Book Title: Vedant Chintamani
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / / कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः / / / / गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः / / / / अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः / / / / योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / ॥चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक : 1 जैन आराधना महावीर श्री कोबा. // अमृतं तु विद्या तु श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websit: www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - 380007 (079)26582355 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | :18 lal+LPeethake line ecob cabindo chడు 600065 66 శాతం Page #4 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगणेशायनमः // शुद्धाद्वैतंसर्वशक्तिजडजीवादिकारणं // साकारंसच्चिदानंदवंदेश्रीपुरुषोत्तमं // 1 // मायावादतमो / नाशभक्तिमार्गप्रकाशयोः // सूर्याचंद्रमसौस्तौमिश्रीमद्वल्लभविठ्ठलौ // 2 // अक्तोगुरुश्रीवजवल्लभस्यपितुर्घनश्यामतआ विद्यः / / गोवर्द्धनोबालनिबोधनायवेदांचितामणिमातनोति // 3 // अथैतद्विश्वमखिलंनानारूपंनिरीक्ष्यते // अतींव चित्रमेतस्यकारणंपरिचित्यतां // 4 // यत्पूर्वरनिनियतंयदुत्पत्तावपेक्ष्यते // तत्तस्यकारणंप्रोक्तंकार्यमुत्पाद्यमस्ययत् // 5 // यथामृत्साकुलालश्चदंडादिर्घटकारणं // तथेदंकिमुपादायकेनवानिर्मितं भवेत् // 6. // चेतनस्यमनुष्यादेः पितरोत तथाविधौ // जडस्याप्यथरक्षादे/जायंयद्यपिस्फुटं // 7 // पित्रोःपितामहौमातामहौतेषांतथेतरे / / एवंविचारेकोवा दोकिञ्चसम्!स्तिमैथुनात् // 8 // किमादौपुरुषःस्त्रीवोभयंत्यपिसंशयः // एवंजडेपिटक्षस्यबीजंतत्फलतःफलं // 9 // क्षावृक्षांकुरंबीजात्ताबीजमादिमं // नाध्यवस्यतिथी:किचिदंततःपरिचितने // 10 // तस्मात्सर्वप्रपंचस्यनिदानंब्रह्म केवलं // आदित्वादद्वितीयत्वात्सर्वरूपत्वशक्तितः॥ 11 // सर्वधर्मविशिष्टत्वादैश्वातंत्यसिद्धितः // स्वयमेवस्वेच्छयेदं स्वरूपादुदपादयत् // 12 // यथोर्णनाभिालातआलयंसृजतीच्छया / पात्यत्त्येवंत्वस्यसृष्टिस्थितिसंहतयस्तनः // 13 // पंचभूतात्मकंसकिनतान्येवकारणं // निरास्पदत्वनेषांचोचितोयोगःस्वतोयतः // 14 // कालजीवादयोनैतन्मयास्ते / Hषांकुतोजवः / / किंचपंचैवतान्येवंस्वभवान्येववाकृतः // 15 // अतोवश्यं सर्वबीजंस्वतंत्रश्चैकईशिता / / प्रवर्तकोनियं 1 कारणं 2 कार्यानुरूपौ 3 सर्वज्ञःसवशक्तिमान्कश्चिदेकएवास्थजगतःकर्तेतिसर्वमतेषुप्रसिद्ध Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ERTAL बचताचयोहेतुःस्थितिनाशयोः // 16 // तद्ब्रह्मक्वास्तिसर्वत्रव्याप्तव्योमेवढयपि // कस्मान्नदृश्यतेऽस्माभिस्तिरोभूययतःस्थि . तं // 17 // घर्मननाशयेद्वायस्सन्नप्यारुद्धकंदरे / व्यजनेनाऽनुभयेततथाज्ञानेनदृश्यते // 18 // घटादिनविलोक्येतति / रस्करणिकारतं // मायाजवनिकाच्छन्नंतथाब्रह्मनलक्ष्यते // 19 // अस्येवतपिकाःकाकाःशुकाहंसाःकलापिनः॥ आ सिताहरिताःश्वेताकतायेनचचित्रिताः॥ 20 // परस्परविरुद्धस्याऽतिविचित्र स्वरूपिणः // यद्विश्वस्योद्भवेहेनियमेनय थोचितं // 21 // सूर्य्यादीनांसुदु ययाथात्म्यानांप्रकाशनं // निराधारेस्थितियतिनियतानित्यतायतः // 22 // एवंवि धैःश्रुतैर्दष्टैःप्रकारैर्बहुभिःस्फुटैः // स्थिरेणमनसास्पष्टंब्रह्मनिश्वीयतांदृढं // 23 // कुसुमांजलिमुख्येषुपंथेष्वीशेऽनुमाशत दर्युदयनाचार्यादिभिस्तेनोदितंयथा // 24 // कार्याऽऽयोजनधृत्यादेःपदात्प्रत्ययतःश्रुतेः // वाक्यात्संख्याविशे| Kषाच्चसाध्योविश्वविदव्ययः // 25 // जडंभूतादिकंजीवान्सृष्ट्वान्यदपिभूततः / न्यूनाधिकत्वतोदहाश्चित्रानानाविधाः कताः // 26 // तेषुजीर्वादिसंस्थाप्यमाययामोहयत्वया / / मोहितानविजानीमोब्रह्मकिंकीदृशोवयं // 27 // श्रुतिष्वा / पिपुराणेषुब्रह्मादीनांभवस्ततः / / बहुधामानवादीनांसर्गोस्तीत्यवधार्यतां // 28 // एवंसृष्ट्वाप्रवृत्त्यर्थमर्यादांपापपुण्ययोः।। सर्वाज्ञापयितुंचान्यद्वेदाआविष्कृताःस्वतः।।२९॥सोपायासफलाकममर्यादातत्ररूपिता॥ ज्ञानार्थस्वस्वरूपंचमक्ति तिर | 1 गतिः 2 अंतर्यामिममृति 3 पार्थिवानांशरीराणामनपृथिवीमतेत्यादिवचनैः 4 आदिशब्देनागेंद्रियादिसंग्रहः 5 स्वस्वरूपज्ञानभक्त्यादि। कं.६ मायश्चित्तादिरुपाय। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदर्शिता // 30 // इदंयःसुकतंकुर्य्यात्सइदंसुखमामुयात् // इदंचदुष्कृतंकत्वेदं जीतसदुष्फलम् // 31 // वेदेषुविद्यमा / नेषुविविच्योपदिशत्स्वपि // यथायथायःकुरुतेवदात्यस्मैतथातथा // 32 // कर्मानुसारतोवंशोदेहोविद्याचवैभवः // इत्यादि। प्राप्यतेसर्वप्राप्तदेहादिसंभवैः।।३३॥कर्मभिश्वापरंसर्वतज्जैस्तैश्वान्यदाप्यते / बहुपापास्तुनरकंबहुपुण्याःसुरालयं ॥३४॥ग च्छंतियातनादेहंपुण्यदेहंचसंश्रिताः॥ तत्रभुक्त्वाभुवयाताःप्रामुवंतितथाखिलं॥३५॥अखंडोनंतएतादृक्प्रवाहोऽयंप्रवर्त्तते यथाप्रारडुजलैनद्याःप्रवाहोपराहतः॥