SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम अध्याय ४९७ ६ 'अद्धानशनं सर्वानशनं द्विविकल्पमनशनमिहोक्तम् । विहृतिभृतोद्धानशनं सर्वानशनं तनुत्यागे ॥' 'एकोपवासमूलः षण्मासक्षपणपश्चिमः सर्वः ।। अद्धानशनविभाग स एष वाञ्छानुगं चरतः॥ [ ] चशब्दो मध्यमजघन्योपवाससमुच्चयार्थः । नत्रो निषेधे ईषदर्थे च विवक्षितत्वात् , तेनानशनस्य भाव ईषदनशनं वाऽनशनमिति रूढम् । मुक्त्यर्थमिति कर्मक्षयार्थ इष्टफलमंत्रसाधनाद्यनुद्दिश्यत्यर्थः । यच्च दण्डकाचारादिशास्त्रेषु संवत्सरातीतमप्यनशनं श्रयते तदप्यधं च वर्ष चेत्यर्धवर्षे इत्येकस्य वर्षशब्दस्य लोपं कृत्वा व्याख्येयम् ॥११॥ अथोपवासस्य निरुक्तिपूर्वक लक्षणमाह यद्धात्मन्यक्षाणां वसनाल्लयात । उपवासोऽशनस्वाद्यखाद्यपेयविवर्जनम् ॥१२॥ स्वार्थात्-निजनिजविषयात् । उक्तं च 'उपेत्याक्षाणि सर्वाणि निवृत्तानि स्वकार्यतः। वसन्ति यत्र स प्राजैरुपवासोऽभिधीयते ॥' [अमित. श्रा., १२।११९] उपवास कहते हैं । आठ वेलाओंमें भोजनके त्यागको अष्ट या तीन उपवास कहते हैं। दस वेलाओंमें भोजनके त्यागको दसम या चार उपवास कहते हैं। बारह वेलाओंमें भोजनके त्यागको द्वादश या पाँच उपवास कहते हैं। इस प्रकार चतुर्थसे लेकर षट्मासका उपवास अनशन तप है। इसे अवधृतकाल अनशन तप कहते हैं और मरणपर्यन्त भोजनके त्यागको अनवधृतकाल अनशन तप कहते हैं। इस तरह अनशन तपके दो भेद हैं। कहा है-'यहाँ अनशनके दो भेद कहे हैं-एक अद्धानशन और एक सर्वानशन । विहार करनेवाले साधु अद्धानशन करते हैं और शरीर त्यागनेवाले सर्वानशन करते हैं । अर्थात् कालकी मर्यादापूर्वक चार प्रकारके आहारका त्याग अद्धानशन है और मरणपर्यन्त त्याग सर्वानशन है। एक उपवास प्रथम अद्धानशन है और छह मासका उपवास अन्तिम अद्धानशन है। एक उपवाससे लेकर छह मासके उपवासपर्यन्त सब अद्धानशनके भेद हैं । यह इच्छानुसार किया जाता है ।' न अशनको अनशन कहते हैं। यहाँ 'न' निषेधके अर्थ में भी है और थोड़ेके अर्थमें भी है। इसलिए अशनके न करनेको या अल्प भोजनको अनशन कहते हैं। यह अनशन तभी तप है जब कर्मक्षयके लिए किया जाये । मन्त्र साधन आदि लौकिक फलके उद्देशसे किया जानेवाला अनशन तप नहीं है। कुछ शास्त्रोंमें एक वर्षसे अधिकका भी अनशन सुना जाता है अतः अर्धवर्षान्तका अर्थ 'अर्ध और वर्ष ऐसा कर लेना चाहिए। उपवासका निरुक्ति पूर्वक लक्षण कहते हैं अपने-अपने विषयोंसे हटकर इन्द्रियोंके राग-द्वेषसे रहित आत्मस्वरूपमें बसने अर्थात् लीन होनेसे अशन, स्वाद्य, खाद्य और पेय चारों प्रकारके आहारका विधिपूर्वक त्यागना उपवास है ॥१२॥ विशेषार्थ-उपवास शब्द उप और वास दो शब्दोंके मेलसे बना है। उसका अर्थ है आना अर्थात् इन्द्रियोंका अपने-अपने विषयोंसे हटकर आना और वासका अर्थ है बसना, १. 'शब्दादिग्रहणं प्रतिनिवृत्तीत्सुक्यानि पञ्चापीन्द्रियाणि उपेत्य तस्मिन् वसन्तीत्युपवासः, चतुर्विधाहार परित्यागः-सर्वार्थसि., ७।२१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy