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॥ श्रीः ॥
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॥ श्रीवृधिरत्न-माला ॥
कर्ताश्रीबृहत् खरतर जट्टारक श्रीजिनचन्द्र सूरि आशानुगामी पण्डितप्रधान
श्रीवृझिरत्नमुनि अधिष्ठाता -जेशलमेर निवासी।
जिसेरतलाम ( मालवा) निवासी श्रीमान दानवीर रायसाहब श्रेष्ठिवर्य
श्रीकेशरीसिंहजी साहब की आज्ञा से श्री जंगमयुगप्रधान श्रीजिनदत्त सूरि आनंद चं पाठशाला के सेक्रेटरी हंसराजजी सोढा (लालन) ने श्री जैन प्रत्नाकर प्रेस, रतलाम में उपा के प्रसिद्ध की। वीर संवत् २४
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॥ श्रीजिनायनमः ॥
॥अथ स्तवन लिख्यते ॥ श्रथ निनाणु यात्रा को चोढालिया लिख्यते
॥ दोहा॥ वामा नंदनवदिये अश्वसेन कुलचंद ॥ सप्तफणे धरी सोहता सेवेसुरनरवृंद ॥१॥ जिनवर अंगे नाषिया तपजपविविधप्रकार॥ यात्रा निनाणुंसारिखोश्रवरन कोई उदार. ॥शाजनवियण सेवन करे जात्रानिनाणुं जेह ॥ विधिसहित वंदन कर शिवसुखपामेतेह ॥३॥ प्रथम पवित्रतन कीजिये धरिये निरमल ध्यान॥ नवप्रदिक्षणा दीजिये चैत्य वंदन नवजाण ॥४॥ प्रतिक्रमण राई देवसी देव वंदन त्रणवार ॥पाकोपाणी पीजिये लक्ष जपोनवकार ॥५॥ षष्टम अष्टम तप करो चढते चित्तउदार ॥ ब्रह्मचर्यव्रतपालवो जूश य्या सुविचार ॥६॥ पूजा श्रष्ट प्रकार की करिये विधि बिस्तार॥वरघोमो जलयात्रा शक्तिके अनुसार ॥७॥ गुरु मुख ज्ञान सुणी की श्राविका सुझान ॥ सणगार साध्वी संघलिया धरयो प्रजुको ध्यान ॥७॥ संघवी सेठ बहुफणा सौजाग्य नार्या सुजा
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( 2 )
॥ रूपकुवर रंगकरि यात्रा निनाएं जाए ॥ ए॥ || ढाल पहिली ॥
वोलेरे पपईया दांजीरे पियुलारे गाढा मारू कोयलगी तो वागांरी रूखवाल ॥ एदेशी ॥
थलवट देशमें हांजीरें दीपतोरे मोहन मोरा जेसा में श्री जिनराज ॥ गढ मढ मंदिर हांजीरे मालियारे मोहन मोरा देख्यां तोरेनयण लोजाय ॥ १ ॥ प्रथम नेटो हांजी महावीरजी रे मोहन मोरा शासण रातो प्रभु सिणगार | पंदरेसेने दांजी इक्वासयेरे मोहन मोरा वरढीयां तो करायो प्राशाद ॥ २ ॥ समरे सासुत दांजी मूलराजजीरे मोहन मोरा जोतो जराया जिन - बिंब ॥ दोय सो पचानु दांजीरे जाणियेरे मोहन मोरा गौतमनेरे गणधर संग || ३ || कोटीक गच्छ में हांजी गुरु सोवतारे मोहन मोरा दीपेश्री जिन कुशलसुरिंद ॥ भविरण भेटो हांजी गुज जावसुरे मोहन मोरा ज्युं सुखपाये थांरो शरीर || ४ || जब २ दीजे हांजीरे मोजणी रे मोहन मोरा चरण कमलरी सेव ॥ वृद्धिचंद प्रभु हांजी जल जेटियारे मोहन मोरा सलादे सुत जिनराज ॥ ५ ॥
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(३)
ढाल दूसरी॥ गोरोनहार लोंगारो सुहावे जेरी परमलमहलामें आवे
॥ हालरीयेरी देशी॥ श्रव आदि जिनेश्वर पूजो इण समानही देव दुजो ॥ पंदरेसे न तीसे गणधरचोपमा सुजगीसे ॥१॥ सञ्चाधर चैत्य करायो एतो पुण्ये अचल रहायो॥ दीजे प्रदक्षणा सारो देवाधिदेव जुहारो ॥२॥ जिनबिंब छ सो सातो हस्ती पर मरुदेवो मातो । सिकाचल ममण स्वामी जगजीवन अंतर जामी ॥३॥ढूंतोरे चरणे आयो मनडामें वर्ष सबायो॥ तुम गुण को पारनावे जो सहस्रजीव्हकरि गावे ।। श्रीचंना प्रत्तु चित वसिया मेरा हदय कमल जलसिया ॥ जिनतिन नुवन जहारिया भेटता का. रज सारिया!!५॥पंदरेसे नेवली पंदरे लणशालीलान लीयो धनरे । सोले से ने पेंतालो जिनबिंब चकुसे जालो ॥६॥ अष्टापदतिर्थ राजे तिहां कुंथु जिनेश्वरबाजे॥पंदरे से ने उनीस एतो चोपमा गोत्रभेदी से ॥७॥चारूं खुटे गौतम स्वामी में लेट्या अंतर जामी ॥ सतचारके उपर जाणो चालीस ने चार वखाणो॥॥ अचिरा सुत उपर सोहे मूल नायक तन मन
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( ४ )
मोहे || प्रभु शांति जिणंद सुखदाई निरखंतां पाति क जाई ॥ ९ ॥ संखवाल गोत्र मेंरा जे खेतो वीदो संघवी छाजे ॥ थाप्याजिनबिंब रसाल आठ सोने चार विशाल ॥ १० ॥ गणि सत्य विनय गुरुराया मुनिअगरचंद मन जाया ॥ एतो वृद्धिचंद गुण गावे कर जोमी शीशनुमा ॥ ११ ॥ ॥ ढाल तीसरी ॥
|| देशी गणगोरकी ॥
संजव जिनवर सेवी ये जिनबिंब छसो चारदेलो ॥ चवदेसे सतियासीये एतो करी प्रतिष्टा सारदेलो ( संज० ) || १ || श्री जिन नद्रसूरिश्वरू जिनथाप्योज्ञान जंडारहेलो || पांचेसाने परचोदीयो जिएली धोलक्ष्मीनो लावो हेलो (संज० ) ||२|| शीतल जिन बंदोसदा मूल नायक शांति विराजे देखो । संकट दरण संकटदनवमापार्श्वबाजे हे लो ॥ शीतल ०|| ३ || पंदरेने यावे समे बिंबथाप्या चारसोती सहेलो ॥ मागा गोत्र में दीपता सा लुंग मुंणने धन्न हेलो ॥ शीतल ०॥४॥ वीसविदमानवंदिये तीनपाट नंदी श्वरराजे हेलो | सिद्धगिरि पाटसुदामणो तेने बंदू वे कर जोमी हेलो || विस०॥२॥ पार्श्व प्रभु प्रणमुंसदा एतो
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(५) बावन जिनालो चैत्य हेलो॥ बारे सो बारो तरे प्रजू थाप्या नयोउयोत हेलो॥ पार्श्वगा॥संघवी सेठीये चोलेसा जस लीनो जगत में जोय हेलो ॥ वारे सो पावन जला बिंब तोरणसुधा जोय देखो॥पार्श्वगा॥ गुरु गौतम ने नितनमुं मारे सद गुरु सदा सहाय हलो ॥ शासणरीसानिधी करे सदा नैरव चक्रेश्वरी माय हेलो ॥ पार्श्व ॥6॥
॥ ढाल चौथी॥ ॥ श्राज गई थी समोवसरण में ॥ एदेशी ॥ ___यात्रा निनाएं किनी जुगतसुं उसट नाव मन श्रांणीरे ॥ बहजार उपर क्यासी जिनबिंब सगला जोईरे ॥ जात्रा ॥१॥ रंग मंमपरलियामणो रचियो उणमें नाटक वणियोरे॥ काचकाम सोनेहरी सांचो जाणे मिनोज मियोरे॥ जात्रा॥२॥अगाई महोत्सव किनो उमंगसु धवल मंगल वरतायारे ॥ सत्तरजेद पूजा जणीसुंदर शाली जाण नृप धायारे॥ जात्रा॥३॥ फागुण वदि दशमी सिझियोगे श्वस्तिक मंगल की नोरे॥अष्टव्य से पुजन करके नरनवलावोलिनोरे॥ जात्रा ॥ ४ ॥ सातश्राविका रूपकुंवरसंग यात्रा
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करिहर खारे। चांदमल उदार चित्तसुं नक्तिकर दिखलारे ॥ जात्रा॥५॥ आणंद हर्ष वधाई अनोपम फूल फले अब जोरे ॥ ज्ञान गुरु की नक्ति करतांमन इच्छा फल होरे॥ जात्रा॥६॥ खतरगच्छ नट्टारक सुखकर श्रीजिन मुक्ति सृरिंदारे । तत्रट्टे जिनचं सूरिश्वर गजित जाणे दीणंदारे ॥जात्रा ॥७॥ नमसूरिशाखा अति उत्तम सत्य विनयसुखकारीरे । अगरचंद गुरु के चरणांकी नक्ति न्हदयं में धरोरे जात्रा० ॥॥ वृद्धिचंद प्रजू गुण गाया यात्रा करी हरखायारे ॥ परमपुरुष परमेश्वर पुजो श्रीजिनराजवतायारे ॥ जात्रा० ॥ए ।सयनगणीसे वासठ वरसे चैत्र कृष्ण पक्ष मांहिरे॥ दशनी दिन जिनराजकृपासु अनुपम दोलत पारे ॥ जात्रा निनाणुं करी जुगतसं उलट नाव मन आणीरे ॥ इति चौढालियो संपूर्णम् ॥ ॥श्री लोद्रवपुर श्रीचिंतामणी पार्श्व जिन स्तवन लिख्यते ॥