३६॥जगदीशस्यलीलायंप्रपंचोनिखिलोमतः॥मृत्पुत्तलेषुराजानममात्यमनुगादि क॥३७॥यथाबालःकरोत्येवमत्रेशोपिनिजेच्छया|वचित्सख्यंक्वचिद्वैरमित्याद्यप्यखिलंतथा ॥३८॥बहुप्रपंचादृश्यंतेकीडा बुद्धिबलादयः॥सोश्चर्याअपिजीवानांयद्यल्पविषयाअपि॥३९॥विश्वंत्वनंतविषयमीशकीडात्मकंतदा॥अकुंचितप्रपंचंचसा श्वर्यनकतोंभवेत्॥४०॥कषांचिद्दारुखंडानांनामभूपादिकथ्यते // निर्धारिताश्वगतयस्तषटकस्यैवकाश्चन॥४१॥आधारो पचतःषष्टिनिलयोडकारिनागरैः // विधीयतेयद्धमात्रयदितत्राप्यनंतता॥४२॥तदात्रकिमवक्तव्यंप्रपंचेभगवत्कृततिद्वदत्रा प्यथाधारोब्रह्माण्डानिबहूनितु॥४३॥पांचभौतिकपिंडानांसंज्ञानानाविधाःकताः // अनेकेषामिद्रियतःकतानानाप्रटत्तयः Kn४॥प्रवृत्तिजन्यकार्याणिमानसान्यपिभूरिशः॥सदसत्कर्मभिर्बल्योगतयोपिविनिश्चिताः॥४५॥लीलार्थमीश्वरत्वार्थमचि alत्यानंतशक्तिना // स्वरूपात्स्वेच्छयातेनप्रपंचःप्रकटीकतः॥ 46 // अहंताममताबद्धामाययांधास्तदिच्छया // सर्वएवम 1 अविच्छिन्नः 2 समामिशून्यः Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SamaARDAR R वे-च-वर्ततेऽत्रपरंपरयोक्तया // 47 // तदंशाअखिलादेवाःसकामाआश्रयंतितान् // तत्तदातितद्वारातेभ्योमाहात्म्यबद्ध // 48 // यस्तुसम्यग्विजानीयात्ससंसाराद्विमुच्यते // सर्वात्मनाभजेद्योऽस्यनकिचिदपिदुर्लभं // 49 // गर्जेवनान्मातृदु ग्वादिनाचोपकतंबहु // येनेशःसदयां सोधिहरिःकस्मान्नसेव्यते // 50 // सचस्वल्पेनसंतुष्येत्स्वस्यापिस्यात्सुखंयतः॥ऐ हिकामुष्मिकंमोक्षःसुलभोयदिबांच्यते // 51 // यततेमनुजालोकेराज्ञोऽपिहिसमागमे / समागमेऽखिलेशस्ययतितव्यं कतोनवा / / 52 // समागमोऽस्यज्ञानेनतज्ज्ञानंवेदशास्त्रतः / / समीपस्थगिराराज्ञोपिप्रकृत्त्यादिबुध्यते // 53 // बेदस्यदु। विबोधत्वाल्लोकानुग्रहकारिभिः // ईश्वरानुज्ञयोक्तानिसच्छास्त्राणिमुनीश्वरैः // 54 // वेदार्थएवबोधार्थसच्छास्त्रेषुविवि च्यते // मंतव्यासावधानैर्वाग्वेदशास्त्रमयीशितुः / / 55 // ऋतेगुरुंतयोरोमनना)नबुध्यते // परंपराप्राप्तविद्योऽतःकश्चि सद्गुरुर्गतिः // 56 // वेदज्ञानाद्गुरुप्राप्तादुपदेशपुरःसरात् // केवलाद्वोपदेशाच्चेद्भजेत्तुष्येत्सनान्यथा // 57|| शीघ्रतद्दर्शका / प्राप्यमहामंत्रान्सतोगुरोः // वेदार्थथपरिश्राम्यच्छन्त्यासक्तोहरिभजेत् / / 58 // गुर्वाज्ञयासानुरागंसश्रद्धपुरुषोत्तमं // द्धभावोजेन्नित्यंयथाशक्त्युपचारतः // 59 // लोकेपिशरणायातान्सर्वस्व विनिवेदकान् / यदितुच्छोपिबलवान्कथंचि / दपिनत्यजेत् / / 60 // तर्हियःसद्गुरुद्वारातमेकंशरणंव्रजेत् // सर्वसमर्पयेत्तस्मैकथंत्यक्ष्यतितंप्रभुः // 61 // योगिनामपिदु / दशःसाक्षाद्यावन्नदृश्यते // शुद्धरूपादिबुत्ध्यर्थंतावत्तपतिमार्चनं // 62 // तत्राविश्यस्थितोमंत्रवशोगृह्णातिसोपितं // तानांत्वथतत्रैवसाक्षादनुभवोऽखिलः // 63 // गोपीचंदनमुद्राभिस्तुलसीमालयागले // गुरूपदिष्टाःशुद्धोर्ध्वपुंड्रास्तस्या / Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवल्लभाः॥ 64 // यथावश्यकवस्त्रादिनधृत्वानृपमंदिरं / / तदीयानवयांत्येवमत्राप्येतत्रयविना॥६५॥ वैष्णवानांचिन्हा मलपंडमालाचकंठगा // लोकानांलक्षणंकिंचिद्राजसंबंधिनामिव // 66 // गुरुपदेशमादायतस्माद्भूत्वासुवैष्णवाः // धृत्वा चस्वामिचिन्हानिसेवंतांसंततंहरि॥ 67 // पूर्णानंदमयंयद्ब्रह्मपरंसर्वदेवसेवध्वं // बुत्थ्यध्वंस्थिरमनसातद्वदादिमनिरंतराभ्या सात् // 68 // इतिश्रीमद्वल्लभाचार्यमतवर्तिश्रीवजवल्लाचरणानुचरपंचनदीघनश्यामजदात्मजगोवर्द्धनशीघकविविरचि तिवेदांतचितामणौनांस्तिक्योच्छेदकशास्त्रार्थसंग्रहाख्यंप्रथमप्रकरणं // 1 // // // // // // // शाब्दमेवप्रमाणंस्यात्परोक्षब्रह्मनिश्चये // अलौकिकंस्वतंत्रंचसाक्षात्तत्प्रतिपादकम् // 1 // वेदाःश्रीकृष्णवाक्यानिव्यास 1 सूत्राणिचैवहि // समाधिज्ञाषाव्यासस्यप्रमाणंतच्चतुष्टयं // 2 // उत्तरपूर्वसंदेहवारकंपरिकीत्तितं // अविरुद्धंतुयत्त्वस्य। माणंतच्चनान्यथा // 3 // एतद्विरुद्धंयत्सर्वनतन्मानंकथंचन // इत्युक्तमाचार्यपादैःप्रमाणानांविनिर्णये // 4 // स्वस्वरू पहिबोधार्थवेदेष्वेवनिरूपितं // सगादीनांप्रकाराश्वभक्तिर्मक्तिश्चवर्णिता // 5 // परोक्षाचित्यरूपंयद्विस्पष्टसाधनंफलं // तस्तैरेवजानीयायामोहितबुद्धयः // 6 // वेदास्तेस्वात्मकास्तेनोपदिष्टाब्रह्मणेपुरा // तेनर्षिभ्यःस्व शिष्येभ्यस्तैस्तैःस्वेभ्यश्वद शिताः / / 7 / / एवंपरंपराप्राप्ताआम्नायाभगवन्मयाः // (स्कंध६) वेदोनारायणःसाक्षात्स्वयंभूरितिशुश्रुम ॥८॥श्वेताश्व / / / तरेयोब्रह्माणंविदधातिपूर्वयोवैवेदांश्चप्रहिणोतितस्म।। तहदेवमात्मबुद्धिप्रकाशंमुमुक्षुर्वैशरणमहंप्रपद्ये।। ९॥(स्कंध११)का 1 श्रीभागवत ܕܪܐܝܛܟܐ ܡܝܢܓܛܓܕܝ ܚܞ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे- चिलेननष्टाप्रलयेवाणीयंवेदसंज्ञिता // मयादौब्रह्मणेप्रोक्ताधर्मोयस्यांमदात्मकः // 10 // श्रुतिभागवतादौतत्स्पष्टमेवावगम्य / प्र.