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यवनराजवंशावली
अर्थात् लाहौर, दिल्ली, दक्षिण, गुजरात, मालवा
और बंगाल देशों के मुसलमान बादशाहों की साल संवत्
सहित वंशावली मा.श्री. फेलासलागर अरिज्ञान मंदिर श्री महावीर जैन मारामा केला. कोश
मा के लेखक to मुन्शी देवीप्रसाद कायस्थ, मुनसिफ, जोधपुर
प्रकाशाका
इंडियन प्रेस, प्रयाग इंडियन पब्लिशिंग हौस. कलकत्ता
107038738
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नम्र सूचन
इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
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यवनराजवंशावली
অথবু लाहौर, दिल्ली, दक्षिण, गुजरात, मालवा
और बंगाल देशों के मुसलमान बादशाहों की साल संवत्
सहित वंशावली
लेखक
मुन्शी देवीप्रसाद कायस्थ, मुनसिफ, जोधपुर
प्रकाशक
इंडियन प्रेस, प्रयाग इंडियन पब्लिशिंग हौस, कलकत्ता
१९०९
प्रथमवार १०००]
सर्वाधिकार रक्षित
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Printed and Published by Panchkory Mittra at the
Indian Press, Allahabad.
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भूमिका
आज कल हिन्दुओं में इतिहास की रुचि हो चलने से वे अपने देश और जाति के ही नहीं वरन विदेशियों और विजातियों के इतिहास की तरफ भी ध्यान देने लगे हैं। पहले तो पौराणिक कथाओं के प्रभाव से रामचरित्र, कृष्णलीला और पांडवों के यश के सिवाय और कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे, जिससे भारत के असंख्य राजाओं और शूरवीरों के यथार्थ इतिहास, जिन्होंने अपने देश और धर्म, गोब्राह्मण और स्त्रियों की रक्षा के वास्ते प्राण दिये थे, भूल के समुद्र में पड़ कर डूब गये । परन्तु अब अंगरेज़ी पाठशालाओं में, दूसरी विद्याओं के साथ साथ, इतिहासों के पढ़ाये जाने और अंरिज़ विद्वानों के इतिहासों की खोज करने से हिन्दुनों को भी अपने खोये हुए इतिहासों के ढूँढ़ने और पूछताछ करके पुस्तकों में लिखने की उमंग हुई है और अपने पुराने इतिहास के प्रसंग में मुसलमानों के इतिहास को भी जानना चाहते हैं, जो वास्तव में बहुत हैं और ठीक भी हैं। परन्तु जो इतिहास- प्रेमी हिन्दू, उर्दू, फ़ारसी पढ़े हैं वे तो मुसलमानों के उर्दू-फारसी भाषाओं में लिखे हुए असल इतिहासों से और जो अंगरेजी पढ़े हैं वे उनके अंगरेज़ी तजुमों से अपना काम निकाल लेते हैं और जो अंगरेज़ी नहीं पढ़े हैं उनको मुश्किल पड़ती है। क्योंकि अंगरेज़ी भाषा के समान हिन्दी भाषा में मुसलमानों के एक भी इतिहास का पूरा तर्जुमा अब तक नहीं
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(
२
)
हुआ है। इसी प्रभाव से यथावश्यकता बहुधा सजन पत्र द्वारा मुझ से मुसलमान बादशाहों के नाम, पते और दूसरे वृत्तान्त पूछा करते हैं। इस वास्ते मैंने उनके तथा सर्वसाधारण के हितार्थ यह छोटा स्सा ग्रंथ रचा है जिसमें सब मुसलमान बादशाहों की वंशावलियाँ, साल, संवत् और ज़रूरी घटनाओं सहित आ गई हैं और प्रत्येक बादशाही के घराने के प्रारंभ और समाप्ति के कारण भी बता दिये हैं। अब रही यह बात कि प्रत्येक बादशाह ने क्या क्या काम किया और हिन्दुओं के साथ उसका कैसा कैसा बर्ताव रहा सो यथावकाश दूसरे ग्रंथ में दिखाया जावेगा। अभी तो पाठक इस छोटे ग्रन्थ से कुछ संक्षिप्त रूप में मुसलमान बादशाहों का इतिहास जान ले और अपने ध्यान में रक्खें।
* यह ग्रंथ विशेष करके तवारीख़ फ़रिश्ता के आधार पर बनाया गया है, जो एक बड़ासंग्रह भारत के मुसलमान बादशाहों के इतिहास का है और जिसको सन् १०१५ हिजरी-संवत् १६६३-में मोहम्मद क़ासिम फ़रिश्ता नाम एक मुंशी ने दक्षिण बीजापुर के बादशाह इब्राहीम आदिलशाह के हुक्म से बहुत सी तवारीखों का सार लेकर बनाया था । अंगरेज़ लोग भी इसी के प्रमाण से मुसलमान बादशाहों के वृत्तान्त अपनी पुस्तकों में लिखा करते हैं | क्या ही अच्छी बात हो, यदि कोई इतिहास-रसिक श्रीमान् या साहसी प्रेसप्रोप्राइटर इसका उल्था हिन्दी में करा डाले और इतिहास-प्रेमी भाइयों का उपकार करे । फागन सुदि ११॥ संवत् १९६५
जोधपुर।
देवीप्रसाद,
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सूचीपत्र ।
विषय
३ दि६
मुसलमान बादशाह लाहौर के तुर्क बादशाह ...
दिल्लो के गुलाम बादशाह ४ खिलजी बादशाह
तुग़लक बादशाह
लादी पठान बादशाह ... ७ सैयद बादशाह ८ फिर लादी पठान बादशाह ९ मुगल बादशाह १० सूर पठान बादशाह ... ११ फिर मुग़ल बादशाह ... १२ दक्षिण के ब्राह्मणी बादशाह १३ बीजापुर के तुर्क गुलाम बादशाह ... १४ अदमदनगर के ब्राह्मणकुली बादशाह १५ तैलिंग के तुर्कमान बादशाह १६ बिदुर के लाम बादशाह १७ बराड़ के हिन्दूकुली बादशाह १८ मालवे के गोरी तथा खिलजी बादशाह १९ बुरहानपुर के फ़ारूक़ी बादशाह
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[ २ ]
२० गुजरात के कलाल बादशाह
२१ सिंघ ( ठट्ठे ) के जाम तथा आगू जाति के बादशाह
२२ मुलतान के लंगा बादशाह
२३ कश्मीर के पांडव वंशी मुसलमान और चक जाति
के बादशाह
२४ बंगाल के बादशाह
२५ जौनपुर के बादशाह २६ सिक्खों की दसों बादशाही
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***
***
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२०
२२
२५
२६
२९
३१
३३
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यवनराजवंशावली
अर्थात् भारतवर्षीय मुसलमान बादशाहों की वंशावली आदि
का साल संवत् सहित वर्णन ।
हिन्दुस्तान में मुसलमान बादशाह । हिन्दुस्तान में मुसलमानों की चढ़ाई तो सन् ६६ हिजरी, विक्रम • संवत् ७४२ से ही अरब की तरफ़ सेहोने लगी थी और सिंध में कुछ वर्षों तक बगदाद के खलीफ़ों का अमल रहा था। फिर हिन्दुओं ने अरबों को सिंध से निकाल दिया। उसके कई सौ वर्ष पीछे मुसलमान तुर्को की दूसरी चढ़ाई कावुल की तरफ से पंजाब पर हुई और जब ही से मुसलमानों के राज की नीव हिन्दुस्तान में जमी । __पंजाब के हिन्दूराज्य की राजधानी लाहौर में थी, जिसकी अमलदारी की सीमा दक्षिण सरहिन्द के पास दिल्ली के राज्य से मिलती थी और सरहिन्द से लेकर उत्तर में लमगान तक, जो काबुल के पास है, और कश्मीर से मुलतान तक लाहौर राज्य की सीमा थी। ___ इष्टपाल, जयपाल और आनन्दपाल वहाँ के राजा गजनी के . तुर्क बादशाह नासिरउद्दीन सुबुकतगीन और उसके बेटे महमूद से लड़ते रहे और फिर उनके तावेदार हो गये थे। आनन्दपाल को बेटा जयपाल था, उससे महमूद ने लाहौर छीन लिया। तबसे पंजाब
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नंबर
नाम
[ २ ] का देश तुर्की के हाथ में चला गया और महमूद के वंश में १४ बादशाह १६० वर्ष तक उस देश को भागते रहे । फिर गोर के बादशाहों का अमल हुआ। जयपाल को तवारीख फ़रिश्ता में ब्राह्मण और अजमेर के राजा का सम्बन्धी लिखा है। लाहौर के तुर्क बादशाह
हिजरी विक्रम
सन् संवत् १ सुलतान महमूद गज़नवी
४०४ १०७० २ सुलतान मुहम्मद महमूद का बेटा
४२१ १०८७ ३ सुलतान मसऊद महमूद का बेटा
४२१ १०८७. ४ अमीर मादूद सुलतान महमूद का बेटा ४३३ १०९८ ५ सुलतान मसऊद मोदूद का बेटा
४४१ ११०६ ६ अबुल अली मोदूद का बेटा ...
४४१ ११०६ ७ सुलतान अबदुल रशीद महमूद का बेटा ... ४४२ ११०७ ८ फळं खजाद मसऊद का बेटा ...
४४३ ११०८ ९ सुलतान इब्राहीम मसऊद का बेटा ४५० १११५ १० मसऊद इब्राहीम का बेटा ...
४८१ ११४५ ११ शेरजाद मसऊद का बेटा ...
५०८ ११७१ १२ अरसला खाँ मसऊद का बेटा ... ... ५०९ ११७२ १३ बहरामशाह मसऊद का बेटा ... ... ५१२ ११७५
यह मन् हर एक बादशाह के तख्त पर बैठने का मून ग्रंथ के अनुसार है और इसके बराबर जो विक्रम संवत् है वह पाठकों के सुभाते के लिए गणित करके रक्खा गया है।
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[ ३ ] १४ खुसरोशाह बहराम का बेटा ... ... ५२५ ११८८ १५ खुसरो मलिक खुसरोशाह का बेटा ... ५५५ १२१४
खुसरो को सन् ५८२ (संवत् १२४३) में शहाबुद्दीन गोरी ने पकड़ कर अपने बड़े भाई ग़यासुद्दीन के पास गज़नी में भेज दिया ।
दिल्ली के बादशाह शहाबुद्दीन ने जब लाहौर का राज लिया तो उस वक्त दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान राज करता था। उसके दादा बीसलदेव ने. दिल्ली तंवरों से जीत ली थी और तीन पीढ़ी से चौहानों के कब्जे में थी। पृथ्वीराज रासे में जो पृथ्वीराज का अपने नाना अनंगपाल तंवर की गोद बैठना और इस प्रसंग से दिल्ली का राज पाना लिखा है सो गलत है। यह कथा बहुत पीछे की गढ़ी हुई है क्योंकि बेटी के बेटे को गोद लेने की रीति राजपूताने में आजकल भी नहीं है और पहले भी नहीं थी। ___शहाबुद्दीन ने लाहौर लेने के ५ वर्ष पीछे सन् ५८७ (१२४८) में दिल्ली पर चढ़ाई की । दिल्ली से ४० कोस पर, सरस्वती नदी के किनारे पर, पृथ्वीराज ने दो लाख सवारों और ३००० हाथियों से जा कर उसको हरा दिया। वह पृथ्वीराज के भाई खांडेराय के हाथ से जखमी होकर मुड़ों की लाशों में पड़ा था। लश्कर ता भाग गया था और गुलाम, जो उसको ढूढ़ते फिरते थे, उठाकर रातोंरात २० कोस वहीं ले गये जहाँ उसका भागा हुआ लश्कर ठहराथा।
शहाबुद्दीन इस तरह जीता बच कर गज़नी को गया और सन् ५८८ (संवत् १२४९) में फिर १ लाख ७ हजार फौज़ लेकर
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[ ४ ] लड़ने को आया। पृथ्वीराज भी ३ लाख राजपूत और पठान सवारों से फिर उसी सरस्वती नदी पर जाकर शहाबुद्दीन को धमकाने लगा। शहाबुद्दीन ने कहा कि मैं तो अपने भाई के हुक्म से लाचार हूँ। वह भेजता है तो आता हूँ। अब जो तुम कुछ मुहलत दो तो मैं भाई की मंजूरी मंगाकर सुलह करवू । सरहिंद से लेकर पंजाब और मुलतान तक के मुल्क तो हमारे पास रहें। बाकी हिन्दुस्तान तुम्हारा है। पृथ्वीराज मुहलत देकर गाफ़िल हो गया । सुलतान ने उसी रात को सोते हुए राजपूतों पर छापा मारा । राजपूत तो भी खब लड़े,मगर हार गये। खांडेराय और पृथ्वीराज मारे गये। शहाबुद्दीन अजमेर तक लूटमार करके दिल्ली पर गया । वहाँ के हाकिम ने लाचारी से नज़राना देकर पीछा छुड़ाया। शहाबुद्दीन दिल्ली से ७० कोस पर कस्बे कहराम में अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़ कर हिमालय पहाड़ में लूटमार करता हुआ गज़नी को चला गया। फिर कुतुबुद्दीन ने चढ़ाई करके मेरठ और दिल्ली के किले पृथ्वीराज और खांडेराय के भाई बेटों से छीन लिये और सन् ५८९ (संवत् १२५०) में कोल को जीत कर दिल्ली में अपना तख़्त जमाया। कोल से आगे कन्नौज के राजा जयचंद की अमलदारी थी। इसी वर्ष शहाबुद्दीन ने कन्नौज पर चढ़ाई की। जयचंद लड़ाई में कुतुबुद्दीन के तीर से मारा गया और कन्नौज का राज भी दिल्ली में शामिल हो गया।
पृथ्वीराज रासे में जो पृथ्वीराज का शहाबुद्दीन को ७ बेर पकड़ पकड़ कर छोड़ देना लिखा है, गलत है। उसके साल, संवत और नाम वगैरः कुछ भी मुसलमानों की तवारीख से नहीं मिलने
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[ ५ ] हैं । संयोगता के स्वयंवर रचने और संयोगता को पृथ्वीराज के भगा ले जाने तथा इस जलन से जयचंद के शहाबुद्दीन को बुलाने और मदद देकर पृथ्वीराज के सर्वनाश करा देने की कथायें भी जो रासे में लिखी हैं सब चौहानों के पक्षपात से उनके भाटों की गढ़ी हुई हैं। उसी रासे में पृथ्वीराज को जयचंद की मौसी का बेटा लिखा है । जो यह सच है तो पृथ्वीराज जयचंद का भाई था। फिर कैसे अपने भाई की क्वारी बेटी,जो बहन लगती थी,भगा ले जाता। क्या हिंदू राजा ऐसे ही अधर्मी थे ? दूसरे शहाबुद्दीन से जयचंद के मिल जाने का पता कुछ भी फ़ारसी तवारीख से नहीं लगता और विचार करने से भी यह बात सिद्ध नहीं होती है; क्योंकि जो ऐसा हुआ होता तो शहाबुद्दीन जयचंद का कभी इतनी जल्दी सर्वनाश नहीं कर देता । तीसरी बात शहाबुद्दीन को पृथ्वीराज के तीर मारकर मारने की भी गलत है। शहाबुद्दीन को तो सन् ६०२ ( संवत् १२६२ ) में गक्कड़ों ने सिंध नदी पर मारा था।
शहाबुद्दीन से लेकर आज के ५० वर्ष पहले तक दिल्ली में जितने बादशाह हुए हैं उनके नाम नीचे लिखे जाते हैं।
सन् संवत् १ शहाबुद्दीन ... ... ... ५८९ १२५० २ कुतुबुद्दीन शहाबुद्दीन का गुलाम ... ६०२ १२६२
३ आराम शाह कुतुबुद्दीन का बेटा ... ६०६ १२६५ - ४ शमसुद्दीन एलतमश कुतुबुद्दीन का गुलाम... ६०७ १२६८
५ रुकनुद्दीन फ़ीरोज़शाह शमसुद्दीन का बेटा ... ६३३ १२९२ ६ रजिया सुलतान शमसुद्दीन की बेटी ... ६३४ १२९३
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[ ६ ] ७ माअ.जुद्दीन बहरामशाह शमसुद्दीन का बेटा ६३७ १२९६ ८ अलाउद्दीन मसऊद शाह फ़ीरोज़शाह का बेटा ६३९ १२९९ ९ नासिरुद्दीन महमूद शाह शमसुद्दीन का बड़ा बेटा ६४४ १३०३ १० गयासुद्दीन बलबन शमसुद्दीन का गुलाम ... ६६३ १३३१ ११ मोअजुद्दीन कैकबादनासिरुद्दीन का बेटा, ... ६८५ १३४७
बलबन का पोता १२ शमसुद्दीन कैकाऊस कैकुबाद का बेटा ... ६८७ १३४५५
कैकबाद और कैकाऊस के पीछे शहाबुद्दीन के गुलामे की बादशाही जाती रही और खिलजियों के हाथ लगी।
खिलजी वादशाह १ जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ... ... ६८७ १३४५ २ अलाउद्दीन खिलजी फ़ीरोज़ खिलजी का भतीजा ६९६ १३५३ ३ शहाबुद्दीन उमर अलाउद्दीन का बेटा ... ७१६ १३७३ ४ कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी अला- ... ७१७ १३७४
उद्दीन का बेटा ५ खुसरोखां कुतुबुद्दीन का गुलाम ... ७२१ १३७८
सन् ७२१ (संवत् १३७८ ) में खिलजियों का राज जाता रहा तुग़लकों के हाथ आया।
तुग़लक बादशाह १ गयासुद्दीन तुग़लक़ शाह, गयासुद्दीन बल- ... ७२१ १३७८ बन के गुलाम मलिक तुग़लक का बेटा था उसकी मा जाटनी थी
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[ ७ ] २ मोहम्मद शाह तुग़लक ... ... ७२५ १३८२ ३ फ़ीरोज़ शाह तुग़लक ... ... ७५२ १४०८ ४ गयासुद्दीन तुग़लक़फ़तह खां का बेटा ... ७९० १४४५
फ़ीरोज़ शाह का पोता ५ अबूबक तुग़लक़ ज़फ़र खां का बेटा, फ़ीरोज़... ७९१ १४४५
शाह का पोता ६ नासिरुद्दीन मोहम्मद शाह फीरोज़ शाह का बेटा ७९२ १४४६ ७ सिकन्दर शाह नासिरुद्दीन का बेटा ... ७९६ १४५० ८ नासिरुद्दीन महमूद शाह नासिरुद्दीन ... ७१६ १४५०
मोहम्मद शाह का बेटा • नासिरुद्दीन ८१५ (सं० १४६९) में मर गया और दिल्ली की बादशाही शहाबुद्दीन गोरी के तुरकी गुलामों वगैरह से जाती रही । दौलत खां लोदी बादशाह हुआ। यह पठान था।
लोदी पठान १ दौलत खां लोदी नासिरुद्दीन का नौकर ... ८१६ १४७०
सैयद बादशाह १ खिजर खां सुलतान फ़ीरोज़ का नौकर था ... ८१७ १४७१
और जब अमीर तैमूर ने नासिरुद्दीन तुग़लक पर सन् ८०० (संवत् १४५४) में चढ़ाई की थी तो उससे मिल गया था और वह इसको अपनी तरफ़ से लाहौर में हाकिम बन गया
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[८ ] था। जहाँ से इसने चढ़ाई करके दिल्ली दौलत
खां लोदी से छीन ली। २ मोअज्जुद्दीन अबुलफ़तह मुबारक शाह ... ८२४ १४७७ ३ मोहम्मद शाह फरीद खां का बेटा खिजर ... ८३७ १४९०
खां का पोता। ४ सुलतान अलाउद्दीन मोहम्मद शाह का ... ८४९ १५०२ बेटा । यह सन् ८५५ (संवत् १५०८ ) में बहलोल लोदी को राज देकर बदाऊँ चला गया ।
पठान बादशाह १ बहलोल लोदी मोहम्मद शाह का नौकर था। ८५५ १५०८ २ सिकन्दर लोदी बहलोल का बेटा ... ८९४ १५४५. ३ सुलतान इब्राहीम सिकन्दर लोदी का बेटा ... ९२३ १५७४ सन् ९२३ ( संवत् १५८३ ) में बाबर बादशाह ने इस को मार कर दिल्ली की बादशाही ले ली
मुग़ल बादशाह १ जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर शाह बादशाह ... ९३२ १५८३
गाज़ी अमीर तैमूर का परपोता २ नसीरुद्दीन मोहम्मद हुमायूं बादशाह ... ९३७ १५८७ वाबर का बेटा
फिर पठान बादशाह १ शेरशाह सूर हुमायू बादशाह को भगाकर ... ९४७ १५९७ २ सलीम शाह सूर शेर शाह का बेटा ... ९५२ १६०२
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[
]
३ मोहम्मद शाह अदली सलीम शाह का साला
४ सिकन्दर शाह सूर
...
फिर मुग़ल
१ हुमायूं बादशाह सिकन्दरसूर को हराकर ९६२ १६११ २ जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर शाह बादशाह ९६३ १६१२
गाज़ी हुमायूं का बेटा
३ नूरुद्दीन जहाँगीर शाह बादशाह ग़ाज़ी अकबर का बेटा
४ शहाबुद्दीन मोहम्मद शाहजहाँ बादशाह गाज़ी जहाँगीर का बेटा
५ मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर बादशाह ग़ाज़ी
६ आज़म शाह औरंगज़ेब का बेटा
७ शाहआलम बहादुर शाह औरंगज़ेबका बड़ा बेटा ११९९ ८ माजुद्दीन जहाँदार शाह शाहआलम का बेटा ११२४ ९ जलालुद्दीन फ़र्रुखसियर शाहआलम बहादुर ११२५ शाह का पोता अज़ीमुश्शान का बेटा
१० रफीउद्दरजात शाहआलम का पोता रफी १९३२ उलक़दर का बेटा
११ रफीउद्दौला शाहआलम का पोता रफी उद्द- ११३१ १७७६ दरजात का भाई
१२ मोहम्मदशाह, जहाँदारशाहका बेटा शाहआलम १९३२ १७७६ का पाता
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...
...
९५५ १६०५.
९५५ ९६०५.
...
१०१४ १६६२
१०३७ १६८४
१०६८ १७१५
१९१८ १७६३
१७६४
१७६५
१७६९
१७७६
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[१०]
१३ अहमद शाह मोहम्मद शाह का बेटा
११६१ १८०५ १४ आलमगीर सानी मात्र जुद्दीन जहाँदार शाह १९६९ २८११
का बेटा
१५ महीउलसुन्नत कामबख़्श का बेटा औरंगजेब ११७३ १८१६ का पोता
१६ मिरजा जवबड़त आलीगोहर का बेटा १७ आली गोहर शाहआलम बादशाह दूसरा आलमगीर सानी का बेटा
...
१२२१ १८५३
१२५३ १८९४
१८ अकबर शाह दूसरा शाहआलम का बेटा १९ अबूज़फ़र बहादुर शाह अकबर शाह का बेटा बहादुर शाह को अंग्रेज़ों ने संवत् १९१४ के ग़दर में शामिल होने से संवत् १९१५ में कैद करके रंगून में भेज दिया। जहाँ वह संवत् १९२० में मर गया और हिन्दुस्तान से मुसलमानों की बादशाही
का नाम जाता रहा ।
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११७४ १८१७
११७४ १८९७
...
दक्षिण के बादशाह
दिल्ली और दक्षिण के बीच में मालवे और गुजरात के हिन्दू राज्य थे । वे तो कुतुबद्दीन और शमसुद्दीन ने पंवारों और सोलंखियों से ले लिये थे । मालवे और गुजरात से आगे दक्षिण में देवगढ़ तैलिंग और करनाटक के ३ बड़े राज्य थे । जिनमें रामदेव लदरदेव और बल्लालदेव राज करते थे । उनको अलाउद्दीन खिलजी ने जीत कर अपनी अमलदारी दक्षिण समुद्र तक बढ़ा ली थी परन्तु तुग़लक़ बादशाहों से इतनी बड़ी बादशाही न सँभल सकी और उसके
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[ ११ ] टुकड़े टुकड़े होकर कई छोटे छोटे बादशाहों में बँट गये जो उन्हीं के नौकरों में से थे। ___ इन छोटे छोटे बादशाहों में सबसे बड़े कुलबरगे के ब्राह्मणी बादशाह थे। इनका मूल पुरुष हसन नाम एक गरीब मुसलमान दिल्ली में गांगू नाम एक ज्योतिषी की नौकरी करता था । उसी के बरदान और सहारे से मोहम्मद तुग़लक़ के पास नौकर होकर दक्षिण में गया और वहाँ बे बन्दाबस्ती देख कर बादशाह बन बैठा और अपना नाम हसन गांगूय ब्राह्मणी रक्खा। उसके वंश में इतने बादशाह हुए। १ हसन गांगू ब्राह्मणी . ... ... ७४८ १४०४ २ मोहम्मद शाह ब्राह्मणी हसन का बेटा ... ७५९ १४१५ ३ मजाहदशाह ब्राह्मणी मोहम्मदशाह का बेटा ७७६ २४३१ ४ दाऊद शाह ब्राह्मणी हसन का बेटा ... ७७९ १४३४ ५ महमूद शाह ब्राह्मणी हसन का बेटा ... ७७९ १४३४ ६ गयासुद्दोन ब्राह्मणी महमूद शाह का बेटा ... ७१९ १४५३ ७ शमसुद्दीन ब्राह्मणी महमूद शाह का बेटा ... ७९९ १४५३ ८ फीरोजशाह ब्राह्मणी दाऊदशाह का बेटा ... ८०० १४५४ ९ अहमदशाह ब्राह्मणी फ़ीरोज़शाह का भाई ... ८२५ १४७८ २० अलाउद्दीन ब्राह्मणी अहमदशाह का बेटा ... . ८३८ १४९१ ११ हुमायूशाह ब्राह्मणी अलाउद्दीन का बेटा ... ८६२ १५१५ १२ निजामशाह ब्राह्मणी हुमायूं का बेटा ... ८६५ १५१७ १३ मोहम्मदशाह ब्राह्मणी निजामशाह का बेटा ८६७ १५१९
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[ १२ ] १४ महमूदशाह ब्राह्मणी मोहम्मदशाह का बेटा ८८७ १५३९ १५ अहमदशाह ब्राह्मणी महमूदशाह का बेटा ९२४ १५७५ १६ अलाउद्दीन ब्राह्मणी अहमदशाह का बेटा ९२७ १५७८ १७ वलीउल्लाह ब्राह्मणी महमूदशाह का बेटा ... ९२९ १५७१ २८ कलीमुल्लाह ब्राह्मणी वलीउल्लाह का भाई ... ...
यह ९३५ (सं० १५८५) में मरगया । नाम का बादशाह था क्योंकि कुलवरगे का राज्य भी २।३ पीढ़ियों से ५ बड़े बड़े सरदारों ने बांट कर अहमदनगर, बीजापुर, बिदुर, बराड़, और गोलकुंडे में अपने अपने राजसिंहासन अलग अलग जमा लिए थे ।
बीजापुर के बादशाह बीजापुर के बादशाहों का मूलपुरुष यूसुफ़ आदिलशाह निजाम शाह बहमनी का मेल लिया हुआ एक तुरकी गुलाम था, जिसको पीछे से रूम के सुलतान मोहम्मद का भाई बताया गया है। और यह कहा गया है कि रूम में यह दस्तूर था कि बड़ा भाई तख़त पर बैठ कर छोटे भाइयों को मार डालता था। जब सुलतान मोहम्मद सन् ८५४ में अपने बाप सुलतान मुराद के पोछे तख्त पर बैठा तब उसने यूसुफ़ के मारने का हुक्म दिया । परन्तु उसकी मां ने उसे एक सौदागर की गुलामी में देदिया। वह सौदागर उसे दक्खिन में लाकर निज़ाम शाहबहमनी को बेंच गया। जो, मोहम्मदशाह के राज में बढ़ते बढ़ते बोजापुर का तर्फदार (सूबेदार होगया और उसकी बेटी अहमदशाह को ब्याही गई । उन दिनां ब्राह्मणी बादशाहों की बादशाही डगमगा रही थी
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[ १३ ] सूबेदार मुल्क दबाते जाते थे। यूसुफ़ आदिलशाह भी बीजापुर और रायचूर वगैरा के परगने दबा बैठा। १ यूसुफ़ आदिलशाह ... ... ८९५ १५४७ २ इसमाईल आदिलशाह यूसुफ़ का बेटा .... ९१६ १५६७ ३ मल्लूआदिलशाह इसमाईलशाह का बेटा ... ९४१ १५९१ ४ इब्राहीम आदिलशाह इसमाईल का बेटा ... ९४१ १५९१ ५ अली आदिलशाह इब्राहीम का बेटा ... ९६५ १६१४ ६ इब्राहीम आदिलशाह दूसरा तुहमास्प का
बेटा, पहिले इबराहोम का पोता ... ... ९८८ १६३७ ७ मोहम्मद आदिलशाह दूसरा ... ... १०२६ १६७४ ८ अली आदिलशाह दूसरा मोहम्मद शाह का बेटा
... ... १०६१ १७०७ ९ सिकंदर आदिलशाह
इसको सन् १०९६ (सं० १७४२) में औरंगजेब ने कैद करके बीजापुर फ़तह कर लिया।
अहमदनगर के बादशाह इनका मूल पुरुष तीमा भट नाम एक ब्राह्मण बीजानगर का रहने वाला था, जो अहमदशाह ब्राह्मणी की चढ़ाई में पकड़ा जाकर गुलाम बनाया गया और उसका हसन नाम रक्खा गया। वह शाहज़ादे मोहम्मद के साथ फ़ारसी पढ़कर शिकारी जानवरों का दारोगा होगया और मलिक हसन भरलो कहलाने लगा। क्योंकि उसके बाप का नाम भरलो था। फिर निज़ामुल्मुल्क बहरी खिताब
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[ १४ ] पाकर तैलिंग देश का तरफ़दार होगया । राजमहेंदरी वगैरा कई परगने जागीर में मिले। मोहम्मदशाह के पीछे उसके बेटे महमूदशाह का प्रधान मंत्री होकर राजका सारा काम करने लगा देवगढ़ दौलताबाद पोर जुनेर वगरैरा में फिर और जागीरें पाई। उसका बेटा अहमद निज़ामुलमुल्क, महमूदशाह ब्राह्मण से बागी होकर सन् ८९५ (सं० १५४६) में खुद मुखतार हो गया और अहमदनगर में जो उसीका बसाया हुआ था अपनी राजधानी कायम करके बादशाहो करने लगा। १ अहमदशाह निजामुलमुल्क ... ... ... ८९५ १५४६ २ बुरहान निजामशाह अहमद का बेटा ... ९१४ १५६५ ३ हुसेन निजामशाह बुरहान का बेटा ... ९६१ १६१ ४ मुरतिजा निजामशाह हुसेन का बेटा .... ९७२ १६२१ ५ मीरान हुसेन मुरतिज़ा का बेटो ... ... ९९६ १६४५ ६ इसमाइल निजामशाह दूसरे बुरहानशाह ... ... __ का बेटा, हुसेन का पाता
... ९९७ १६४६ ७ बुरहान निजामशाह दूसरा हुसेन का बेटा... ९९९ १६४८ ८ इब्राहीम निशामशाह दूसरे बुरहानशाह का
बेटा, इसमाईल का भाई __... २००३ १६५१ ९ अहमद निजामशाह शाह ताहिर का बेटा ... १००३ १६५१ १० बहादुरशाह इब्राहीम निजामशाह का बेटा १००४ १६५२ ११ मुरतिजा निजामशाह शाहअली का बेटा,
पहले बुरहानशाह का पाता ... १००७ १६५५ १२ अलीबुराहन निजामुल्मुल्क
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[ २५ ]
अली से शाहजहाँ बादशाह ने सन् १०४३ (संवत् १६८०) में अहमदनगर का बाक़ी मुल्क छोनकर अपनी अमलदारी में मिला लिया ।
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तैलिंग के बादशाह जो कुतुबशाही कहलाते थे
इनका मूल पुरुष सुलतान कुली तुर्कमान जाति की शाखा बहारलू में से था । मोहम्मदशाह ब्राह्मणी के राज में वलायत से दक्खिन में आकर गुलामों में भरती हुआ और गोलकु' डे में जागीर पाकर तैलिंगदेश के बंदोबस्त पर गया और वहाँ यूसुफ़ बादिल शाह अहमदनिज़ाम शाह और इमादुलमुल्क की देखादेखी सन ९१८ में सुलतान महमूद से बागी होकर खुद मुखतार होगया और और . कुतुबशाह नाम रख कर बादशाही करने लगा ।
१ सुलतान कुली कुतुब शाह
२ जमशेद कुतुब शाह सुलतान कुली का बेटा... ३ इब्राहीम कुतुब शाह सुलतान कुली का बेटा... ४ मोहम्मद कुली कुतुब शाह इब्राहीम का बेटा ...
...
५ सुलतान मोहम्मद कुतुब शाह मोहम्मद . कुली का भतीजा
...
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९१८१५६९
९५०
१६००
९५७
१६०७
९८९ १६३८
६ अबदुल्लाह . कुतुबुलमुल्क
.७ अबुल हसन ताना शाह अबदुल्ला का जमाई
औरंगज़ेब बादशाह ने सन् १०९८ (सं० १७४४ ) में इसको क़ैद
करके गोलकुंडा और हैदराबाद फ़तह कर लिया ।
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[ १६ ] बिदुर के बादशाह जो बरीदिया कहलाते थे
इनका मूल पुरुष क़ासिमबरीद बुरहानपुर के सुलतान मोहम्मशाह फ़ारूकी का गुलाम था। उसने सुलतान महमूद ब्राह्मणो के राज में सावा जी मरहटे को मार कर पाटन और जालने वगैरा परगनों को फतह किया और अड़सा कंधार तथा उदगिर के परगने जागीर में पाकर महमूदशाह से बदल गया और सन् ८९८ (सं० १५४९) के करीब बिदुर में बादशाह बन बैठा । १ कासिम बरीद २ अमीर अली बरीद कासिम का बेटा ३ अली बरीद ४५ साल
... ९२२ १५७३ ४ इबराहीम बरीदशाह अली बरीद का बेटा७ साल ९६७ १६१६ ५ कासिम बरीदशाह ३ साल
... ९७३ १६२२ ६ कासिम बरीद का बेटा मिरज़ा अली ... ९७६ १६२५ ७ अमीर बरीद मिरज़ा अली को कैद करके अमीर १०१६ १६६४ अमीर बरीद से १०१८ (सं० १६६६) में प्रादिल पौर निजामशाह ने किले और मुल्क छीन कर । आधा प्राधा राज्य बाँट लिया।
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[ १७ ] बराड़ के बादशाह
जो इमादुलमुल्क कहलाते थे इनका मूल पुरुष फ़तहउल्लाह इमादुलमुल्क बीजानगर के हिंदुओं में से था, जो बचपन में पकड़ा जाकर बराड़के सेनापति खानजहाँका गुलाम बनाया गया था। उसके मरे पीछे मोहम्मद शाह ब्राह्मणी के गुलाम में घुसकर बादशाह का कृपापात्र हो गया। इमादुल मुल्क खिताब पाकर बराड़ का सेनापति हुआ और वहीं सन् ८९२ में बागी होकर बादशाह बन बैठा। १ इमादुल मुल्क २ अलाउद्दीन इमादुलमुल्क का बेटा ३ दरिया इमादुल मुल्क अलाउद्दीन का बेटा ४ बुरहान इमादशाह दरिया का बेटा ५ तफावलखां दक्खिनी बुरहान का गुलाम
सन् ९८२ (१६४१) में इसको पकड़ कर मुरतिजा निज़ाम शाह. ने बराड़ को अहमदनगर में मिला लिया।
मालवे के बादशाह
मोलवे में पवारों का राज था । सन् ६३१ (संवत् १३२० ) में सुलतान शमसुद्दीन ने भेलसा और उज्जैन फ़तह करके महाकाल के मंदिर और राजा विक्रमाजीत की मूर्ति को तोड़ डाला, मगर उसके पीछे हिन्दुओं ने मालवा फिर ले लिया। तब सन् ७०४
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[ २८ ]
( सं०१३६१ ) में अलाउद्दीन खिलजी की फ़ौज ने हमला करके वहाँ के राजा गोगादेव को हराया और उज्जैन मंडू धारानगरी तथा चंदेरी में कबज़ा कर लिया उस दिन से मालवा १०० वर्ष तक दिल्ली के नीचे रहा । फिर वहाँ की बादशाही अलग हो गई ।
दिलावर खां गोरी सुलतान फ़ीरोज़ तुग़लक़ के बड़े अमीरों में से था । उसको सुलतान महमूद तुग़लक़ के राज में मालवे की हक़मत मिली थी । सन् ८०४ (सं० १४५८) के पीछे जब कि महमूद तुगलक की बादशाही बिगड़ी दिलावरखाँ ख़ुद मुखतार होकर बादशाह बन गया । उसकी औलाद में ११ बादशाह सन् ९७० (सं० २६१९) तक हुए। इनकी राजधानी पहिले तो धार में थी फिर मांडो के किले में रही ।
१ दिलावर ख़ाँगोरी
२ होशंग दिलावरखां का बेटा ३ मोहम्मद शाह होशंग का बेटा ४ महमूद खिलजी होगंग का भानजा ५ गयासुद्दीन खिलजी महमूद का बेटा ६ नासिरुद्दीन खिलजी गयासुद्दीन का बेटा ७ महमूद खिलजी नासिरुद्दीन का बेटा
८ गुजरात का सुलतान बहादुर शाह ९ सुलतान क़ादिर खिलजियों का गुलाम १० शुजाखां शेरशाह सूर का नौकर ११ बाज़ बहादुर शुजा खां का बेटा
...
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...
...
...
...
...
८०४ १४५८
८०८ ૬૬
८३८ १४९१
८३९ १४९२
९६२ १६१९
बाज़बहादुर से सन् ९७० (सं० १६१९) में अकबर बादशाह
की फ़ौज ने मालवे का मुल्क छीन लिया ।
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८७३
१५३०
९०५ १५५६
९१६ १५६७
९३७ १५८७
९४२
१५९२
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[ १९ ]
बुरहानपुर के बादशाह मलिक राजा फ़ारूकी सुलतान फोरोज तुगलक के नौकरों में से सन् ७७२ ( संवत् १४४७ ) में खानदेश का हाकिम हुआ था। तुगलकों की बादशाही बिगड़ने पर वह भी खुदमुखतार हो गया और उसकी औलाद में बुरहानपुर के बादशाह हुए क्योंकि उनकी राजधानी बुरहानपुर में थी। १ मलिक राजा फ़ारूक़ो .