॥ देशी काछबेरेगीतरी॥ चालोसहियां लुभवपुररी जात पार्श्व पुज
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(७) सांजीरे॥ चालो सदियां लूज्वपुररीजात श्रीरचिंता मणि पार्श्वपुजसांपुजसां रेमहाराराज ॥१॥पुजो देवा प्रथम जिणंद पार्श्व पुजसांजीरे। गुजो। अजित सजव जिननेटिया जायमुरे महाराज ॥२॥ परचाधारी अधिष्टायक अदि देव । पार्श्व॥ थानतणी तीहां थापना थिरथापना रे महाराराज ॥३॥ त्रिगडे सोहे श्रष्टापद महाराज। पार्श्व चत्तारीअठदश दोय बंद्या चोवीसजीरे महाराराज ॥ ४॥ कल्प वृक्ष फुले फले सहित ॥ पार्श्व जाली हे नत्र शिर सोडतो मन मोह तोरे महाराराज ॥५॥ सहस्रफणा श्री चिंता मणि महाराज॥पार्श्व॥श्यामवरणे प्रत्नजी सोदामणा रलियामणारे । महाराराज ॥६॥तोरण तणीदे. खो तजबीज ॥ पाश्व०॥ उपर प्रनूजी विराजिया दोनुबाजुरे महाराराज ॥७॥ पगथ्यां चमतां पातिकजाय। पार्श्व० ॥ चिंतामणि चिंताहरे वांवित फलेरे महाराराज ॥ ७॥ म साली भलथाहरू कुलनाण । पावा जिणो चैत्यकरावियो सुखपावियोरे महाराराज ॥ ए॥ शिखरबंधरथ अतिसोनाय । पार्श्वक। शेजेजे संघौकरावियो पधरावियोरे महा ॥१॥ नैरववीर हाजरखमा हजूर ॥पार्श्व ॥ समरे ज्यांरी
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(८) सानिधीकरे संकट टसेरे ॥ महाराराज ॥११॥ दादासाहब श्रीजिनदत्त सूरिंद॥पार्श्वा कुशक्षकरण कुशलेसरु । गूरु मुरतीरे ॥ महाराराज ॥ १२ ॥ प्रन् जीरी महिमा वरणीनजाय॥ पार्श्व० ॥ कलहलते जे जलहले जिनराजजीरे। महाराराज ॥ १३ ॥ नृप जेसाणे रावल श्री गजसिंह ॥ पार्श्व॥ हीरोइनकी चमावियो फल पावियोरे महाराराज ॥ १४॥ वामसुत श्री चिंतामणि महाराराज॥ पार्श्व०॥ वृद्धिचंद करी विनती सुणली जियेरे ॥ महाराराज ॥ १५ ॥ जगणीसे पंचावन शुनमास ॥ पार्श्व० ॥ नावसुदि दशमी दिने देवीकोटमेरे ॥ महाराराज ॥ १६ ॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥ ॥श्रीवरमसर पार्श्वनाथजीरी
लावणी लिख्यते ।। पाश्वप्रनू पुजो सुखदाई ॥अशुन कर्म हटजाय पलक में प्रजूजी वरदाई ॥ पार्श्व ॥१॥ बाणारसी नगरी में जनम लियो । तव देवंगना थाई। जनम महोत्सव कुबरी करके अति आणंद पाई ॥ पार्श्वः।। ॥२॥ ईशादिक सहु देव मिलीने मेरू गिरजाई॥
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(६) क्षीर समुन से कलशा नरके स्नात्र वणवाई ॥ पार्श्व० ॥ ३॥ अठाई महोत्सव प्रनुको करके निज थानक जाई ॥ अश्वसेन वामाके छारे बटरही बधाई ॥ पार्श्व० ॥ ४॥ परमजोति मुख चंड विसोकित देखत मुख जाई ॥ केवल ग्यान उपाय जिनेश्वर मुक्ति रमणी पाई ॥ पार्श्वग ॥५॥ पुण्य वंत पुनमके सूरज पुजन बणवाई ।। श्रावक और श्राविका मिलके नक्ति दिखलाई ॥ पार्श्व० ॥६॥ जप सूरि शाखा खरतरगच्छ जट्टारक आई ॥ वृद्धि चंड पारस प्रतु नेट्या ब्रह्मसरमाई॥ पार्श्व० ॥७॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥
॥ उधोमोहनजीकणा एदेशी॥ चिंतामणि पार्श्व मेरामें दासहूं प्रजुतेरा। दरशणकुं जीया मेरातरसे जेरा जाग्य उदयजोफरसे॥चिंता० ॥१॥प्रनु मामदेश में राजे जिन लुश्व पुरमें विराजे॥ अश्वसेनजीके चंदा वामा देवीके नंदा॥ चिंता ॥॥ श्याम वरण प्रज तन सोहे। अजी निरखत सब जन मोहे ॥श्री संघ यात्री आवे अष्ट उव्य से पूज रचावे ॥ चिंता ॥ ३ ॥ चिंतामणि पार्श्व
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(१०) ध्यावो सुख संपत्ति आणंद पावो ॥ वृद्धिचंद प्रछु गुणगाया में रतन चिंतामणि पाया ॥ चिंता ॥४॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥
॥ अथ लावणी लिख्यते ॥ श्रीश्रादि नाथ महाराज नवो जव दमकुं दर शण दीजे ॥ श्री आदि० ॥ प्रजमोरा देवी माता जाया तोरे पिता नानिजोराया। तुम जन्म अयोध्या पाया जिहां अशाणी आया ॥ तिहां जन्म महोत्सव करके। परम आणंद सुख तिहां पाया। श्रीआदि० ॥१॥ देव जल जर कंचन लाया। प्रजुजीको नवण कराया। फेर केशर चंदन घसाया नव अंगे अंगीय रचाया। तिहां धूप दीप नैवेद्य आरतो नाटक खूब बणाया ॥श्री आदि० ॥२॥ श्ण विध महोत्सव करके । देव गये श्रापणे घरपे । सब जीवन को मन हरखे प्रनु लीनो संयम धरके। कर्मोकुं काट मुख जाल मोद मारगकुं हीया में धरके ॥ श्रीश्रादिः ॥३॥ण विधीसे जेनर ध्यावे सुख संपत्ति आनंद पावे दूबध्या सहुरे जावे जेरा जन्म मरण मिटजावे । देवी कोट चौमासी पूनम
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( ११ )
दिवसे वृद्धिचंद गुण गावे ॥ श्री आदि० ॥ ४ ॥ इति लावणी सम्पूर्णम् ||
॥ राग सोरव मल्हार ॥
क्या हठ की नोरी सहीयां नेमी कीनो गुमान ॥ क्या ० ॥ १ ॥ विन अवगुण क्युं तजीरे सांवरा जैसे पाको पान । अष्ट भवन की प्रिती हमारी नव मेरोसन आण || क्या इ० ॥ २ ॥ पशु छोमाय चले रथ फेरी दीनो संवत्सरी दान || सहसा बन में संयम लिनो धरयो तुम निश्चल ध्यान || क्या ह० ॥ ३ ॥ मेरे मन पतु ध्यान तुम्हारो छाब कटु देवो दान | वृद्धिचंद कहे धन २ राजुल प्रभुजी दीनो सन्मान || क्या हठ कीनोरी सदीयां नेमी की नो गुमान ॥ क्या० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
|| देशी वधावेरी ॥
याज दीवस रलीयांमणो धन्यघमी धन्यजाग सजनी मेरीए ॥ श्राज० ॥ १ ॥ प्रथम जिनेश्वर पुजसां यदि नाथ अरिहंत || सज० ॥ नाजिराय घर चांदलो मोरादेवी मात सुजाण ॥ सज०॥ याज ॥ २ ॥
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(१२) सोलम जिनवर सेवीये शांतिनाथ सुखकार सजा सेवंता संकट टले जपतां जय श् कार ॥ सजा आज ॥३॥ यादव कुलमें जाणीये समुह विजयजी कानंद ॥ सज०॥ नेम जिणंद दया करी पशुवांको काव्यो फंद ॥ सज० ॥ आज ॥४॥ कमविडा रथोपाशजी उपगारी अरिहंत ॥ सज० ॥ नय। वणारसी सोहता अश्वसेनराजाण॥सजण ॥आज० ॥५॥ चोवीसम महावीरजी शासणरासिणगार ॥सज०॥ गौतमगणधर प्रणमतां लब्धितणानंडार ॥ सजा ॥ आज ॥ ६ ॥ गावोवधावो नावसं मोतीये चोक पूराय ॥ सज०॥ वृद्धि चंकहे नितनमो घर २ मंगलमाल ॥ सज० ॥ आज ॥७॥ इतिपदं संपूर्णम्॥ अथ श्रीचिंतामणी पार्श्व
जिन स्तवन ॥ ..॥ देशी वालेसरे गीतरी ॥
पश्चिम दिशतीर्थ युवपुर चावोहोहो मंदिर पांचा में श्राप विराजो श्रीजिनेश्वर मुखरा दरश दिखावो महाराराज ॥१॥ नाजिराय मरुदेवीका
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नंदन नेटोहोहो । सोवन कायारा जगतारक श्री जिनेश्वर मुखरा० ॥२॥ अजितनाथ युग्मतिर्थंकर ध्यावोहोहो॥ विजीया नंदन अघकाटन॥श्री जिनश्वर मुख० ॥३॥ पुजो प्राणी सेना सुत गुण गावोहोहो ॥ संजव स्वामी अंतरजामी॥ श्री जिनेश्वर मुखरा० ॥४॥ सहस्रफणा जिन वामा सुत सुखकारीहोहो॥ अहि उत्रधारी बी प्यारी ॥श्री जिन मुख० ॥५॥ अष्टापदतीर्थ चौमुख चोबोसेहोहो ॥ त्रिगडे सुरतरु मनमोहे ॥ श्री जिने मुख०॥६॥ चिंतामणी मूलनायक चिंता चुरोहोहो॥ अश्वसेन जीरा छावाहो ॥श्री जिने. मुख० ॥ ७॥ मस्तक पर प्रनु केनीका मुकट सुहावेहोहो ॥ कुंभल कानां में ऊलकावे ॥श्री जिने० मुख० ॥ ॥ प्रनुजी तो दिन में तीन स्वरुप वणावेहोहो साचे चित ध्यावे फल पावे॥श्री जिनेण्मुख०॥ए॥ दादाजी जिनदत्तकुशल गुरुदेवाहोहो॥मूरत्तिसमरयांफलदाता॥श्री जिनेन् मुख०॥१०॥ अष्टायक भैरवकाला और गोरा होहो॥परतिकमणिधारी सांवला॥श्री जिनेण्मुख ॥११॥ सन्मुख तोरण के फरस्यां पातिक जावे होहो॥ तिलकेपर पद्म आसण ॥श्री जिने. मुख०
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॥१॥ जात्री बहु थावे नविजन नित ध्यावे होहो । पुजरचावे तन मनसुं॥ श्रीजिने मुखरा० ॥१३॥ प्रतिदिन उत्सव की महिमावरणीन जावे होहो॥ मुक्तिद्वारे का मालक ॥ श्री जिने मुख०॥ १४॥ वृद्धिचंद जिनवरकुं निश दिन ध्यावेहोहो॥तेजकविजिनराजस गावे॥श्री जिने मुख०॥१५॥ उगणी से समसठ पौषसुदशशी दूजो होहो ॥ एपद गाया सुंभव जलतारे॥श्रीजिनेश्वर मुखरा दरश दिखावो महाराराज ॥ १६ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥राग आशावरी॥ ॥अब मोहेमरहेरे उसदिनका । तजदे जरम सबमनका ॥ काची माटी काचा नांडा । संचित लागे ठणका ॥ अव॥१॥ यतीयोगी तपसी सन्यासी सब पाणीके पनका । काल आहेमी फिरत सर साधे दावपमे मृगवनका ॥ अब०॥शा मेरी: करत सबकुंठी जेसे स्वपन रयणीका । श्राखर लेखा पूरा होयगा ज्युमालाके मणिका ॥ अब० ॥३॥ तप जपदान शीयल संमय. वृत. पालो सफल होय जीयका ॥ वृद्धिचंद नजो जगवतकुं । सुखपावो
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(१५) शिवपुर का ॥अब मोहेमर हेरे उसदिनका तजदे नरम सब मनका ॥ ४ ॥ इति सम्पूर्णम् ॥
॥ देशी गोपीचंदरे ख्यालरी ॥
॥ श्राजतो सहरमें सहीयांहर्ष वधावो ॥ नेम कुंवर अब आसीहेलो॥आज तो० ॥ समुप विजय शिवा देवीको नंदन यादव कुल अजु वालो हेलो ॥ आजतो.॥१॥ नेमकुंवर अब तोरण आया पशुवांकी सुणीहे पुकार हेलो ॥ आजतो० ॥२॥ जीवनकी जब दया जोआंणी । ओसंसार असारहे लो॥ जतो०॥३॥ तुर्ततज्या सब तनका आनुषण चमगया गढगिर नारीहेलो ॥आजतो० ॥४॥राजुल कहे जननीयोग धरीने प्रितम पासे मेंजासुहेलो ॥ आजतो०॥५॥ मात पिता जब आग्याापी चमगई गढ गिर नारीहेलो॥ आजतो. ॥६॥ नेम राजुल दोनोमुक्ति सिधाये पहलीराजुल नारीहेलो॥ श्राज तो०॥॥ नर नारी प्रनु नित प्रतिध्यावे वृद्धिचंद गुण गावेहेलो ॥ आजतो० ॥ ७॥ नगणी से पेतालीस वरसे । ज्ञानपंचमी गुरु वारहेलो ॥ आज तो सहर
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(१६)
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में सहीयां हरख वधावो नेमकुंवर श्रवासीहेलो॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥ ॥ देशी गोपीचंद रे ख्यालरी ॥
अजितजिणंदा मोरी अरजसुणि जो पुरोमनमारी आसहेलो ॥अजि० ॥१॥आपवसो प्रजुमोक्ष नगरमें।में श्णजरत मकारहलो॥अजि० ॥२॥ काल अनंत रोएकंजी तरु साधारण पामीहेलो॥अजित ॥३॥ सुरनर तिरिवली नरकतणीगत । पाभीढुंपण हारयोहेलो ॥ अजितः ॥३॥ तुसमरथेप्रजुसुरतरुसरिखो। जिणसुतुऊनेजाच्योहेलो ॥ अजित० ॥५॥ वृद्धिचंद करेअनुविनती दीजो सुखनोवासहेलो ॥ अजित जिणदामोरी अरजसुणीजो। पुरोमनमारी थासहेलो ॥६॥ इति पदम संपूर्णम् ॥
॥ देशी फुलमनी रे गीतरी॥ श्रीजिनभेटिये जीहोके नविजनभेटो चित लगायके ज्युं सरसी सघला काज॥श्रीजिन ॥ नवि० मामदेशके मध्यमें एतोजेशलमेरु सुथान ॥श्रीजिन॥ ॥१॥ नवि० संघवीसेठ बहुफणा शुज पटवादेशे प्र. सिझ॥श्रीजिना जवि रतनपुरी रलीयामणीएतो
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( १७ )
मालवदेशे जाए || श्रीजिन० ||२|| जवि० पूनमचंद दीपचंदजी सौजागमल ने चांद ॥ श्री जिन० ॥ जवि० चांदमल राय केशरी सुतपुरणकलाप्रवीण ॥ श्री जिन० ॥३॥ जवि० चांदमल जाय जणुं यदकुंवर ने फूल ॥ श्री जिन० ॥ भवि० आणंद जावउलटियो अब जेहूं श्री गिरि राय || श्री जिन० ॥ ४ ॥ जवि० केशरीमल मांगोतने तब मेल्यो अहमदाबाद | श्रीजिन० ॥
वि०क्रपामुनिमहाराजने विनती करवाने काज ॥ श्री जिन० ॥ ५ ॥ जवि० आणंद लिनी श्राखमी मेरे दूध धीरतका त्याग श्री जिन० ॥ जवि० गुरु उपयोगी गुणेभरथा जब देख्यो लाज अपार ॥ श्रीजिन० • ॥ ६ ॥ जवि० सिद्ध क्षेत्र नेटण जणी तब विहार कियो ततकाल ॥ श्रीजिन० ॥ जवि० ग्राम नगरपुर विचरतां साधे समुदाय सवयोग ॥ श्री जिन० || ७ || जवि० संवेगी मुनिवर जला गुरु करे धर्म व्योपार || श्री जिन• ॥ जवि० जीवदया पाले सदा फिर संयम सत्तर प्रकार ॥ श्री जिन • ॥ ८ ॥ जवि० बारे नेदे तप तपे देखो एसे पगार ॥ श्री जिन० ॥ जवि० पालीताणे पधारिया जब नेट्या श्री गिरिराय || श्री जिन० ॥ ६ ॥ जवि०
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(१८) आणंद अति हर्षे करी श्राव्या दरशणके काज ॥ श्रीजिन ॥ नवि० सुदि आशाढत्रयोदशी शुजलग्न लियो तिहां साज॥श्रीजिन ॥१०॥ नवि० गुरु मुख झान सुणी करी चौमासो दीनो गय ॥ श्रीजिन ॥ नवि. जगवती सूत्र शुरु करयो गुरु शेजेजे महात्तम साथ ॥ श्रीजिन ॥ नवि० सतके सतके पूजा करी रुपैया गिन्नी मोहर ॥श्रीजिन० ॥११॥ नवि० आणंद तपस्या इणीपरे ग्यारे ने वली आठ॥श्रीजिन ॥ नवि० छठ थप छादश सहु करया शुलदीनो सुपात्रे दान ॥ श्रीजिन० ॥ १२ ॥ नवि० आ दशमी दिने शुरु कीनो तप उपधान ॥श्रीजिन ॥ जवि. नव श्रावकने श्राविका मिल गुणतीमें गुणसह ॥ श्रीजिन ॥ १३॥ नवि० पूजाने प्रनावना नित्य जोजन जक्ति विशेष॥श्रीजिन ॥ भवि० वरघोमा रथ यात्रा अट्ठाई महोत्सव कीध ॥श्रीजिन ॥१४॥ नवित नवकारसी नेतो फिरयो सवि जीम्या थतिहरषेद ॥श्रीजिना भवि० माला पहरी मोदसुं प्रनावना गिन्नी अर्ध ॥ श्रीजिन ॥ १५ ॥ नवि० पोथी पूजी ज्ञानरी शुश शास्त्र तणे परमाण ॥ श्री जिन ॥ जवि० गुरु सेवा साचेमने करे दिन ५
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( १९ )
