-पत्र को लेकर व बन्धन को छोड़कर उन महात्मा आचार्यों ने उसे इस प्रकार पड़ा-स्वस्ति श्रीमान् ! ऊजर्यन्त तट के निकटवर्ती चन्द्रगुफावास से धरसेन गणी वेणाक तट पर समुदित यतियों की वन्दना करके इस कार्य को कहता है कि हमारी आयु बहुत थोड़ी शेष रह गयी है, इससे हमारे द्वारा सुने गये (अधीत) शास्त्र की व्युच्छित्ति जिस प्रकार से न हो उस प्रकार से ग्रहण-धारण में समर्थ तीक्ष्णबुद्धि दो यतीश्चरों को आप भेज दें।' प्राकृत पट्टावली यह पट्टावली 'जैन सिद्धान्त भास्कर' भाग १, कि० ४, सन् १९१३ में छपी है जो अब उपलब्ध नहीं है । इसके प्रारम्भ में ३ संस्कृत श्लोक हैं, जो स्वयं पट्टावली के कर्ता द्वारा न लिखे जाकर किसी अन्य के द्वारा उसमें योजित किये गये दिखते हैं। इनमें ३ केवलियां, ५ श्रुतकेवलियों, ११ दशपूर्वधरों, ५ एकादशांगधरों तथा ४ दश-नव-आठ अंगधरों के नामों का निर्देश करते हुए उनमें से प्रत्येक के समय का भी उल्लेख पृथक्-पृथक् किया गया है। साथ ही सम्मिलित रूप उनके समुदित काल का भी वहाँ निर्देश किया गया है । यहाँ दशपूर्वधरों व दशनव-आठ पूर्वधरों के काल का निर्देश करते हुए दोनों में कहीं २-२ वर्ष की भूल हुई है, अन्यथा समुदित रूप में जो उनका काल निर्दिष्ट है वह संगत नहीं रहता। उक्त पट्टावली के अनुसार वह वीरनिर्वाणकाल से पश्चात् की कालगणना इस प्रकार है-- १. गौतम केवली १२ वर्ष २. सुधर्म १२॥ ३. जम्बूस्वामी ३८, ६२ वर्ष श्रुतकेवली १४ वर्ष ४. विष्णु ५. नन्दिमित्र ६. अपराजित ७. गोवर्धन ८. भद्रबाहु २२॥ २६॥ १०० वर्ष दशपूर्वधर १० वर्ष ६. विशाखाचार्य १०. प्रोष्ठिल ११. क्षत्रिय १२. जयसेन १६॥ १७ , २१॥ १. इ० श्रु तावतार १०८-१० २. विशेष के लिए देखिये १० ख० पु० १ की प्रस्तावना, पु० २४-२६ षट्खण्डागम : पीठिका | १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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