Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavirain Ara
charya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir
For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
श्रीमद्भानुनाथ - निम्मित व्यवहाररत्नम् ॥
" परसरमा "वास्तव्यविद्दद्दर "श्रीमत्सदाशिवशम्र्म्म" प्रदर्शितरीत्या तट्टिप्पण्याभूष्य "तुमौलि" वासिदैवज्ञवर " श्रीमज्जयकान्तशर्म्मणा संशोध्य "काशीस्थ-यज्ञेश्वरयन्त्रालये मुद्रापितम्० ॥ शम्० ॥
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
य
ऋद्धिसिद्धिसमयागमन्मतं नोनवीमि यशसे सुधीततम् । हीन्दुमध्यनवकं व पण्डितं ढुण्डिराजमुमवासुलालितम् ॥१॥
CHODAEDIOSEDI00-49-HSONG
-SOD500-to-efa
PANDITA"SADA SHIVA JHA. Ar, PARA SARANA, P. O. SUKHAPUR, D, BHAGALPUR.
॥शा
For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ग्राउ-०७ ++3-9-ॐॐ६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भूमिका । प्रसिद्ध्यति किल वेदाङ्गतयाऽतिप्रयतभूत सर्व्वमान्याखिलक्ष्मामण्डलप्रचलित शुभाशुभकालनिर्णायकज्योतिशास्त्रम् ० यद्दिना केपि यज्ञादि किमपि कर्म्म कर्त्तुं न शक्नुवन्तीति परमधामिकमैथिलवर्य्यसद्गणकशास्त्रिशिरोभूषणश्रीमद्भानुनाथशर्मा तिष्ठत्स्वपि मुहूर्त्तविषयकानेकग्रन्थेषु तेषां स - ठर्वव्यवहारासाधकत्व-मवगत्य" सर्वोपकारायाने कधम्र्म्मशास्त्रज्योतिश्शास्त्राण्यालोक्य शास्त्रव्यवहा राविरुद्रव्यवहाररत्ननामकममुं ग्रन्थं कृतवान्० तमनेकजनै रसकृत्प्रार्थितविविधविरुदावलीत्यादिवनैलो राजधान्यधिपति - याचककल्पद्र, मश्रीमद्राज-कमलानन्दसिंहमहाशय-प्रतिपालितोहं वि० "परसरमा" राजधान्यधिपतिक्षत्रियकुलावतंसदानि -सद्दीरराजकुमारबाबू "श्रीकीर्त्तिधरनारायणसिंह” वि जयिलव्धजोविक सर्वशास्त्रविच्छ्रीसदाशिव" शर्मा प्रदर्शितरीत्या टिप्पणीभिः समलङ्कृतय्य यथायुक्ति संशोध्यामुद्रापयम्” अशुद्धं कृपया विशोध्य सफलयन्तु ममायासं धीधनाः इत्याशास्ते ज्यो० “श्रीजयकान्तशर्म मैथिलः " मो०तुमौलि०पो० बनेड़ा० जि०दरभङ्गा० ॥
For Private and Personal Use Only
SSIPS 3.0 CIS
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir
व्य
. રા
-90-5
॥श्रीमत्सरस्वत्यै नमः॥
HOSHODHES
EDEEO
॥२॥
-80
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
OCES
-SHODHDOHD-90-SHO
श्रीगणेशाय नमः ॥ नत्वा मुकुन्दस्य पदारविन्दं स्वर्गापवर्गद्र मराजकन्दम् ॥ श्रीभानुनाथः कृतचारुयत्न करोम्यहं सहग्वहारराम ॥१॥ स्वकृतपरकृताभ्यां संग्रहोऽयं मदीयः सुललितपदरम्यः। बासर्वलोकाभिमम्यः ॥ निखिलवरकुलानां मैथिलानामिदानों जनयति परितोषं त्यक्तनिश्शेषदोषम है। b॥२॥ काव्यं श्रीभानुनाथस्त्र प्राचीनगणकस्य च ॥ माधुर्य्यमनयोजेंये शर्कराक्षारयोरिव ॥३॥ दुर्जनैरपि क्षन्तव्यमपराधयं मम ॥ सज्जनानां विनोदाय यतो ग्रन्थं करोम्यहम् ॥ ४॥ विनो-४ पदेशं खलु बालकानां चेतो विशुद्धिन विधानपूर्वा ॥ यतस्ततः प्रागुपदेशमेव क्रमेण वक्ष्यामि हितञ्च तेषाम् ॥ ५॥ एकस्मिन्वत्सरे मासाश्चैत्राद्या द्वादशैव हिं॥ तेऽपि नाम्नः प्रभेदेन चत्वारः स्युः प्रकारकोः॥६॥ सौरश्च सावन श्चैव नाक्षत्रश्चान्द्र एव च ॥ एतैरेव समस्तोऽपि व्यवहारः । प्रवर्त्तते ॥७॥ विबाहादौ स्मृतः सौरो यज्ञादौ सावनस्तथो ॥ क्षौरपैन्यादिके चान्द्रो नाक्षत्रश्च
-Sit
For Private and Personal Use Only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-Sita O
व्य०
तिथिवते ॥८॥ रविसंक्रान्तितः सौरः सावनस्तूदयावधिः ॥ नाक्षत्रं भभ्रमादिन्दोश्चान्द्रस्त्रिंश ॥३॥त्तिः स्मृतः ॥ ९॥ चान्द्रोऽपि हिविधः प्रोक्तः शुक्लकृष्णानुसारतः॥ सूर्यचन्द्रान्तरांशैस्तु ज्ञेया बहादशभिस्तिथिः ॥ १० ॥ अथ तिथीशानाह ॥ वहि झाम्बिका चैव गणेशोऽहिर्गु हो रविः ॥ शिवो दुर्गा थमो विश्वे विष्णुः कामः शिवः शशी ॥११॥ (१) पक्ष त्यादितिथीनान्तु पक्ष योरुभयोरपि ॥
एते देवगणाः सर्वे पतयः स्युर्यथाक्रमम् ॥ १२ ॥ अथ तिथीनां विशेषसंज्ञामाह ॥ नन्दा भद्रा जalया रिक्ता पूर्णा च तिथयः क्रमात् ॥ वारत्रयं समावृत्य भवन्ति प्रतिपन्मुखाः ॥ १३ ॥ अथ सि-1 द्धियोगाः ॥ शुक्र नन्दा, बुधे भद्रा, गुरौ पूर्णा, कुजे जया ॥ शनौ रिक्ता, शुभा ज्ञेया सर्वकार्येषु । धीमता ॥ १४ ॥ अथ निम्धयोगाः॥ आदित्यभौमयोनन्दा, भद्रा भार्गवचन्द्रयोः॥ बधे जया .
(१) पक्षस्य मूलं पक्षतिः (प्रतिपदित्यर्थः) पक्षात्तिरिति तिप्रत्ययः ॥
O-OH-GCHCONCE+
5-10
॥३॥
--
Seto
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-CPIGH
के गुरौ रिक्ता, शनी पूर्णातिनिन्दिता ॥ १५॥ अथ दग्धतिथिः ॥ चापे मीने द्वितीया च, चतुर्थों की
वृषकुम्भयोः ॥ षष्टो मेषे कुलीराख्ये, कन्यायुग्मे तथोष्टमो ॥१६॥ दशमी वृश्चिके सिंह द्वादशो है मकरे तुले ॥ एतास्तु तिथयो दग्धाः शुभे कर्मणि वर्जिताः ॥ १७ ॥ अथ भद्राविचारः ॥ अ-. टम्यां पूर्णिमायाञ्च शुक्ले पूर्वदले स्मृता ॥ एकादश्याश्चतुर्थ्याश्च तथा भद्रा परे दले ॥ १८ ॥
कृष्णेन्त्याढ़े तृतीयायां दशम्यामपि संस्थिता ॥ सप्तम्याञ्च चतुर्दश्यां पूर्व भागे तथैव च ॥ १९॥ | महहिध्वंसिनी या च नित्यं दुःखप्रदायिनी ॥ सा भद्रा वर्जनीया स्यात्सर्वकार्ये सदा वुधैः ॥२०॥
क्रूरकाय्ये, खरोष्ट्रादेः क्रयादौ, समरेषु च ॥ भद्रा प्रशस्ता विज्ञ या सर्वथा देवचिंतकैः ॥२१॥ अथ , भद्रावासमाह ॥ आदावष्टघटी स्वर्गे ततः षोडश भूतले ॥ तदूई षट्च पाताले भद्रा त्रिंशद्घटीक्रमात् ॥ २२ ॥ खर्गे च लभते सौख्यं पाताले च धनागमम् ॥ मर्त्यलोके भवेञ्चिन्ता एवं भद्रा
--DIOEDICI0
मल-5-06-06-05-foteo.cG
00
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie
O-63-61
-
फलोदितम् ॥ २३॥ अथ चन्द्रावस्थितिराशिविशेषेण भद्रावस्थितिमाह ॥ वृषभमिथुनमेषे वृश्चिके २० । स्वर्गलोकम् ॥ जलचरघटसिंहे कर्कटे भूतलेषु ॥ युवतिमृगतुलायां काम्म के नागलोकं भ्रमति जगदिदं सा कार्यनाशाय विष्टिः ॥२२॥ कोजागरोत्सवे चैव होलिकोत्सवकर्मणि ॥ भद्रा विव
जनोया स्यान्मिथिलायां विशेषतः ॥ २५॥ अथ नक्षत्रस्वामिविचारः॥ अश्वो यमो नलो ब्रह्मा से NO द्विजराजस्त्रिलोचनः॥ देवमाता गुरुः सर्पः पितरो भगएव च ॥ २६ ॥ अर्यमा द्य मणिस्त्वष्टा
मारुतो वासवानलौ ॥ मित्रो महेन्द्रो नि तिर्जलं विश्वे विधिस्तथा ॥ २७ ॥ गोविन्दो वसुतोयेशस्त्वजपाच्च यथाक्रमम् ॥ अहिनश्च पूषा च ऋक्षेशास्ते प्रकीर्तिताः ॥ २८॥ अथ नक्षत्राणाविंशेषसंज्ञामाह ॥ चरं चलं स्मृत खातीपुनर्वसुश्रुतित्रयम् ॥ ऋरमुगू मघा पूर्वात्रितयं भरणी तथा ॥ २९॥ ध्रुवं स्थिरं विनिर्दिष्टं रोहिणी चोत्तरात्रयम् ॥ तीक्ष्णं दारुणमाश्लेषाज्येष्ठााम-21॥४॥
3-09-DIEOHDDESI-ENESH
00-45
--016-1-5-MES-116
For Private and Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
PH-00-OARD-CO-OSESE
लसंज्ञितम् ॥ ३०॥ लघु क्षिप्नं स्मृतं पुष्यो हस्तोऽश्विन्यभिजित्तथा ॥ मृदु मैत्रं स्मृतं चिनानुराया रेवती मृगः ॥ ३१॥ मिश्र साधारणं प्रोक्त विशाखा कृतिका तथा ॥ नक्षत्रेष्वेषु कर्माणि नामतल्यानि कारयेत ॥ ३२॥ अथ ताराविचारः॥ जन्मभादिष्टनक्षत्र गणयित्वा प्रयत्नतः॥न-* वभिश्च हरेद्भागं शेष ताराः प्रकीर्तिताः ॥३३॥ जन्म सम्पहिपत्क्षेम प्रत्यरिःसायको वधः ॥ मित्रोतिमित्राः प्रख्यातास्ताश्च नामशदृक्फलाः ॥३४॥ अथ दुष्टताराशान्तिमाह । प्रत्यरौ लवणं दद्याच्छाकमात्रं त्रिजन्मस ॥ शद्धं गणं विपत्तौ न्य, वधे हेम तिलैः सह ॥३५॥ अथ चन्द्रावस्थितिविचारः॥ अश्विनी भरणी सर्वा कत्तिकैकपदापि च ॥ नवभिन्न वभिः पादरेवं मेषवृषादयः ॥३६॥ अथ मेषादीनां संज्ञान्तरमाह ॥ चराख्यश्च स्थिराख्यश्चद्विस्वभावाभियोऽपि च ॥ त्रिभिस्त्रिभिश्च मेषाद्य या हादश राशयः ॥३७॥ ऋ राक रौं मेषवृषौ युग्मकर्को तथैव च ॥ हा
For Private and Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य० 11411
+- 0.0 0.981819190818199
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भ्यां द्वाभ्यामनेनैव क्रमेण परिकीर्त्तितौ ॥ ३८ ॥ अथ चन्द्रानयनमाह ॥ जन्मराशिं समारभ्य दिनभं गणयेद्दधः ॥ यावन्मिता भवेत्संख्या तावदेव हि चन्द्रमाः ॥ ३९ ॥ सर्वे चन्द्राः शुभप्रदाः ॥ सर्वेषु शुभकाय्र्येषु विज्ञेयाः सूरभिः सदा ॥ ४० ॥ माह ॥ मेपालिसिंहगश्चन्द्रो रक्तवर्णस्तु मध्यमः ॥ वृषकर्क तुलासंस्थः श्वेतः सिद्धि प्रदायकः ॥२१॥ मीने धनुर्द्धरे युग्मे पोतः शर्म्मविवृद्धिदः कन्यामकरकुम्भेषु कृष्णवर्णो भयप्रदः ॥ २२ ॥ अथ-नन्द्रतारावलकथनम् ॥ कृणे वलवती तारा शुक्लपक्षे तु चन्द्रमाः ॥ तयोर्बलं सदा ग्राह्य ं सर्वेषु शुभकर्मसु ॥ २३ ॥ मासे तु शुक्लप्रतिपत्प्रवृत्ते पूर्णः शशी मध्यवलो दशाहे ॥ श्रेष्टो द्वितीयेऽल्पवलस्तृतीये सौम्यैश्च दृष्टा वलवान् सदैव ॥ २२ ॥ अथ निषिद्धचन्द्रस्य शान्तिः ॥ * ॥ शङ्ख ं दद्याद्दिजातिभ्यो हिमांशौ विफले सति ॥ शङ्खाभावे महत्स्वच्छं तण्डुलं वा नवं दधि ॥ ४५ ॥ अथ घात
For Private and Personal Use Only
रिष्फाष्टतुर्य्यगं हित्वा अथ चन्द्रवर्णज्ञान -
७ (६) (3. (8) 161-1
२०
॥५॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3.69516
9-DAY-00-EDIENCEO.COMKEEPIC
चन्द्राथमाह। जन्मेन्दुनन्दामघा च मेपे, वृषे शनिः पंचमहस्त पुर्णाः ॥ स्वाती च युग्मे नवचन्द्रभद्राः कक्कैनुराधावुधयुग्मभद्राः॥४६॥ सिंहे जया षट्क शनिश्च मूलं. पुर्णा शनिर्दिकश्रवणस्त्रियाञ्च ॥ गुरुस्त्रिरिक्ता शतभे तुले च नन्दालिके रेवतिसप्तशुक्राः ॥१७॥ चापे चतुःशुक्रजयाभरयो, मृगेऽष्टमोरोहिणिभौमरिक्ताः॥ कुम्भे जयागुरुरुद्रघाता, झपे भृगुश्चात्यभुजंगपूर्णाः ॥१८॥ विवाहचूडाव्रतवन्धयज्ञ पट्टाभिषेके च तथैव राज्ञः ॥ सीमन्तकार्ये खलु जातके च नो घातच
न्द्राद्यमिदं विचिन्त्यम् ॥४९॥ अथ वारविचारः ॥ जीवः शुक्रो वुधश्चन्द्रः शुभाख्यो वासरः ॐ स्मृतः ॥ शनैश्चरो महोसूनुः सूर्यः पापाभिधो भवेत् ॥ ५० ॥ भास्कराङ्गारको रक्तौ, शुक्लौ शु.
निशाकरौ॥ पीतौ बुधगुरू ज्ञे यौ, कृष्णो राहुशनैश्चरौ ॥ ५१ ॥ अर्कः शुक्रः कुजो राहुः श-18 निश्चन्द्रो वुधी गुरुः ॥ प्रागादिककुभो नाथाः क्रमात्सूर्यादयो ग्रहाः ॥ ५२ ॥ अथ प्रहरार्द्धगि
-09-Ele
-10
For Private and Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य
15
-21-09-2HS-EDIOES.
चारः ॥ रवौ वाश्चतुः पंच सोमे सप्तझ्यन्तथा ॥ कुजे षष्ठदयञ्चेव वुधे पञ्चतृतीयकम् ॥५३॥ & गुरौ सप्ताष्टकं चैव शुक्र वेदतृतीयकौ ॥ शनावाद्यन्तषष्ठश्च प्रहराई विगर्हितम् ॥ ५४ ॥ अथ | दिनक्षकुयोगम् ॥ रवौ मघानुराधा च, सोमे वैश्वहिदैवते ॥ भोमे शतभिषाा च, वुधे मूला ॐ श्विनी तथा ॥ ५५॥ मृगो वह्निः सुराचार्य, शुक्र श्लेषा च रोहिणी॥ शनौ हस्तश्च पूषाच सकार्येष निन्दिताः ॥५६॥ अथ समयाशद्धिः॥ चौलोहाहजपत्रतोपनयनाग्न्याशाननीराशचान्देवस्थापनकर्णवेधतमहादानादिविद्यामखान् ॥ यात्रापूर्वसुरेक्षणान् गृहवृषोत्सर्गाभिषेकाश्रमानस्तेभार्गवजीवयोन तनुयान्मासि क्षये चाधिके ॥ ५७ ॥ वक्र वैवातिचारे च देवतानां गुरोरपि ॥ त्याज्यानि शुभकम्माणि सकलानि मनीषिभिः ॥ ५८॥ गुरो गोः शिशुत्वे च वृद्धत्वे ग्रहसंगरे॥ अतिप्रक्षीणचन्द्र च न कुन्मिङ्गलक्रियाम् ॥ ५९॥ गुर्वादित्ये गुरौ सिंहे मकरे च तथैव च ॥१॥६॥
For Private and Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
20-0
-85-
हयाम्यायने हरौ सुप्ते सर्वकर्माणि वर्जयेत् ॥६०॥ अथ मन्वादियुगादिविचारः ॥ मन्वादयो ।
युगाद्याश्च रविसंक्रान्तयोऽपि च ॥ मासान्ताश्च परित्याज्या व्रतादिशुभकर्मसु ॥ ६१॥ अश्वयुक्शकनवमी द्वादशी कातिके तथा ॥ तृतीया चैत्रमासस्य तथा भाद्रपदस्य च ॥ १२॥ फाल्गनस्याप्यमावास्या पौषस्यैकादशो सिता ॥ आषाढस्यापि दशमी माघमासस्य सप्तमी ॥६३॥ पुनांद्रे ष्टमी कृष्णा तथाषाढी च पूर्णिमा ॥ कार्तिकी फाल्गुनी चैत्री ज्यैष्ठीपंचदशी तथा ॥ ६ ॥ एते मन्वादयः प्रोक्ता गर्गादिमुनिभिः पुरा ॥ युगादिकं च यत्प्रोक्त तद्ददामि पृथक् पृथक् ॥६५॥ जैशाखशुक्लपक्षे च तृतीयायां कृतं युगम् ॥ कार्तिक शुक्लपक्षे तु त्रेता च नवमेहनि ॥६६॥ हापरश्च त्रयोदश्यां कृष्णे भाद्रपदस्य च ॥ माघस्य पूर्णिमायान्तु घोरं कलियुगन्तथा ॥ ६७ ॥ अ-17 थोत्यातविचारः ॥ दिशान्दाहे समुत्पन्न ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः ॥ धूलिपाते च निर्घाते धूमपाते
5-06.11.3-9-41.6-08-D
--6DATE
ECE
For Private and Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य० ॥७॥
SM-09
09 PHP
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Bestha
तथैव च ॥ ६८ ॥ हिसूर्ये वा त्रिसूय्यै वा छिद्रेणापि च संयुते ॥ रात्रौ धनुषि शाक े च कईमस्यापि वर्षणे ॥ ६९ ॥ केतूद्गमः शोणितवर्षणञ्च धराप्रकम्पः करकानिपातः ॥ उल्काशनीनां पत्तनं यदा स्यात्तदा निषिद्धानि दिनानि सप्त ॥ ७० ॥ इति संक्षेपतः प्रोक्तमुपदेशाभिधं मया ॥ ( श्रेष्ठप्रकरणं यस्मादनेन ज्ञानमुत्तमम् ॥ ७१ ॥ इति मैथिलीभानुनाथ दैवज्ञविरिचिते व्यवहार- | | रत्न उपदेशप्रकरणम् ॥ १ ॥ ॥ * ॥ सर्वाश्रमाणान्नितराम्वलीयान् गृहाश्रमः प्राङ्म निभिः प्रदिष्टः तस्मादहं वच्मि गृह क्रियाया विधानमादौ व्यवहारयोग्यम् ॥ १ ॥ अथ वास्तुभूमिज्ञानमाह ॥ पूवोंत्तरप्लवा भूमिः सुप्रसन्ना समापि च ॥ ईशप्लवा निरुच्छिष्टा प्रशस्ता वासकम्मणि ॥ २ ॥ दक्षिणापरनीचाभूः सोषरा विषमापि वा वृक्षछायासमायुक्ता वर्जनीया प्रयत्नतः ॥ ३ ॥ उक्तादन्यस्व - | रूपा तु निषिद्धविहितेतरा ॥ तस्यामपि वसेच्छान्त्याथ वा देवद्विजाज्ञया ॥ ४ ॥
श्वेताच त्रा
(GVA) EI.8 60 5361
२०
॥७॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie
www.kobatrth.org
D-09-0
STORE6-6.6
ह्मणी भमिः क्षत्रियारुणविग्रहा ॥ वैश्या पीततरा ख्याता कष्णा द्राभिधीयते॥५॥ ब्राह्मणी वाह्मणस्योक्ता क्षत्रिया क्षत्रियस्य च ॥ वैश्या वैश्यस्य निर्दिष्टा शूद्रा शूद्रस्य शस्यते ॥६॥ हस्तमात्र खनेत्खातं जलेनैव प्रपूरयेत् ॥ पूरिते वास्तुकर्ता च गच्छेत्पदशतं पुनः ॥७॥ समागत्याम्भसो वृद्धिं दृष्ट्वा वृद्धिरनुत्तमा॥ समे पि स्यान्महावृद्धिं क्षये क्षयमथादिशेत् ॥८॥ अथ ग्रशीनां वासस्थानमाह ॥ कोटो मोनोऽङ्गना कर्कः कार्मको यक क्रियो घटः ॥ आवासे पूर्वतस्त्याज्याः शेषाः सर्वत्र शोभनाः ॥९॥ अथ. ग्रामवासे धारोपधारज्ञानमाह ॥ अक्षरं ।
द्विगुणं कृत्वा मात्रां कृत्वा चतुर्गुणां ॥ ग्रामस्य च तथा पुंसो गणयेन्नामवर्णकम् ॥ १०॥ ससप्तभिश्च हरेद्भागं शेषाद्दाच्यं फलाफलम् ॥ एकशषेण शून्येन चतुभिश्चैव कन्दलम् ॥ ११ ॥
षटकं चापि इयं यत्र प्राप्यते वहशो धनम् ॥ पंचकेन त्रयेणापि न लाभो न च वा क्षतिः ॥१२॥
0
8
-DHODH
00-6HOD-5-169.
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-मह
॥८॥
-0.5SH.ooo
* अथ नामराशितो ग्रामराशिविचारः॥ नामभादग्रामराशिः स्याहाङ्गपञ्चेशदिग्मितः ॥ तदैव मुनिभिः प्रोक्तो निवासः शुभदायकः ॥ १३॥ अथ प्रामचक्रविचारः ॥ मस्तके पंच लाभाय मुखे लोणि धनक्षयः॥ कक्षौ पञ्च धनं धान्यं षट पादे स्त्री दरिद्रता ॥ १४॥ कण्ठे चैकं प्राणहानि-17 नाभौ चत्वारि संपदः । गुह्य चैकं भयं पीडा हस्ते चैकन्तु कन्दलम् ॥ १५॥ एकं वामकरे । शोको ग्रामचक्रन्नराकृतिः॥ गणयेन्नामऋक्षान्तं ग्रामनक्षत्रतः सदा ॥ १६ ॥ अथ ग्रामनाम्नोवर्गविचारः ॥ स्ववर्ग द्विगुणी कृत्य परवर्गेण योजयेत् ॥ अष्टाभिश्च हरेद्भागं योऽधिकः सऋणी भवेत् ॥ १७ ॥ अथ वर्गविचारः ॥ अवर्गात्तार्क्ष्यमार्जारसिंहश्वासर्पमूषकाः ॥ गजो मृगश्च में वर्गेशाः स्ववर्गात्पञ्चमो रिपुः ॥१८॥ स्वके स्वके च ते स्थाने सर्वे कल्याणदायकाः ॥ अन्य-1* द्धिताहितं तेषां लौकिकव्यहारतः ॥ १९॥ अथैषां शरभाह ॥ वसुभूतरसावेदा मुनिचन्द्रत्रि
॥८॥
म.एम.
Fer Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-5.11.
.
युग्मकम् ॥ पूर्वादिक्रमतो ज्ञेयं वर्गोपरि दिगष्टके ॥ २०॥ अथ वास्तौ कस्यान्दिशि वस्तव्यं तदाह ॥ ग्रामस्यापि दिशः पुंसोवर्गाङ्क वर्तुलोकतं ॥ वसुना भाग माहृत्य सूर्याय दिक्फलं । वदेत् ॥ २१॥ सौम्या दशा प्रशस्ता स्यादसौम्या गहिंता सदा॥ एवं दशाविचारः स्यान्मध्यमागोष्पतेः स्मृता ॥ २२ ॥ अथ गृहारम्भे मासविचारः॥ वैशाखे श्रावणे मार्गे फाल्गुने च विशेषतः ॥ गृहारम्भः प्रशस्तः स्यान्मध्यमः कार्तिके शुचौ ॥ २३ ॥ परिशेषास्तु ये मासा ये च। न्यूनाधिमासकाः ॥ ते सर्वे वर्जनीयाः स्युट हारम्भे विचक्षणैः ॥ २४ ॥ निषिद्धपि हि मासा-16 दो सानुकूले शुभे दिने ॥ तृणवत्रगृहारम्भे मासदोषो न विद्यते ॥ २५॥ अथ पक्षशुद्धिः ॥1 शुक्लपक्षे भवेत्सौख्यं, कृष्णे तस्करतो भयम् ॥ इति सामान्यतः प्रोक्ता पक्षशुद्धिर्मनीषिभिः॥२६॥ वस्तुतः पंचमों यावत्कृष्णपक्षस्य धीमता ॥ गृहारम्भः प्रकर्त्तव्यस्तृणदारुमृदादिभिः ॥२७॥
SIOfrd-a0-65.H.C-04-16-
-
o-CD-SHO:-
07--5-16
For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य० । अथ तिथिशुद्धिः॥ पूर्णायां प्राग्मुखं शस्तं नन्दायां दक्षिणाननम् ॥ पश्चिमास्यन्तु भद्रायां, ज-२० ॥९॥ यायामुत्तराननम् ॥ २८ ॥ पूर्णिमातोऽटमों यावत्पूर्वास्य वजयेदगृहम् ॥ उत्तरास्यं न कुर्वीत
नवम्यादिचतुर्दशीं ॥ २९॥ अमावास्याष्टमों यावत्पश्चिमास्यं विवर्जयेत् ॥ नवमीतो न याम्यास्यं यावच्छुक्लचतुर्दशीम् ॥ ३० ॥ शुक्लप्रदिपदं ऋक्ता मासान्ताच्च दिनत्रयम् ॥ अवमाद्य गृहारम्भे यत्नतः परिवर्जयेत् ॥ ३१॥ अथ नक्षत्रविचारः ॥ मूलाजपादसंयुक्ते मृदुक्षिप्रचर- वे ॥ वास्तुकर्म शुभं प्रोक्त गृहारम्भन्तथैव च ॥ ३२॥ छेदनं तृणकाष्टानां संग्रहश्च विशेषतः ॥ भूतिकामो न कुर्वीत पट्केन श्रवणादिना ॥ ३३ ॥ अथ ग्रहारम्भे वारविचारः ॥ रखावग्निः, कुजे । नाशः, शशिन्यस्वं, शनौ भयम ॥ सरेज्ये भार्गवे सौम्ये गृहारम्भम्मनोरमम ॥३४॥ अथ योगशुद्धिः॥ वज्रव्याघातयोगेषु व्यतोपातेऽतिगण्डके ॥ विकुम्भे गण्डयोगे च गृहारम्भन्न का
-CHHADHSICO-9-1994
to-0-56-CODS-Stos-D
॥९॥
For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-5..
EPHRISED-
.Ha-
रयेत् ॥ ३५॥ अथ सम्मुखराहुविचारः ॥ त्रिभिस्त्रिभिश्च मार्गाद्य राहुस्तिष्ठति पूर्वतः ॥ विपरीतक्रमेणैव हारं सम्मुखतस्त्यजेत् ॥ ३६॥ अन्यवेस्मस्थित दारु नैवान्यस्मिन् प्रयोजयेत् ॥ न तत्र वसते कर्ता वसन्नपि न जीवनम् ॥ ३७॥ नूतने नतनं काष्टं जीणे जीर्ण प्रशस्यते ॥ न जीणे नूतनं श्रेष्ठं नो जीर्णं नूतने तथा ॥३८॥ हारस्य सम्मुखे द्वारं हार हारोपरिस्थितम् ॥
नैव कुर्याद्धनाकांक्षी पुत्राकांक्षी विशेषतः ॥३९॥ अथ गृहे शिल्पादिक्रियाविचारः ॥ ध्रुवे । हैं. मैत्रे चरे क्षिप्रे जीवे सौम्ये खलग्नगे॥ चन्द्र गुरुज्ञवर्गस्थे शिल्पारम्भः प्रशस्यते ॥ १० ॥ उलू
ककाकगृद्धाश्च व्याघ-सिंहवराहकाः॥ पिशाचा राक्षसाः ऋराः संग्राम रोदनं तथा ॥ ११॥ इ-la न्द्रजालवदन्यानि प्रपंचरितानि च ॥ भोषणानि च सर्वाणि गृहचित्रे विवर्जयेत् ॥ १२॥ अथ गृहकरणार्थ वास्तविचारः ॥ यदुक्त भवनारम्भे शुभं वाप्यशभं बुधैः ॥ तदेव तिथिमासाद्य
-SH
-
13-14
-00-1.
For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य०
॥१०॥
TECH CHEQUENEet-ene
www.kobatirth.org
| विज्ञेयं वास्तुकर्मणि ॥ ४३ ॥ विशेषाच्छ्रवणाषट्कं शनिवासरमेव च ॥ गृहीत्वा पूजयेद्ध मिं मेषे भूयो भवेद्यात्रा कर्कटे नाशमाप्नुयात् ॥ अन्ये ये राशयश्चाष्टौ वास्तुकाय्यें शुभावहाः ॥ अथ सामान्यतोग्रहशुद्धि विचारः ॥ विष -
शकुनं च विचारयेत् ॥ ४४ ॥ अथ लम्मशुद्धिः ॥ तुलोदये भवेदाधिदन्यनाशो मृगोदये ॥ २५॥ तेषां नवांशकाद्यास्तु भागास्तत्तुल्यपाकदाः ॥ २६
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
161-1636161129.611364G
दशाय संस्थान सर्वे खेटाः शुभावहाः त्रिकोणे प्यथवा केन्द्र शुभा एवं शुभप्रदाः ॥ २७ ॥ अथ । गृहप्रवेशविचारः ॥ वास्तौ वापि गृहारम्भे यदुक्तञ्च शुभाशुभम् ॥ तदेवात्रापि विज्ञेयं प्रवेशे नव्यवेस्मनः ॥ ४८ ॥ किञ्चित्किञ्चिद्विशेषो यः प्रवेशे नवसद्मनः ॥ वक्ष्यमाणविधानेन विज्ञेयः शुभमिच्छता ॥ ४९ ॥ अथ मासविचारः ॥ माघ फाल्गुन वैशाखज्यैष्ठमासेषु शोभनः ॥ प्रवेशो मध्यमो ज्ञे यो मार्गकार्त्तिकमासयोः ॥ ५० ॥ श्रावणेपि च केचित्तु प्रवदन्ति मनीषिणः ॥
र०
॥१०॥
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
PPPMS CG हाॐ-00 PHY
www.kobatirth.org
सप्तम्यादिसकाराणां सप्तानां कारणे न च ॥ ५१ ॥ अथ तिथिविचारः ॥ अमावास्या च पष्ठी च ऋक्ता शुक्लस्य पक्षतिः अष्टमी संमुखः शुक्रो वर्जनीयाः प्रवेशके ॥ ५२ ॥ अथ नक्षत्रविचारः ॥ कृतिकाद्यास्तु पूर्वादौ सप्त सप्तोदिताः क्रमात् ॥ यद्दिश्यं यच्च नक्षत्रं तत्र तस्य प्रवेशनम् ॥ ५३ ॥ अथ वामर विविचारः ॥ रन्धात्पुत्राद्धनादायात्पञ्चस्व स्थिते क्रमात् ॥ पूर्वाशादिमुखं गेहं विशेदामो भवेद्यतः ॥ ५४ ॥ अथ कामिन्या शुहिकोपरि मृद्भाण्डस्थापनविचारः ॥ त्रुहिकोपरि मृद्भाण्डं स्थापयेन्नैव कामिनी ॥ भृगुचन्द्रमसोर्वारे स्नायान्नैव च वारुणे ॥ ५५ ॥ अथ प्रवेशविधानमाह ॥ पुष्पाक्षतैरमरदैवविदिष्टसाधूनभ्यर्च्य संभृतसिताम्वरसाधुवेषः ॥ पुण्याहशंखपटहध्वनितूर्य्यघो पैर्दारेण भूम्यधिपतिः प्रविशेत्सुवेस्म ॥ ५६ ॥ अथ गृहदेव्याः स्थापनविधिः ॥ श्रोप्रदं सर्वगीर्वा स्थापनञ्चोत्तरायणे ॥ विचैत्रेष्वेव मासेषु माघादिषु च पंचसु ॥ ५७ ॥ वलक्षपक्षः शुभदः
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3-60 6101.2 (8.8) 666.
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
DHO-00-
व्यक ॥११॥
STORE.CO-60-ote-O-600-:
समस्तः सदैव तत्रायदिनं विहाय ॥ अन्त्यं त्रिभागं परिहत्य कृष्णपक्षोऽपि शस्तः शुभ ॥ ५८॥ याम्यायनेऽपि देवीनां स्थापनं नवरात्रिषु ॥ प्रशस्तं कार्ति के विष्णोर्भाद्रे कलशजन्मनः ॥ ५९॥ ऋक्ताऽवमकुयोगाद्य वर्जयित्वा प्रयत्नतः ॥ सुराणां स्थापनं कुर्याद्योगापन्ने शनावपि ॥ ६०॥ हस्तत्रये मित्र हरित्रये च पौष्णाइयादित्यसुरेज्यभेषु ॥ तिस्त्रोत्तराधातृशशाङ्कधिष्णे सर्वामरस्थापनमुत्तमं स्यात् ॥ ६१॥ स्थाप्यो हरौ दिनकरो मिथुने महेशो नारायणश्च युवतौ घटभे विधाता ॥ देव्यो हिमूर्तिभवनेषु निवेशनीयाश्छुद्राश्चरे स्थिागृहे निखिलाश्च देवाः ॥ ६२ ॥ अथ गृहसमोपे शुभाशुभवृक्षकथनम् ॥ यत्र तत्र स्थिता वृक्षा विल्वदाडिम्वके-- शराः पनसो नारिकेलश्च शुभं कुर्वन्ति नित्यशः ॥ ६३ ॥ जम्वीरश्च रसालश्च रम्भाशेफालिकास्तथा यवाशोकशिरीषाश्च मल्लिकाद्याः शुभप्रदाः ॥ ६ ॥ मालतीञ्चैव चम्पाञ्च केतकी कुन्दमेव
03-60-6-11-06-19
॥११॥
For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
13-8५) अहाङ- 0 PUSP
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥
च ॥ मुनिवृक्षं ब्रह्मवृक्षं वज्र्जयेद्गृहसन्निधौ ॥ ६५ ॥ तिन्तिलीको वटः लक्षः पिप्पलश्व स कोटरः ॥ क्षोरो च कंटकी चैव निषिद्धास्ते महीरुहाः ॥ ६६ ॥ वीजपूरिका उत्पद्यन्ते गृहे यत्र तस्मिन् कृन्तति मूलतः ॥ ६७ यदि मंदिरं ॥ अचिरेणैव कालेन उस जायते ध्रुवं ॥ ६८ ॥ | सादसम्भवा ॥ वर्जयेत्तां प्रयत्नेन यावद्द प्रहरद्वयं ॥ ६९ ॥ म्भवा ॥ छाया वृक्ष ध्वजादीनां सदा दुःखप्रदायिनी ॥ ७० ॥ क्लपक्षे तिथौ शस्ते शुक्रे चन्द्र गुरावपि ॥ तरूणां रोपणं शस्तं म्यन्तास्तिथयः कुजार्कशनयो वाराश्च षष्ठोयुता मासः प्रोष्ठपदस्त्रिविक्रममुखं नक्षत्रषट्कं तथा ॥ त्यक्त्वैतान् वृषसिंहवृश्चिकघटेष्वङ्गेषु भद्रां विना गर्गायाः कदलीक्षुरोपणविधिः शस्तं जगुः सर्वदा
षर्जूरी दाडिमी रम्भा कर्कन्धू वृक्षप्रासादिनी च्छाया सच्छन्न' यामादूर्ध्वन्तु या छाया वृक्षप्राप्रथमान्तयामवज्र्जं द्वित्रिप्रहरसअथ वृक्षरोपणदिवसमाह ॥ शु वक्षिप्रमृदूडुभिः ॥ ७१ ॥ शो -
For Private and Personal Use Only
33-6H3-06-SAL CASH.3
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य० ||१२||
DCPS (७) ५-09 @P4
www.kobatirth.org
॥ ७२ ॥ इति श्रोभानुनाथदैवज्ञविरिचिते व्यवहाररने गृहारम्भादिप्रकरणम् ॥२॥ S. S. JHA. वालप्रवाहा निर्वाहः कलौ युगे ॥ चतुर्णामपि वर्णानामतस्तत्प्रथमं भवे ॥१॥ अथ हलप्रवाहे तिथिशुद्धिः ॥ सप्तम्येकादशी चैव पंचमी दशभी तथा ॥ त्रयोदशी तृतीया च प्रशस्ता हलकर्मणि ॥ २ ॥ मृदुध, वक्षिप्रचरेषु मूलमघा विशाखासहितेषु भेषु ॥ हलप्रवाहं प्रथमं विदध्यान्नीरोगमुष्कान्वित सौरभेयैः ॥ ३ ॥ विः कुम्भवज्रव्यतिपात गण्डातिगण्डमन्दारदिनं विहाय ॥ सम्पूज्य दूर्वाक्षतगंधपुष्पैर्हलं विदध्यात्कृषिकर्मकर्त्ता ॥ ४ ॥ हलप्रवाहवद्दीजवपनस्य विधिः स्मृतः ॥ रोपणे सर्वशस्यानां कर्त्तने प्रथमेपि च ॥ ५ ॥ अथ नवान्नभक्षणविचारः ॥ वृश्चिके पूर्वभागे तु माघे वापि च फाल्गुनेसत्तिया शुक्लपक्षे च पंचम्यन्ते सितेतरे ॥ ६ ॥ मृदुक्षिप्रचरर्क्षेषु सत्तनौ सत्क्षणेषु च ॥ हुत्वा वह्नौ विधानेन नवान्न भक्षयेत्सुत्रीः ॥ ७ ॥ अथ निषेधविचारः ॥
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१५).
--
र०
॥१२॥
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
C-0-0-OHS-02-DHS-09-
नवान्न नैव नन्दायां न प्रसुप्त जनाईने ॥ नापराह्ने न चापे तुला न कदाचन ॥८॥ नको चैत्रे न त्रयोदश्यां न हिदेवस्थिते रवो ॥ न कुजार्किसि ते वारे न तारासु त्रिजन्मसु ॥ ९॥ अथ की नूतनताम्बूलफलभक्षणविचारः ॥ पुष्योत्तरादितिदिवाकरवाजिपोष्णमूलानुराधवसुबासबवैष्णवेषु ।। वारेषु सौरिधरणीसुतबारवज्यं ताम्बूलनूतनफलाद्यशनं शुभाय॥१०॥ अथ धान्यादिमईनस्थानविचारः॥ प्रसन्नभूमो पुरसन्निधाने प्रोत्तुङ्गदेशेषु खलं विदयात् ॥ वन्ध्याप्रदेशे च पथे च निने भीरुप्रदेशे खलको न कार्यः ॥ ११॥ अथ मेधिस्थापनविचारः॥ बटोदुम्बरनीपानां शाखो
टवदरस्य च ॥ शाल्मल्या मुशलेनैव मेधिं कुर्यादिचक्षणः ॥ १२ ॥ कपित्थविल्बबंशानां न च 2 9 मेधिं कदाचन ॥ न पोषे न च भक्तायां न कुजार्किदिने तथा ॥ १३ ॥ मृदुक्षिप्रचरक्षेषु खाते
* विषघट्या भएमचन्द्र कृष्णपक्षीयपष्ठमादिषु ममा-पुष-भरणी-श्लेषाद्रास्वपि नेत्यप्यवधयम् । S. S. J.
1006OID
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
www.kobatirth.org
-BHd
कमत-
व्य० ॥१३॥
-
द्रव्यं नियुज्य च ॥ संपूज्य धान्यवद्धायां मेधि संस्थापयेह धः ॥१४॥ अथ कणमर्दनार्थदिवसमाह ॥ भाग्याय॑मश्रो मले धातृमैत्रमघास च ॥ पौष्ष्णेन्द्रः शभाहे च धान्यानां मईनं शुभम् ॥ १५॥ अथ वोजरक्षणदिवसमाह ॥ रोहिणी रेवती मूलं स्वाती हस्तो मृग स्तथा ॥ आपाढोत्तरयुक्ता च तदा भाद्रपदा मघा ॥ १६॥ शस्थापिसर्वधान्यानां शुभे वारे स्थिरोदये ॥ गगर्गा दमुनिभिः प्रोक्ता प्रश ता वीजवन्धनं ॥ १७ ॥ अथ गृहादौ धान्यादिस्थापनविचारः ॥ रोहिण्युत्तरपुष्येष भरणीशक्रनेते ॥ पौणाश्विविशाखासु हरिमिलपुनर्वसौ ॥ १८॥ चित्रावस-12 मघायाञ्च जोवान्दुभृगो दिने ॥ तथा तिथावऋक्तायां शस्यानां स्थापनं हितम् ॥ १९॥ अ५६ गृहाद्धान्यनिष्काशनविचारः ॥ उत्तराम्बुपविशाखवासवे चन्द्रभौमगुरुशुक्रवासरे ॥ गेहतो तरायवृद्धये धान्यनिःक्रमणमाह पण्डितः ॥२०॥ अथ वृद्धार्थधान्यादिनक्षपदिवसमाह 10१३॥
01- 5
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रवणात्रयं विशाखाध वपूर्वपुनर्वसूनि ऋक्षाणि ॥ पुष्याश्चिन्यो ज्येष्ठा धनधान्यविकृश्ये कथिता ॥२१॥ अथ धान्यादिमूल्यज्ञानमाह ॥ रौद्राहियाम्यानिलवारुणन्द्राण्याहुजघन्यानि तथा वृहन्ति ॥ ध्रवद्दिदैवादितिभानि नूनं समानि शेषाणि पुनम्मुनीन्द्राः ॥ २२॥ जघन्ये यदि संक्रान्ति ज्ञेयानस्य महार्घता ॥ वृहत्संज्ञ समर्घत्वं समत्वं समसंज्ञके ॥ २३॥ अथ रव्यादिवारे संक्रमणफलमाह ॥ सूर्यारशनिवारेषु यदा संक्रमते रविः ॥ तदा क्रमाद्यं विद्याद्राजपावकतस्करैः ॥२४॥
सुभिक्षं क्षेममारोग्यं वारे च बुधसोमयोः । शस्यानां जायते वृद्धिगुरुभार्गववासरे ॥ २५॥ अथ 10 पूर्वाह्लादिषु संक्रान्तिफलमाह ॥ नृपाः पोडन्ति पूर्वाह्न मध्याह्न तु द्विजोत्तमाः ॥ अपराह्न तु वैश्याश्च :
शूद्राश्चास्तमिते रखो ॥ २६ ॥ पिशाचाद्याः प्रदोषेषु अर्द्धरात्रे तु राक्षसाः ॥ रात्रेस्तृतीयभागेषु पोडा ते नटनर्तकाः ॥ २७ ॥ उपःकाले तु संक्रान्तौ हताः पाखण्डकारकाः ॥ हन्ति प्र
O-51-00-600-00-5HOD
Geo -thoritralebio
For Private and Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
to-botto
व्यक
०
॥१॥
5
-600-
जितान् सर्वान्त्संध्याकाले न संशयः ॥ २८ ॥ अथ पुण्यकालव्यवस्था ॥ अर्वाक्षोडश विज्ञ-
या नाडयः पश्चाच्च षोडश ॥ कालःपुण्योऽर्कसंक्रान्तो विद्दद्भिः परिकीर्तितः ॥ २९॥ रजन्याः । के पूर्वभागे तु यदा संक्रमते रविः॥ तदा पूर्वदिनस्यैव पराह्ने पुण्यनाडिकाः ॥ ३०॥ परभागे।
यदा रात्रे भनोः संक्रमणं भवेत् ॥ तदा परदिनस्यादौ पुण्याख्या नाडिकाः स्मृताः ॥३१॥ पूर्णे निशोथकाले तु संक्रान्ति र्यदि जायते ॥ तदा दिनहये पुण्यमिति प्राहु सुनोश्वराः ॥ ३२॥ कर्कटस्य मृगस्यापि विशेषार्थोऽस्ति संक्रमे ॥ तन्नोक्त विस्तृतित्रासाद्दावहारोऽपि कुण्ठितः ॥३३॥
*विशेषमाह कक्क-वृष-सिंह-वृश्चिक-कुम्भ-संक्रांतिषु आद्या: षोडश घट्यः "तुलामेषयोर्मध्या: ( अष्टौ प्राक् परतवाष्टाविति ) मिथुन-कन्या-धनु-म्मी न-मकर-संक्रान्तिषु संक्रान्तिकालात्पराः षोडश नाज्य: पुण्यदा: “ तथा च" याम्यायने विष्णुपदे चाद्यमध्यास्तुलाऽजयोः। षडशीत्यानने सौम्ये परा नान्योतिपुण्यदाः । इति मु० चि० S. S. I.
0
-9.06--10
-513-5thoat
॥१४॥
For Private and Personal Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
iratSH.Obt-61013-00-51-518
अथ-प्रथमहट्टावासचक्रमाह ॥ रविभाञ्चन्द्रनक्षत्रैः फलं ज्ञेयं शुभाशुभम् ॥ हट्टायां चक्रमाख्यातं गर्गादिमुनिभाषितम् ॥ ३४ ॥ आसने च इयञ्चैव मुखे चैव इयं भवेत् ॥ आग्नेये चतुरोदद्या तथा चत्वारि नैऋते ॥ ३५॥ प्रत्यङ्मुवे त्रयन्दद्याहायुकोणे चतुष्टयम् ॥ ऐशान्याञ्च त्रयं-6.
दद्यान्मध्ये चत्वारि विन्यसेत् ॥ ३६॥ फलमस्य ॥ आसने सर्वसौख्यञ्च मुवे च भुवि या-1 जतना ॥ आग्नेय्यामर्थनाशं च नै त्याञ्च सुखप्रदम् ॥ ३७॥ प्रत्यङ्मचे महत्सौख्यं वायुको
णे तथोदसम् ॥ ऐशान्यां सर्वहानिः स्यान्मध्यकोणे शुभप्रदम् ॥३८॥ कुम्भलशमपहाय : सायुषु द्रव्यकम्मभवमूर्तिवर्तिषु ॥ अव्ययेषुः शुभदायुषद्गमं भार्गवे विपणिरिन्दुसंयुते ॥ ३९ ॥ अथ क्रयविक्रयविचारः ॥ यमाहिशकाशिहुताशपूर्वा नेष्टाः क्रये,, विक्रयणे तु शस्ताः॥ पौणाश्विचित्राशतविष्णवाताः क्रये हिता,, विक्रयणे निषिद्धाः ॥20॥ अथ द्रव्यायामृणदानप्रयोग
roc8.11.5thor-04-1.5
-5.10.
For Private and Personal Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का
-6
व्य
0.0-BIOSITI
-10-
16 दिवसविचारः ॥ तीक्ष्णमिश्रध्र वोर्यदर्द्रव्यं दत्तं निवेशितम् ॥ प्रयुक्तञ्च विनष्टश्च विष्ट्यां पाते च कानाप्यते ॥१॥ न कजाके न संक्रान्तौ न वृद्धो न करक्षके ॥ ऋणं विपश्चिता ग्राह्य न देयं बुध-I
वासरे ॥ १२॥ स्वात्यादित्यहिदैवेषु मृदुपुष्यश्रुतित्रये ॥ सुताष्टधर्मसंशुद्ध चरे कुर्याद्धनक्रियाम् ॥ ४३ ॥ अगवा क्रयविक्रवादिविचारः॥ क्षित्रे शाके धनिष्ठायां विदेवे वारुणेपि च ॥ अरित्या पोष्णभे शस्तो गवाञ्च क्रविक्रयो॥ १४ ॥ प्राजेशचित्रश्रवणोत्तरासु चतुर्दशीदर्शदि-111 नाष्टमीषु ॥ गवान्न कुर्यात्कयविकयञ्च स्थानं प्रवेशं गमनं कथञ्चित् ॥ ४५ ॥ यदुक्त गोकियायाञ्च तिथिवासरभादिकम् ॥ तदेवाजमहिष्यादेः प्रकियायां शुभाशुभम् ॥ ४६॥ अथ वा-2 निनां कमविकयादिदिवसमाह ॥ क्षिप्रान्त्यवसुचान्द्रे षु खात्यादित्यजलेषु च ॥ विरिक्तारदिने । प्रोक्त वाजिकृत्यं मनीषिभिः ॥ १७॥ तिष्याश्विधातृकरसौम्यमघानुराधापौष्णोत्तरादितिमरुद्द्य-16 ॥१५॥
6tebit. 51
For Private and Personal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir
- वैष्णवेषु ॥ वागोशशुकशशिौम्यदिने सुलग्ने क्तां विहाय निगदन्ति गजाख्यकार्यम् ॥१८॥
अथाश्वादियानारोहणदिवसमाह ॥ जोवेन्दुसौम्यार्कसिते च वारे पौणाश्विचित्रानिलवासुदेवे ॥ हस्तेम्बुपुष्ये श्रवसोन्दुशुद्ध आरोहणं वाजिरथेभकानाम् ॥ १९ ॥ अथ गजदन्तच्छेदनदिवसमाह ॥.. धिष्णेष वैष्णवाश्विनितिष्यधनादित्यहस्तचित्रासु ॥ सुतिथौ शुभवासरेषु च दन्तच्छेदश्च दन्तिना-|| मुक्तम् ॥ ५० ॥ भीमार्कजयोर्वारे दिवसपो गुरुगृहे हरौ सुप्त ॥ पक्षे सिते निशायां हिरदानां कल्पना नेष्टा ॥ ५१॥ अथ मंत्रबहणसमयमाह ॥ चैत्रे दुःखाय दीक्षा स्याद्वैशाखे सर्वसिद्धिदा॥ ज्येष्ठे मृत्युप्रदा सा स्यादाषाढे बन्धुनाशिनी ॥ ५२ ॥ श्रावणे पुत्रदा नृणां नभस्ये दुःख
दा स्मृता ॥ आश्विने सर्वसिद्धौ स्यात्कार्तिके ज्ञानसिद्धिदा ॥ ५३॥ शुभदा मार्गशीर्षे च पौषे । | ज्ञानविनाशिनी॥ माघे मेधादिवृद्धिः स्यात्काल्गुने विजयप्रदा ॥ ५४॥ कृष्णपक्षे न कल्याणं
DEIO.DOD-CO-Store
-09-61.-06
iroitrbitra
-@-S
For Private and Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य० ॥१६॥
&06 .11.dot.com
-9-CEBSI.o-9.co.it
वाञ्छितप्रतिबंधकृत् ॥ शुक्ले वाञ्छिसिद्धिः स्याद्रव्यलाभः शुभप्रदः । ५५ ॥ हितीया च - तृतीया च पंचमो सप्तमी तथा दशम्येकादशो चैव द्वादशो च तथैव च ॥५६॥ एता अतिप्रशस्ताः स्यु दीक्षाग्रहणकर्मणि ॥ षष्ठी च नवमी चैव तथा चान्या धमाःस्मृताः ॥ ५७ ॥ अथ नक्षत्रशुद्धिः ॥ स्थिरः मृगशोर्षे च तथा चित्रानुराधयोः पोष्णे च वसुभे चैव दीक्षाकर्म प्रशस्यते ॥ ५८॥ कुजार्कजौ परित्यज्य सुमुहूत्तें शुभोदये ॥ ताराचन्द्रानुकूले च मन्त्रग्रहणमुच्यते ॥५९॥ चन्द्रसूर्यग्रहे चैव सिद्धिक्षेत्रे सरालये॥ प्रोक्तमेतत्त दीक्षायां सधोभिन्नैव चिन्तयेत ॥६॥ अथ मैत्रीकरणदिवसमाह ॥ पुष्येन्दुमित्रभाग्येषु द्वादश्यां शुभवासरे अष्टम्यां वा स्थिर लग्ने मैत्रीकरणमुत्तमम् ॥ ६१ ॥ इति खौआल कुलानन्द चन्दननन्दनोपाध्यायसुत श्री भानादेवज्ञ विरि| चिते व्यवहारस्त्ने कृष्यादिप्रकरणम् ॥३॥ S. S. J. ॥ गृहस्थानां परो धर्मः पाणिग्रहणमेव
.
ma.or-56--?
॥६॥
to
For Private and Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
90816190136 213-09-र
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
च ॥ तस्मात् तत्समयः स्वोयदेशरीत्योच्यतेधुना ॥ १ ॥ द्वितीया दशमी चैव तृतीयैकादशो तथा। पंचमी सप्तमो चैव प्रशस्तोद्वाहकर्मणि ॥ २ ॥ वर्जनीया कुहू ऋक्ता शेषाः स्युर्म्मध्यमाः । स्मृताः । कुजार्कशनिवाराश्च परित्याज्याः प्रयत्नतः ॥ ३ ॥ वारवेलां च भद्रां च मासान्तदिवसाति च ॥ दग्ां तिथि व भान्ते च यततः परिवर्जयेत् ॥ ४ ॥ जन्मर्क्षपुष्यनक्षत्रं महोत्पा· तयुतं दिनम् पट्काष्टकं च दम्पत्योरुद्वाहे संत्यजेदबुधः ॥ ५ ॥ यास्यायने विमार्गे च परित्य ज्य विचक्षणः । सौम्यायने विचैत्रे तु प्रकुर्य्यात् पाणिपीडनम् ॥ ६ ॥ रोहिण्युत्तरश्वत्यो मूलं स्वातो मृगो मघा । अनुराधा च हस्तश्च विवाहे मंगलप्रदः ॥ ७ ॥ कन्यामिधुनमीनेंषु वृपचा| पतुलासु च ॥ उद्दाहः सुप्रशस्तः स्यादिति प्राह पराशरः ॥ ८ ॥ अथ -गणविचारः ॥ हस्तः पुष्यः श्रुतिः स्वाती मृगः पौष्णः पुनर्वसू । अनुराधाश्विनी चैव कथितो देवतागणः ॥ ९ ॥ त्रिपूवी
Chalia-6.5.1%
HS-CP1 0.0
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य० ॥१७॥
-cbf O
SEDNEPHO-CD-8-
व्युत्तराप्यादी रोहिणी भरणी तथा। मनुष्याख्यो गणः प्रोक्तो ज्योतिशास्त्रविशारदैः ॥ १० ॥ मघा श्लेषा विशाखा च कृतिका शततारकाः । चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा च मूलं रक्षोगणः स्मृतः ॥११॥ स्ववग्गें परमा प्रोतिर्मयमा देवमर्त्ययोः॥ मर्त्यराक्षसयो मृत्युः कलहो देवरक्षसोः ॥ १२ ॥ अथ वर्णविचारः॥ झपालिकर्कटा विप्राः क्षत्री मेषोहरि ई नुः। वृषः कन्या मृगो वैश्यः शूद्रो युग्मं तुला घटः ॥ १३ ॥ वरस्य वर्णतः कन्या नाधिका शुभदा स्मृता ॥ समा च मयमा ज्ञेया नीचवर्णा सदा शभा ॥१२॥ अयोनिबिचारः ॥ अश्विनी शततारा च वाजियोनिः स्म भरणी पोष्णो गजयोनिविधीयते ॥ १५ ॥ पुष्यः कृशानुइछागायो नागाख्यौ रोहिणीमृगौ आर्द्रामूलमपि इवानो मूषकः फारगुती मघा॥ १६ ॥ मार्यारो दितिरश्लेषा गोजातिरुत्तरात्रयम् लुलायो ।
*लुलायो महिषावित्यर्थः ( लुलायो महिषो वाइविकासरमैरिभा ) इत्यमरकोपोक्तः ॥ S. S. J.
01
ffro-bio-७ Aal
॥१७॥
-00-604
For Private and Personal Use Only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
too
स्वातिहस्तौ च ज्येष्ठामैत्रौ मुगाभिधौं ॥ १७ ॥ चित्रादिदैवते व्याघौ श्रुत्याषाढीचमर्कटो प्रभा धनिष्ठा सिंहाख्यौ नकुलश्चाभिजित्स्मृतः ॥ १८॥ आसां प्रोक्तभयोतीनां मित्रता शत्रुतापि । च॥ चिन्तनीया विवाहेषु लोकिकव्यवहारतः ॥ १९॥ अथ वधूप्रवेशविचारः ॥ विवाहतः । षोडशवासरान्तरं समाद्रिपचांकदिने प्रशस्तः॥ वधप्रवेशो विषमेऽहि मासे संवत्सरे वापि तदग्रतः स्यात् ॥ २० ॥ हस्तत्रये ब्रह्मयुगे मघायां पुष्ये धनिष्ठाश्रवणोत्तरेषु मलानुराधाहयरेवतीषु स्थिरे-il पु. लग्नेषु वप्रवेशः ॥ २१॥ जोवन्दु शकेषु शनैश्चरे च वधूप्रवेशः शुभदो नराणाम् ॥ षष्ठ्यष्टमी ।।
विष्णयता च ऋक्ता सदा निषिद्धा वधवासरं च ॥ २२॥ न शकदोषो न च सर्यदोषः तारावली मनेन्दुवलं न योज्यम् ॥ उद्दाहिताया नवकन्यकायाः प्रोक्त दिनादौ किल कोविदेन ॥ २३ ॥ प्रया
णोक्त प्रयाणः स्यात् प्रवेशोक्ते प्रवेशकः ॥ सुन्दरीशर्मगीतेन वाद्येन सह शोभनः ॥२४॥
.triottooHOSHOCEES
For Private and Personal Use Only
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य०
112211
ॐ- 09- SOG SIS-SMS-C
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| वसेतां दम्पती तत्र वंशनागादिचित्रिते । स्थाने निवृत्तिमैथुन्यौ यावद्रात्रिचतुष्टयम् ॥ २५ ॥ विवाहात् प्रथमे पौधे नापाढे नाधिमासके । श्वश्रू गेहे वसेन्न स्त्री चैत्रे तातगृहे तथा ॥ २६ ॥ अथ सिगमनादिविचारः ॥ ओजे संवत्सरे वध्वा द्विरागमनकर्म न ॥ घटालिमेषगे सूर्ये हा गांशेषु शुभं स्मृतम् ॥ २७ ॥ मृदुध्रुवक्षिप्रचरेपि मूले तिथौ गमोक्ते शुभवासरे च ॥ रवीज्यशुद्धे रुमये वधूनां द्विरागमः शुक्लदले प्रशस्तः ॥ २८ ॥ दक्षिणः संमुखः शुको हिरागमन एव हि । दम्पत्योः सौख्यवृद्धार्थं त्यक्तव्यः सर्वदा बुधैः ॥ २९ रेवत्यादि-मुगान्तं च यावत् तिष्ठति चंद्रमाः ॥ तावच्छुको भवेदन्धः संमुखो दक्षिणोपि सन् ॥ ३० ॥ उदयति दिशि यस्यां याति यत्र भ्रमाद्वा विचरति न भन्नकू येषु दिग्हारभेषु ॥ त्रिविधमिह सितस्य प्रोच्यते संमुखत्वम् । मुनिभिरुदय | एव त्यज्यते तत्र चनात् ॥ ३१ ॥ काश्यपेषु वसिष्ठेषु भृग्वन्त्र्यांगिरसेषु च । भारद्वाजेषु वात्सेषु
For Private and Personal Use Only
CONCEPT19-2482) 1921133-193
२०
॥१८॥
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
6.-toob
प्रतिशुक्रो न दुष्यति ॥ ३२ ॥ पृष्ठे ज्ञः संमुखः शुको न दोषः शुकूसंमुखे ॥ संमुखे ज्ञः सिते पृष्टे । दोषहन्ता न को भवेत् ॥ ३३॥ पित्रागारे कुचकुसुमयोः संभवो वा यदि स्यात् । पत्युः शुद्धिन भवति रवेः संमुखो वापि शुक्रः। शस्ते लग्ने गुणवति तिथो चंद्रतारानुकले । स्त्रीणां यात्रा भवति सफला सेवितुं स्वामिवेस्म ॥३४॥ सितमश्वं सितं वस्त्र हेमोक्तिकसंयुतम् ॥ यत्नाद्विजातये दद्यात् प्रतिशुक्रप्रशान्तये ॥ ३५॥ दैत्यमन्त्री दिवादशी उशना भार्गवः कविः ॥ श्वतोऽथ कुण्डली कायो वीथीमार्गगतस्तथा ॥३६॥ एतानि भृगुनामानि यः कोर्तयति नित्यशः ।। प्रतिशुक्रो न तस्यास्ति लक्ष्मीमायुश्च विन्दति ॥ ३७॥ अथ नवीनशय्याचारोहणदिवसमाह ॥ मैत्रेन्दुपौष्णपितृभादितिवाजिचित्रा-हस्तोत्तरात्रयहरीज्यविधातृभानि । एतेषु भेषु शयनासनपादुकादिसम्भोगका-मुदितं मुनिभिः शुभाहे ॥ ३८॥ अथोर्त्तनादिविचारमाह ॥ उर्त्तनविधानं
.bf.odia
For Private and Personal Use Only
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कलि
व्य
-
कच स्त्रियो वा पुरुषस्यवा॥ दशम्यांच त्रयोदश्यां द्वितीयायां विवर्जयेत्॥३९॥ अथ वस्त्रप्रक्षालनविचारः॥ ॥१९॥ शनिभौमदिने श्राद्धे कुहूषष्ठीनिरंशके ॥ वस्त्राणां क्षारसंयोगो दहत्यासप्तकं कुलम् ॥ ४०॥ अथ
तैलाभ्यंगविचारः॥ वो गुरौ भृगौ भौमे षष्ठ्यां संक्रान्तिवासरे। चित्रावैष्णवहस्तेषु तैलाभ्यंग !! हन कारयेत् ॥४१॥ अथ तैलाभ्यंगे निषिद्धवाराणां प्रतीकारमाह ॥ रवी पुष्पं गुरो दूर्वा भूमि
भूमिजवासरे ॥ भार्गवे गोमयं दत्वा तैलदोषोपशान्तये ॥४२॥ सार्षपं सघृतं वापि यतैलं पुष्पवासितम् अदुष्टं पक्वतैलं च स्नानाभ्यंगे च नित्यशः ॥ ४३ ॥ अथ पुंसां वस्त्रधारणदिवसमाह ॥ ब्रह्मानुराधवसुपुष्यविशाखहस्तचित्रोत्तराश्विपवनादितिरेवतीषु ॥ जन्म“जीवबुधशुक्रदिनोत्सवादौ धाऱ्या नवं वसनमीश्वरविप्रतुष्ट्या ॥ १४ ॥ अथ पुंसां भूषणपरिधानदिवसमाह ॥ बुधरमसितवारे त्यक्तरिक्तातिथौ च पितृकरबसुचित्रामैत्रपुष्योत्तरेषु ॥ रजतकनकरत्न शंखदन्तप्रवाल
-5-HOT-FANART
o
॥१९॥
Sto-
--5
For Private and Personal Use Only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
3-EDHS-09-DII-0O-HAPAGE
म् शुभदमिह समस्तं धार्यमाणं नराणाम् ॥ ४५ ॥ अथ स्त्रीणां वस्त्रपरिधानदिवसमाह ॥ धनिष्ठा रेवती चैव तथा हस्तादिपंचकम् ॥ अश्विनो गुरुशुक्राभ्यां स्त्रीणां वस्त्रस्य धारणम् ॥ १६ ॥ अथ-सयोकर्मदिवसमाह ॥ चित्रादित्यश्विनीमैत्रश्रविष्ठासु शुभे दिने ॥ सूचीकर्मविधानं चके शुभं प्रोक्त मनोषिभिः ॥४७॥ अथ स्त्रीणां भूषणपरिधानदिवसमाह ॥ नासत्यपौणवसुभे । करपंचके च मार्तण्डभौमगुरुदानवमन्त्रिवारे ॥ लाक्षासुवर्णमणिविद्रुमशंखदन्तरक्तांवराणि विभृ-3 यात्प्रमदागणश्च ॥४८॥ अथ निषिद्ध दिवसमाह ॥ प्रजापते/ तिसृषूत्तरासु पुनर्वसोश्च हितये न दध्यात् ॥ प्रवालरक्तांवरहेमशंखान् भर्तुर्य्यदोच्छेदवलाऽऽयुरिष्टम् ॥ ४९॥ अथाथपाकारम्भमेथुनकर्मणो दिवसमाह ॥ अष्टम्यामपि संकान्तौ तथैव रविवासरे। मत्स्यमांसकिया त्याज्या दर्श मैथुनकर्म च ॥ ५० ॥ अथ स्त्रोणां केशवन्धनदिवसमाह ॥ ध्रुवमृदुलघुवर्गे विष्णु
--SHOctro-SHC
For Private and Personal Use Only
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3-bidi-4-
मूलानिलः शशिशनिदिनवज्यं गोहिदेहोदयेषु ॥ उपचयगतपापे केन्द्रकोणे चौम्ये सुतिथिकरण॥२०॥ योगे वालवन्धः शुभेन्दो ॥ * ॥ इति-मैथिल-भानुनाथदैवज्ञविरचिते व्यवहाररत्ने विवाहादिप्र
करणम् ॥ * ॥ S. S. JHA. ॥ * ॥ रजोमूलःपुत्रो भवति समयाधीनमपि तद्रजस्तस्मा त-T जस्य प्रथितवचनालोकनतया ॥ मयाप्यारब्धेयं समयरचना निन्द्यशुभयोर्य्यतः पुत्रेणैव प्रभवति सुखं ।
स्वर्गसदृशम् ॥ १॥ यदाद्य रजोदर्शनं मार्गशीर्षे सबैशाखमासे तथा श्रावणे च । तपस्ये च माघे भवेदङ्गनानां वरिष्ठं तदन्येषु मासेषु निन्द्यम् ॥ २॥ शुक्लपक्षे शुभे वारे सत्तिथी सत्तनौ दिवा।। श्रुतित्रये मृदुक्षिप्रध्रुवस्वातौ शुभं स्मृतम् ॥३॥ अथ प्रथमर्ती परिधानवस्त्रफलम्॥ शुभगा श्वेतवस्त्रा स्याद्रोगिणो रक्तवाससा। नोलवस्त्रधरा नारो विधवा कुलटापि च ॥४॥ भोगिनी पीतवस्त्रा च शभगा लोमवस्त्रिणो। आलोहिता भवेहन्ध्या ऋतौ वस्त्रफलं स्मतम् ॥५॥ अर्थ वे-1!
3-998-Atooth-90cctio-entre
1996--SRO)
॥२०॥
Sitaitra
For Private and Personal Use Only
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-100-00-150
लाफलम् ॥ प्रातः काले रजः स्त्रीणां प्रथमं शोकवर्द्धनम् । मध्याहे च धनप्राप्तिरपराहे च मध्यमम ॥ ६॥ पूर्वरात्रे सुखावाप्ति-मध्यरात्रे धनक्षयम् । तथैव पररात्रे च प्रथमर्नु फलं स्मृतम् ॥७॥ संध्ययोरुभयो वेश्या दुर्भगा सर्वसंधिषु । तथा भद्रासु निद्रासु ग्रहणे संक्रमेषु च ॥ ८॥ अथ 5. शोणितवर्णफलम् ॥ शशशोणितसंकाशंथवालक्तकसन्निभे। पुत्रकन्याप्रसूतिः स्यान्नीले तु स्यामतप्रजा ॥ ९॥ शुभगा पुत्रसंयुक्ता शुकवणे सदातवे। पीते च स्वैरिणी प्रोक्ता काकवंध्या च पांडरे ॥ १०॥ अथ स्थानफलम, ॥ गृहमध्ये सुखावाप्तिर्वहिर्वेशे वियोगिनी। शय्यायां सु
खदा भूमावनेकापत्यसन्निधिः ॥ ११ ॥ देवांगणे पुत्रहानिर्गवां स्थानेन्यवेक्ष्मनि । देहत्यां । हवा पितुर्गेहे निन्दितं प्रथमार्तवम् ॥ १२ ॥ अथ स्नानविचारः॥ रजः पाताच्चतुर्थे स्त्रियाहि सु
भगया सह। स्नायादवश्यं तिथ्यक्षं वारादोन्नावलोकयेत् ॥ १३ ॥ अथ गर्भाधानविचारः ॥ स्त्री
Farstratio-065
OSHODE
-51Horial
For Private and Personal Use Only
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प व्य०
णामृतुर्भवति षोडशवासराणि तत्रादितः परिहरेञ्च निशाश्चतस्रः। युग्मासु रात्रिषु नरा विषमासुर MAME नार्यः कुर्यान्निषकमथ तास्वपि पर्ववय॑म् ॥ १४ ॥ चतुर्दश्यष्टमी चैव अमावास्याथ पूर्णिमा । ।
पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसंक्रान्तिरेव च ॥ १५॥ रेवती च मघा मूलं पित्रोः श्राद्धदितन्तथा ॥ दिवा च परिघाद्यर्द्ध गर्भाशने परित्यजेत् ॥ १६॥ अथ विहितदिनादिविचारः ॥ वासराः पुत्रदा गर्भ कुजाक्क गुरवो ध्र वम । कन्यादौ भृगुशीतांशू क्लोवदो शनिचन्द्रजौ ॥ १७ ॥ अथ ।। तिथिविधारः ॥ नन्दा भद्रा स्मृता पुंसि स्त्रीषु पूर्णा जया स्मृता ॥ रिक्ता नपुंसके ज्ञेया तस्मात्ता परिवर्जयेत् ॥ १८ ॥ अथ नक्षत्रविचारः॥ पुष्यार्कचन्द्रशिवमूलपुनर्वसूनि आषाढयग्महरि-5 भाद्रपदइयं च ॥ एतानि पुंसि कथितानि शुभानि भानि अन्येषु गर्भपतनादिभयानि भेषु ॥१९॥ अथ पुंसवनम् ॥ मासे द्वितीयेप्यथ वो तृतीये पुन्नामधेये ग्रहऋक्षचक्र ॥ अक्षीणचन्द्रे कुज- ॥२॥
SHBONES
For Private and Personal Use Only
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
--6-
MOIR-60-DIODODH-0-05
भानुजीवे वारे शुभं पुंसवनादि कर्म ॥ २०॥ अथ सीमन्तकर्म ॥ मासेशे प्रवले शुभेक्षितविधी मासेथ षष्ठेष्टमे मैत्रे पुंसवनोदितक्षसहिते रिक्ताविहीनेतिथौ । सीमन्तोन्नयने मृगाजरहिते लग्ने नवांशोदय योज्यं पुंसवनोदितं यदपरं तत्सर्वमत्रापि च ॥ २१॥ अथ गभाधानसमया
प्रतिमासं मासाधिपकथनपूर्वक-गर्भस्थस्यावयवलक्षणमाह ॥ आद्यस्य मासस्य भृगुर्विनेतातस्मिन् । ॐ भवेच्छोणितशक्रयोगः। तद्र पचेष्टावलहानिदीप्त्या गर्भस्य वाच्यं सकलं जनन्याम् ॥ २२॥ हितीयमासाधिपतिः कुजश्च तस्मिन् घनं तस्य भवेत्समन्तात् । जीवस्तृतीयस्य करांधूिवक्त्रग्रीवादिके तत्र भवेत्समग्रम् ॥ २३॥ सूर्यश्चतुर्थस्य पतिः प्रतिष्ठो ह्यस्थीनि तत्र प्रभवन्ति पुंसाम् ॥ मजा च मेदश्च समांसरक्त व्यक्तिस्समायाति विभागतश्च ॥२४॥ तस्मिन्स सौरिः किल पंचमस्य पतिः समत्वक्कृतिमातनोति ॥ प्राप्नोति पुष्टिं विविधां च गर्भे व्यक्तं समागच्छति कायजातम् ।
-07-1-6-tootoobit.de
For Private and Personal Use Only
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
॥२२॥
1) 31.30 0-0 P
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य० ॥ २५ ॥ षस्य चन्द्रो विभुतामुपैति रोमाणि तत्र प्रभवन्ति गात्रे ॥ रदाश्च जिह्वा प्रहर प्रभावे गुह्यं । सरन् प्रभवेच्च तस्मिन् ॥२६॥ स्याच्चन्द्रसूनुः किल सप्तमस्य तस्मिन् स्मृतिःस्यात्सततं नराणाम् ॥ पंचेन्द्रियत्वं च विवेकताच कोहं कुतोत्राश्रयमभ्युपेतः ॥ २७ ॥ लग्नाधिनाथस्त्वथ वाष्टमस्य मासस्य तस्मिन् प्रभुरावुभुक्षा । भवेन्मनुष्यस्य ततः सुतृप्तिर्भक्ते जनन्या रसभावसंगात् ॥ २८ ॥ नक्षलनाथ नवमस्य नाथस्तस्मिन्विरक्तिर्विविधा नराणाम् । गर्भाश्रयादुःखमनन्तमेकं कृतं स्मृतं पूर्वशुभाशुभस्य ॥ २९ ॥ दिवाकरस्तद्दशमाधिनाथस्तस्मिन् प्रतिष्ठः प्रभवो नराणाम् । तस्मिन् यदा स्याद्व्ययगः शशांकस्त्वाधानलग्नाजननन्तदैव ॥ ३० ॥ अथ सूतिकागृहनिर्माणप्रवेशकावाह । प्रसवार्थं गृहं कुर्य्याददित्यां शुभवासरे । रोहिण्यां श्रवणायां च प्रवेशस्तत्र कीर्त्तितः ॥ ३१ ॥ अथ प्रसूतीस्नानदिवसमाह || मैत्राश्विभ्र वहस्तेषु खात्यां पौष्णाभिधेपि च । कुजाक्कज्य दिनेष्वेव
For Private and Personal Use Only
९७-S..) (40)
10. BA
२०
॥२२॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूतोस्नानं शुभं स्मतम् ॥ ३२॥ मिश्राात्रितये मूले तक्षश्रुतिमधान्तके । वसुषड्रविरिक्तायां १ सूतीस्तानं विवर्जयेत् ॥ ३३ ॥ अथ शिशोानुः स्तनपानदिवसमाह । रिक्ता मं परित्यज्य : विष्टिं पातं सवैधृतिम् ॥ मद्ध वक्षिप्रभेषु स्तनपानं हितं शिशोः ॥ ३४॥ अथ-मासपूर्ती सूतोजलपूजनदिवसमाह। नन्दासु पूर्णासु जयाज्ञचन्द्रजोवे च हस्ते श्रवणे मृगे च ॥ दितिहये स्त्री-६ जलपूजनं च कुऱ्यांच्छिशूनां चिरजीवनाय ॥ ३५॥ अथ शिशनां पालनाशयनदिवसमाह ॥ जोवेन्दुशुक्र शशिपुष्यपोष्णध वेषु पोष्णत्रितये करे च। दित्यश्वभे पक्षसितेतरे च स्यात्पालनायां - शयनं शिशोः सत् ॥ ३६॥ अथ शिशोनामकरणमाह। ध्र वमृदुचरवर्गे वाजिहस्तासमेते क्ष-18 | यमुदयमथैषां सत्सुकेन्द्रस्थितेषु ॥ रविशिवमितवारे तत्कुलाचारतो वा शुभदिनतिथियोगे नामकुर्यात्प्रशस्तम् ॥ ३७॥ शान्तं ब्राह्मणस्योक्त वान्तं क्षत्रियस्य च ॥ गुप्तदासान्त
Ciroi-fact
-00-
15ta
For Private and Personal Use Only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य०
॥२३॥
www.kobatirth.org
| कन्नाम प्रशस्तं वैश्यशूद्रयोः ॥ ३८ ॥ देव्यन्तं द्विजकन्यानां शूद्रायां न विधिः स्मृतः ॥ नामंग - ल्यं च तत्रापि नाम कुर्य्याद्विचक्षणः ॥ ३९ ॥ ओजाक्षरं सदा स्त्रीणां पुरुषस्य समाक्षरम् । | दीर्घमक्षर स्पष्टं यत्न तो वर्जयेत्सुधीः ॥ ४० ॥ अथ दोलायारोहणम् ॥ दोलारोहेर्कभात्पंचशरपञ्चेषु सप्तभैः ॥ नैरुज्यं मरणं कायं व्याधिः सौख्यं क्रमाच्छिशोः ॥ ४१ ॥ धृतिभूपार्क दिग्द न्तप्रमिते शुभवासरे । मृदुक्षिप्रत्र वर्क्षेषु दोलारूढिः शुभा स्मृता ॥ ४२ ॥ अथ ताम्बूलदानदिवसमाह ॥ चरभवमृदुक्षिप्रसद्वारे सत्तिथौ सुधोः । सार्द्धमासइये दद्यात्ताम्बूलं प्रथमं शिशोः | ॥ ४३ ॥ अथ गृहानिः क्रमणदिवसमाह ॥ गमोक्तसमये कुर्य्याच्छिशोन्निः क्रमणं गृहात् ॥ चतुर्थे मासि सूर्य्याद्द दिशाहे पि जन्मतः ॥ ४४ ॥ अथ शिशूनां भूम्युपवेशनम् ॥ पृथ्वीं वराहं विधिवत्प्रपूज्य शुद्धे कुजे पंचममासि वालम् । क्षिप्रभ ु वे सत्तिथिवासराय निवेशयेत्को कटिसूलव
5 ॐ कामिल कि
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
100-6108) मल
Sittig 5.1.0 Ditec
र०
||૨૪
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Ice
-
-
न्धम् ॥ ४५ ॥ अथान्नप्राशनम् ॥ षष्ठादियुग्ममासेषु शिशूनामन्नभोजनम् ॥ कन्यानां पंचमामासादयुग्मे भोजनम् हितम् ॥ ४६॥ द्वितीया च तृतीया च पंचमी दशमी तथा । त्रयोदशी, शिशोरन्नप्राशनेतिशुभा स्मृता ॥ ४७॥ शनिभौमदिनं त्यक्त्वा मृदुक्षिप्रचर- वे । गोकन्यायुग्ममोनांशे शिशुरद्यात्सिते दले ॥४८॥ अथ शिशोराद्यक्षौरमाह ॥ सुरासुरगुरोः शुद्धिवेदोवत-3 प्रक्रियापि च शिशूनां प्रथमक्षारे चिन्तनीया न कुलचित् ॥ १९॥ तृतीयाविषमे वर्षे त्यक्तचैत्रोतरायणे। सत्तिथौ शभवारे च क्षौरमाद्य हितं शिशोः ॥५०॥ शाकोपेते विमैत्रे च मदक्षिप्रचरक्षके। क्षौरमाद्य शिशूनां सज्जन्ममासादिकं विना ॥ ५१॥ अथ नित्यक्षौरविधिः ॥ क्षौरं है भार्गववासरे शुभकरं वारेथ जीवस्य च कर्त्तव्यं वुधसोमयोरतिशयं भूतातिरिक्तेतिथौ । भुक्ताभ्यक्त निरासनैश्च समरयामान्तरप्रस्थितैः ॥ स्नातैन्नी नवमेहनीति विवुधाः संयोनिशायां जगुः ॥ ५२ ॥
CtrocirstbortraitSH-00 SHEEES
For Private and Personal Use Only
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य. રટ
1-03-BE-09-HS-CHC
अथाद्यश्मश्रुकर्म ॥ षष्ठ्यष्टमीश्चतुर्थी च सिनीवाली' चतुर्दशीम् ॥ मवमी चार्कमन्दारान श्मश्रुकर्मणि वर्जयेत् ॥ ५३॥ अथ कर्णवेधः ॥ नो जम्मेन्दुभमाससूर्य्यरविजक्ष्माजाहयाम्यायने शस्ते लघुविष्णुयुग्ममृदुभस्वात्युत्तरादित्यभैः । सौम्येस्त्र्यायत्रिकोणकण्टकगतैः पापैस्त्रिलाभारिंगरोजाब्दे श्रुतिवेष इज्यसितभे लग्ने तु काले शुभे ॥५४॥ अथाक्षर-विद्यारम्भौ यथाक्र-I म॥ शिवाकदिग्विषटशरत्रिके लघश्रवो निलान्त्यभादितोशतक्षमित्रभे शिशोलिपिग्रहः ॥ सु-15 मषकर्कसत्तुलैणहीनसत्तौ रवावुदग्गविष्णुगोरमास्समज़े पञ्चमाब्दके ॥ ५५॥ शुभे दिने शिवादिग्छिके तिथा शुभैरधीतिरुत्तमा त्रिकोणकेन्द्रगै वान्त्यमित्रभे ॥ गुरुद्दयेकजीववितिसरे 5-12 ह्नि षट्शरलिकेश्विमूलपविकात्रये मगात्कराच्छु तेस्त्रये ॥ ५६ ॥ अथोपनयनदिवसमाह ॥
है " चौलादिकं तु यत्कम युगपन्मथिलेषु च । तत्रोपनयन श्रेष्ठं तस्मात्तत्प्रकियोच्यते ॥ ५७ ॥
-SHO5-06-Orbi-tropBhosite
॥२॥
For Private and Personal Use Only
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir
-
गर्भाष्टमेष्टमे वादे ब्राह्मणस्योपनायनम् । राज्ञामेकादशे मोञ्जीबन्धनं हादशे विशः ॥ ५८ ॥ अथ ।। ऋत्यकालविचारः ॥ आषोडशाद्धि विप्रस्य सावित्रीपतनं भवेत् । हाविंशतेस्तथा राज्ञश्च तुर्विंशतितो ? विशः॥ ५९॥ अथ गुरुशुद्धिः ॥ श्रेष्ठो गुरुस्त्रिकोणायहिसप्तस्थानसंस्थितः । ऋष्पाप्टतुर्यगं हित्वा मध्यमोन्येषु वेश्मसु ॥ ६० ॥ आये तृतीयभवने रि पुर ध्रयोर्वा दुःखं करोति नियतं विपदं च । जीवः। अन्त्यं चतुर्थदशमं प्रवदन्ति मध्यं भेमं करोति नियतं परिशेषराशौ ॥ ६१॥ अथानिटगुरुप्रतोकारमाह ॥ स्वोच्चे स्वभे स्वमेत्रे वा स्वांशे वर्गोत्तमे गुरुः। ऋष्फाष्टतु-गोपीष्टा नीचा-13 रिस्थः शुभोप्यसन् ॥ ६२॥ अथ रविशुष्टि विचारः ॥ श्रेष्ठारविस्त्रिदशलाभविपक्षसंस्थो मध्यो के महिपंचमगतो नवमे तथैव । जन्माष्टसप्तहिकान्त्यविनाशकारी सद्भिस्त्रिधा निगदिता रविशुद्धि-12
रेषा ॥ ६३ ॥ अथ मासशुद्धिः॥ नकादिकं समारभ्य यावत्र्यंशः शचेरपि। तावदेवोपनी-19
-
-
-
-
For Private and Personal Use Only
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हतिः स्याहटनामिति कीर्तिता॥६॥मागें मासि तथा ज्येष्ठे क्षौर परिणयं ब्रतम्। ज्येष् ॥२५॥ोश्च यत्नतः परिवर्जयेत् ॥६५॥ आवश्यकेऽपि कर्तव्ये व्रतोद्दाहादिकर्मणि ॥ कृत्तिकास्थं रवि
त्यक्त्वा ज्येष्ठे ज्येष्ठस्य कारयेत् ॥६६॥ जन्मोदये जन्मसु तारकासु मासेऽपि वा जन्मनि जन्मभे||
वा।तेपि विप्रः श्रवणं विनापि प्रज्ञाविशेषैः प्रथितः पृथिव्याम्॥६७॥ जन्ममासादिकं त्याज्यं सर्वथा । पृ यत्नतो बुधैः। ज्येष्ठपुलदुहित्रोश्च व्रतोद्वाहादिकर्मसु ॥ ६९॥ जन्ममासनिषेधे तु दिनानि
दश वर्जयेत् । आरभ्य जन्मदिवसाच्छुभाः स्युस्तिथयोऽपराः। अथोपनयने चैत्रप्रशंसा । गोचराष्टकवर्गाद्यर्यदि शुद्धिन्न लभ्यते । तदोपनयनं कार्य चत्रे मोनगते रवौ ॥ ७० ॥ असावाविपलम्। शाखाधिपतिवारश्च शाखाधिपवलं शिशोः। शाखाधिपतिलग्नं च दुर्लभं लितयं ई व्रजेत् ॥ ७१॥ ऋग्वेदाधिपति वो ययुर्वेदाधिपः सितः। सामवेदाधिपो भौमः शशिजोथर्ववेद-१॥२५॥
O-909300-0.5205HObt
e-Stear-difor-9000-:0
4.bati.
For Private and Personal Use Only
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit
www.kobatirth.org
D.EDICIC-00-DIEIRODHPCASH
कराद ॥७२॥ यथा शाखाधिपस्याल वलं प्रोक्तं विचक्षणः ॥ तथा वर्णाधिपस्यापि ब्रतबन्धे ||
विचारयेत् ॥७३॥ सुरासुरगुरू विप्रो, क्षत्रियो रविभूमिजो ॥ वैश्यश्चन्द्रो, बुधः शूद्रः, प्रासन्त्यजातिः शनैश्चरः ॥ ७४॥ अतिविशुद्धिः ॥ हितीयायां तृतीयायां पंचम्या दशमीत्रये ॥
शनिौमदिनं त्यक्त्वा मौंजीबन्धः शुभो भवेत् ॥ ७५॥ अथ नक्षतशुद्धिः॥ तोक्ष्णध्र वमृदुक्षिप्रत्रिपूर्वा सदितिं विना ॥ चरक्षेपि प्रशस्ता स्यादपनोतिर्वटोः किल ॥ ७६ ॥ अथतत्कालिकानध्यायाः ॥ न रातो न च संध्यायां नानध्याये न भिन्नभे ॥ न कृष्णे नापराहे च नाशोचे न गल-* ग्रहे ॥ ७७ ॥ नोपरागे न भद्रायां न प्रदोषादिसंयुते ॥ नाकालवर्षणे चैव गर्जिते नोपनायनम् ॥ ७८ ॥ अथ मलयह-लक्षणम् ॥ अष्टमी सप्तमोविद्धा, त्रयोदश्या चतुर्दशी। द्वितीया प्रतिपहिद्धा, गलग्रह उदाहृतः ॥ ७९ ॥ अथ प्रदोषलक्षणम् ॥ चतुर्थी प्रथमे यामे, सार्द्धयामे च सप्तमी
E-16--10-6-
-00-.Hea
For Private and Personal Use Only
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
www.kobatrth.org
Stoctrost
ॐ त्रयोदश्यर्द्धरात्रे च प्रदोषः सर्वघातकः ॥ ८०॥ अथाकालवृष्टिलक्षणम ॥ पोषादिचतुरोमा-१ Man | सान् ज्ञ या वृष्टिरकालजा। व्रताहि पूर्वसंध्यायां गर्जितस्यापि दूषणम् ॥ ८१ ॥ अथलग्नशुद्धिः ॥
* गुरुशशिभृगुपुत्र केन्द्रसंस्थे त्रिकोणे । रिपुसहजगृहाये सूर्यमाहेयमन्दे । वृषतुरगतुलायां सिं-से
हमीने प्रशस्त व्रतकरणमिहोतं वाष्टमस्थे शशांके ॥ ८२॥ अथ विद्यारम्भः ॥ का 11 देवांश्च खविद्यां सूत्र कारकम् । शिवं नवग्रहांश्चैव पूजयित्वा विधानतः ॥ ८३॥ गुरुः पूर्वमु.
खः शिष्यं पश्चिमास्यं च पाठयेत ॥ नक्षत्र तिथिवारायः सर्वैः कठिनिकोदितैः ॥ ८४ ॥ धरण्याद मृतुमत्यां च भूमिकम्पे तथैव च । अन्तरागमने चैव विद्यान्नैव पठेन्नरः ॥ ८५ ॥ अथ धन
विद्यारम्भः। मघोत्तरापावकविष्णुचित्रास्त्रात्यश्विजीवादितिमूलहस्ताः । वाराः सिताकेंज्यमही। सुतानामुक्ता धनुर्वेदविधौ प्रशस्ताः ॥ ८६ ॥ अथ छूरिकावन्धनम् ॥ विचैत्रव्रतमासादो विभौ-1॥२६॥
HEREDIOHSREDIT-80
-40-46-tiroin.hd
-
.airtee
For Private and Personal Use Only
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Iमास्ते विभूमिजे। छूरिकावन्धनं शस्तं नृपाणां प्राग्विवाहतः॥ ८७॥ अथ राजाभिषेकः ॥
मैत्रशाककरपुष्यरोहिणी-वैष्णवाद्यतिसृषूत्तरासु च । रेवतीमृगशिरोश्विनोष्वपि क्ष्माभुजां सम-5 सभिषेक इष्यते ॥ ८८॥ विलग्नजन्मेशदशाधिनाथमार्तण्डधात्रीतनयैर्वलिष्ठेः ॥ गुर्विन्दशुक्रः स्फु-5 परदंशुजालैमहीपतीनामभिषेक इष्टः ॥ ८९॥ तारकाशशभृनोर्वले दिने सद्ग्रहस्य च तिथाव-5.
रिक्तके। जन्मभानुपचये स्थिरोदये भूभुजां समभिषेक इष्यते ॥९०॥ * ॥ इति श्रीभाननाथदैवज्ञविरचित व्यवहाररत्ने संस्कारप्रकरणम् ॥S.S. J. ॥ ॥५॥ यः पण्डितो भवति तस्य विदेशयात्रा पात्राज्ञया समुचितार्य्यधनार्जनाय । तस्माद्वयं निखिलशास्त्रविचारदक्षा
रक्षासु लक्षितगमस्य दिनं वदामः ॥१॥ अथ मासशुद्धिः ॥ मेष धनुपि सिंहे च यात्रा सौ-13 करव्यप्रदायिनो। खौ कर्कालिमीनस्थ दुःखदान्येषु मध्यमा ॥ २॥ अतिविशतिः॥ सितारे
eSHA.Anird-1
-5---SHO:
For Private and Personal Use Only
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
wti. o
-D
व्य० या बादशी षष्ठी सिनीवाली च पूर्णिमा। रिक्ताष्टमी परित्याज्या यात्रायां सर्वथा वुधैः ॥ ३ ॥ ॥२७॥ अथ नक्षत्रशुद्धिः॥ हस्तेन्दुमित्रश्रवणाश्विपुष्यपौणश्रविष्ठाश्च पुनर्वसू च ।। श्रेष्ठानि धिण्णानि नव ।
प्रयाणे त्यक्त्वातिपंचात्तिससप्तताराः ॥४॥ अजो विशाखः पवनः कृशानुः स्थाणुः कृतान्तः फ-11 हैणिभृन्मघा च। यात्रास्वनिष्टान्यपराणि भानि स्मृतानि नेष्टानि न निन्दितानि ॥ ५॥ शाक
च सौरिचन्द्राहे नैव पूर्व दिशं ब्रजेत् ॥ गुरौ च पूर्वभाद्र च दक्षिणस्यान्तथैव च ॥ ६॥ रोहिण्यां सूर्यशुकाहे न प्रतीचोमियान्नरः। कुजे बुधय॑मः च सौम्याशां च तथैव च ॥७॥ अथ वारशुद्धिः॥ खो शुक्र व्रजेत् प्राचीमवाचों च महीसुते। प्रतीची शनिचन्द्राहे तथोदीची गुरोदिने ॥ ८॥ यद्दिनषु व्रजेत्प्राचीमग्निकोणपि तदिने । प्रारदक्षिणक्रमेणैवं सर्व ज्ञयं मनीषिभिः ॥९॥ क्षिप्रानुराधया चैव गच्छेत्सर्वदिशास्वपि॥ विलोक्य चन्द्रतारादेवल माशापते
aim२७॥
EC-I--SED
ri. CO-ET SHOld
For Private and Personal Use Only
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
•AHES-
-SICODEIODOSGA.COM
भारपि ॥१०॥ अथानन्दादि-योगविचारः ॥ आनन्दः कालदण्डश्च धूम्रो धाता तथैव च ॥
सौम्यो ध्वांक्षश्च केतुश्च श्रीवत्साख्यस्ततः परम् ॥ ११॥ वज्रकं मुद्गरश्छत्रं मित्रं मानसमेवच । पद्मलुम्वोत्पातमृत्युकाणसिद्धिशुभाभिधाः ॥ १२ ॥ सुधामुशलरोगाख्या मातंगो राक्ष सश्चरः ॥ स्थिरः प्रवर्द्धमानः स्यात्सप्तविंशतिरित्यपि ॥ १३॥ अथैषामानयनमाह ॥ दास्नाद्रवौ मृगाञ्चन्द्रे कुजे सात्किरावुधे ॥ गुरौ मैत्राद्भ,गौ वैश्वान्मन्दे गण्याश्च वारुणात् ॥ १४ ॥ एते योगाः । फलं दद्यः स्वस्वनामानुसारतः॥ यात्रायामेव नान्यत्र ज्ञयमित्यार्यबद्धिभिः ॥ १५ ॥ ध्र वैमिश्रेन पूर्वाह्न मध्याह्न न च दारुणैः ॥ नापराह्न ब्रजेत् क्षिप्रेम दुर्भन्न निशामुखे ॥ १६ ॥ उग्राग्रे मध्यरात्रे च चराख्यैन्न निशान्तके ॥ हस्तश्रुतिमृगेज्यक्षैः सर्वकाले शुभोगमः ॥१७॥ राशिभेदेन दिक्षु चन्द्रावस्थितिमाह ॥ मेषे सिंह च कोदण्दे पुर्वस्यां दिशि चन्द्रमाः । वृषे नके च
---Hot
-DrHd
-b
-
)
For Private and Personal Use Only
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य०
॥२८॥
ॐॐॐॐॐॐ- CG-अक
www.kobatirth.org
एकादश्यां तृतीयायां कौमारी वह्निकोणगा ॥ चतुर्थीद्वादशीष्वेव वैष्णवो नैऋतिस्थिता ॥ २५ ॥ पंचम्यां च त्रयोदश्यां वाराही दक्षिणे स्मृता ॥ षष्ठ्यां तिथौ चतुर्दश्यामिन्द्राणो पश्चिमे स्थि
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
युग्मे कुम्भे तुलायां न पश्चिमेषु व्यवस्थितः ॥ कर्कट - संमुखे दक्षिणे चन्द्रः सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥ पृष्ठे वामे प्रागादितस्तनौ सूर्ये भार्गवे व्ययलाभयोः । कर्म्मशनौ द्यूने विधौ वारिपंचमस्ये बुधेम्बुगे ॥ गीष्पतौ भ्रातृवित्तस्थे लालाटीति प्रकीर्तिता ॥ २२ ॥ अस्यां लालाटिकायां च यात्रा त्याज्या सदैव हि ॥ कुम्भकुम्भांशका वापि मीनलग्ने तथैव च ॥ २३ ॥ अथ योगास्तत्र प्रथमं तिथियोगिनोंमाह ॥ पूर्वस्यामुदयेद्राह्मी प्रथमे नवमी तिथौ ॥ माहेशो चोत्तरस्यान्तु द्वितीयादशमातिथौ ॥२२॥ ॥
कन्यायां दक्षिणस्यां तथैव च ॥ १८ ॥ श्चिकमीनेषु संस्थितश्चोत्तराखलम् ॥ १९ ॥ निषिद्धः स्यादिति प्राह मुनीश्वरः ॥ २० ॥ स्थे धरणीपुत्रे राहौ धर्माष्टसंयुते ॥ २१ ॥
For Private and Personal Use Only
क.) (5+1. 5. कल 61 1.89- (म.)
TO
॥२८॥
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
5-te
.तन-119-66.11.
ता ॥ २६ ॥ पौर्णमास्यान्तु सप्तम्यामुत्तरे चण्डिकोदयः । अष्टम्यां न"टचन्द्रे च महालक्ष्मीः शिवालये ॥ २७॥ योगिनी सुखदा वामे पृष्टे वांछितदायिनो । दक्षिणे कार्यानाशाय संमुख । निधनप्रदा॥२८॥ प्रागत्तराग्निनै+त्ययमपश्चिमवायष ॥ ख्यादिष च वारेष वर्जयेहारयो-11 गिनीम् ॥ २९॥ यत्रोदयगता देवी ततो यामार्द्धभुक्तिगा। भ्रमन्ती तेन मार्गेण भवेत्तत्काल-का योगिनी ॥ ३०॥ अथ सहुविचारः ॥ तत्र प्रथम मासविचारः ॥ पूर्वादिदिक्षु मार्गार्य-स्त्रि-20 भिस्त्रिभिरिति क्रमात् ॥ मासकालस्सविज्ञेयो यात्रायां संमुखं त्यजेत् ॥३१॥ नन्दायां प. श्चिमे पूर्वे भद्रायां वह्निमारुते । जायायामुत्तरे याम्ये रिक्तास्वीशान मते ॥ ३२ ॥ पूर्णायखे तिथेः कालं वजयेत्संमुखं सुधीः॥ शक्ले पूर्वादिचत्वारि कृष्णे पश्चिमतश्च तत् ॥३३॥ अथ र कस्सहुविचारः ॥ आदित्ये चोत्तरे कालः सोमे वायव्य एव च ॥ भौमे च पश्चिमे सौम्ये नेक -
-5..
-10-19-19-
--0
1
For Private and Personal Use Only
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्य०
॥२९॥
ॐ A CIS-A2K N
www.kobatirth.org
शेषस्य मुहूर्त्तशक्तितः ॥ ४० ॥
त्ये च गुरौ यमे ॥ ३४ ॥
आग्नेय्यां भृगुजे ज्ञेयः शन पूर्वे क्रमाद्भवेत् ॥ वारराहुः सदा त्याज्यः प्रवेशे वामसंमुखः ॥ ३५ ॥ अथ यामार्द्धराहुविचारः ॥ इन्द्रवासव रुद्रे तोयेग्युत्तरराक्षसयामार्द्धमुदितो राहु मत्येवं दिगष्टके ॥ ३६ ॥ रात्रावसौ प्रतीचीतो भ्रमत्येवं न संशयः ॥ दक्षे भ्र पृष्ठ शुभो ज्ञेयो यात्रायां बुद्ध वादयोः ॥ ३७ ॥ अथ राहुयुक्त योगिनी-वलप्रशंसामाह ॥ पृष्ठे दक्षे योगिनी राहुयुक्ता 'यस्यैको शत्रुलक्षं निहन्ति ॥ श्रेष्ठं सर्वेभ्यो वलेभ्यस्तदेतत्संक्षेपोयं सर्वसारोभ्यधासि ॥ ३८ ॥ अथ ग्रहयोगेन यात्राविचारः ॥ यथा हि योगाढ्यमुतायते विषं विषायते मध्वपि सर्पिषा समम् । तथा विहाय स्वफलानि खेचराः फलं प्रयच्छन्ति हि योग संभवम् ॥ ३९ ॥ महीभृत योगवशात्फलोदयो, द्दिजन्मनामृक्षगुणैश्च जायते ॥ सतस्करादेः शकुनप्रभावतो, जनस्यकेन्द्र-त्रिकोणगाः सौम्या यालायां शुभदायकाः त्रिषडा "येषु
४०१० ५८
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
1-60 1.8-8
1962
र०
॥२९॥
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
BRIDGE00-61-10-6-1913
संस्थाश्च पापा अपि निसर्गतः ॥११॥ जीवशक्रवधेष्वेको यदि केन्द्रत्रिकोणगः ॥ यात्रा प्रशस्ता विज्ञ या हौ त्रय स्तर्हि का कथा ॥ १२॥ लग्ने सप्तमे चन्द्र वित्ते सौम्ये प्रयाति यः ॥ लवा सर्वाभिलाषं च शोधूमायाति मन्दिरे ॥ १३॥ लग्नेशः शुभयुक्दृष्ट श्चन्द्रश्चोपचयस्थितः ॥ नधने भवने शुद्धे प्रयाणे शुभदायकाः ॥ ४ ॥ लग्ने जीवो मृतौ चन्द्रः शत्रुगोको यदा भवेत् १ तदा यात्रा प्रशस्ता स्यादिति होराविदो मतम् ॥ १५॥ वर्गोत्तमे यदा चन्द्रः सौरिईि चिक्यसंस्थितः॥ शत्रुगश्च महोपुत्रः प्रयाणे शुभदायकः ॥ १६ ॥ जन्मराशिस्तनर्वापि यदि लग्नगतो भ वेत॥ ययोरधीशो वा लग्ने यात्रा सिद्धि प्रदा स्मता ॥१७॥ जन्मराशेजन्मलग्नादष्टमस्थो य
दा तनुः ॥ तदा यात्रा न कर्तव्या जन्मतिथ्यादिकेपि च ॥१८॥ शुभो वाप्यशभो वापि लग्नादिष्टमगो यदि ॥ तदा यात्रा निषिद्धैव यद्यन्योपि गुणो भवेत् ॥ ५९॥ अथ यात्रायां व्यवस्था
(DER-PHOTKOHS9-9-19--0.
For Private and Personal Use Only
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir
www.kobatirth.org
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
foototablet
व्य० | माह ॥ गेहाद् हान्तरे यात्रा सीम्नः सोमान्तरेपि च ॥ ५० ॥ वाणविक्षेपमात्रे वा पूर्वाचाय॥३०॥ रुदाहता। क्षीरं प्राक् त्रिदिनं त्याज्यं क्षौरं पंचदिनन्तथा ॥ प्रयाणदिवसे तहत्तैलं क्षौद्र रतिकमिः ॥ ५१॥ नैकत्र तिष्ठेदशरात्रमीशः, सामन्तसंज्ञो न च सप्तरात्रम् । तदन्यलोको न च
पंचरात्र गौणप्रयाणेपि च रीतिरेषा ॥५२॥ अशक्यकार्येण यदा विलम्वः प्रयाणकाले मनसस्त्वभोष्टम ॥ प्रचालयद्देवगृहादवश्यं गन्तव्यकाष्ठापरवेश्ममध्ये ॥५३॥ निमित्तराशिरकतो नृणां मनस्तदेकतः । अतो यियासतां धैग्मनोविशद्धिरिष्यते॥५४॥ अथ शकनाः॥ विप्रोगजस्तुरंगश्च फलमन्नं घृतं दधि॥ दुग्धं नवोनबस्त्रं च पुष्पं वाद्य ध्वजं मथु ॥ ५५॥ आदर्शा-: प्णीषरत्नानि दीप्तवैश्वानरोपि च ॥ ससुतस्त्री च वेश्या च छत्र सद्दाक्यमेव च ॥५६॥ सधौ तवस्त्रोरजकः पूर्णः कलश एव च ॥ मेलेक्षुदण्डमृच्छागमद्यमोनास्त्रकन्यकाः ॥ ५७ ॥ गावो
॥३०॥
(Sridebi
For Private and Personal Use Only
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir
मयूराश्चाषश्च शवं क्रन्दनव जितम् ॥ नृवान वेदगानं च गीतं मंगलकर्मजम् ॥ ५८॥ अंकुशो.. नकुलामांसं वृषभः शुक्लविग्रहः ॥ प्रयाणे शुभदा एते तथा सिंहासन खलु ॥५९।। अथापशकुनाः ॥ वन्यास्थि तुषवर्माणि सांगारेन्धनानि च ॥ वसास्त्रीपुष्पवैद्याश्च लवणोन्मत्तदण्डिनः ॥६०॥ जटिलाभ्यक्तलग्नाश्च गुडतकतृणानि च ॥ विमुक्तकेश पतितो व्यंशो विद्या विभt का ॥ ६१ ॥ काशवमतव्याधियुक्तान्धवधिरादयः॥ स्वगेहदहनं छिका वस्त्रादिस्खलनन्तथा ॥ ६२॥ कृ ष्णधान्याई वस्त्रं च गम्भिणी क्रन्दनादिकम् ॥ पतितो दर्वचः कटज: क्षधातः शरटापि च ॥ ६३॥ माारसमाक्लोव-लुलायसमरादयः ॥ सर्वे प्रयाणप्रारंभे दर्शनैर्भयदाः स्मृताः ॥ ६॥ गईभस्य रवा ऋक्षो वानरः कोकिलोपि च ॥ स्त्रीसंज्ञकाश्च याः काश्चिदक्षिणे ताः शुभावहाः॥६५॥ छुछका सूकरी पल्ली कोकिलस्त्री कपोतकी ॥ शिवा पुंसंज्ञका चैव वामांगे शुभदायकाः ॥६६॥ आद्य
For Private and Personal Use Only
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(61-
6
व्य०
॥३१॥
पशकुने स्थित्वा प्राणानेकादशं ब्रजेत् ॥ द्वितीये षोडशप्राणान् तृतीये नक्क चिद्रजेत् ॥ ६७ ॥ आदौ संपूज्य दैवज्ञ गृहदेवी प्रणम्य च ॥ ध्यात्वा दिगोशं सहाक्यैः सोष्णीषः प्रव्रजेन्नरः ॥६८॥i. अथ नौकायानमाह ॥ द्वितीया च तृतीया च पंचमी च त्रयोदशी ॥ सप्तमो दशमी पोतप्रयाणे सौम्यवासराः ॥ ६९॥ उत्तरावारुणखातोपत्र्ये कालविलम्बना ॥ विशाखाकृतिकाज्यैष्ठाबाहस्यमूलेग्नितो भयम् ॥७०॥ पूर्वात्वाष्ट्र न लाभः स्याद्यमादी सर्वभंगकृत् ॥ विचार्यैवं च कर्त्तव्या । पोतयात्रा न संशयः ॥ ७१॥ अथ नृपदर्शनमाह ॥ मृदृक्षिप्रध्र वर्षोस्तु शनिभौमदिनं विना ॥ विपर्वारिक्ततिथ्यादौ नृपदर्शनमुत्तमम् ॥ ७२ ॥ अथ परदेशगः कदा समागमिष्यतीति प्रश्नोत्तरमाह ॥ विलग्नचन्द्रान्तरभागनिघ्नं यावाविलग्न खगुणैविभक्तम् ॥ आयाति राजा किल लब्धमासैर्गतो विदेशाच्छतयोजनस्थः ॥ ७३ ॥ ॥ ॥ इति श्री भानुनाथदेवज्ञविरचिते व्यवहारर
.c-to-960 मि.
शा
-
For Private and Personal Use Only
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
16101309 Iॐॐ
www.kobatirth.org
11 # 11
s. S. JHă, ॥ *॥
ल यात्राप्रकरणम् ॥ ६ ॥ विदेशगस्य लोकस्य स्वगृहागमनादिषु ॥ प्रयाणोक्तः प्रयाणः स्यात्प्रवेशोक्तः प्रवेशकः ॥ १ ॥ अथ पुष्करण्यादि खननद वसमाह ॥ वैशाखे श्रावणे माघे फाल्गुने मार्गकार्त्तिके ॥ पौषे ज्येष्ठे भवेत्सि वाप्याः कूपतडागयोः ॥ २ ॥ अथ तिथिविचारः ॥ एकादशी होतोया च तृतीया पंच सप्तमो ॥ प्रतिपद्दशमी श्रेष्ठा पूर्णिमा च त्रयोदशी ॥ ३ ॥ एतास्सितदलस्यैव भार्गवेन्द्विज्यवासरे ॥ दशमस्थे भृगोः पुत्रे जलखातः प्रशस्यते ॥ २ ॥ मृदुध्रुवक्षिप्रचरेषु लग्ने झषे घटे वा मकराभिधे च ॥ आप्पे विधौ सर्वजलाशयानां सदा समारंभमुसन्ति सन्तः ॥ अथ देवताघट्टन मुहूर्त्तमाह ॥ ध्रुवमृदुलघुवर्गे वारुणे विष्णुदेवे ॥ मरुददितिधनिष्ठे शोभने वासरे च ॥ त्रिदशम दन जन्मेकादशे शीतरश्मौ विवधकृतिरिहेष्टा चन्द्रतारानुकूले ॥ ६ ॥ सौम्यायने सिते पक्षे समये शुद्ध एव हि ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
10-61SD OF 6
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य.
॥३२॥ हामत
..OSH.dditi9-651
चरध्र वमृक्षिप्रे नक्षत्रे सौम्यवासरे॥७॥ सुक्षणे वा सुनक्षत्रे सुतिथी विष्टिनिर्गते ॥ देवारामतडागादः प्रतिष्ठा शुभदा स्मृता ॥८॥ अथ गोचरविचारः ॥ रविस्त्रिषड्दशायस्थश्चन्द्रः साद्य स्मरषु च ॥ कुजो दशविहीनेषु वुधो युग्मे व्ययं विना ॥ ९॥ देवाचार्यस्त्रिकोणायविसप्तस्था-1 नसंस्थितः ॥ शुक्रः सप्तारिदिग्वज्ये शनिव्म समः शुभः ॥ १० ॥ राशिप्रवेशे सूर्यारौ मध्ये शुशुक्रवृहस्पती॥ प्रान्तस्थौ शनिशीतांश फलदो सर्वदा वुधः ॥ ११॥ अथ गोचरप्रसंगात्पल्लीपतनशरटावरोहफलमाह ॥ पल्याः प्रपतने चैव शरटस्य प्रहरोहणे ॥ फलं वक्ष्यामि यत्नेन गर्मादिमुनिभाषितम् ॥ १२ ॥ शीर्षे राज्यश्रियः प्राप्ति-ललाटे भयवर्द्धनम् ॥ कर्णयोर्भ षणप्राप्तिनत्रयोर्भयदर्शनम् ॥११॥ नासिकायां च सौभाग्यमवर सौल्यवर्द्धनम् ॥ ग्रोवायां सुखसंपत्तिम खे मिष्टान्नभोजनम् ॥ १४ ॥ कण्ठे नित्यप्रियप्राप्तिः स्कन्धयोविजयं भवेत् ॥ स्तनयुग्मे च
Hot-007-HOSHO
॥३२॥
--07 1.
For Private and Personal Use Only
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-10-..
सौभाग्यं हृदये सौख्यवर्द्धनम् ॥ १५॥ कुक्षौ सत्पुललाभः स्यात्पृष्ठे लाभो भवेद्र वम् ॥ पार्श्वयोः प्रमदालाभो वन्धुवर्गस्य दर्शनम् ॥ १६ ॥ कट्यां वस्त्रस्य लाभः स्यादगुह्ये मित्रसमाग-A मः॥ जघनेर्थक्षयो नित्य गुदे रोगभयं भवेत् ॥१७॥ लिंगदेशे भवेत् पीडा स्त्रीविश्लेषोपि । जायते॥ धनवाहनसंप्राप्तिर्जानयग्मेऽर्थसंग्रहः ॥१८॥ विरोगी जंघयोश्चैव पादयोभ्रमणं भवेत् ॥ रोहणं चोर्ध्ववक्त्रश्च अधोवक्त्रः प्रपातकः ॥ १९॥ भवेद्यदि च शीघूण तत्फलं जायते । ध्रुवम् ॥ अथ लमफलम् ॥ मेषे सुखं च विज्ञेयं वृषे च पशुनाशनम् ॥ मिथुने रोगसंप्राप्तिः क-15 के कलहमेव च ॥ २०॥ सिंह पुत्रस्य लाभश्च कन्यालग्ने धनक्षयः ॥ तुलवृश्चिककोदण्डे पुत्रलामो भवेदध्र वम् ॥ २१॥ अथ रोमोत्पत्ती कलेशदिवसविचारः॥ अश्विन्यां कृत्तिकायां च मूलक्षेपि तथैव च ॥ रोगोत्पत्तिर्भवेद्यस्य नवाहान्मोक्षमाप्नुयात् ॥ २२ ॥ भरण्यामुत्तरे भाद्रे रोहि-11
HO-6-
For Private and Personal Use Only
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥३३॥
व्य० 16ण्यामदितिइये ॥ सप्तरात्रेण मुक्तिः स्याझ्याधेरित्याह नारदः ॥ २३ ॥ सौम्ये वैश्वे तु मासेन विर०
शत्या च मघासु च ॥ विशाखायां धनिष्ठायां हस्ते पक्षान्न संशयः ॥ २४॥ वारुणश्रुतिचित्रासु। हादशाहन मुक्तिदः॥ मासेनोत्तरफल्गुन्यां रोगमुक्तिर्विधीयते ॥ २५॥ रेवत्यां मित्रभे चैव कृ. च्छ्राजीवति मानवः ॥ त्रिपूर्वाहिशिवस्वातीज्येष्ठासु नहि जीवति ॥ २६ ॥ अभ-निश्चितनिधनकारक
योगाः॥उरगशतभिषा-स्वातिशऋत्रिपूर्वा-भरणिरविजभौम चार्कवारे नवम्याम्॥प्रथमतिथिचतथिों हादशीभूतषष्ठीशिवहरिगुरुयोगाद्रोगिणां काल एषः ॥ २७ ॥ सर्पप्रचेतशिवभैनवमी शनि
संगमात् ॥ योगः शिवः समाख्यातो रोगिणां कालदो मतः ॥ २८ ॥ स्वातीशकत्रिपूर्वासु चतुर्थी 21
प्रतिपद्यदि ॥ भौमे भौतिकरो योगो हरिन्।शाय रोगिणाम् ॥ २९॥ भरण्यां पंचमी षष्टी हादHशी रविवासरे ॥ ज्ञे यो गुरुम्महायोगो रोगिणां कालदो मतः ॥ ३०॥ सप्ताह वारदोषेण द्विगुणं ॥३३॥
ISROIe19-19-19-6
SHI
For Private and Personal Use Only
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
F.H..--
तिथिवारतः ॥ तिथिनक्षत्रतो मासं त्रिभिः कालो न संशयः॥३१॥ आशाने जन्मनश्चत्रे प्रत्यरोनिधनेपि वा।यस्य व्याधिस्समागच्छेत क्लेशाय निधनाय च ॥३२॥ अथोत्पातरूपानिष्टकालमाह ॥ दक्षिणस्यां दिशि च्छायामात्मनो यः प्रपश्यति ॥ स्नायादुयंपदाभूमौ पश्यत्येव शिरो हयम् ॥३३॥ आत्मच्छायां शिरोहीनं सूर्याचन्द्रमसोई यम् ॥ उभयोश्चैव यच्छिद्र प्रपश्यत्युदयास्तयोः ॥ ३१॥ खप्ने प्रेतपरिष्वंगस्तदर्शनमथोपि वा ॥ गृहे यस्याशनेः पातो महोल्कापतनं तथा ॥ ३५॥ मस्यकच्छपपातश्च निशोथे चापदर्शनम् ॥ अरु धतो न दृश्या च शीर्षे गृध्रादपोपि वा ॥३६॥ एतान्यनिष्टचिह्नानि यदा भयो भवन्ति च ॥ तदा स गच्छेञ्चपलं गंगां नरकतारिणीम् ॥ ३७ ॥ मृत्युस्तस्य दशाहेन सप्तरात्रेण कस्य वा ॥ पंचाहे कस्य चिज्ज्ञ यः कस्य चित्पक्षगोचरः ॥३८॥ यदि देवद्दिजातीनां पूजनादिकमाचरेत् ॥तथापि दुर्लभंज्ञेयमायुस्तस्य मनीषिभिः ॥३९॥ अोषदिनम् ॥
.-.ooobHOb.te
-
-
For Private and Personal Use Only
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www Robarth.org
Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir
-rotochira
व्य०
॥३४॥
मलानलानिलदितीन्द्रकरेज्य चन्द्राः पौणाश्विनीद्रविणकेशवमित्रचित्राः ॥खज्यभक्षणविषयौनिय नराणां नितन्त्यरिष्टशतमप्यचिरात्तनुस्थम ॥४०॥ य गोदये गरुवुधेन्दुसितेच तेषां वार रवेश्वसुविधौ । सुतिथौ सुयोगे ॥ जन्मर्कविष्टिरहितं त्वपहृत्य रोगान् कन्दर्पतुल्य वपुषं पुरुषं करोति ॥ ३१॥ पु यो हस्त तथा ज्येष्ठा विशाखा चोत्तराश्वितो ॥ शुभान्येतानि धिष्णानि वेधेवस्थीविरेचने ॥१२॥ अथ। रोममुक्ततानविचारः ॥ दशमी नवमो चेव प्रतिपञ्च त्रयोदशी। द्वितीया च विशेषेण कृच्छ्रस्नाने ! विवर्जयेत् ॥ हस्ते पुष्ये तथा शक सौम्यादश्विहरित्रये ॥ मायाद्रोगविनिम्मक्त आरोग्याय शभाप्तये ॥१३॥ निषिद्धेन्दौ व्यतीपाते भद्रायां विन्दभार्गवे। रिक्त तिथो चरे लग्ने स्नान रोगविमुक्तितः ॥ १४ ॥ चन्द्राशुद्धे व्यतीपाते भौमार्कशनिवासरे । व्रणमुक्तो व्याधिमुक्तः सदा-1 स्नानं समाचरेत् ॥ १५॥ ताराचन्द्रानुकलेहि यदा रोगैः प्रपीडयते । तदा दित्रिदिनं दुःखं न मृत्य ॥३१॥
-मिली--6-to-bit.dot
-cbir-
o
-
80
For Private and Personal Use Only
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
0-5IGrore..
म्भृत्युभेपि न ॥ १६ ॥ धर्मकम्मनिरक्तो यः सत्यवाक पथ्यभक्षकः स्वप्ननिद्रः स्वप्नरतिर्दीर्घ-* जोवी स एव हि ॥ ४७ ॥ यथा दयारामघरामरोभूत्खौआलवंशाम्बुजचित्रभानुः ॥ सदैव धर्मप्रतिपा
लनार्थं शास्त्रावलोको खलु दीर्घजीवो ॥ १८॥ पुत्रस्तस्य महामहेति सहितोपाध्यायपूर्वः कृती श्री- मन्नन्दनसंज्ञकः समभवत्तातायुरुयद्यशः। वक्ता वेदगुरोः समस्सुनिपुणोविद्याविवादोद्यमे नेपालक्षितिपाल दत्त मिथिलाभूमण्डलाखण्डलः ॥४९॥ तजाताः सप्तसप्तर्षसमाः स्वस्वगुणेन च। नानाविद्यानिधानास्ते न परद्रोहचिन्तकाः ॥ ५० ॥ एकस्तेषु सरस्वतीवरवलः श्रीभानुनाथाभिधश्चक्र चक्रधरं प्रणम्य शिरसा भूयः प्रसन्नाननम् । श्रीयुक्त व्यवहाररत्नमखिलं सत्पष्ठिवर्षाधिपः शाके : वहिनवाद्रिभूपरिमिते मासे तपस्ये शुभे ॥ ५१॥ मादानेकदेशस्य स्वग्रन्थे स्थापितापरैः ॥ मया । स्वदेशमावस्य व्यवहारः प्रदर्शितः ॥ ५२ ॥ आनुष्टुभ रेव कृतं समस्तं छन्दोभिरन्यैः क चिदात्म-10
Bio-07--16-
For Private and Personal Use Only
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वुद्ध्या । यत्तइटोरर्थसखार्थमेवं ध्रव न जानातु सहृन्मनीषिः॥ ५४॥ नाधीतं शब्दशास्त्रं नव्य०
वरसरुचिरं काव्यवर्गादिकं वा कोषो वालंकृतिर्वा स्मृतिरपि सकला तन्त्रविद्यापि नैव । वाणी॥३५॥
मात्रप्रसादादविकलमनसा शास्त्रसारं निरुक्त प्रध्वस्तं तत्र यद्यत्खलजनकुधिया सजनैः क्षम्यतान्त
त् ॥ ५५॥ * ॥ इति-खौआलकुलानन्दचन्दननन्दनोपाध्यायसुत-श्रोभानुनाथदैवज्ञविरचिते व्यकवहाररत्ने गृहागमनादिप्रकरणम् ॥ * ॥ शुभमस्तु * समाप्तश्चार्य ग्रन्थः ॥
TIPPANI KRIT, PRADARSHAKA, PANDITA, SADÁ SHIVA JHÁ. at, Parasurama,, P. O. Sukhapur.
District Bhagalapur. 6. JO. JAY KANL JHA.