... ७७२ १४४७ २ नसीर खाँ फ़ारूको मलिक राजा का बेटा ... ८०१ १४५५ ३ मीरान आदिलखाँ फ़ारूकी नसीर खां का बेटा ८४१ १४९४ ४ मुबारक खाँ फ़ारूक़ी आदिल खाँ का बेटा ... ८४४ १४९७ ५ आदिल खाँ दूसरा मुबारक खां का बेटा ... ८६१ १५१३ ६ दाऊदख़ाँ फ़ारूको मुबारक खाँ का बेटा ... ८९७ १५५८ ७ गजनी खाँ दाऊद खाँ का बेटा ११ दिन ८ अालम खां फ़ारूक़ी ९ आदिल खा फ़ारूकी नसीर खाँ का बेटा १० मोहम्मदशाह फ़ारूको आदिल खां का बेटा .... ९२६ १५७६ ११ मुबारक शाह आदिल खाँ का बेटा ... ९४२ १५९२ १२ मोहम्मद शाह मुबारक शाह का बेटा ... ९७४ १६१३ १३ हसनखाँ फ़ारूक़ी मोहम्मद शाह का बेटा ... ९८४ १६३३ १४ राजा अली खां मुबारक शाह फ़ारूकी का बेटा १५ बहादुर खाँ राजा अलीखाँ का बेटा ... १००५ १६५३
राजा अलीखाँ से सन् १००८ (सं० १६५६) में अकबर बादशाह की फौज ने आसेर का किला लेकर खानदेश में अमल कर लिया।
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[ २० ]
गुजरात के बादशाह शहाबुद्दोन गोरी के समय में गुजरात का राजा भीमदेव सोलंखी था। उसपर सन् ५७४ (१२३५ वा ३६) में शहाबुद्दीन ने मुलतान की तरफ़ से चढ़ाई की । भीमदेव ने लड़कर सुलतान को हराया। बहुत से मुसलमानों को मारा। सुलतान भाग कर बड़ी मेहनत और मुशकिल से गजनों में पहुंचा। ___ सन् ५९३ (१२५४, ५५) में कुतुबुद्दीन ने दिल्ली से चढ़ाई कर के भीमदेव से बदला लिया और नहर वाला ( अनहलपुरुपट्टन ) को फ़तह करके वहाँ अपना हाकिम बैठाया । परन्तु कुतुबुद्दीन के मरे पीछे भीमदेव ने फिर अमल कर लिया। उसके पीछे बीसलदेव, अरजनदेव, सारंगदेव और करण बाघेला बारी बारी से गुजरात के राजा हुए। सन् ६९७ ( संवत् १३५५ ) में अलाउद्दीन की फ़ौज ने करण को निकाल कर गुजरात फ़तह कर ली। तब से फ़ीरोज शाह केसमय तक दिल्ली से गुजरात में हाकिम आते रहे । सबसे पिछला हाकिम जफ़र खाँ था। वह अपने मालिक की कमजोरी से गुजरात का मालिक हो गया । उसकी जाति, कुल और व्यवहार का ब्यौरा इस प्रकार है। ____टांक जाति के कलालों में से दो भाई साद और सारन नाम थानेश्वर के किसी गाँव में रहते थे। एक दिन सुलतान मोहम्मद तुग़लक़ का चचेरा भाई फ़ोरोजखाँ शिकार खेलता हुआ उनके गाँव में जा निकला । साद सामुद्रक जानता था। उसने फ़ोरोज़ खाँ के पाँव में बादशाह होने की रेखा देखकर अपनी बहन उसको ब्याहदी,
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[ २ ] और दोनों भाई उसके साथ दिल्ली में आकर मुसलमान हो गये । साढू का नाम वजीहुल्मुल्कर क्खा गया। जब सन् ७४७(संवत् १४०३) में मोहम्मद तुग़लक़ के पीछे फ़ोरोज़ खां बादशाह हुआ तो उसने वजीहुलमुल्क के बेटे ज़फ़रखाँ और शमशेर खाँ को अपने पीने की शराब रखने का काम दिया।
फ़ोरोज़शाह के पोते सुलतान मोहम्मद तुग़लक ने सन् ७९३ (सं० १४४८ ) में ज़फ़र खाँ को गुजरात का सूबेदार करके भेजा। वह वहाँ ज़ोर पकड़कर सन् ८१० (सं० १४६४ ) में बादशाह बन बैठा और अपना नाम सुलतान मुजफफ़र रखकर तुग़लकों की गिरती हुई बादशाही में खुद मुखतार होगया । उस तारीख से इतने बादशाह गुजरात में हुए। १ सुलतान मुजफ्फ़र
... ८१० १४६४ २ अहमद शाह तातार खाँ का बेटा मुज़फ्फर ... ८१३ १४६७ का पोता ३ मोहम्मद शाह अहमदशाह का बेटा
८४६ १४९९ ४ कुतुबुद्दीन मोहम्मदशाह का बेटा ... ८५५ १५०८ ५ दाऊदशाह अहमदशाह का बेटा
८७३ १५२५ ६ महमूद बेगड़ा कुतुबुद्दीन का भाई .... ८७३ १५२५ ७ मुज़फ्फ़र शाह सुलतान महमूद गुजराती का बेटा ९१७ १५६८ ८ सिकंदर शाह मुज़फफ़र का बेटा ... ९३२ १५८२ ९ महमूद शाह मुजफफर शाह का बेटा ... ९४२ १५९२ १० बहादुर शाह मुजफ्फ़र शाह का बेटा ... ९४२ १५९२ ११ सुलतान महमूद लतीफ़ खाँ का बेटा मुज
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[ २२ ] फ्फ़र शाह का पोता १२ सुलतान अहमद अहमद शाह के पातों में से ९६१ १६११ १३ सुलतान मुजफ्फर महमूद का बेटा ... ९६९ १६१८ ___इस मुजफ्फ़र से सन् ९८० (सं० १६२९) में अकबर ने गुजरात छोन कर फिर दिल्ली के नीचे डाल ली।
सिंध के बादशाह
सिंध में अरब लोगों का क़दीम से आना जाना था क्योंकि वे लोग नावों में बैठकर सिंहलद्वीप * को आदम पैग़म्बर के चरणों के दर्शनों को जाया करते थे और हिन्दुलोग मक्के की यात्रा को जाते थे, जब कि वहाँ मूर्तियाँ रक्खोरहती थीं। मुसलमानी मत चलने के पीछे जब मकं की मूर्तियां तोड़ डाली गई तो इनका जाना आना बंद हो गया। परन्तु अरब लोग मुसलमान होकर भी सिंहलद्वीप को जाते आते हुए सिंध में पाया करते थे और इसी से उनको हिन्दुस्तान के और किसी देश की अपेक्षा सिंध कोफ़तह करने और वहाँ अपना धर्म फैलाने का मौका मिला। । पहिली चढ़ाई उन लोगों की सन् ८६ ( ७६२ ) में खलीफ़ा वलीद के हुक्म से हुई। सिंध और ईरान के बीच में जो बल्लोचों का मुल्क मकरान पड़ता है, मुसलमानों ने पहिले उसीको लिया और बल्लोचों को मुसलमान करके सिंध के हिन्दुओं पर हमला किया। ___* सिंहलद्वीप या लंका में जो बडे पाँव का चिह्न पत्थर पर है उसको मसलमान तो आदम के और बौद्ध लोग महात्मा बध के पांव का चिह्न वतनाते हैं।
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[ २३ ] उस वक्त सिंध का राजा दाहिर वा धीर था । वह मुसलमानों के अफ़सर मोहम्मद कासिम से कई लड़ाइयाँ लड़कर सन् ९३ (७६८) में मारा गया । मोहम्मद कासिम ने सिंध फ़तह करके उसकी दो बेटियों को लूट के सामानों के साथ वलीद खलीफ़ा के पास राजधानी दमिश्क में भेजा। उन्होंने खलीफ़ा से कहा कि मोहम्मदक़ासिम ने हमको तीनरात अपने पास रक्खा है क्या मुसलमानों में यह दस्तूर है कि मालिक से पहले नौकर लोग ऐसी चामचारी कर लेते हैं। खलीफ़ा ने खफा हो कर हुक्म लिखा कि मोहम्मद कासिम को गाय के चमड़े में सीकर भेज देवें । जब इस तरह उसकी लाश खलीफ़ा के पास पहुँची तो उसने उन लड़कियों को दिखाकर कहा कि मैं नालायकों को ऐसी सज़ा देता हूँ। लड़कियों ने कहा कि बादशाह को अपने पराये की बात समझ कर काम करना चाहिए । हमको मालूम हो गया कि बादशाह में प्रकल तो नहीं है परन्तु भागबल से ही राज करता है । मोहम्मद कासिम और हम तो भाई बहन के समान रहे थे। उसने हमसे कुछ अनीति नहीं की थी परन्तु उसने हमारे बाप-भाइयों को मारा था। हमारा राज छोना था। हमको बादशाही से बांदीपने के दरजे पर पहुँचाया था। इसलिए हमने यह तुहमत लगाकर अपना बदला ले लिया। __ इस तरह मोहम्मद कासिम जिसने दो ही वर्ष में मुसलमानी धर्म की धाक सिंध से कन्नौज तक पहुँचा दी थी सन् ९६ ( सं० ७७१ ) में मारा गया और उसके पीछे सिंध में सूमरा जाति के राजपूत राज करने लगे । जब शहाबुद्दीन गोरी ने लाहौर और मुलतान फ़तह किये थे तो अपने एक गुलाम नासिरुद्दीन
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[ २४ ]
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कबाचा नाम को उच्च में हाकिम बनाकर रक्खा था । उसने सिंध पर चढ़ाई करके ठट्ट के सिवा और सब मुल्क सूमरों से छीन लिया और कुतुबुद्दीन ऐबक के पीछे सिंध का बादशाह बन बैठा । सन् ६२२ ( १२८२ ) में सुलतान शमसुद्दीन एलतमश ने उच्च पर चढ़ाई करके नासिरुद्दीन को भगा दिया और सिंध को दिल्ली के नीचे डाल लिया । सूमरों के पास वही ठट्ठा रह गया । सो मोहम्मद तुग़लक के समय में समाजाति के राजपूतों ने उनसे राज छीन लिया। उनका सरदार जामअफ़रा राजा हुआ ।
१ जामअफ़रा ३|| वर्ष
२ जाम जूना १४ वर्ष
३ जाममानी १५ वर्ष
४ जामतम्माची १३ वर्ष
५ जामसलाहुद्दीन ११ वर्ष
६ जामनिज़ामुद्दीन सलाहुद्दीन का बेटा २ वर्ष
७ जामअलीशेर, निज़ामुद्दीन का बेटा ६ महीने
८ जामकर्डा तमाची का बेटा १ दिन
९. फ़तह ख़ाँ सिकंदर का बेटा १५ वर्ष १० जामतुगलक सिकंदर का बेटा २८ वर्ष ११ जाम मुबारक ३ दिन
१२ जाम सिकंदर फ़तहखाँ का बेटा || वर्ष १३ जाम संजर ८ वर्ष
१४ जाम नंदानिज़ाम मुद्दीन ६२ वर्ष
१५ जाम फ़ीरोज़ जामनंदा का बेटा
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[ २५ ] इससे सन् ९२७ (१५७८) में शाह बेग अरगं ने कंधार की तरर्फ से प्राकर ठट्ठा फ़तह कर लिया और समाँ लोगों का राज समाप्त होगया। १ शाहबेग अरगू
... ९२७ १५७८ २ हुसेन शाह अरा, शाह बेग का बेटा ९३० १५८१ ३ मिरज़ा ईसातरखाँ
... ९६२ १६१२ ४ मिरजा बाक़ी
___९६५ १६१४ ५ मिरज़ा जानी
... ९९३ १६४२ इससे सन् १००१ ( १६४९ ) में नवाब खानख़ानों ने सिंध फ़तह कर के अकबर बादशाह की सलतनत में शामिल कर दिया ।
मुलतान के बादशाह सन् ८४७ ( संवत् १५०० ) में जब सैयदों की सलतनत कमजोर हो गई और मुगलों के हमले काबुल कंधार और गजनी की तरफ़ से मुलतान पर होने लगे तो वहाँ के लोगों ने मिलकर शेख यूसुफ़ मुलतानी को बादशाह बना लिया। उसने लंगा जाति के राय सहेरा की बेटी से व्याह किया था, जिससे राय सहरा ने शेखयूसुफ़ को पकड़ कर मुलतान में अमल कर लिया और अपना नाम कुतुबुद्दीन रख कर बादशाही करनी शुरू की। १ शेखयूसुफ़ मुलतानी
... ८४७ १५०० २ कुतुबुद्दीन लंगा
... ८५८ १५११ ३ शाह हुसेन लंगा कुतुबुद्दीन का बेटा ... ८७४ १५२६ ४ शाह फ़ीरोज़ लंगा हुसेनशाह का बेटा
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[ २६ ] ५ शाह महमूद लंगा फ़ोरोज़शाह का बेटा ... ९०८ १५५९ ६ शाह हुसेन लंगा शाहमहमूद का बेटा ... ९३१ १५८१
इससे सन् १०३२ ( १५८२ ) में सिंध के बादशाह मिरज़ा शाहहुसेन अरगूने मुलतान फ़तह कर लिया मगर लूटमार से ऊजड़ करके छोड़ दिया । तब लंगर खाँ नामक एक लंगा ने उसको फिर आबाद किया। उससे हुमायू बादशाह के बेटे मिरजा कामरों ने ले लिया।
कश्मीर के बादशाह कश्मीर में हिन्दू राजाओं का राज हजारों वर्ष तक रहा है जिसका हाल राजतरङ्गिणी नामक संस्कृत ग्रंथ में लिखा है। सबसे पिछला हिन्दु राजासियादेव था। उसके पास शाहमिरज़ा नामक एक मुसलमान फ़कोर, जो अपनी पीढ़ियाँ अर्जुन पांडव से मिलाता था, सन् ७१५ (सं० १३७२) में आकर नौकर हुआ। जब सियादेव मरा तब उसके बेटे राजा रंजन ने शाहमिरज़ा को अपना वज़ीर बनाया और अपने घर का काम तथा अपने बेटे चंद्र को भी उसी के हवाले कर दिया। राजा रंजन के मरने पर ऊदन राजा, जो उसका रिश्तेदार था, कंधार से आकर गद्दी पर बैठ गया । उसने भी शाह मिरज़ा को ही मुखतार बनाये रक्खा और उसके दो बेटे जमशेद
और अलीशेर को भी बड़े बड़े काम सौंपे । इन दोनों के सिवा सराशामक और हिंदालनाम दो बेटे और भी शाहमिरजा के थे। जब इन सबका बहुत ज़ार बढ़गया तब राजा ऊदन ने वहम करके इनको अपने घर में आने से रोक दिया। मगर ये तो सब मुल्क में
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[ २७ ] फैले हुए थे इससे इनका जोर कुछ नहीं घटा । बल्कि राजा के नौकरों को मिलाकर यह और भी प्रबल हो गये और राजा कमज़ोर होता होता सन् ७४७ (सं० १४०३) में मर गया। उसकी रानी कूटादेवी उसकी जगह बैठ कर शाहमिरजा से कहने लगी कि रंजनदेव के बेटे चंद्रदेव को गद्दी पर बैठा कर काम किया कर, मगर शाहमिरज़ा ने नहीं माना । तब रानी उससे लड़ने को गई
और पकड़ी जाकर उसको मुसलमान होना और उसके घर में रहना पड़ा। शाहमिरजा दूसरे दिन ही अपना नाम सुलतान शमसुद्दीन रख कर कश्मीर का राज करने लगा। १ शमसुद्दीन ३ वर्ष
... ७४७ १४०३ २ जमशेद शमसुद्दीन का बेटा १ वर्ष २ महीने ... ७५० १४०६ ३ अला उद्दीन अलीशेर शमसुद्दीन का बड़ा भाई
१३ वर्ष ... ७५१ १४०७ ४ शहाबुद्दीन सराशामक अलाउद्दीन का छोटा ।
भाई २० वर्ष ... ७६४ १४१९ ५ कुतुबुद्दीन हिंदाल सराशामक का छोटा भाई... ७८४ १४३९ ६ सुलतान सिकंदर कुतुबुद्दीन का बेटा ... ७९६
१४५० ७ अलीशाह सिकंदर का बेटा
८१९ १४७३ ८ जैनुल आबदीन अलीशाह का बेटा ... ८२६ १४८० ९ शाहहैदर जैनुल आबदीन का बेटा १ वर्ष
२ महीने
८७७ १५२९ १० शाह हसन शाहहैदर का बेटा ... ८७८ १५३० ११ मोहम्मदशाह शाहहसन का बेटा
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[ २८ ]
१२ फ़तहशाह आदम ख़ाँ का बेटा मोहम्मदशाह ८९४
को पकड़कर ९ वर्ष
१३ फिर मोहम्मदशाह फ़तह शाह को भगा कर ९ महीने
१४ फिर फ़तह शाह मोहम्मद शाह को भगा कर १ वर्ष
१५ फिर मोहम्मदशाह फ़तह शाह को भगा कर १२ वर्ष
१६ इब्राहीमशाह मोहम्मद शाह का बेटा बाप को कैद करके ८ महीने
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२४ इसमाइल शाह इब्राहीम शाह का
भतीजा २ वर्ष
...
...
२२ फिर नाजुक शाह तीसरी दफ़ मिरज़ा
हैदर के मारे जाने पर २ महीने
२३ इब्राहीम शाह नाजुक शाह का बेटा ५ महीने
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१७ नाजुक शाह इब्राहीम शाह का बेटा १८ फिर मोहम्मदशाह चौथी दफे ना.जुकं शाह को वली अहद बना कर
१९ शमसुद्दीन मोहम्मद शाह का बेटा
२० फिर नाजुक शाह ६ महीने
२१ मिरज़ा हैदर तुर्क नाजुक शाह को हरा कर १० वर्ष
...
१५४६
९०३ १५५४
२०४ १५५५
९०५ १५५६
९१७ १५६८
९१७ १५६८
९६३ १६१२
२५ हबीबशाह ५ वर्ष
२६ गाज़ी शाह चक्र हबीब शाह का नौकर ४ वर्ष ९६८ १६१७
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[ २९ ] २७ हुसेनशाह गाजी शाह का भाई ... ९७२ १६२१ २८ अली शाह हुसेन शाह का भाई २९ यूसुफ़ शाह अली शाह का भतीजा ... ९८५ १६३४ ३० याकूबशाह यूसुफ़ शाह का बेटा - सन् ९९५ (१६४३-४४) में अकबर बादशाह की फ़ौज ने कश्मीर का मुल्क या कूबशाह से फतह कर लिया जो कभी किसी दिल्ली के बादशाह के हाथ नहीं आया था।
बङ्गाल के बादशाह
जब शहाबुद्दीन गोरी ने दिल्ली फ़तह की थी तब बिहार से आगे नदिया में लखमणसेन राजा का बेटा लखमणा ८० वर्ष से राज करता था । उस पर शहाबुद्दीन के नौकर मलिक बखतियार खिलजी ने जो कंपिलापटियाली का जागीरदार था, बिहार की तरफ़ से चढ़ाई की। लखमणे से ब्राह्मणों ने कह दिया था कि इस देश में मुसलमानों का राज हो जावेगा; इसलिए बखतियार खिलजी की खबर सुनतेही राजा राजधानी को छोड़ कर भाग गया और बखतियार खिलजी का लड़े भिड़े बगैरही नदिया में अमल हो गया। फिर उसने अपनी अमलदारीबंगाले से कामरूप तक बढ़ाली
और सन् ६०२ (१२६२) में मरगया। उसके पीछे सुलतान तुगलक के वक्त तक दिल्ली के बादशाहों के हाकिम बंगाले में हुकूमत करते रहे । फिर सन् ७३९ ( सं० १३९५ ) में बंगाले के हाकिम क़दरखा के मरने पर उसका नौकर मलिक फखरुद्दीन बादशाह बन बैठा ।
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[ ३० ] तबसे दिल्ली के बादशाहों का अमल बंगाले से उठगया और अकबर बादशाह के समय तक वहाँ के बादशाह ख़ुदमुखतार रहते रहे। १ मलिक फ़ख़रुदीन
___... ७३९. १३९५ २ अलाउद्दीन फखरुद्दीन को मार कर ... ७४१ १३९७ ३ शमसुद्दीन भंगरा अलाउद्दीन को मार कर ... ७४२ १३९८ ४ शाह सिकंदर शमसुद्दीन का बेटा
७५८ १४१३ ५ गयासुद्दीन सिकंदर शाह का बेटा ... ७६८ १४२३ ६ सुलतानुल सलातीन शाह
७७५ १४३० ७ शमसुद्दीन दूसरा सुलतानुल सलातीन का बेटा ७८५ १४४० ८ राजा कंस हिन्दू
... ७८७ १४४२ ९ जनमल जलालुद्दीन कस का बेटा मुसलमान था ७९४ १४४८ १० सुलतान अहमद जलालुद्दीन का बेटा ... ८०२ १४५६ ११ नासिरुद्दीन गुलाम ७ दिन •
८३० १४८३ १२ नासिरुद्दीन भंगरा
८३० १४८३ १३ बारबुक शाह
८६२ १५१५ १४ यूसुफ़शाह बारबुक शाह का बेटा
८७९ १५३१ १५ सिकंदरशाह
... ८८७ १५३९ १६ फ़तहशाह
... ८९४ १५४६ १७ बारबुकशाह दूसरा फ़तह शाह को मार कर ८९६ १५४७ १८ मलिक अदील हबशी फ़ीरोज़ शाह, फ़तहखाँ को मार कर १९ महमूदशाह फ़ीरोज़ शाह का बेटा
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[ ३१ ] २० मुजफ्फ़र शाह हबशी महमूदशाह को मार कर
___... ९०० १५५१ २१ शरीफ़ मको अलाउद्दीन मुजफ़्फ़र शाह को मार कर
... ९०३ १५५४ २२ नसीबशाह अलाउद्दीन का बेटा ... ९२७ १५७७ २३ सुलतान महमूद बंगाली
९४३ २४ शेरशाह सूर महमूद शाह को भगा कर ... ९४५ १५९५ २५ हुमायूँ बादशाह
... ९४५ १६०४ २६ फिर शेरशाह सूर २७ सुलतान बहादुर शेरशाह के बेटे सलीम
शाह के हाकिम मोहम्मद खाँ का बेटा
बागी हो कर २८ सुलेमान कर रानी
... ९६० १६१० २९ बायज़ीद पठान सुलेमान का बेटा ... ९८१ १६३० ३० दाऊदखा सुलेमान का बेटा ... ९८१ १६३०
इससे सन् ९८३ ( सं० १६३२ ) में अकबर बादशाह की फ़ौज ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा छीनकर उनको दिल्ली की सलतनत में मिला लिया।
जौनपुर के बादशाह फीरोजशाह तुगलक के बेटे मुहम्मदशाह ने मलिक सरवर नाम वाजासरा ( नाज़िर) को उचाजाजहाँ का खिताब देकर वज़ीर बनाया था और उसके बेटे सुलतान महमूद ने मलिक
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[ ३२ ]
उलशर्क का खिताब दे कर सन् ७७० (१४२५) में जौनपुर बिहार और तिरहुत की हाकिमी पर भेजा । वह वहाँ ज़ोर पकड़ कर बादशाह बन बैठा । कई पीढ़ी तक यह बादशाही उसके घराने में रही । १ सुलतान उलशर्क रवाजाजहाँ ७७० १४२५
८०२ १४५६
२ मुबारक़शाह उसका गोद लिया हुआ ३ शाह इब्राहीम मुबारक़शाह का भाई
८०४ १४५८
४ सुलतान महमूद इब्राहीम का बेटा
८४२ १४९५
८६२ १५१४
५ मुहम्मदशाह महमूद का बेटा ६ हुसेनशाह महमूदशाह का बेटा
८६२ १५१५
हुसेनशाह से सन् ८८१ (सं० १५३३) में दिल्ली के बादशाह सिकं दर लोदी ने जौनपुर छीन लिया और फिर यह इलाक़ा दिल्ली के नीचे आगया !
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नं ० नाम
सिक्खों की दसों बादशाही
बादशाही नाम गुरु साहिब
पहली गुरु नानक साहिब २ दूसरी गुरु अंगद साहिब
तीसरी गुरु अमरदास साहित्र चौथी गुरु रामदास साहित्र ५ पाँचवीं गुरु अर्जुन साहिब ६ छठी गुरु हरगोविंद साहिब
९ नवीं
१० दसवीं
जन्मतिथि
कार्तिक सुदि १५ संवत् १५२६ वैशाख सुदि ११ संवत् १५६१ वैसाख सुदी १४ संवत् १५३६ कातिक सुदी २ संवत् १५५७ वैसाख वदी ७ संवत् १६१० असाढ़ सुदी माह सुदी २
संवत् १६५२ संवत् १६८६
सावन वदि १० संवत् १७१३
७ सातवीं गुरु हरराय साहिब आठवीं गुरु हरकिसन सहाय
८
साहिब
गुरु तेगबहादुर साहिब मगसर सुदि २ संवत् १६७८ गुरुगोबिंद सिंह साहित्र पौस सुदी ७ संवत् १७२२
निर्वाणतिथि
१६०९
आसोज वदि १० संवत् १५९६ चैत्र सुदि ४ संवत् भादों सुदी १५ संवत् १६३१ भादों सुदी ३ संवत् १६३८ जेठ सुदी ४ संवत्
१६६३
चैत्र सुदी ५ संवत् १६७६ कातिक सुदी ९ संवत् १७९५ चैत्र सुदी १४ संवत् १७२१
मगसर सुदी ५ संवत् १७३७ कातिक सुदी ५ संवत् १७६५
[ ३३
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