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________________ अष्टम अध्याय ९ 'मात्रा तीर्थङ्कराणां परिचरणपरश्रीप्रभृत्योद्भवादिश्रीसंभेदाग्रदता रजनिविरमणे स्वप्रभाजेक्षिता ये। श्रीभोलेभारिमास्रक्शशिरविझषकुम्भाब्जषण्डाब्धिपीठ द्योयानाशीविषौको वसुचयशिखिनः सन्तु ते मङ्गलं नः ॥' [ आदिशब्देन कान्त्यादिद्वारेण यथा 'कान्त्यैव स्नपयन्ति ये दश दिशो धाम्ना निरुन्धन्ति ये धामोद्दाममहस्विनां जनमनो मुष्णन्ति रूपेण ये। दिव्येन ध्वनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात् क्षरन्तोऽमृतं वन्द्यास्तेऽष्टसहस्रलक्षणधरास्तीर्थेश्वराः सूरयः ॥' [ समयसारकलश, २४ श्लो.] तथा 'येऽचिंता मुकुटकुण्डलहाररत्नैः शक्रादिभिः सुरगणैः स्तुतपादपद्माः । ते मे जिनाः प्रवरवंशजगत्प्रदीपास्तीर्थंकराः सततशान्तिकरा भवन्तु ।' 'जैनेन्द्राक्षौमिताऽन्येषां शारीराः परमाणवः ।। विद्युतामिव मुक्तानां स्वयं मुञ्चति संहतिम् ॥' [ ] शरीरकी ऊँचाईको लेकर नमस्कार करनेका उदाहरण यथा-आदिनाथके शरीरकी ऊँचाई ५०० धनुष, अजितनाथकी ४५० धनुष, सम्भवनाथकी ४०० धनुष, अभिनन्दननाथकी ३५० धनुष, सुमतिनाथकी ३०० धनुष, पद्मप्रभकी २५० धनुष, सुपार्श्वनाथकी २०० धनुष, चन्दप्रभकी १५० धनुष, पष्पदन्तकी १०० धनष, शीतलनाथकी ९० धनुष, श्रेयांसनाथकी ८० धनुष, वासुपूज्यकी ७० धनुष, विमलनाथकी ६० धनुष, अनन्तनाथकी ५० धनुष, धर्मनाथकी ४५ धनुष, शान्तिनाथकी ४० धनुष, कुन्थुनाथकी ३५ धनुष, अरहनाथकी ३० धनुष, मल्लिनाथकी २५ धनुष, मुनिसुव्रतनाथकी २० धनुष, नमिनाथकी १५ धनुष, नेमिनाथकी १० धनुष, पार्श्वनाथकी ९ हाथ और महावीर स्वामीकी ७ हाथ ऊँचाई है। मैं उन सबको नमस्कार करता हूँ। माताके द्वारा स्तवनका उदाहरण-'क्षायिक सम्यग्दृष्टि और उत्कृष्ट बुद्धिशाली कुलकरोंका जो वंश हुआ उसमें, तथा आदि ब्रह्मा आदिनाथने कर्मभूमिके प्रारम्भमें जिन इक्ष्वाकु, कुरु, उग्रनाथ, हरिवंशकी स्थापना की थी, जो वंश गर्भाधान आदि विधिकी परम्परासे लोकपूज्य हैं, उनको जन्म देनेवाली आर्यभूमिके स्वामी जिनके जीवननाथ हैं तथा जिनका जन्म उत्तम कुलमें हुआ है वे जैनतीर्थंकरोंकी माताएँ जयवन्त हों।' ___ माताके द्वारा देखे गये स्वप्नोंके द्वारा किया गया स्तवन भी द्रव्यस्तवन है। जैसे-श्री आदि देवियों के द्वारा सेवित तीर्थंकरोंकी माताने रात्रिके पिछले पहरमें ऐरावत हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, माला, चन्द्रमा, सूर्य, मीन, कलश, कमलवन, समुद्र, सिंहासन, देव विमान, नागेन्द्रका भवन, रत्नराशि तथा निर्धूम वह्नि ये सोलह स्वप्न देखे, जो तीर्थंकरोंके जन्म आदि अतिशयोंके सूचक अग्रदूतके समान हैं, वे स्वप्न हमारे लिए मंगलकारक हों। शरीरकी कान्ति आदिके द्वारा तीर्थंकरोंके स्तवनका उदाहरण-जो अपने शरीरकी कान्तिसे दस दिशाओंको स्नान कराते हैं, अपने तेजसे उत्कृष्ट तेजवाले सूर्यके भी तेजको रोक देते हैं, अपने रूपसे मनुष्योंके मनको हर लेते हैं, अपनी दिव्यध्वनिके द्वारा भव्यजीवोंके कानोंमें साक्षात् सुखरूप अमृतकी वर्षा करते हैं, वे एक हजार आठ लक्षणोंके धारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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