चंरुते जाव || श्री जिन० ॥ १६ ॥ जवि० षटव्यरुवारा कोसकी प्रदक्षणा दीनी दोय || श्री जिन० ॥ भवि० यात्रा कीनी सहुजुगतिसुं मनकारी पुरी खास ॥ श्री जिन० ॥ १७ ॥ जवि० विनय वंत देखो विंदणीजी उमराव कुंबर है नाम ॥ श्रीजिन• ॥ जवि० सयजगण से सतरे पोष कृष्ण पंचमी गुरुवार ॥ श्री || जिन० ॥ १७ ॥ जवि० वृद्धिचंद यात्रा करी मन आणंद हर्ष पार || श्री जिन जेटीयेजीहो के नविजन नेटो चित लगाय ॥ १९ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ सहियांए नेमिश्वर वनडे नेगिर नारीजातां राखलीजो चालमे ||
सदियांए अमिय ऊराजिनराज चंदाप्रभु चित वस्वाहेलो रतनपुरी मे जेटियाहेलो सदियांए अमिय ऊराजिनराज चंदाप्रभु चित्त वस्याहेलो || १ || दक्षिणवामे पाशजी हेलो सदि० मनमोहन महाराज देख्यां दरखेदियोहेलो देख्यां० सहि० ॥२॥ चोवीसे जिनराजनीदेलो सहि० सेवासारे हमेश पूजो पद मावती हेलो पूजो० सहि० मी० ॥३॥
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(२०) गौतम गणधर नित नमोहेलो सहि० लब्धितणा जंडार पूरेमन कामनाहेलो पूरे० सहि अमी. ॥४॥आबू ने गिरनारजीहेलो सहि सिद्धगिरि महाराज नाव नित्य नेटियेहेलो भाव० सहि० अमी० ॥ ५ ॥ अष्टापद आदेनमुंहेलो सहित समेत शिखर सुखकार वीस जिनवं दियेहेलो वीस सहि अमी०॥६॥समोवसरणर चनारची हेलो सहि. त्रिगमे श्रीजिनराज देवे प्रजुदेशना हेलो देवे० सहि अमी० ॥ ७॥ विजय यद» कुटिदेवी हेलो सहि० गौमुख यदसुहाय गजे. न्छ चढ्या तिहां हेलो गजे० सहि० अमी० ॥७॥ साशणदेव सदान, हेलो सहि० शेव॒जै गिरिसि. णगार चक्रेश्वरी मातजीहेलो चक्रे सहि अमी ॥ ५ ॥ क्षेत्रपाल कालागोरालो सहि जैरव वीरलूपाल संकट सबचूरवे हेलो संक० सहित अमी० ॥ १० ॥ श्रीसदगुरुने सदानमुं हेलो सहि० दत्तसूरि श्वर देव मूरती महाराज की हेलो मुरण सहि० अमी० ॥ ११ ॥ कुशलकरण कुशलेश्वरु हेलो सहि निरधारयां आधार वंचित फलपूरवे हेलो सहि० अमी० ॥ १२ ॥
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(२१) मंदिरथतिमजबूत ले हेलोसहि० देख्यां हर्षअपार बगीचे के मध्यमे हेलो बगी सहि अमी० ॥ १३ ॥ वृद्धिचंद की वीनती हेलो सहि० माघमास सुदी दूज पाटमहोत्सव दिने हेलो सहित अमी० ॥ १४॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ सावनी राजुलकी ॥ क्यों गये छांमगिरनार मेरे जरतारवहीं हमजावें । होगया मुदकमें सोर नेमराजुलको व्याने आवे ॥ क्या सजी रंगीलीजान देख सुरश्न्दर खुशहोजावे। सज २ सोला शिणगार सबी नरनारदेखने पहुंचे। तोरणके पास पशु फुःखपावे सोरमचावे ॥ कुल ॥ पशुवांकीदयाविचारी तबछांमीराजुलनारी । वे जाय चढेगिरनारी कहेजननीं । तुझको पति सुरमा सती अवरपरणावै॥क्यों॥॥आग्यादे मुझको मात मेरीलौ नेमनाथसे लागी।जननीपरणुं नही ओर मेरापति नेमनाथहे सागी। जोगन वनजावु आजमिले महाराज नेमवैरागी। आग्या दीनी मुऊमात सखी सदसातदई वमनागी॥कुल ॥ अब किस्मत खुली हमारी नगवतने विपतविडारी । मे हुश्जगतसे न्यारी अब मिलेपति नगवान । सरे सबकाम येही हम
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(
२ )
चावै। क्योंगाशाजोगनका रूपलिया धार शिरकी स. बीलटी लोचकर माली । कप पहनेसंदली वहांसेचलीसती मतवाली । मुखपत्ती कोलीहाथ बगलमे
ओघा उमरवाली । रस्तेमे वारीस हुई नींजती गिरनारीको चाली ॥ कुल ॥ सबसखि विछुझगड़वांहीमे गिरनारीपर आई। फिरगईगुफाके मांही तनसे उतारकर चीर। निचोझे नीर, खमी सुकलावे ॥ क्यों ॥३॥ वो उसीगुफाके वीच खमातोरहनेमा ध्यान लगाये। राजुलपेनहीथा चीरदेखकर रहनेमी ललचाये॥उनदीया काउसग्ग छोड़काम रिपु उनको आनसताये। वोपटुतापास फेरराजुलयह वचनसुनाये ॥कुल ॥द. स्ति कीतजअसवारीक्यो खरकीआपविचारी । तुं बोडमुक्तिसीनारी खलके खावे अग्यान पाय पकवान नही सरमावे ॥क्यों॥॥ फिर रहनेमी युं कहे सुनोसतवंती वचनहमरा । ये मिगता शीलपहास ग्यान खंबेका दीया सहारा । में नवसागर के वीचड़बता राजुल मुकेनिकला । तेरीमहिमा कहियनजाय सती तें जादवकुलको ताराकुल॥फिरयेही मता उपाया दोनोवहांसे उपध्याया। फिरनेमनाथ पा आया हाँसिल मुरादहोगई दिदादोउलई प्रजुगुण गावे ॥
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२३) क्यों ॥५॥ सबसे पहले महाराज गये रहनेमी शिवकेमांदी। चौपन दिन पहली नेमनाथके राजुलमुक्ति पाई। पीछे पहुंचे नगवान जोतमे सबकी जोतीसमाई। करमाकी बेमी काटहुवे थिर अचलनग्रके मांहि ॥ कुल ॥करमाकी धूलजमाई वेगया मुक्तिकेमांदि, यों जिनयागममे गावेगये कालसे जीत करमगये वीत परमसुखपावे ॥ क्यों॥६॥ उन्नीसे श्कतालीस कायेसाल खुबदरसाया। जावादिवृस्पत्तिवार अष्टमी पाली मायवणाया। जी नारनोलहे वत्न हमारा जन्मस्थान बताया।जी जातीअगरवाल महाजन उत्तमंद कथगाया ॥ ऊल ॥ यों शिवचन्द्र यति वखाणे श्स्कीरगत पहचाणे कोश्चात्रकबुद्धिवाने पशुवाकी रक्षाकरीमुक्तिजो वरीउसीकोध्यावे ॥क्यों ॥ ७ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ राग भैरवी ॥ .. क्यों समजावे महतारी में नेमनाथकी प्यारी रे ॥ क्यों०॥ दुजो वर हमको नही चहीये में सतवंती नारी॥ क्यों ॥१॥ अधव्याहीकर गंड गये हे कुछ नहीं वात विचारी ॥ क्यों॥२॥ दिननहीचेन रेननही निमा लागत बुरी अटारी॥क्यों०॥३॥जेसे
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(२४) जल बिन मरत माछली सो गत होई हमारी॥क्यों. ॥४॥जर जेवर पोशाक त्याग दिये मन वैराग्य धारी॥क्यों० ॥५॥ पहिन चंदली चीर चनोहे बन जोगन मतवारी॥क्यों ॥६॥ शिवचंद कहे उन एक न मानी जाय चढी गिरनारी ॥ क्यों० ॥ ७॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥रागमाम ताल दादरा ॥ __ नाथमेरी तुम से ल लगी वामासुत महाराज आज मेरी तुमसे ले लगी॥पहिलेतो अझान रह्यो मेरी कमता बुद्धि उगी। फिर सतगुरु ने शान बतायो किसमत आन जगी॥ नाथ० ॥१॥ पन्ना वरण सहस्रफण शिरपर देखत विपदानगी। शिवचंदकहे माझदो पद । जृमतामोरीतगी ॥ नाथ ॥२॥ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥राग-कल्याण तात ३॥
पुःख हरण सुखदेन ए सुरतरु श्रादिजिणंदको जिया नजरे ॥ पुःख० ॥ तिव्र करमसे निपट कपट तेरे अबतुं अंतर कपट तजरे ॥ःख० ॥१॥ पुन्य जोगसेतुं प्रनुपायो दरश तरस तुं कर अजरे ॥ फुःख० ॥२॥ तुं देवा में करूं तोरी सेवा तुम हाथे
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(२५) अब मोरी लजरे ॥ दुःख ॥३॥ रामने तारो अरजी धारो में प्रनुजी तुम पय रजरे ॥ फुःख. ॥४॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशी-हरिने कुटीया बळ रामायण
ताल केरवा ॥ विरथा जनम हंसा काएकोरे खोई ॥ वि० ॥ विरथा जनम हंसा काएकुं खोई॥ संग चले ना कोई
आखिर विरीयां चलेगोरे पाप पुण्य हंसा साथेरे दोई ॥ वि० ॥१॥ मात तात अरु व्रात तुम्हारे सगे सम्बन्धी सोई ॥ उन विरियां कोई श्रामोन आवे जिनजीरो धर्मरे हंसा संगहोई ॥ वि० ॥ ५॥ सगे सम्बंधीन्यातीगोती अपने स्वारथ रोई॥तेरे स्वारथ कोना रोवरे स्वारथकी थाप्रीतसगाई॥ वि०॥३॥ हंसा अज्ञानी तोउना चेते वार कह्यो जोई॥कारी कंबर उजरी न होवेरे वार शपथरपे धोई॥ वि० ॥४॥ कर्मवसे चिढंगतीमें भटके शुद्ध श्रद्धा न होई ॥ यतिराम-अब सो हेरी देवनिरंजन मेनेरे जोई ॥ वि० ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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( १६ )
॥ कब्बाली तालधमाल ॥
अगरहम वेतमा होतेतो चेतनको खड़ा करते। क दम सुच तीर काबिल केऊपटगहे वीच दिलधरते २ ॥ तिला खुरबान करडारुं कदमके नुरपरसुखसे ॥ नखाकी रोशनी यसी तुली खुरसेददेरुखसे २ ॥
जब पास जाखुदके करत जो बन्दगी हररोज । तिनो के जानपरवारुं सकल जरजान अपनाखोय २ ॥ अजमेर| कबुल ए दिल परम विश्वासजग मिलजे । उरुको जवोदधिविचसे, रहेजोदाशजरमध्वकी, २ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ मालकोष दोहा, ताल त्रिताल ॥ मयाकर मेरे पर वर्द्धमान तेरानामलेती हे सारी जहान ॥ म ० ॥ १ ॥ जसतेरादुनियामे मशहुर हे द्वारा दोष से तुही दुरदे || म० ॥ २ ॥ वलमेहे आदम आखिरमे तुहीं निरंजननिराकारसबतुंही तुंही ॥ ० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || जंगलो ताल केरवो ॥ बाबा पार्श्वनकेतनपर सोहे श्रीङ्गीया । अंगियाही राकी करवाई मुखमल कपापे जम्
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(२७) वाई। बुंटीनांत लांतनिकसाई रुपियासवालदलगवाई। रतनजम वाईअंगीया॥वा० ॥१॥ मस्तकबि. चमुगटमनमोहे । कुमलकानांमे हदसोवे। हीमकी. हीरवाजुबंधवांई। प्रजुगुणपारनपावेकोये । रतनजावाईअंगिया ॥ वा ॥ २ ॥ मुखमु अधिकुं पुनम चंद आवे । जात्रु तणा बहुवृन्दपुजतपावे।मन श्राणंद काटो सेवकनाकर्म फंद। रतनजम्बाई अंगिया ॥ बा० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥देशी पीयापर घरमति०
ताल केरवा॥ चंप्रनु तारोतो सहीरी ॥ चॅ०॥तुमशरणागत्त आयो चं प्रजु ॥ ता० ॥ रतलामनग्रमेंसोहतारी । लक्ष्मणानंद जिनराज। निरखीमनहरखित जयोरी। चन्द्रवदनसुखकाज ॥ चं० ॥१॥ तख्त्नशीनजिन चंप्रचुरी शोजावरणीनजाय । घससुकमप्रनुशंगकोरी चरचुं चित्तलगाय ॥ चं॥२॥ दधिसुता अरुकमलरिपुरी तासुनामप्रचुदाश । युगकरजोमी विनवे तुम टारोनवः खफास ॥ चं० ॥३॥ इति पदं संपूर्णम्॥
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( २७) ॥ दादा साहेब के स्तवन ॥
॥ सदगुरुरायमोरी अरज सुणीजे. मोपर म. हिरकरीजे हेलो ॥ टेर ॥ रतनपुरीमें मंदिरतिहारो फुलरही गुल क्यारीहेलो॥सद ॥ १॥ श्रीजिनदत्तसूरिश्वरसोदे मुरती मोहन गारीहेलो ।। सद०॥
आसपास गुरु चरण विराजे दत्तकुशल गुरुदेवा हेलो ॥ सद० ॥३ ॥अद्जुत वेदी जालीकी छबि उपर कलश सोनेरी हेलो ॥ सद० ॥४॥ ज्ञानमारगुरुदेव कोथाप्पो रुपकुंवरने फूल हेलो ॥ सद. ॥५॥ रायकेशरीसिंहसुतसोहे तसुना-उमराव हेलो ॥ सद० ॥ ६ ॥ जेनरनारी कचितध्यावे. मनवंछितफलपावे हेलो॥सद०॥७॥ वृद्धिरतनको चरणचितवसियो जिममुक्ताफलहंस हेलो॥सद०॥ ॥ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ कल्याण त्रिताल ॥ गुरु देवदयाला गुरु प्रतिपाला गुरु देवन कुंवन्दनारे ॥ दे० ॥ अग्यान रजनी गुरु ने मिटाई उदयोग्यान मयि चंदनारे॥दे० ॥१॥ मिथ्या बंधन बांधेकुगुरुने सतगुरु तौम सब फंदनारे ॥ दे०॥२॥
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(२९) समकित सुरमो मारे नयन में, सारयो देवजिनंदनारे॥दे ॥३॥ एसे सदगुरु सहायकरो मेरे, बाहमदेविके नंदनारे॥ ॥॥श्री सदगुरुके चरण कमल में, रामकी होजो नित्यवंदनारे ॥दे० ॥५॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ राग जंगला ताल केरवा ॥
गुरु चरणपे चामो माला फूलकीजी। गुरुके गुंहली करोनी तंदूलकीजी । श्रावे नर नारी के साथ । पुजे जोमी दोन हाथ ॥ गुरुदेवाबो जगपति नाथ। गुरुपादुकावनी अमोलकीजी ।। गुरु०॥ १ ॥ गरु राजेशेर जेसाणे।थांने सारी दुनिया जाणे॥थुम्न राजत है अमराणे । एतो झेकी शोना मेरु चूलसी जी॥ गुरु० ॥॥ गुरु में देख्यो दर्श तिहारो॥ तब से प्रगट्यो पुन्य हजारो॥अब तो खुलियो नाग्य हमारो। में बलीहारी जावु गुरुपम धूलकीजी ॥ गुरु ॥३॥ मेरी वंदना आप स्वीकारो । मोंको जेसे वणे तेसे तारो। विरुद है तारण तर्ण तिहारो। राममांगे ले माफी जूलकीजी ॥ गुरु० ॥॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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( ३० ) ॥राग माम तालदादरा ॥
दादा जिनदत्तएसृरि महिमापरि महियलमेगुरुराज ॥कर दुर्मति दूरि मिथ्यस्वचूरि सूरिश्वरां शिरताज ॥ दादा० ।। बाहादेमाता वांगिताता कुलमें प्रगटे गुरुनान ॥ वसभसूरिक वचन तुमगुरु जिनमतकेहो जान।प्रगटे पुन्य अंकूरी। म०म० ॥१॥ शोनाफेलानी जय श् वानी बोले सकल जहान ॥ गुणत्रोसे सोहे अतिशय जगो २ थुम्भथान ॥ समरयां हाजर हजूरी ॥म०म० ॥२॥ बावीश जोधा सबकारोध्या चार चोर वसकीद्ध ॥ दशविध धर्मकुं धारण करके प्राचारज पदलीच॥वाजेजसकीतूरी ॥ म० म ॥३॥ मेरे सहायक गच्छके नायक जीसके नंजणहार ॥ रामकहतहेसेवाचहतेह चरणनपर जाउंवार । सारमोरी लहोरी ॥ म म० ॥! इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ कब्बाली तालधमाल ॥
गुरु सम को नहीजग में यही हम दिलमें गयाहे । गुरुमहाराज-एकहीरा हमीने खोज पायाहै। गुरुकी कर्ते है बंदगी उसीसे हमको नफाद उठाते
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(३१) शिरपे सब दुमा गुरुने जो फरमाया है । इसीसें हमको दे इज्जत भला सव जगमें बोलेंगे। सन खबरांऐ खुशीकी दुसमणां सब सरमायाहै। गुरुकी हे महरवानी जिनंदवानीको सच जानी। तजेंगे गुरु श्रग्यानी वे इक्ष्मांकु नरमाया है। गुरुके चरणां में पमकर सर्वी हम पाप खोवेंगे। रामजपता कुशल गुरुको उसीकी छत्रछाया है। इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥राग किंझोटी ताल केरवा ॥
गुरु देवदै ज्ञानकी ज्योति३ मोतिसमहेजजास ॥गुरुग। वांडिंग नंदा-ए-वदा-सुरंदा तुमको ५ राम रांणा तुमदाश ॥गु० ॥१॥ गुरुग्यानीकी वानी सुहानी हमको सुण्या हुवे हर्ष उल्लास॥गुण ॥२॥ दाश उवारोनिहारे कर धारे तुम्ने पूरी सहुनी आश. ॥ गुण्॥३॥ गुरु वश्यां की धुश्यां ५ हमरश्यां निश दिन २ दुर हुवे दुःख त्रास॥गुण ॥४॥ सोहे सुरतमुरत पुरत ५ मनके चित्ते रामकी पूरो आश ॥गु० ॥५॥ इति पदं संपूर्णम् ।
