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________________ परिणत होनेवाले अभ्र, मेध, संध्या, विद्युत् और उल्का आदि अनेक पदार्थों का उल्लेख किया है वहाँ तत्त्वार्थवार्तिक में केवल विद्युत्, उल्का, जलधारा, अग्नि और इन्द्रधनुष इनका मात्र उल्लेख किया गया है। (ख) इसके पूर्व ष० ख० में जो उसी सादि विस्रसाबन्ध के प्रसंग में स्निग्धता और रूक्षता के आश्रय से होनेवाले परमाणुओं के पारस्परिक बन्ध के विषय में विचार किया गया है उसमें कुछ मतभेद रहा है।' त० वा० में बन्धविषयक चर्चा आगे ‘स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः' आदि सूत्रों (तत्त्वार्थसूत्र ५,३२-३६) की व्याख्या करते हुए की गई है । उस प्रसंग में वहाँ ष०ख० के इस गाथासूत्र को भी 'उक्तं च' के निर्देश के साथ उद्धृत किया गया है णिद्धस्स गिद्धेण दुराहिएण ल्हुक्खस्स ल्हुखेण दुराहिएण। णिद्धस्स ल्हुक्खण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ॥ -त० वा० ५,३५,२ पृ० २४२ व ष०ख० सूत्र ५,६,३६ (पु० १४, पृ० ३३) (ग) इसी प्रसंग में त० वा० में 'बन्धेऽधिको पारिणामिको च' इस सूत्र (५-३६) की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है कि इस सूत्र के स्थान में दूसरे 'बन्धे समाधिको पारिणामिको ऐसा (त्र पढ़ते हैं। वह असंगत है, क्योंकि आर्ष के विरुद्ध है। इसे स्पष्ट करते हुए वहाँ आगे कहा गया है कि आर्ष में वर्गणा के अन्तर्गत बन्धविधान में सादिवससिफ बन्ध का निर्देश किया गया है । उस प्रसंग में वहां विषम रूक्षता व विषम स्निग्धता में बन्ध और समरूक्षता व समस्निग्धता में भेद (बन्ध का अभाव) कहा गया है । तदनुसार ही 'गुणसाम्ये सदृशानाम्' यह सूत्र (तत्त्वार्थसूत्र ५-३४) कहा गया है । इस सूत्र के द्वारा समान गुणवाले परमाणुओं के बन्ध का निषेध किया गया है । इस प्रकार समगुणवाले परमाणुओं में बन्ध का प्रतिषेध करने पर बन्ध में समगुणवाला परमाणु परिणामक होता है ऐसा कहना आर्ष के विरुद्ध है। (त० वा०५,३६, ३-४) यहाँ आर्ष व वर्गणा का उल्लेख करते हुए जिस नोआगमद्रव्यबन्ध के प्रसंग की ओर संकेत किया है वह ष ०ख० में वर्गणाखण्ड के अन्तर्गत बन्धन अनुयोगद्वार में इस प्रकार उपलब्ध होता है ___“जो सो थप्पो सादियविस्ससाबंधो णाम तस्स इमो णिद्दे सो-वेमादा णिद्धदा वेमादा ल्हुक्खदा बंधो । समणिद्धदा समल्हुक्खदा भेदो। णिद्ध-णिद्धा ण बझंति ल्हुक्ख-ल्हुक्खा य पोग्गला । णिद्ध-ल्हुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ॥ -१०ख० ५,६, ३२-३४ (पु० १४, पृ० ३०-३१) जैसाकि त० वा० में निर्देश किया गया है, इस बन्ध की प्ररूपणा ष०ख० में वर्गणाखण्ड के अन्तर्गत बन्धन अनुयोगद्वार में नोआगमद्रव्यबन्ध (सूत्र २६) के प्रसंग में ही की गई है। १. सूत्र ५,६,३२-३६ (पु०१४, पृ० ३०-३३) २. बन्धे समाधिको पारिणामिको (तत्त्वार्थसूत्र ५-३६-तत्त्वार्थाधिगम भाष्य सम्मत सूत्रपाठ के अनुसार)। षट्खण्डागम की अन्य प्रन्यों से तुलना / २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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