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________________ * चतुर्थ अध्याय ३०९ प्राज्येत्यादि-प्राज्याः प्रचुरा आगन्तवः शत्रुप्रहारादयो दुःखप्रकारास्त एव आमिषादा राक्षसास्तेषामामिषं विषयं ग्रासं वा। अहह-अद्भुते खेदे वा। आर्या-अर्यते गम्यते गुणवत्तयाश्रियते इति । अथवा 'आह' इति खेदे । हार्या-इति अनुरञ्जनीया इत्यर्थः ।।१११॥ अथ पूर्वानुरागादिशृङ्गारद्वारेण स्त्रीणां पुंस्पीडकत्वं यथाक्रमं दृष्टान्तेषु स्पष्टयन्नाहस्वासङ्गेन सुलोचना जयमघाम्भोधौ तथाऽऽवर्तयत्, स्वयं श्रीमत्यनु वज्रजङ्घमनयद भोगालसं दुम॒तिम् । मानासद्ग्रह-विप्रयोग समरानाचारशङ्कादिभिः, सीता राममतापयत्कन पति हा सापदि द्रौपदी ॥११२॥ सुलोचना-अकम्पनराजाङ्गजा। जयं-मेघेश्वरम् । अघाम्भोधौ-दुःखांहोव्यसने यथा। तथा- २ तेन अर्ककीर्तिमहाहवादिकरणप्रकारेण । स्वमनु-आत्मना सह । श्रीमती-वज्रदन्तचक्रवर्तिपुत्री। दुर्मति-केशवासनधपधमव्याकूलकण्ठतया मरणम । मानः-प्रणयभङ्गकलहः । असद्ग्रहः-युध्यमानलक्ष्मणपराजयनिवारणाय तं प्रति रामप्रेषणदुरभिनिवेशः। अनाचारशङ्का-दशमुखोपभोगसंभावना । १२ जो सम्भोग होता है वह मनुष्यकी शक्ति आदिको क्षीण करता है। फिर भी मनुष्य स्त्रीमें अत्यधिक आसक्त होता जाता है । तब स्त्री रूठती है, खाना नहीं खाती, या पिताके घर चली जाती है या रोती है इन सबसे मनुष्यका मन दुःखी होता है ॥१११॥ इन पूर्वानुराग आदि शृंगारके द्वारा स्त्री किस तरह पुरुषको कष्ट देती है यह दृष्टान्त द्वारा क्रमसे स्पष्ट करते हैं सुलोचनाने अपने रूपकी आसक्तिसे जयकुमारको विपत्तियोंके समुद्र में ला पटका, उसे चक्रवर्तीके पुत्र अर्ककीर्तिसे युद्ध करना पड़ा। वज्रदन्त चक्रवर्तीकी पुत्री श्रीमतीने अपने साथ अपने पति वज्रजंघको भी विषयासक्त बनाकर दुर्मरणका पात्र बनाया। सीताने प्रेमकलहमें अभिमान, कदाग्रह, वियोग, युद्ध और अनाचारकी शंका आदिके द्वारा रामचन्द्रको कष्ट पहुँचाया। और बडा खेद है कि द्रौपदीने अपने पति अर्जनको किस विपत्तिमें नहीं डाला ।।११२॥ विशेषार्थ-ऊपर विप्रलम्भ श्रृंगारके चार भेद कहे हैं। यहाँ उन्हें दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट किया है। महापुराणमें जयकुमार-सुलोचनाकी कथा प्रसिद्ध है। जयकुमार भगवान ऋषभदेवको आहारदान देनेवाले राजा सोमका पुत्र था। उसने सम्राट् भरतका सेनापति होकर मेघकुमारको जीता था। इससे वह मेघेश्वर जयकुमार कहे जाते थे। काशीराज अकम्पनकी पुत्री सुलोचना जब विवाह योग्य हुई तो उसका स्वयंवर हुआ। उसमें जयकुमार और सम्राट् भरतका पुत्र अर्ककीर्ति भी उपस्थित हुए। सुलोचनाने पूर्वानुरागवश जयकुमारका वरण किया। इस अर्ककीर्तिने अपना अपमान समझा। उसने जयकुमारसे घोर युद्ध किया। इस तरह सुलोचनाने पूर्वानुरागवश जयकुमारको विपत्तिमें डाला। इस तरह पूर्वानुरागविप्रलम्भ दःखदायी है। दसरा उदाहरण है सम्भोगशृंगारका। श्रीमती और वज्रजंघ परस्पर में बड़े अनुरक्त थे। एक दिन वे दोनों शयनागारमें सोते थे। सुगन्धित धूप जल रही थी। द्वारपाल झरोखे खोलना भूल गया और दोनों दम घुटनेसे मर गये। इस तरह सम्भोग शृंगार दुःखदायी है। यह कथा महापुराणके नवम पर्व में आयी है। तीसरा उदाहरण है सीताका। वनवासके समय जब लक्ष्मण राक्षसोंसे युद्ध करने गया था और मारीचने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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