SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 675
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यणविधाणं वच्चदे' इसी प्रतिज्ञा के साथ लोक के पर्यन्त भाग में स्थित वायुओं के घनफल को जिस गद्यभाग के द्वारा दिखलाया गया है, वह तिलोयपण्णत्ती के उपर्युक्त गद्यभाग से शब्दशः समान है। विशेषता यह रही है कि तिलोयपण्णत्ती में कृत प्रतिज्ञा के अनुसार आगे आठ पृथिवियों के नीचे वायुमण्डल द्वारा रोके गये क्षेत्र के घनफल को और आठ पृथिवियों के भी घनफल को जैसे प्रकट किया गया है वैसे प्रसंग के बहिर्भूत होने से यहाँ धवला में उसे नहीं दिखलाया गया है। इस प्रकार दोनों ग्रन्थगत इन प्रसंगों को देखते हुए यह कहना शक्य नहीं है कि तिलोयपण्णत्ती में धवला से इस गद्यभाग को लिया गया है अथवा धवला में उसे तिलोपयण्णत्ती से लिया गया है। ख-तिलोयपण्णत्ती के 'ज्योतिर्लोक' नामक सातवें महाधिकार के प्रारम्भ में निर्दिष्ट (७, २-४) अवान्तर अधिकारों के अनुसार ज्योतिषी देवों की क्रम से प्ररूपणा की गयी है। वहाँ क्रमप्राप्त अचर ज्योतिषियों की प्ररूपणा करते हए सपरिवार समस्त चन्द्रों के प्रमाण को निकाला गया है। उधर धवला में स्पर्शनानुगम के प्रसंग में ज्योतिषी सासादनसम्यग्दृष्टियों के स्वस्थान क्षेत्र की प्ररूपणा करते हुए समस्त ज्योतिषियों की संख्या को जान लेने की आवश्यकता पड़ी है। इसके लिए वहाँ भी सपरिवार समस्त चन्द्रों के प्रमाण को निकाला गया है। दोनों ग्रन्थगत उनकी यह प्ररूपणा प्रायः शब्दशः समान है । यथा--- "(एत्तो) चंदाण सपरिवाराणयणविहाणं वक्त इस्सामो। तं जहा-जंबूदीवादिपंचदीव-समुद्दे मुत्तूण तदियसमुद्दमादि कादूण जाव सयंभूरमणसमुद्दो ति एदासिमाणयण किरिया ताव उच्चदे-तदियसमुद्दम्मि गच्छो बत्तीस, च उत्थदीवे गच्छ चउसट्ठी,. . . . . . . .।" -ति०प०, भाग २, पृ० ७६४-६६ __ "(तिरियलोगावट्ठिदसयल-) चंदाणं सपरिवाराणमाणयणविहाणं वत्तइस्सामो । तं जहाजंबूदीवादि पंचवीव-समुद्दे मोत्तूण तदियसमुद्दमादि कादूण जाव सयंभूरमणसमुद्दो ति एदासिमाणयणकिरिया ताव उच्चदे-तदियसमुद्दम्मि गच्छो वत्तीस, चउत्यदीवे गच्छो चउसट्ठी... ......!"-धवला पु० ४, पृ० १५२-५६ इस प्रकार यह पूरा प्रकरण दोनों ग्रन्थों में शब्दशः समान है। अन्त में उपसंहार करते हए दोनों ग्रन्थगत प्रसंग के अनुसार जो अन्त में पाठ-परिवर्तन हुआ है, वह यहाँ द्रष्टव्य है। यथा "ति०५०-एसा तप्पाउग्गसंखेज्जरूवाहियजंबूदीवछेदणयसहिददीव-समुद्दरूवमेत्तरज्जुच्छेदणयपमाणपरिक्खाविहीण अण्णाइरियउवदेसपरंपराणुसारिणी, केवलं तु तिलोयपण्णत्तिसुत्ताणुसा. रिणी, जोदिसियभागहारपदुप्पाइदसुत्तावलंबिजुत्तिबलेण पयदगच्छसाधण?मेसा परूवणा परूविदा । तदो ण एत्थ इदमित्थमेवेत्ति एयंतपरिग्गहेण असग्गाहो कायव्वो।" ...... पृ० ७६६ "धवला--एसा तप्पाओग्गसंखेज्जरूवाहिय.........."पयदगच्छसाहणट्ठमम्हेहि परूविदा प्रतिनियतसूत्रावष्टम्भबल विज भितगुणप्रतिपन्नप्रतिबद्धासंख्येयावलिकावहारकालोवदेशवत् आ १. धवला, पु० ४, पृ० ५१-५५ अनिदिष्टनाम ग्रन्थ /६२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy