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________________ यहाँ प्रसंगप्राप्त मुहूर्त में दो श्लोकों के आश्रय से ३७७३ उच्छ्वासों का तथा ५११० निमेषों का भी उल्लेख है। तीस महर्मों का दिवस होता है, यह पहले कहा जा चुका है। वे मुहूर्त कौन से हैं, इसे स्पष्ट करते हुए धवला में किन्हीं प्राचीन श्लोकों के आधार से दिन के १५ और रात्रि के १५ मूहूर्त के नामों का निर्देश इस प्रकार किया गया है'--- ___दिनमुहूर्त--१. रौद्र, २. श्वेत, ३. मैत्र, ४. सारभट, ५. दैत्य, ६. वैरोचन, ७. वैश्वदेव, ८. अभिजित, ६. रोहण, १०. बल, ११. विजय, १२. नैऋत्य, १३. वारुण, १४. अर्यमन और १५. भाग्य । रात्रिमुहूर्त--१. सावित्र, २. धुर्य, ३. दात्रक, ४ यम, ५. वायु, ६. हुताशन, ८. भानु, ७. वैजयन्त, ६. सिद्धार्थ, १०. सिद्ध सेन, ११. विक्षोभ, १२. योग्य, १३. पुष्पदन्त, १४, सुगन्धर्व और १५. अरुण। ___ आगे एक अन्य श्लोक के आश्रय से यह अभिप्राय व्यक्त किया है कि रात और दिन दोनों का समय और मुहूर्त समान माने गये हैं। पर कभी (उत्तरायण में) छह मुहूर्त दिन को प्राप्त होते हैं और कभी (दक्षिणायन में) वे रात को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार उत्तरायण में दिन का प्रमाण अठारह (१२+६) मुहूर्त और रात का प्रमाण बारह मुहूर्त होता है। इसके विपरीत दक्षिणायन में रात का प्रमाण अठारह मुहूर्त और दिन का प्रमाण बारह महूर्त हो जाता है। इस प्रकार दिन के तीन मुहूर्त यदि कभी रात्रि में सम्मिलित हो जाते हैं तो कभी रात्रि के तीन मुहर्त दिन में सम्मिलित हो जाते हैं। __इसी प्रसंग में आगे धवला में “दिवसानां नामानि' ऐसी सूचनापूर्वक एक अन्य श्लोक के द्वारा तिथियों के इन पाँच नामों का निर्देश है-नन्दा, भद्रा, जया, रिवता और पूर्णा । यथाक्रम से इनके ये देवता भी वहाँ निर्दिष्ट हैं-चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, आकाश और धर्म । उन तिथियों का प्रारम्भ प्रतिपदा से होता है। जैसे-प्रतिपदा का नाम नन्दा, द्वितीया का नाम भद्रा, तृतीया का नाम जया, चतुर्थी का नाम रिक्ता, पंचमी का नाम पूर्णा, पुनः परिवर्तित होकर षष्ठी का नाम नन्दा, सप्तमी का जया, अष्टमी का भद्रा, इत्यादि । तदनुसार प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी इन तीन तिथियों को नन्दा; द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी को भद्रा, तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी इन तीन को जया; चतुथीं, नवमी और चतुर्दशी को रिक्ता; तथा पंचमी, दशमी और पूर्णिमा को पूर्णा तिथि कहा जाता है। निर्देश-स्वामित्व आदि के क्रम से कालविषयक विचार धवलाकार ने प्रसंगप्राप्त विषय का विचार प्रायः निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, १. ये चारों श्लोक सिंहसूरर्षि विरचित लोकविभाग में प्रायः उसी रूप में उपलब्ध होते हैं। देखिए लो०वि० ६; १९७-२००; ज्योतिष्क रण्डक की मलयगिरि विरचित वृत्ति में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की तीन गाथाओं को उद्धत करते हुए ३० मुहूर्तों के नामों का उल्लेख किया गया है, जिनमें कुछ समान हैं। देखिए ज्यो०क०मलय ०वृत्ति ५२-५३ २. इस मुहूर्त आदिरूप काल की विशेषता के परिज्ञानार्थ धवला पु० ४, पृ० ३१८-१६ द्रष्टव्य हैं। ४१४ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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