॥ राग धनाश्री तीनताल ॥ गुरु चरणे ललचाना मेरातो मन । स्याद
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( ३२ )
वाद मतके गुरु ग्यानी । वानी अमृत समाना, ॥ मे० ॥ १ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मकेघरमे । अनंताई कालबसाना || मे० ॥ २ ॥ दोषवारा रहितजो देवा । परति हमकोबताना || मे० ॥३॥ जिनेंजवानी जब श्रवने नीसुनी । साचकुंठ हमजाना ॥
मे ॥ ५ ॥ अबमे चेत गयो कुगुरुसे | सतगुरु I बेन लगवाना || मे० ॥ ५ ॥ एसे गुरुकी में वारी २ जाउं - रामदाशयशगाना || मे० ॥ ६ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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॥ राग धनाश्री त्रिताल ॥ सत्त गुरु मेरे मन जाया । देखोरीमाई स० । चरण पाकात सोवे । सेवतसुरनरराया ॥ दे० ॥ १ ॥ चंद्र सूरि पट धरसेवत । सूर जविजन के मन जाया || दे० ॥ २ ॥ परचा पूरण एसे सदगुरु । पुन्य उदयसे पाया || दे० ॥ ३ ॥ दासरामकरे विनतीनित | यश सदगुरुका गाया | दे० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ||लावणी लंबी रंगतकी ताल केरवा ॥
दादा साहेब जिनचंद्रसूरिंदका दरशण नित्य करणा चहिये ॥ खूब ध्यान लगाके. अर्ज निजःकारजकी करणा चहिये ॥ १ ॥ मृग मद केशर
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( ३३ )
कपूर मिलाके अम्बर फिर घसणा चहिये ॥ निज शुद्ध जावसे गुरुका चरण कमल पूजना चहिये ॥ २ ॥ जाई तुरी मचकुंदमालती चंपकली मोतीया चहिये | वो दमनाकेतकी चंबेल इस्क पेच जोगीया चहिये || ३ | मोल गुलाब सेवती जुई कदंबांबमाजर चहिये || फूल हंस हजारा मनोहर चरणोपर धरणा चहिये ॥ ४ ॥ शाहन्शाह सुलतान दिल्लीपका प्रति बोधक येदि कहिये || जिन सिद्ध सूरिक परम गुरु मणिधारी रटया चहिये ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥
|| देशी पियापर घरमतजा ॥
॥ ताल केरवा ॥
निपट मन धरसतगुरु को ध्यान ॥ नि० ॥ वृथा जनममतहार || नि० || हां सतगुरुके चरणशरण थी पावे पूरण ग्यान ॥ उत्तमजन रु साधु संगतथी वधे चोगुणोमान ॥ नि० ॥ १ ॥ सुरपती खग पति और एनरपनि धरेगुरु शिरांण ॥ मुढ प्रजान जो याको जुले थावे बहु देरा || नि० || २ || दीन दयाल दया निधी स्वामी आपे छितदान ॥ कुशल कुशलए समरण हरदम हृदयकमल विच धाए ॥ नि० ॥ ३॥
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( ३४ )
गुरु २ सब जगत पुकारे राखेकुछ नही जान ॥ उत्तमगुरु जिनसिद्धसूरिंदके कुशल कुशल पढ़े चान ॥ ० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ राग कब्बाली ताल केरवा ॥
।
करुं गुरु अर्ज तुमसेती जरासुणले तो क्या होगा | तुम्हारुं वीर्द सुंणीने प्रयोतुमतीर गुरु राजन । मुके ना तुम बिन आधार खोरे जटकुंतो क्या होगा । मेरे अवगुण निहारोना जो हो अवगुण क्षमा कीजे । हवे इक सी तुमहेरा वर्ष रखलें तो क्या होगा | कहे करजोड करो परशन यहि गुरु अर्ज तुमसेती । रहु तुम ध्यान निशद मां जर लक्ष लेतो क्या होगा | इति पदं संपूर्णम् || ॥ चाल अशवारी की ताल दीपचंदी ॥
कुशल गुरु निरखणदा यशवारी | तेरी अद्भुत कांति पारी || कु० || तोरी चरणकमलबलिहारी ॥ कुशलगुरु निरखणदोछिब जारी || कु० ॥ चोवा २ चंदन और अरगजा । मृगमदमहेक पारी ॥ धौरगुलाबकेतकी । चंपक फूल रही गुलक्यारो || कु०॥ १ ॥ देव जुवनको इन्द्रभुवन हे | किल मिलज्योति अपार ||
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( ३५ ) वंछित फलदायक वर लायक । सुरनामकसुखकारी॥ कु०॥२॥ नला ५ नूपति थाहमचतहे । हय गय जीडहजारी। गणारावसेठसेनापति । आवतहे अशवारी। कु० ॥३॥ नेरी संखमधुरधुनिबाजे। सुरनाईसुरसा।। गावतहेकेई मधुर २ धुनि। सानु गगनमकारी॥ कु० ॥४॥ गच्छनायक जिनचंद्रपटोधर। खरतरगच्छअवतारी। पद्मसृरिया अरजी करतहे । कुशल २ सुखकारी ॥ कुशल. ॥५॥ति पदं संपूर्णम् ॥
॥ देशी ढाल कोयलडी॥
लेटनरे हो चालो सिद्धाचल गिरिनार, जाव त जनवर-छार, तेरा पटत पाप अपार रे॥टनरे। ॥१॥ तन मन से जिनवर पद परसे, नाम जपे नवकार । पूजन कर पर नव को लाहो, लीजिये वारं वाररे ॥ नेटनरे॥२॥ प्रत्यक्ष परचा श्री आदिजिनेश्वर, नेमप्रन्नु जरधार। पावत मोद अमरपद प्राणी, आवागमन निवार ॥ नेटनरे ॥३॥ दिन दिन अधिको कर उत्सव,उत्तम धर्म विचार । सांज समे नित नावना जावो, कर प्रनु चरनो सुं प्यार ॥ लेट नरेण ॥ ४ ॥ सेवक तेजकवि की सुणजो, श्री
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( ३६ )
पारस गोडी पुकार | वाइमहोत्सव ज्ञानकी नक्ति, हो रही जय जयकारे || जेटनरे० ॥ ५ ॥ इति पदं
संपूर्णम् ॥
|| देशी डंके
॥
हां सदा नवपद उर ध्यावो, मिलकर प्रेम भावना जावो । अष्टमहोत्सव जक्ति ज्ञानकी, कर फल पावोरे ॥ सदा० ॥ १ ॥ तर सुगंध अमोल लगाई, अंग पाल प्रवल अधिकाई । केशर मृगमद चरच वरख से अंगी रचावोरे ॥ सदा० ॥ २ ॥ धूप धोर से मगन करीजे, धर्म काम में चित्त नित दीजे । लीजे तनमन लगा, प्रभु दरशन को लावोरे ॥ सदा० ॥ ३ ॥ समोसरण में प्रभु विराजे, शिरपर छत्र छटां हद छाजे । जविजन सकल समाज जुक्ति कर, धरम बधावोरे ॥ सदा० ॥ ४ ॥ याज दुतिय पूजन दिन नीको, श्री गोमी पारस प्रभुजीको । तेज कवि कहे हृदय अटल यांनद सजावोरे || सदा० ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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|| देशी सिद्धाचल गिरि परम सुहायो ||
सिद्धाचल गिरि परम सुहायो ॥ सिद्धा०॥ सकल
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( ३७ )
काम चित्त चायो ॥ आदिश्वर अरिहंत विराजे, कर दर्शन तन मन हरषायां ॥ सिद्धा० ॥१॥ चोवीसी जिनराज मंदिर मे, लागत ठाठ सवायो ॥ इंद्रादिक सुर या फरसवा, तीरथ मोटो महात्म्य वधायो॥ सिद्धा० ||२|| नवा प्रकार की पूजा उत्सव, आज सुहायो ॥
॥
विजन जावत प्रेम जावना, मेघ मलार कर वरसन थायो | सिद्धा० ॥ ३ ॥ श्री गोकी पारस प्रभुजी को परतक्ष परचो पायो || जयो अधिक आनंद मुलक में सेवक तेजकवि यश गायो | सिद्धा० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
|| देशी वणजाराकी ॥
मिलन विजन जाव वधावे, याबूगिरि चल सुहावे । गिरि बूकी छबी जारी, माने ओरन लागत प्यारीजी। फरस्यासुं पातिक जावे ॥ श्राबू || १ || याबुकी अजब कहानी, सब जानत केवलज्ञानी जी। जिनकी जो नजर में आवे || आबू० ॥ २ ॥ कोई गावत प्रत्यक्ष बाने, प्रभु गत घट घट की जाने जी । महिमा नहि वरणी जावे शुजपूजन उत्सव कीनो, कर जक्ति नोजी । परजवफल निश्चय पावे ॥ आबु० ॥ ४ ॥
