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________________ यहाँ यह भी स्मरणीय है कि आ० नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती विरचित गो० कर्मकाण्ड में चौथा 'त्रिचूलिका' अधिकार है । वहाँ तीन चूलिकाओं में से प्रथम चूलिका में उन्हीं नौ प्रश्नों को उठाया गया है जो प्रस्तुत पंचसंग्रह में उठाये गये हैं। विशेषता यह रही है कि पंचसंग्रह में जहां उन नो प्रश्नों को दो गाथाओं द्वारा उद्भावित किया गया है वहाँ कर्मकाण्ड में उन नो का निर्देश इस एक ही गाथा में कर दिया गया है-- कि बंधो उदयादो पुव्वं पच्छा समं विणस्सदि सो। स-परोभयोदयो वा णिरंतरो सांतरो उभयो ॥३६६।। आचार्य नेमिचन्द्र की यह पद्धति रही है कि उन्होंने पूर्ववर्ती षट्खण्डागम व उसकी टीका धवला आदि में विस्तार से प्ररूपित विषयों में यथाप्रसंग विवक्षित विषय का स्पष्टीकरण अतिशय कुशलता के साथ संक्षेप में कर दिया है। यही नहीं, आवश्यकतानुसार उन्होंने उनके अन्तर्गत कुछ गाथाओं को ज्यों-का-त्यों भी अपने इन ग्रन्थों में आत्मसात् कर लिया है। इस प्रकार धवला में पूर्णवर्ती किसी आगमग्रन्थ के आधार से जिन २३ प्रश्नों को उठाया गया है और यथाक्रम से उनका स्पष्टीकरण भी किया गया है उनमें से पूर्वोक्त नौ प्रश्नों को पंचग्रहण और कर्मकाण्ड में भी उठाकर स्पष्ट किया गया है।' विवशता इस प्रसंग में धवला में मिथ्यात्व, एकेन्द्रिय आदि चार जातियाँ, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन दस प्रकृतियों के उदयव्युच्छेद को मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के अन्तिम समय में दिखलाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि यह कथन महाकर्मप्रकृतिप्राभूत के उपदेशानुसार किया गया है। चूर्णिसूत्र कर्ता (यतिवृषभ) के उपदेशानुसार उक्त दस प्रकृतियों में से मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में पांच प्रकृतियों का ही उदयव्युच्छेद होता है, क्योंकि उनके द्वारा एकेन्द्रियादि चार जातियों और स्थावर प्रकृति का उदयव्युच्छेद सासादनसम्यग्दृष्टि के स्वीकार किया गया है । ____ आगे वहाँ 'एत्य उवसंहारगाहा' यह कहकर जिस “वस चबुरिगि सत्तारस" आदि गाथा को उद्धृत किया गया है वह कर्मकाण्ड (२६३) में उपलब्ध है । इस मतभेद का उल्लेख जिस प्रकार धवलाकार ने स्पष्टतया कर दिया है उस प्रकार से उसका कुछ उल्लेख पंचसंग्रह में नहीं किया गया है। वहाँ मिथ्यात्व, आताप, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन पाँच प्रकृतियों का उदयव्यूच्छेद मिथ्यादष्टि गुणस्थान में तथा अनन्तानुबन्धी चार, एकेन्द्रियादि जातियाँ चार और स्थावर इन नौ प्रकृतियों का उदयव्युच्छेद सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में कहा गया है।' __ पंचसंग्रह में जिस मूलगाथा (३-१८) के द्वारा गुणस्थानों में उदयव्युच्छित्ति की प्ररूपणा है वह भी कर्मकाण्ड में उपलब्ध होती है (२६४)। १. गो० कर्मकाण्ड में सादि, अनादि, ध्र व और अध्र व बन्ध की भी यथाप्रसंग चर्चा की गई है। (गाथा १० व १२२-२६) २. धवला पु० ८, पृ० ६ ३. पंचसंग्रह गाथा ३,१६-२० (भाष्यगाथा ३,३०-३१) षट्खण्डागम की अन्य प्रन्यों से तुलना / २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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