२ त // बहुप्रकारैर्बोधार्थतत्रब्रह्मैवरूप्यते // 11 // नारायणपरावेदाइतिज्ञागवतादिषु // वेदैश्चसर्वैरहमेववेद्यइतिहिस्मृतिः॥ // 12 // तत्रावशिष्टंहरिणाविरक्तायार्जुनायतत् // तथातदधिकारेणस्मृतिरूपेणरूपितं // 13 // सूत्रेयरूपत्वंवाक्य / शेषत्वमुच्यते // वेदोऽपिब्रह्मवाक्साक्षातंत्रस्यादेववेदता ॥१४॥पायेगीतामाहात्म्ये॥ गीतासुगीताकर्तव्याकिमन्यैःशास्त्र विस्तरैः // यास्वयंपद्मनाभस्यमुखपद्माद्विनिर्गता // 15 // वेदस्यदु यार्थत्वाच्छास्त्रसंदेहवारकं // व्यासेनाविष्कृतंसूत्र मयंब्रह्मनिरूपकं // 16 // तच्छिष्योजैमिनिरपिवेदैर्धर्मव्यचारयत् / / एवंकलमोहिवेदार्थोमीमांसातोवसीयते॥१७॥व्या सोनिर्णीतवान्ब्रह्मस्वरूपंसाधनंफलं // श्रुतितःस्मृतितःशास्त्रेन्यषेधत्तदसंमतं॥ 18 // ब्रह्मसूत्रपदैश्चैवहेतुमद्भिर्विनिश्चितैः // प्रामाण्यमितिगीतासुतस्यभागवतेऽपिच // 19 // (स्कंध 1) जिज्ञा सतंसुसंपन्नमपितेमहदद्भुतम् // जिज्ञासितमधीतंच यत्तद्ब्रह्मसनातनम् // 20 // भारतेऽदाशवेदार्थःपुराणैरपिकैश्वन // सूत्रकर्त्तस्तथाप्यात्मानात्यतुष्ययदातदा // २१॥ना / स्मैनारदवारद्वारोपदिष्टायसमाधितः / भगवान्दर्शयामासरूपंजागवतात्मकं // 22 // यथापश्यत्तथैवाविश्वकाराक्षरशो खिलं // श्रीभागवतरूपस्त्वंप्रत्यक्षःकणएवहि // 23 // इतिपाझेस्फुटंज्ञानावतारोबादरायणः // समतुष्यत्तदाकण्णदश 3 1 श्रुतिस्मृतिरूपत्वं 2 वेदवाक्यशेषत्वंगीतायाः 3 ईश्वरवाचि 4 अथातोब्रह्मजिज्ञासत्यादिचतुरध्यायं 5 प्रथमेध्याये 6 तृतीयेध्याये 7 चतु 2 8 दितीये 9 श्रुतिस्मृत्यसंमतंसांख्यादिमतं" अत्रस।विसर्गश्चस्थानपोषणमूतयइत्याद्यादश आदिशब्दादधिकारोज्ञानंच Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3D लीलादिकीर्तनात् // 24 // भगवान्ब्रह्मणेदेवर्षयसमुनयेचसः॥प्राकाशयदिदंव्यासःप्रादुश्वकेशुकादिभिः॥ 25 ॥को स्मैयेनेत्यादितत्रानेकत्रैतत्पदृश्यते // अन्यत्स्मृतिपुराणाद्यप्यासीत्तादृग्घरीच्छया // 26 // एवमेतानिचत्वारिसंशयघ्रानिच कमात् // प्रकाशितानिहरिणाजीवानुयहकारिणा // 27 // अनाद्वित्त्वाच्चभगवद्पत्त्वात्सर्वनिर्णये // सर्वथैवप्रमाणं स्यादेषामरक्षमक्षरं // 28 // अन्यदेभ्योबहुतरमविरुद्धंप्रमापकं / / विरोधीन्यप्रमाणानिमोहशास्त्राणिसृष्टये // विरुद्धधर्माचित्यंतत्परोक्षंमहदद्भुतं / अलौकिकेनशाब्देनज्ञातुमेतेनशक्यते // 30 // यद्यदिष्टंतुतत्सर्वंयद्वशेमृत्युरप्यसौun अवश्यमेवज्ञातव्यंतढुःखातिनिटत्तये // 31 // (स्कंध 11) लब्ध्वासुदुर्लभमिदंबहुसंभवान्तेमानुष्यमर्थदमनित्यमपीहधी HH // तूफयतेतनपतेदनुमृत्युयावन्निःश्रेयसायविषयःखलुसर्वतःस्यात् // 32 // नजन्मनःप्रापितरौनापत्यंमृत्यनंतरं // न स्वीस्वीयाविवाहाबाक्तस्मात्तन्ममतास्था // 33 // विकीतगृहषादौनष्टेदुःखनजायते // अविक्रीततजायेतममतातत्रका रणं // 34 // देवदत्ताभिधेदेहेमध्येऽहमितिमन्यते // क्षणांतरेमृतौदेहःक्ववाजीवःक्वगच्छति // 35 // करोत्यघंकुटुंबाथै| मृतेतद्रोदितिक्षणं // नसहायस्तदादूतैर्यदानीयेतयातनां / / 36 // प्रियास्त्रीतनयागेहंधनाद्यत्रैवतिष्ठति // देहोऽपिकितया प्रत्येकःपापपुण्यसहायवान् // 37 // मुनिभिःसर्वगतिभिःवस्थानांयहणादिकं // यथातथाऽधोलोकस्यगतयोऽपिविनिश्चिा ताः // 38 // देहेऽहंताचगेहादौममतामाययातुया / तेसंसारोट्र्थतजंरागवैरादिकंत्यज / / 39 // सदासंबंधिनसर्वदुःखनं / / द्वादशस्कंधे कस्मैवेनविभासितोयमतृलोज्ञानप्रदीपःपुरेत्यादि 2 ब्रह्म Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 02 वेचिनित्यमीश्वरं // स्नेहागजमहानंदोऽमृतदेहोभविष्यसि // 40 // असेवनेमहान्दोषःपाझेयजीवलक्षणे // दासभूतोहरेरेवना न्यस्यैवकदाचन // 41 // इत्यसौसहजोदासोजीवःसृष्टःस्वशक्तये॥ अमजस्तंतुतद्दत्तंयोभुंक्तस्तेनएवसः॥ 42 // (भाग वते) नृदेहमाद्यसुलसुदुर्छप्लवंसुकल्पंगुरुकर्णधारं // मयानुकूलेननभस्वतेरितंपुमान्भवाब्धिंनतरेत्सआत्महा // 43 // नोऽवश्यंसेवनीयोनिरपेक्षोपकारकत् // ज्ञातव्यश्वयथार्थास्याक्तिर्ज्ञानं विनानयत् // 44 // वेदादिनिष्ठामनयोबहवोज्ञान चक्षुषः / अपश्यन्नक्तियोगेनसंप्रापुस्तंपुराविदः॥४५॥ यतमानोविदेदैःशक्यादीनोभजेद्रतः॥ माहात्म्यज्ञोऽस्यरुपया सुलभंस्यात्सुदुर्लभम् // 46 // सर्वैरनन्यशरणैःप्रवर्ण्यमानंप्रमाणबंदिगणैः // महतःफलांतरंगंभजामिबीजप्रपंचतरोः॥४७॥ इतिश्रीमद्वल्लभाचार्समतवर्तिश्रीव्रजवल्लभचरणानुचरपंचनदीघनश्यामभद्वात्मजगोवर्धनशीघ्रकविविरचितेवेदांतचितामणौ प्रमाण निरूपणनामद्वितीयंप्रकरणं // 2 // // 7 // शुद्धाद्वैतकरूपायशुद्धद्वैतप्रदर्शिने // शक्त्यासर्गादिलीलायन मोऽस्त्वद्भुतकर्मणे // १॥सविश्वलीलयैवेदंसृजत्यवतिहंत्यजः॥ तथायतोवाइमानि तानीतिप्रपठ्यते // 2 // तैत्तिरीयेषता स्माद्वाएतस्मादितिचस्फुटं। तदस्यब्रह्मरूपत्वंब्रह्मकार्यस्ययुज्यते // 3 // मृदुद्भूतघटादीनांमृन्मयत्वंनिरीक्ष्यते // यत्सर्वखल्वि दंब्रह्मतज्जलानितिहिश्रुतिः // 4 // सर्वपुरुषएवेदंभूतंजव्यंभवच्चसत् // इतिभागवतेसूक्तंपौरुषसमनूदितम् // 5 // यथाघट शरावाद्याऽऽकतिमात्रेणभिद्यते // नभिद्यतेमृन्मयत्वात्तथैवात्रचराचरं // 6 // मृदूपाप्रथमावस्थामध्येभिवेतकारणात् ॥