॥
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बू ० ॥ ३ ॥ अमृत रसपी
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( ३८ )
श्रीगोमी पारस सुर स्वामी, विश्व पालक जग घट जामीजी । नित तेजकवि यशगावे ॥ आबू• ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || देशी लूरमें ||
सहस्रकूटजी का दरशन करवा, सिद्धाचल गिरि जावा एलो । जाव धरीने प्रजुपद फरसां, मनचिंत्या फल पावलो ॥ सहस्र० ॥ १ ॥ पांचजरत ओर पांच ऐरवत, दश क्षेत्र विरदावां एलो ॥ व्यतित अनागत वर्त्तमानसों, ती सो गुणगुणावा एलो ! सदस्र०॥२॥ महा विदेयके अहो तर विजयमे, एकसोसाठ पुरावाएलो । चोवीसे जिनवरका कल्याणक, वीसोतरवरतावाएलो ॥ सहस्र• ॥३॥ पांचमदा विदेहे मे वीसा, विहरमानवतावालो | चारशाश्वता सबकोय जाने, विधिसुं पूजन करावाएलो || सहस्र० ||४|| एक सहस्र चोवीस बिंब छाजे, चरनफरस चितचावाएलो । को वर ने श्रीमुखकी शोजा, इणसम गुणमें जतावांए लो || सहस्र• ॥५॥ केशरने कस्तूरी चरचा, रतनाकी अंगियां रचावांदेलो। कनकथालभारती उतारी, परदक्षणा फलल्यावएलो || सहस्र० ||६|| आठपह र अरु घड़ी पलपलमें, दिरदे श्री जिनवर घ्यावां
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(३ए ) एलो। शाम समे नित जाय मंदिरमें, जक्ति नावना नावांएलो ॥ सहस्र० ॥॥ दीनवचन श्राधी न पणेसो, श्रीजिनराजमनावाएलो । अष्टमहोत्सवआनंद अधिको, तालमृदंग वजावांएलो॥ सहस्त्र० ॥७॥ श्रीगोमीपारस प्रनु थारे, चरना शीश नमावांएलो । सेवक तेज कवि करजोमे, वार वार यश गावांएलो ॥ सहस्र ॥॥ इति पद संपूर्णम् ॥ देशी गेटी पणीहारी अवलूरी रंगतमें।
प्रतुजी सोनारो सूरज उगीयो, सहियां समेत शिखर पर श्राज जिनेश्वर, परतवीसांभेटिया ॥१॥ प्रजुजी अजितनाथ संनवस्वामी, सदियां अनिनंदन महाराज । जिनेश्वर परतक्ष वीसाइ. ॥२॥ प्रजुजीसुमतिनाथ पद्म प्रजु, सदियां सुपार्श्वजिनराज ॥ जिनेश्वर परत६०॥३॥ प्रजुजी चंदा प्रजुजी श्री सुबुधिजी, सहियां शीतल नाथ सारे काज ॥ जिनेश्वर परतद वीसा ॥४॥प्रनु जी श्री श्रेयांसजी श्रीविमलजी, सहियां अनत नाथ धर्मनाथ ॥ जिनेश्वर ॥५॥ प्रजुजी शांति नाथ कुंथुनाथजी, सहियां ध्याउं के जोमी हाथ ॥
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(४०) जिनेश्वर ॥६॥ प्रजुजी अरस्वामी मलिनाथजी, सहियां मुनिसुवृतजीमनाय ॥ जिनेश्वर० ॥ ७॥ प्रजुजी नमीनाथ श्रीपाश्वनाथजी, सहियां सबका दर्शन पाय ।। जिनेश्वर ॥ ७॥ प्रजुजी वीसाही दिन २ जिनवरा, सहियां मोद सिधाये श्राप ॥ ॥ जिनेश्वर ॥ ए॥ प्रनुजी समेतशिखर श्रेणि मोदकी, सहियां फरस्यां ही काटे पाप॥ जिनेश्वर० ॥ १० ॥ प्रजुजी श्राज पूजन दिन पांमियो, सहियां श्राईमहोत्सव होत ॥ जिनेश्वर० ॥ ११ ॥ प्रनु गोमी पारस बजे तखतपे, सहियां अटलजागरही जोत ॥ जिनेश्वर ॥१२॥ प्रनुजी वार शनित विनवे सहियां तेज कवि करजोड ॥ जिनेश्वर ॥ १३ ॥ इति पद संपूर्णम् ॥
॥ देशी उपर पराण एचान॥ ___ शतरद पूजा रचीजी मिलगावत भविजन साथ । अब मुऊ दरशन दीजो सांवराजी॥१॥ए यांकणि । निरमल नीर पदालकेजी, अंगलोवत मधुरे हाथ ॥ अब० ॥२॥ केशर चंदन चरचियाजी. फिर वरग कटोरी कोर ॥ अब ॥ ३॥ अंगी रचाई प्रेमसुंजी, कर धूपनकी घमघोर ॥ अब० ॥ ४ ॥
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( ४१ )
जोती जिगमिग जागतीजी । अब आरतीयांरी बिब देख || अ० ॥ ५ ॥ गगन नगारा घुर रयाजी ठुलरया पुष्प विशेष || अब० || ६ || सुरसब च विमान में जी, अरु इन्द्रादिकमिल आय ॥ अत्र • ॥ ७ ॥ जक्ति सहित जगवानकाजी, निज श्रीमुख दर्शन पाय ॥ ० ॥ ८ ॥ ज्ञाता अंगसु द्रोपदी जी, चित मनसुं पूज्या जिनराज ॥ ० ॥ ए ॥ विधविधसो वरदान देकर, सारयामनरा काज ॥ अब० || १० || रावण और मंदोदरीजी, मिल अष्टापद पर नाच || अब० ॥ ११॥ जांघ नाम की तार करीनेरेश्री जिन जक्ति साच ॥ अब० ॥ १२ ॥ यष्टमहोत्सव यदसुंजी, कांइ दिन प्रति अधिक होय |
• || १३ || श्रीगोड़ी पारस प्रभुजी, थारां दर्शन करे सबकोय ॥ य० ॥ १४ ॥ तेजकवि करजोम कंजी, तनमन से विनति तोय || अव० ॥ १५ ॥ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
|| देशी फूलजी की || आज जले चित जावसुं मिलपूजो श्रीगुरुदेव | जिन श्राचार्य हो ॥ १ ॥ जीयो के गुरुवरपरत कपरचा देरदे, कलि काल समय महाराज || जिनखाचा० ॥२॥
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(४२ ) गुरुवर श्री जिनदत्त दयालके, गुणमहिमा समुन जहाज। जिन०॥३॥ जीयोके गुरुवर जिनचं सरि प्रताप सो लिटवट परमणीप्रकाश ॥ जिना० ॥३॥ जीयो० गुरुवर दिल्लीमाणकचोकमे, नितसबकीपूरतश्रास ॥ जिनाचा॥॥ जीयो गुरुवर स्थान करायो बादशाह, जहां पूजे छतीसो पान॥ जिनश्राचा ॥६॥ जीयो गुरुवर जितोश्चमापो चढरयो, सबलेरड्मुसलमान। जिनयाचा ॥॥ जीयो गुरुवर श्रीजिनकुशल कृपालको समरो सब वारं वार ॥ जिन. || जीयो गुरुवरचोथा श्रीजिन चंजसूरि सम फिर न भये अवतार ॥ जिन ॥णा जीयो गुरुवर प्रवल पूजावतपादका नक्तन- की सुणत पुकार ॥ जिनाचा० ॥१॥ जीयो गुरुवर ज्ञान नंमारकरा. वियो वृद्धिचंदजी यती मुनिराज ॥ जिनाचा. ॥१९॥ जियो गुरुवर अहाईमहोत्सव याद रयो शुजझान भक्ति के काज ॥ जिनाचा० ॥१॥ जियो गुरुवर गुरांसा उपदेश देकरप्रथम उचारी वात ॥ जिनाचा० ॥ १३ ॥ जियो गुरवरशुद्ध चित्त बोल्याचोधरी, जबकलम शिरेमलहाथ ॥ जिन. ॥१४॥ जियो गुरुवर श्रीसंघ सामिल प्रेरणाकर टीपणीयांक जराय। जिनाचा० ॥१५॥ जियो
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( ४३ ) गुरुवरयुग अषाढवद अष्टमी रवीपूजा शुरुकराय॥ जिनाचा० ॥१६॥ जियो गुरुवर धुर पूजा पंच ज्ञानकी नक्ती हितकर रिख वेस । जिनाचा० ॥१७॥ जियो गुरुवर पुजी नवपद नाथकी, सिद्धाचल तृतीय विशेष ॥ जिनाचा ॥१॥ जियो गुरुवर चोथीबाबू राजकी,फिर सहस्र कूट आनंद ।। जिनश्राचा० ॥१॥ गुरुवर ही शिखरजी उपरे वीसांगएमोजिणंद ॥ जिनाचा० ॥२० ॥ गुरुवर सतरजेदकी सातमें अरुपंच प्रमेष्टी था। जिनाचा० ॥२१॥ गुरुवर दादाजीको देखियो नवमे दिन फुगणोठाह॥जिनाचा ॥२२॥ गुरुवर दिनपूजा निशि नावना, नविक मन अधिक उमंग। जिनाचा० ॥ २३॥ गुरुवररवरतरगच्छउपासर, गोमीपावरटतश्रीसंघ ॥ जिनाचा ॥२॥ गुरुवरतेजकवि कथतान नितको गाय लगावतरंग । जिनाचा ॥२५॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशीनारनोलके ख्यालकी ॥