-EDIOEDIOS-CD-O-AS-CDHA-ED
350.00CDSHEDIOSHOHIEOS
॥३५॥
For Private and Personal Use Only
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-0-5
hd-rb-09-
---
श्री गणेशाय नमः ॥ अय-ग्रन्थव हितबहूषकारिनिर्णयः॥ प्रथमादिमासोत्पन्नदंतफलम् ॥ मासे चेत्ययमे भवेत्सदशनो वाला विनश्येत्स्वयं हन्यात्स क्रमतोऽनुजातभगिनीमात्रग्रजान्द्वयादिके ।। षष्ठादौ लभते हि भोगमतलं तातात्सुखं पुसृतां लक्ष्मों सौख्यमथो जनौ सदशनोवोय स्वपिनादिहा ॥१॥ अथ प्रश्नलग्नाद्वैधव्ययोगमा॥ पष्ठाष्टस्थः प्रश्नलग्नायदों दुर्लग्ने क्रूरः सप्तमे वा कुजः स्यात् ॥ पू विदुः सप्तमे तस्य भौमो रंडा सा स्यादष्टसंवत्सरेण ॥२॥ अथ नाहीकटमा ॥ ज्येष्ठारौद्रार्यमांमःपतिभयुगयुगं दारों चैकनाडी पुष्ये दुत्वाष्ट मित्रान्तकवमुजलभं योनिबुध्न्ये च मध्या ॥ वाय्वग्निव्यालविश्वोड्युगयुगमथो पौष्णभं चापरास्याइम्पत्यो रेकनाड्यां परिणयनमसन्मध्यनाड्यां हि मृत्युः ॥३॥ अब यात्रीयों विशेषमाह ॥ नास्यामृतं न तिथिकरणं नैव लग्नस्य चिन्ता नो वा वारो न च लवविधिों मुहूर्तस्य चर्चा० ॥
नो वा योगो न मृतिभवनं नैव यामिनदोषो गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्वकार्येषु शस्ता ॥ ४॥ अथ शोधूलीलक्षणमाह॥ है पिंडीभूते दिनकृद्धमन्तत्तौ स्यादर्दास्ते तपसमये गोधूलिः ॥ सम्पूर्णाऽस्ते जलधरमालाकाले बेधा योज्या सकलशुभे का-21
र्यादौ ॥५॥ अथ. यावायां विशेषयोगाधियोममाह ॥ एको जेज्यसितेषु पंचमतयः केन्द्रेषु योगस्तथा द्वौ चेत्तेष्वधियोग ॐाएष सकला योगाधियोगः स्मृतः॥योगे क्षेममथाधियोगगमनं क्षेमं रिपूणाम्बधं चाथो क्षेमयशोवनीश्च लभते योगाधियोगे व्रजेत् ॥६॥
-
BHOO.AA
birat-BHO)
For Private and Personal Use Only
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
7-03
व्यक
तथा च कश्यपः ॥ पंचमे ज्ञो रविः षष्ठं वर्तते नवमे गुरुः ।। भाग्ययोगाभिधे योगे निहन्ता वैरिणां सहाः॥७॥ अथ कन्या-16 ॥३६॥
करणं (शकुनम् ) विश्वस्वातीवैष्णवपूर्वात्र यमैत्रै स्वाग्नेयैर्वा करपीडोचितऋक्षः॥ वस्त्रालंकारादिसमेतैः फलपुप्पैः मंतोयादौ स्यादनु कन्यावरणं हि ॥ ८॥ अब वरवरण ( तिलकम् ) ॥ धरणिदेवोथ वा कन्यकासोदरः शुभदिने गीतवाद्यादिभिः सरयुतः॥ वरवृति वस्खयज्ञोपवीतादिना ध्र.वयुतैर्वह्निपूर्बात्रयैराचरेत् ॥ ९॥ पूर्वात्रितयमाने यमुत्तरात्रितयं । तथा। रोहिणी तत्र वरणभगणः शस्यते सदा ॥१०॥ उपवीतं फलं पुष्पं वासांसि विविधानि च । देयं वराग वरणे कन्याभूला द्विजेन वा ॥११॥ चहलोस्थापनम् ॥ तुरगयमविशाखाब्राह्मथसौम्योत्तरेषु ज्वलनजलधनिष्ठामूलशूलायधेषु ॥ रविशनिकुजवारे चुडिका स्थापनीया ज्वलनशुचितधोरव्यञ्ज स्वादुकों ॥ १२ ॥ अथ सप्तसकारयोगो वास्तुकर्मणि ॥
शनिः स्वातो हरिल्लग्नः श्रावणः शुक्लपक्षकः। सप्तमो शुभयोगश्च बामे सर्वार्थसिद्धिदः ॥१३॥ श्रीपंचम्याः शकुनॐ भाषया ॥ सिंहाटार माण्डाटार भल नदि होय गिर नौ फार ॥ बडदा मतै खेत दहाय मरै बैल जो बैल पडाय ॥ १४ ॥
नास नसे तो नसे किसान लदहा टूटे हो मन हान ॥ कुर्द लादे बोले सोइ कहै डाक घर लछमी होइ ।। १२ ॥ इति शम्॥ S. S. J.
Stock-6-11to5.11.2-1
-2016
॥३६॥
----
-
.51
For Private and Personal Use Only
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1931
अथ बंशावली प्रदर्शकसंशोधकयोः॥ अखिलबरकलानां मैथिलोनां सदा यः शतलखय-स-14 तौलाख्योस्ति मान्योन्ववायः॥अभवदवनिदेवस्तत्र झोपाधिरिज्यः सकलकमदचन्द्रः श्रोत्रियो "रा-|
मचन्द्रः" ॥१॥ "नीलाम्बरो"ऽभूत्तनयस्तदोयस्तदीय आँखी"ति सभद्रशाखी ॥ "श्रीलालशर्मा" एतत आसुधा सत्कीर्तिचन्द्रोश्चितभालचन्द्रः ॥२॥ तत्तोको "रविनाथ" ईश इतवान्तत्सूननाऽऽ
लोकितं श्रीमद्धोर "सदाशिवेन' विदुषां तुष्ट्य कृता टिप्पणी ॥ शाब्दन्यायवराटवोबुधकरि-श्री| केसरी राजते यः को तस्य “यशोधरस्य विदुषः शिष्येण काश्याम्मुदा ॥ ३ ॥ जमुनी-जजिवाल-स-|
रोजविरोचनशास्त्रपयोधिसभादिपतेः ॥ तनयात्मजजेन धरापति कीर्तिधर"प्रतिपालितशास्त्रविदा ॥॥संशो०व०॥ पगलवाडान्ववायोद्भवो मैथिलो धरणिदेवोऽभव"द्भाइनाथो"महान् ॥ तनय
(१) तनयाया आत्मजजस्तन ) (दौहित्रपुत्रणेत्यर्थः)
-t6.POES-140-51
For Private and Personal Use Only
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य०
SID
इज्यस्तु “वच्चा" तदीयस्सुधीस्तनुज ईशार्चकस्तस्य कीर्त्या युतः ॥१॥ वेदचक्षुर्वराब्जेनसत्कीर्तिच॥३७॥"न्ट्रैकनाथ" प्रशिष्यः स्वमुद्रापयत् ॥ हिदिनागेन्दुशाके तपोवीध्रवाणे "जयादिः को कान्त"
इत्यार्यवित् ॥२॥ "प्रद० सं० वि०" ॥ भ्रमात्प्रमादतोपि वा सुधीधनैरनर्गलं प्रशोध्य पाव्यमत्र यत्कृपाकटाक्षसय्य तेः॥ कदापि गच्छतो महौयसः प्रपातनं यदि हसन्त्यसाधवस्समादधत्यलं हि सजनाः ॥३॥
POHSKO-CKS09-9-DAE
0 00-Of
5॥३७॥
-10-SHO
For Private and Personal Use Only
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
. 00 2101399309
विषयनामानि
मंगलाचरणं विशेषमास संज्ञा
तिथीशाः
तिथीनांविशेषसंज्ञा
सिद्धियोगाः निन्द्ययोगाः | दग्धतिथि: भद्राविचारः
भद्रावासः
www.kobatirth.org
...३
पत्रं पृष्ठः το
...३
१ १
१८ नक्षत्रस्वामिविचारः २ ३ नक्षत्राणां विशेषसंज्ञा ... ३ २ ५ ताराविचारः
...३
... ३ २ ६ दुष्टताराशान्तिः
... ३ २ ८ | चन्द्रावस्थितिविचारः ...४ १ १ मेपादीनां संज्ञान्तरम् ...४ १ ३ चन्द्रानयनम् ...४ १ ७ चन्द्रवर्णज्ञानम्
...
चन्द्रावस्थितिराशिविशेषेण भद्रावस्थितिः | चन्द्रतारावलकथनम्
प० पृ० पं० ... ४ २१ निषिद्धचन्द्रस्य शान्तिः ...४ २ ४ अथ घातचन्द्रम् ...४ २७ वारविचार: ...५ १ ३ अर्द्ध महराविचारः दिन कुयोगम् ६ समयाशुद्धिः
...५ १
...५
...५ १
| मन्दादियुगादिविचारः ...५ २ १ उत्पातविचारः ...५२३ वास्तुभूमिज्ञानं ...५ २ ५ | राशीनां वासस्थानम्
For Private and Personal Use Only
प० पृ०
...६ २८
...५ २
...६ १
... ६
पं०
१
...६ २
.. ६ २
... ७ १
... ७ १९
...७२ ६
...८ १
१
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
4 S1 S
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Hd.14.
प० पृ० पं| प. पु. ५०
प. पृ० पं०र०सू० ग्रामवासे धारोपधारज्ञानं ...८ १ ६ नक्षत्रविचारः ...९ २ ५ तिथविचारः नामराशितो ग्रामराशिविचार:८ २ . गृहारम्भे वारविचारः ...९ २ ७ नक्षत्रविचारः ग्रामचक्रविचार:: ...८ २ २ योगशुद्धिः ...९ २८ वामरविविचारः ग्रामनाम्नोव्वर्गविचारः ...८२५ सन्मुस्वराहु वि० .....१० : चुद्दिलकोपरि मृद्भाण्डस्थापनवि ११५ वर्गविचारः ...
८२ ७ गृहे शिल्पादिक्रियावि० ...१० १५ प्रवेशविधानमाह ...११ १६ शरविचारः ...८ २ ९ गृहकरणाथ वास्तुवि० ...१० १९ गृहदेव्याःस्थापनविधिः ...११ १८
वास्तौ दिशाविचारः ...९ १ १ लग्नशुद्धिः ..... २२ गृहसमीपे शुभाशुभक्षकथन...११ २७ (गृहारम्भे मासविचारः ...९ , ४ सामान्यतोगूहशुद्धिवि० ...१० २ ४ वृक्षरोपणदिवसमाह
पक्षशुद्धिः ....९ १ ७ गृहप्रवेशवि० ....१० २५ हलप्रवाहेतिथिशुद्धिः ...१२ २ तिथिशुद्धिः ...९ २ १ मास विचारः ...१० २ ८ नवानभक्षणवि० ...१२ २७ॐ
-SHro-मत-नि-5...
॥३८),
For Private and Personal Use Only
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
C
प० पृ. पं०
प० पृ० पं०
प० पृ.पं० विनिपिद्धविचारः ...१२ २९ व्यादिवारेसंक्रमणफ. ...१४ १४ गजदन्तच्छानदिर T अथ नूतनताम्बूलभक्षवि० ...१३ , २ पूर्वाहादिषुसंक्रान्तिफ. ...१४ १६ मंत्रगृहणदिवसमाह
धान्यादिमर्दनस्थान ...१३ १४ पण्यकालव्यवस्था ....१४ २ १ नक्षत्रशुद्धिः अमेधिस्थापनविचारः ...१३ १६ प्रथमहट्टावासचवि० ...१५ १ १ मैत्रोकरणदिक
कणमदनार्थदिवस वि. ...१३ २१ अस्य फलविचारः ...१५ १४ विवाहतिथिः वीजरक्षणदिवसविः ...५३ २ : क्रयविक्रयवि० ...१५१८ गणविचार: गृहादीधान्यादिस्थापनवि० ...१३ २५ द्रव्याणामृणदानप्रयोगवि० .... योनिविचारः धान्यनिष्काशनबिल ...१३ २७ गवांक्रयविक्रयवि० ...४५ २४ वधूप्रवेशविचारः वृद्ध्यर्थधान्यादिप्रक्षपदि० ...१३ २ ९ बाजिनांक्रयविक्रयवि ...१५ २७ द्विरागमनं धान्यादिमूल्यज्ञानार्थवि० ...१४ १ २ | अश्वादियानारोहणं ...१६ १२ नवोनशय्याचारोहण
For Private and Personal Use Only
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य०
र०सू०
॥३॥
उद्वर्तनादिवि
HEREDIENॐHS-
16
प. पृ० पं० प० पृ००
प. पृ० पं० ...१९१९ खीणां केशवन्धनदि० ...२०१८ नक्षत्रविचार: वस्त्रप्रक्षालनवि० ....१९ २१ 'आयरजोदर्शनवि० ...२०२३ पुंसवनं ...२१ २ ९ तैलाभ्यंगवि० ___...१९ २२ प्रथमतौंपरिधानवस्नफ० ...२० २७ सोमन्तकर्मवि० पैलाभ्यंगे निषिद्धविचार: ...१९ २४ वेलाफलम् ...२० २९ गर्भाधानसमयवि० ...२२ १ ३ तुंसां वस्त्रधारणदि. ...१९ २६ शोणितवर्णफल । ...२१ १ ३ सूतिकागृहनिर्माणवि० ...२२ २७
पंसां भूषणपरिधानदि० ...१९ २ । स्थानफलम् ....२१ १६ शिशोम्मीत्तुस्तनपानवि० ...२३ १ २ हस्रीणां बसपरिधानदि० ...२० १ १ स्नानविचारः ....२१ १ ८ शिशूनांपालनाश यनदि० ...२३ १५ 1 खीणां भूषणपरिधानदि० ...२० १ ४ गर्भाधानवि० ....२१ १९|शिशोर्नामकरणं @ निषिद्धदिवसवि० ...२० १ ६ विहितदिनानि ....२१ २ ४ | दोलाझ्यारोहणं
आयपाकारम्भमैथुनदि० ...२०१७ तिथिविचारः ....२१ २५ ताम्बूलदानदि०
॥३९॥
Fer Private and Personal Use Only
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
प० पृ० पं०
COMEDHCRED-CHECREDIEDIO
प. पृ०५० शिशो हान्निष्क्रमणदि. ...२३ २७ अथ गुरुशुद्धिः ...२५ १३ | अथ प्रदोषलक्षणं शिशुनांभूम्युपवेशनं ___...२३ २८ अनिष्टगुरुशान्तिः ...२५ १ ५ | अथाकालवृष्टिलक्षणं अथानमाशनं ...२४ ११ अथ रविशुद्धिः ...२५ १७ अथ लग्नशुद्धिः शिशोरावक्षारदि. ....२४१४ अथ मासशुद्धिः ...२५ १९ अथ विद्यारम्भः नित्यक्षारदि० ....२४ १ ७ अथोपनयनेचैत्रप्रशंसा __...२५ २६ अथ धनुबिद्यारम्भः आथाद्यश्मश्रुकर्म ...२४ २१ अथशाखाधिपवलम् ...२५ २७ | | অথ ফুল্কিাৰখন कर्णवेधः
...२४ २ २ अथ तिथिशुद्धिः ...२६१३ | अथ राजाभिषेक: |अथाक्षरविद्यारम्भविचारः ...२४ २४ अर्थ नक्षत्रशुद्धिः ...२६१ ४ | अथ मासशुद्धिः अथोपनयनदिवसविचारः ...२४ २८|अथ तत्कालिकानध्यायः ...२६ १५/ अथ तिथिशुद्धिः अथवात्यकालवि० ...२५ १ १ अथ गलगृहलक्षणं ...२६ । ८ | अथ नक्षत्रशुद्धिः
-6013-06-5-Hoctorbi
...२६
-E-HOD
-90
For Private and Personal Use Only
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्य०
120
DARB-DEO-00-0-0-60-60
प. पृ०० प.पृ०५०
प० पृ. ५० अथ वारशुद्धिः ...२७ २७ अध गृहयोगेन यात्रावि० ...२९२६ अथ देवतापट्टनमा० ...३२ १७ fb अथानन्दादियोगः ...२८११ अथ यात्राव्यवस्था ...३० १९ अथ गोचरवि०
अथानन्दादियोगानयनं ...२८ १४ अथे शकुनाः ...३० २६ गोचरप्रमंगात्पल्लीपतनशरटा
अथराशिभेदनदिक्षचंद्रावस्थिति:२८.९. अथापशकुनाः ...३१ १ २ वरोहक. ... ...३२ २५ ह अथ लालाटिकयोगः ...२८ २ ३ अथ नौकायानं.
अथयोगिनीवि० ...२८ २६/अथनृपदर्शनं० ...३१ २ ६ अथगेगोत्पत्तोक्लेशदिवस वि०३३ १८ अथ राहु विचारः ...२१ १ . परदेशगः कदा समागमिष्यति अथ निश्चितनिधनकारयोगा...३३ २ २ अथ वार राहु वि० ...२९१८] अस्योत्तरं ... ...३१ २ ७ अथोत्यातपोनिष्टकालम् ...३४ १४
यामाचराहवि ...२०२२ पुष्करण्यादिखननदिवसमाह...३२ १ २ अथोपधदिनम् राहुयक्तयोगनीयलवि०...२९२४ अथ तिथिविचारः ...३२ १ १ | अथ रोगमुक्त स्नानवि० ...३४
-SHOD-bit.ooo-h
-chid
11201
For Private and Personal Use Only
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
13. अऊ ०७- 1- G
प० पृ० पं०
प्रथमादिमासोत्पन्नदन्तफ० ३६६ १ १ गोधूलोलक्षणं
...३६ १ ३ ...३६ १४ ...३६ १ ७
प्रश्न लग्नाद्वैधव्य यो० नाडीकूटम् यात्रायां विशेषयो०
www.kobatirth.org
यात्रायां योगाधियो० कन्यावरणं (शकुनं ) वरवरणं (तिलकं )
१० पृ० पं० ...३६ १ ८ चुलीस्थापनदि० ...३६ १ १० वास्तौ सप्तसकारः ... ३६ २ १ श्रीपंचमी हलफ० ...३६ २ ३ वंशावली
( इतिव्यवहाररत्न - सूची ) ॥
For Private and Personal Use Only
प० पृ०पं०
...३६ २६ ...३६ २७ ...३६ २८
...३७ १ १
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-09-191991991991
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
31
व्य० 112811
-0.13-03952-36V
6H-
561
-ON
112 211
-
E
For Private and Personal Use Only
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobabirth.org
Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir
120Korot-
kook
For Private and Personal Use Only
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
7404KOKANY
इति व्यवहाररत्नम्। "परसरमा" राजधान्यधिप-रा० कु. बाबू-श्रीमत्कीर्तिधरनारायणसिंहविजयपालित-पं० वर-श्रोसदाशिवशर्म"प्रदर्शितरीत्या वनैली-राजज्यो०
श्रीमजयकान्त-शर्मणा शोधितम् ॥ मूल्यं ॥
RAKA4%E0%OKARAM.
For Private and Personal Use Only
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only