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________________ ९४ धर्मामृत ( अनगार) यदा यथा यत्र यतोऽस्ति येन यत् तदा तथा तत्र ततोऽस्ति तेन तत् । स्फुटं नियत्येह नियंत्र्यमाणं परो न शक्तः किमपीह कर्तुम् ॥ [ अमित. पं. सं. ११३११ ] क्वचिच्च विनैवोपादानैः समसमयमोयासविगमादानकाकारत्वदपि पृथगवस्थानविषमम् ।। अखण्डब्रह्माण्ड विघटय वि(ति)याद्राग् घटयति चमत्कारोद्रेकं जयति न सा कास्य नियतिः॥ काल: पचति भूतानि काल: संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागति तस्मात् कालस्तु कारणम् ॥ अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुख-दुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥ [ महाभा० वनपर्व ३०।२८ ] एको देवः सर्वभूतेषु लीनो नित्यो व्यापी सर्वकार्याणि कर्ता। आत्मा मूर्तः सर्वभूतस्वरूपं साक्षाज्ञाता निर्गुणः शुद्धरूपः ।। [अमित. पं. स. ११३१४ ] परेऽप्याहुः ऊर्णनाभ इवांशूनां चन्द्रकान्त इवाम्भसाम् । प्ररोहाणामिव प्लक्षः स हेतुः सर्वजन्मिनाम् ॥ है ॥२।। अजीव स्वभावसे स्वतः नहीं है ॥३॥ अजीव स्वभावसे परतः नहीं है ॥४॥ इस प्रकार उच्चारण करने पर ५४७४२ को परस्परमें गणा करनेसे ७० भेद होते हैं। तथा नियति और कालके नीचे सात पदार्थोंको रखकर जीव नियतिसे नहीं है ॥११॥ जीव कालसे नहीं है ॥२॥ इत्यादि कथन करनेपर चौदह भेद होते हैं। दोनोंको मिलानेसे ८४ भेद होते हैं। श्वेताम्बर टीका ग्रन्थोंके अनुसार [ आचा., टी. १११११।४, नन्दी. टी. मलय सू. ४६] जीवादि सात पदार्थ स्व और पर तथा काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन सबको परस्परमें गुणा करनेपर ७४२४६=८४ भेद होते हैं। विनयवादियोंके वसिष्ठ, पाराशर, जतुकर्ण, वाल्मीकि, रोमहर्षिण, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, ऐन्द्रदत्त, अयस्थूण आदि ३२ भेद हैं। उनको लानेकी विधि इस प्रकार है-देव, राजा, ज्ञानी, यति, वृद्ध, बाल, माता और पिता इन आठोंकी मन, वचन, काय और दानसे विनय करनेपर ८xg=३२ भेद होते हैं। यथा-देवोंकी मनसे विनय करनी चाहिए ॥१॥ देवोंकी वचनसे विनय करना चाहिए ॥२॥ देवोंकी कायसे विनय करनी चाहिए ॥३॥ देवोंकी दानसे विनय करनी चाहिए ॥४॥ अज्ञानवादियोंके साकल्य, वाकल्य, कुथिमि, नारायण, कठ, माध्यन्दिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, ऐतिकायन, वसु, जैमिनि आदि ६७ भेद हैं। उनको लानेकी विधि इस प्रकार है-जीवादि नौ पदार्थोके नीचे सत् , असत् , सदसत्, अवाच्य, सदवाच्य, असदवाच्य, सदसदवाच्य इन सात भंगोंको रखना चाहिए। इस तरह ९४७ =६३ भेद होते हैं। पुनः एक शुद्ध पदार्थको सत् , असत् , सदसत् और अवक्तव्य इन चार भंगोंके साथ मिलानेसे चार भेद होते हैं। इस तरह अज्ञानवादियोंके ६७ भेद होते हैं। श्वेताम्बरीय टीका ग्रन्थोंके अनुसार जीव आदि नौ पदार्थोंको अस्ति आदि सात भंगोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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