खूपत्र पुरकल्पवृक्ष आलोचढ्यो, सबके मन जायोजी ॥ खूव पुरकल्पवृक्षाछोचढ्यो ॥ टेक॥ इंदोर सेतीवणकरायो । खूऽवपुरके मांय । मारा प्रजुजी खूद्रवपुर के मांय । पांच सहस्र
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( ४४ )
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रुपैया लागा, शोजाक हियनजाय ॥ माराप्रभुजी शोना० । शुभ दिन देखवृक्षओरडुजो, दीनोकलशचढाय | माराप्रभुजी दीनो० | शुभ दिनदेखकलशच ढ्यो तो बहु । पूजा उत्सवकीन, करिप्रतिष्ठासरूपचंदजी । पंक्तिचतुर प्रवीण | सखिसव मंगलगा• योजी ॥ लुव० ॥ १ ॥ लवपुरमें कल्पवृक्षको । देख्यो अजब हेमोल || मारा० देख्यो० || पत्तों की हरियाली गेहरी ॥ फल धौरपुष्पामोल || मारा० ॥ फल० || ओर वृक्ष पर तोता कोयल । पंछी करत कि लोल || मारा० पंची करत किलोल वृक्षपर | दाखनरंजी खाय । कियोजापतो खूबचतुर्दिशदी जाली खीचवाय, शीशपरवत्रचढायोजी। लूडव |२| लूद्रवपूरमे कल्पवृक्ष की देखी जववहार | माराप्रभुजी • देखी• ॥ प्रजुपारशकादर्शन करके पायो हर्ष अपार ॥ मारा० पायो० ॥ संवतउन्नी से चुंबालीस । तिथिद्वादशी रविवार || मारा० तिथि० ॥ द्वितीय चैत्रके मध्यदिवस तुई । पूजासत्तरप्रकार । ऊाजताल मृदंग बजे । ओर गावे सबनरनार । छंद शिवचंद्रवणायोजी ॥ लुव० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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॥ इति श्रीवृद्धि रत्नमाला संपूर्णम् ॥
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( ४५ )
अथ शिखरजी की यात्राकोस्तवन
देश | विकेगीतकी | चाल साजनगुमी जमाव - तारेविंका देतालवी मोर ॥ लंबी मोर० ॥
श्री रेजिनेश्वर भेटताजी, मारेमनमेरी पूरे यश ॥ मनमे० ॥ प्रतक्षपरचापार्श्वकाजी, ध्यावोपूर्णज्योतिप्रकाश || पूर्ण० ॥ १ ॥ अस्पतजेशल मेरकाजी, मोटापा से प्रमाण || पटवा० ॥ सुजसवढायोचांदनेजी, दाता प्रगट्या कुल पुन्यवान || प्रगट्या० ॥ २ ॥ लक्ष्मी रे प्रगटीपांव मेंजी, करीमुलकां मुलकदूकान || मुलका० ॥ मालवदिशरतलाममेजी, चावासेवता निजस्थान || सेठ० ॥ ३ ॥ धर्मधुरंधर जामणीजी, खुदप्राणंदकुंवरउत्साह || द० ॥ शुभ दिनकरणीयात्राजी, जलउपज्यामनमेंजाव ॥ उपज्या० ॥ उगणी से मसव सोजांजी, सुदीएकादशसजसंग || एका० ॥ कोटेहो कलकत्तेगयाजी, चित्तनजमणात उमंग ॥ उजम० || ५ || पावापुरी फिर सिद्धकरथाजी, किनीया त्रासद निर्वाण | यात्रा० ॥ मंदिर विहारजुहारियाजी, क्षत्री कुंमकी यात्रा सुजाण ॥ कुं० ॥ ६ ॥ कुंमलपुर
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( ४६ )
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की यात्राजी, फेरराज गिरिकीजात ॥ राज० फिरकाती पूनम दिनेजी, कर कलकत्ते जागृत ॥ कलकत्ते ० ॥ ७ ॥ सत्तरनेदी पूजारचीजी, करचो स्वामीवत्सल सुखकाज ॥ स्वामी० ॥ मकशुदावादपधारियाजी, वंद्याजसमुनिमहाराज || जस० ॥ ८ ॥ अजीमगंजवालुचरमंदिरकाजी, दर्शन कर चितचाह || दर्शन० || कटकोलाजसमुनि राजकीजी, सुणीदेशनाय || देशना० ॥ ए ॥ पुजायों सतरने दकीजी, करचोस्वामीवत्सलसमेल || स्वामी०|| पेमाकी प्रजावनाजी, लाकुरुपैया कटोरी नारेल || रुपया० ॥ १० ॥ भागलपुर सुंचंपापुरीजी, नेट्यावासुपुज्यजी जाय ॥ वासु० ॥ नाथनगर सुं चालियाजी, चित्तसमेत शिखर हरषाय ॥ समेत• ॥ ११ जिहां गजराज चढावियोजी, फिर धर्मशाला धर्म विशेक || धर्म || विसांही जिनवर जेटियाजी, और अंगियां रचना अनेक || अंगी० ॥ १२ ॥ कुशल कमाई करणकुंजी, फिर काशी सुधारया काज, ॥ काशी० चंद्रपुरी ओर संखपुरीजी, वृाजेरतनपुरी जिनराज रतन० ॥ १३ ॥ दर्शन कीना जावसुंजी, सारचा मनरा मनोरथ सोय ॥ मन० ॥ फिर २ देवजुदा
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(४७) रियाजी, जवरी वाग सागरगंजहोय॥वाग०॥१४॥ लखनउ जाय अयोध्यामेंजी, चाट्योमेरु अमरकर नाम ॥ मेरु० ॥ फिर जोपाल उज्जेनसुंजी, आया अपणपुर रतलाम ॥ अपणे ॥ १५॥वाग सोहाणे वीचमेंजी, वृाजे मंदिर श्री जिन देव ॥ मंदिर ॥ अमियकराचं प्रजराजकीजी, थावे नित ५ अधिकेसेव ॥ नितम् ॥ १६ ॥ मंदिरश्री दत्तसरिकोजी, नीतरझाननंमारसोहाय ॥ ज्ञान० ॥ नावेनवि जननावनाजी, मिलनरनारी मंगलगाय ॥ नर० ॥ १७ ॥ पाठशालादत्तसूरिकीजी, साथेलायब्रेरीकुशलसूरिंद ॥ लाय० ॥ रूपकुंवर एकरावियाजी, मिलफूलकुंवरयाणंद ॥ फूल० ॥ १७ ॥ रायसाहबकेशरिसिंहजी, मानेयाज्ञाहुक्मअनेक ॥ आझा० ॥ विनयजोपालत बिंदणोजी, फूलकुंवरवृद्धिविधलेख ॥ कुंवर० ॥ १५ ॥ जगणीसे सित्तरे जेठमेजी, वदवारसदिनगुरुवार ॥ वार ॥ जेशाणे वमेरेउपासरेजीशुजस्तवनकरयोतेय्यार ॥ स्तवनम् ॥ वृद्धिचंदगुरुजैनकाजी, देवेधर्म तणाउपदेश ॥ धर्म ॥ तेजकविकथविनवेजी, गुणगावे हृदयहमेश ॥ गावे ॥ २१॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥
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( ) ॥ देशी पनजीकी॥ कामण गारोजी पारस प्रनु मन हर लीयो हमारोजी ॥ कामण ॥ मनमो वशकर लियो प्रचुते एसोजापुमारोजी॥ तुऊ सिवाय नहीं देव दूसरा लागत प्यारोजी॥ कामण ॥१॥ लूद्रव पुरके मांय प्रनुजी देख्यो तोय छंदगारोजी ॥ दिनमें रुप के ही प्रगटे तुं मुलकसे न्यारोजी ॥ कामण ॥२॥ केशर चंदन मृगमद घसकर पुजू अंग तुमारोजी॥ शिवचंद कदे इस जवसागर से पार उतारोजी ॥ कामण ॥३॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशी नारनोलके ख्यालकी ॥
जेशाणे मांहि किलापर सांचो पारस नाथजी॥ जशाणे० ॥ किलाउपर भला विराज्या वामासुतजिनराय॥ हीरावरण अंग प्रनुजोको, रविसेंतेज सिवाय ॥ देख जिलक प्रजुके लिलाटको शशी गयो सरमायजी ॥ जेशाणे ॥ १ ॥ सित्तर सहस्र रुपैयों की अंगी सोहत हे नगकारी ॥ शिरपर सहस्र फणामनमोहे, सुरत लागे प्यारी ॥ जिन को प्रनु परचा देवे पुजे उनियां सारीजी ॥ जेशाणे ॥२॥
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(ए) दूर देश सुं नरनारी नृप, दर्शन करणे आवे केशर चंदन अतर लगावे मृगमद धूप खेवावे ॥माणक मोती कनकरजतका नर २ थाल चटावेजी ॥ जेशाणे॥ ३ ॥ निर्धनकुं अतीदेत लक्ष्मी पलमें करे निहार, वांऊ नारकुं दे सुत चंचल रोगी कियो विमार, शिवचंद कहे कुमति ओर विपदा देवामा सुत टारजी ॥ जेशाणे ॥ ४ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ शुनं नूयात् ॥
Ena
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतुल Serving JinShasan 016409 gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only