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________________ अष्टम अध्याय ५६९ ऋतुषु दिनरात्रिसितासितपक्षादिषु च यथास्वं चार्वचारुषु रागद्वेषानुद्भवः । भावसामायिकं सर्वजीवेषु मैत्रीभावोऽशुभपरिणामवर्जनं वा। तथा 'अपि' शब्दस्यानुक्तसमुच्चयार्थत्वादयमप्यर्थो वक्तव्य । जातिद्रव्यक्रियागण निरपेक्षं संज्ञाकरणं सामायिकशब्दमानं नामसामायिकम् । सामायिकावश्यकपरिणतस्य तदाकारेऽतदाका वस्तुनि गुणारोपणं स्थापनासामायिकम् । द्रव्यसामायिक भविष्यत्परिणामाभिमुखमतीत्तत्परिणामं वा वस्तु द्रव्यं तस्य सामायिकम् । तच्च द्विविधमागमद्रव्यसामायिकं नोआगमद्रव्यसामायिक ति । सामायिकवर्णकप्राभृतज्ञायी जीवोऽनुपयुक्त आगमद्रव्यसामायिकम् । नोआगमद्रव्यसामायिकं तु त्रविधं सामायिकवर्णक- ६ प्राभूतज्ञायकशरीर-भाविजीवतद्वयतिरिक्तभेदेन । ज्ञातुः शरीरं त्रिधा भूतवर्तमान विष्यभेदात् । भूतमपि त्रिधा च्युतं च्यावितं त्यक्तं चेति । पक्वफलमिवायुषः क्षयेण पतितं च्युतम् । कदीघातेन पतितं च्यावितम् । त्यक्तं पुनस्त्रिया भक्तप्रत्याख्यानेङ्गिनीपादोपगमनमरणः । भक्तप्रत्याख्यानमपि त्रिध उत्कृष्टमध्यमजघन्यभेदात् । उस्कृष्टभक्तत्यागस्य प्रमाणं द्वादशवर्षाणि । जघन्यस्यान्तर्मुहर्तम् । तयोरन्तालं मध्यमस्य । भाविकाले सामायिकप्राभूतज्ञायिजीवो भाविनोआगमद्रव्यसामायिकम् । तद्वयतिरिक्तं द्विििध कर्मनोकर्मभेदेन । सामायिकपरिणतजीवेनाजिनतीर्थकरादिशुभप्रकृतिस्वरूपं नोआगमतद्वयतिरिक्तं द्रव्यसामायिकम् । नोकर्म- १२ तद्वयतिरिक्तं तु द्रव्यसामायिकं तु त्रिविधं सचित्ताचित्तमिश्रभेदात् । सचिमुपाध्यायः । अचित्तं पुस्तकम् । उभयस्वरूपं मिश्रम् । क्षेत्रसामायिकं सामायिकपरिणतजीवाधिष्टितं स्थानमयन्तचम्पापुरादि । कालसामायिक यस्मिन् काले सामायिकस्वरूपेण परिणतो जीवः स काल: पूर्वाहापरालमघाह्नादिभेदभिन्नः। भावसामायिकं १५ द्रव्य सामायिक । जिस शास्त्रमें सामायिकका वर्णन है उस शस्त्रका ज्ञाता जब उसमें उपयुक्त नहीं होता तब उसे आगम द्रव्य सामायिक कहते हैं। नोगम द्रव्य सामायिकके तीन भेद हैं-सामायिकका वर्णन करनेवाले शास्त्रके ज्ञाताका शरीर, गावि और तद्वथतिरिक्त । ज्ञाताका शरीर भूत, वर्तमान और भविष्यके भेदसे तीन प्रकार है। भूत शरीरके भी तीन भेद हैंच्युत, च्यावित और त्यक्त । पके हुए फलकी तरह आका क्षय होनेसे जो शरीर स्वयं छूट गया उसे च्यत कहते हैं। जो शरीर अकालमें मरणसेछटा उसे च्याचित कहते हैं। त्यक्त शरीरके भक्त प्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण, पादोपगनमरणके भेदसे तीन भेद हैं। भक्त प्रत्याख्यानके भी तीन भेद हैं-उत्कृष्ट, मध्यम औरजघन्य । भोजनत्यागका उत्कृष्टकाल बारह वर्ष है, जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंके बीका काल मध्यम है। जो जीव भविष्यमें सामायिक विषयक शास्त्रका ज्ञाता होगा वह भषे नोआगम द्रव्य सामायिक है। तद्वथतिरिक्तके दो भेद हैं-कर्म और नोकर्म । सामायि करते हुए जीवके द्वारा उपार्जित तीर्थंकर आदि शुभ प्रकृतियोंको नोआगम द्रव्य कर्म तद्वारिक्त कहते हैं । नोकर्म तद्वयतिरिक्त नामक द्रव्य सामायिक निक्षेपके तीन भेद है-सचित्त, अचित्त और मिश्र । उपाध्याय सचित्त है, पुस्तक अचित्त है और जो दोनों रूप हो वह मश्र है। यह सब द्रव्य सामायिक निक्षेपके भेद हैं । सुवर्ण, मिट्टी आदि सुन्दर और असुर द्रव्योंमें राग-द्वेष न करना द्रव्य सामायिक है। सामायिक करते हुए जीवोंसे युक्त स्थान्चम्पापुर, गिरिनार आदि क्षेत्र सामायिक है। तथा उद्यान, कँटीला जंगल आदि रमणीकनौर अरमणीक क्षेत्रोंमें राग-द्वेष न करना क्षेत्र सामायिक है। जिस काल में सामायिक कं जाती है वह काल सामायिक है। वह प्रातः, मध्याह्न और शामके भेदसे तीन प्रकार है । तर वसन्त, ग्रीष्म आदि ऋतुओंमें, दिन-रातमें, शुक्ल और कृष्णपक्ष आदिमें राग-द्वेष न करनतालसामायिक है। वर्तमान पर्यायसे युक्त द्रव्यको भाव कहते हैं । उसकी सामायिक भाव स्मायिक निक्षेप है। उसके दो भेद हैंआगम भाव सामायिक और नोआगम भाव सामयेक। सामायिक विषयक शास्त्रका जो ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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