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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
१३. पाठकों की दृष्टि में मेरी डेयरी मुलाकात
लेख
Subject: Thank you for Opening my eyes Date : Fri. 5 Sep. 1977 12:40:23-1000 From - h20 Man <
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वास्तव में आपके इस संदेश ने मेरी आंखों में अश्रु भर दिए। एक ऐसा समय था जब मुझे यही लगता था कि बरफी, लस्सी, हलुवा एवं घी की खुशबू वाला भात अपने भोजन से दूर करने का कोई मार्ग ही नहीं है। खूशबूदार सात्विक घी रहित भोजन क्या है ? तभी मुझे पता चला कि मैं स्वयं के प्रति असत्य वक्ता, आत्मवंचना करनेवाला कठोर था । पूर्ण रूपेण शाकाहारी (Vegan) बनने के दृढ निश्चय ने मेरी जीवन जीने की पद्धति में शांति का अनुभव कराया है। गाय-भैंस एवं अन्य प्राणी एनीमल फोर्म में जिस तरह की पीड़ा भोगते हैं उसे जानने के पश्चात् उनका और उनके द्वारा दिये जाने वाला दूध, दहीं, घी, मक्खन आदिका निर्दोष आहार के रूप में उपयोग करना संभव नहीं। अब मुझे यह भी ज्ञात हो गया है कि भारत में भी डेयरी उद्योग के कारण गाय-भैंस को पीडा दी जाती है। आप नहीं जानेंगे कि इससे पूर्व में अन्य भारतीय मक्खन, घी, दूध आदि को शाकाहार मानते हैं, ऐसा सुनने और स्वीकार करने वाले मुझे आपने कितना प्रोत्साहित किया है ? मैंने आपका पत्र/लेख अन्य लोगों को बताने के लिए संग्रह करके रखा है । जिससे उसके द्वारा मैं स्वयं को अपराध मुक्त एवं शुद्ध बनाऊँगा ।
Date - Thu. 20 Aug. 1998 12:11:05-0700 From – “Baid-Jyoti" Jyoti
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अमरीका में स्थित डेयरी उद्योग के संदर्भ में यह संपूर्ण एवं माहिती प्रचुर लेख है । इस विषय में मैंने अनेक लेख पढ़े हैं परंतु आपके लेख ने हकीकत में मुझे विचलित कर दिया है। मैंने पहली बार यह खतरनाक बात सुनी तब से ही अर्थात् दो वर्ष पूर्व से मैं पूर्ण शाकाहारी (Vegan) बन गई हूँ । मेरे पति भी धीरे-धीरे पूर्ण शाकाहारी (Vegan) बन रहे हैं। मेरे पुत्र को तो जन्म से ही डेयरी उत्पादनों के प्रति एलर्जी है । - ज्योति वैद्य
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