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________________ बतलाकर ओघ और आदेश की अपेक्षा गुणस्थानों और मार्गणाओं में उनके अस्तित्व को प्रकट किया है । यथा बीस प्ररूपणाएं - धवलाकार ने इन बीस प्ररूपणाओं का वर्णन प्रथमतः ओघ ( गुणस्थानों) में और तत्पश्चात् आदेश (गति इन्द्रिय आदि मार्गणाओं) में क्रम से सामान्य जीव, पर्याप्त जीव और अपर्याप्त जीव इन तीन के आश्रय से किया है । सर्वप्रथम यहाँ सामान्य से जीवों में उन बीम प्ररूपणाओं के अस्तित्व को प्रकट करते हुए सभी (१४) गुणस्थानों का और सभी (१४) जीवसमासों का अस्तित्व दिखाया गया है। सिद्धों की अपेक्षा अतीत गुणस्थान और अतीत जीवसमास के भी अस्तित्व को प्रकट किया गया है।. पर्याप्तियों में संज्ञी पंचेन्द्रियों में पर्याप्तता की अपेक्षा ६ पर्याप्तियों और अपर्याप्तता की अपेक्षा ६ अपर्याप्तियों के अस्तित्व को दिखाया गया है । असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि द्वीन्द्रिय पर्यन्त पर्याप्त अपर्याप्तों में क्रम से ५ पर्याप्तियों और ५ अपर्याप्तियों के तथा एकेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्तों की अपेक्षा ४ पर्याप्तियों और ४ अपर्याप्तियों के अस्तित्व को प्रकट किया गया है । सिद्धों की अपेक्षा अतीत पर्याप्ति के भी अस्तित्व को दिखलाया गया है। प्राणों में संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तों के १०, अपर्याप्तों के ७; असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तों के ६, अपर्याप्तों के ७; चतुरिन्द्रिय पर्याप्तों के ८, अपर्याप्तों के ६; त्रीन्द्रिय पर्याप्तों के ७, अपर्याप्तों के ५; दीन्द्रिय पर्याप्तों के ६, अपर्याप्तों के ४; तथा एकेन्द्रिय पर्याप्तों के ४ व अपर्याप्तों के ३ प्राणों के अस्तित्व को प्रकट किया गया है। सिद्धों की अपेक्षा अतीत प्राण को भी दिखलाया गया है । इसी पद्धति से आगे की प्ररूपणाओं में संज्ञाओं, पृथक्-पृथक् गति इन्द्रियादि १४ मार्गणाओं और उपयोगों के अस्तित्व को बतलाया गया है। उपयोग के प्रसंग में साकार उपयोगयुक्त, अनाकार उपयोगयुक्त और एक साथ साकार - अनाकार उपयोगयुक्त (केवली व सिद्धों की अपेक्षा) जीवों के अस्तित्व को प्रकट किया गया है ।" इस प्रकार प्रथमतः धवला में जीवविशेष की विवक्षा न करके ओघ आलाप के रूप में सामान्य से जीवों में उपर्युक्त बीस प्ररूपणाओं के अस्तित्व को दिखलाकर आगे यथाक्रम से वहाँ पर्याप्त ओघआलाप, अपर्याप्त ओघआलाप, मिथ्यादृष्टि ओघआलाप, मिथ्यादृष्टि पर्याप्त ओघ आलाप, मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त ओघआलाप तथा इसी पद्धति से आगे सासादन सम्यग्दृष्टि आदि अन्य गुणस्थानों में सामान्य, पर्याप्त और अपर्याप्त ओघ आलापों में उक्त बीस प्ररूपणाओं के यथासम्भव अस्तित्व को प्रदर्शित किया गया है । उदाहरण के रूप में यहाँ पर्याप्त व अपर्याप्त ओघआलापों को स्पष्ट किया जाता है। पर्याप्त ओघआलाप जैसे सामान्य से पर्याप्त जीवों में (१) गुणस्थान चौदह पर अतीत गुणस्थान का अभाव; (२) जीवसमास सात ( पर्याप्त ) पर अतीत जीवसमास का अभाव, (३) पर्याप्तियाँ क्रम से संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि के क्रम से छह, पाँच व चार अतीत पर्याप्त का अभाव ; ( ४ ) संज्ञीअसंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि के प्राण क्रम से दस, नौ, आठ, सात, छह व चार अतीतप्राण का अभाव; (५) संज्ञाएँ चार व क्षीणसंज्ञा भी, (६) गतियाँ चार, गति का अभाव, (७) जातियाँ एकेन्द्रिय आदि पाँच, अतीत जाति का अभाव (८) काय पृथिवी आदि छह, अतीतकाय का १. धवला पु० २, पृ० ४१५-२० ३८६ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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