घ 1 ज्ञानाय 2 द्वितीयस्कंधे Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dटायाकार देनमृत्सात_पिवस्तुतः॥७॥लयेऽपिशकलाःसुक्ष्मा:सूक्ष्माजायंतएव हि ॥तेमृद्येवप्रलीयंतइत्यन्नेऽप्यस्यमृत्ति का // 8 // तथाब्रह्मैवात्रपूर्वमतेब्रह्मैवशिष्यते // मध्येक्रीडार्थभेदार्थनानातेनेच्छयारुतं // 9 // सर्वाकारंसर्वशक्तिसर्वध श्रियोहितत् // सच्चिदानंदरूपंचतस्मादाविरभूजगत् // 10 // जडजीवांतरात्मानःपूर्वमाविष्कृताइमे // एकंद्वयंत्रयंतत्र || दायास्थापयद्विभुः // 11 // जडेसदंशःप्रकटश्चिदानंदौतिरोहितौ // जीवेचसच्चितावंतर्यामिण्येतत्रयंस्फुटं // 12 ॥स नामविद्यतेचिच्चचैतन्येनप्रकाशते // आनंदःप्रियतातीवत्येषांप्रत्यक्षलक्षणम् // 13 // जडंसर्वमृदश्मादिक्रियाशून हियत् / / सत्तामात्रंजडस्यास्तिनप्रीतिर्नप्रकाशनम् // 14 // तनोर्यत्संबंधएवश्वासादिर्नशवेऽन्यथा // सोडणुमात्रश्चट स्थानोजीवोजीवनकारणं // 15 // सविद्यतेऽखिलेदेहेचैतन्येनप्रकाशते / / जीवनविषयानंदोयद्यप्येषोऽनुभूयते न्यूनाधिकःसक्षणिकोनपूर्णानंदउच्यते // तस्यैवानंदस्यमात्रामुपजीवंतिहिश्रुतिः // 17 // भिन्नःप्रतिशरीरंयोऽणुर्हत्स्था हंसशब्दभाकू // साक्षीसोंतःस्थितःस्पष्टंतत्रतत्रेयमेवहि // 18 // अतैनातनःसृष्वाजीवांतर्यामिणावुभौ ॥प्रत्येकंसं स्थाप्यजीवान्माययामोहयत्पभुः // 19 // जडेष्वपीच्छयाधर्मास्तिरोभाव्याखिलान्निजान् // केचित्कचित्क्वचित्केचि, च्छेषिताभेदसिद्धये // 20 // प्ररोहोमाईकिंचिदृक्षेकाठिन्यमश्मसु // अप्ररोहश्वेतिभेदोमृज्जातेष्वपिगम्यते // 21 // अनु Mणाशीतलस्पीभवाय्वोरप्सुशीतलः॥ सतेजस्यष्णएवेतिधर्माणामप्यनेकता॥२२॥चिदायजावतोरूपेबव्हाकारप्रकारतः।। 1 चेष्टा 2 चेतनासमवधानात् 3 अस्मित्वप्रत्ययः 4 अंतर्यामी 5 सच्चिदानंदाः 6 आकाशादिभिः Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rai वेचिन परस्परंविभिन्नानांधर्माणामपिदर्शनात् // 23 // सज्ञानानांचजीवानांमाययामोहनादृढम् // महान्प्रदृश्यतेभेदोब्रह्मत्वं प्र०३ नवलक्ष्यते // 24 // वस्तुतस्त्वखिलंब्रह्मत्रिकालेषुतथास्मृतिः॥ वासुदेवःसर्वमितिसमहात्मासुदुर्लभः // 25 // (स्कंध८) त्वय्ययआसीत्वयिमध्यआसीत्वय्यंतआसीदिदमात्मतंत्र // त्वमादिरंतोजगतोऽस्यमध्यंघटस्यमत्सवपरःपरस्मात् // 26 // तानिविष्णर्भवनानिविष्णुः॥इतिभागवतेविष्णुपुराणेऽन्यत्रचोदितम् // तस्मादभिन्नमेवास्तिकारणाह्मणोजगत् / / 27 // आविर्भावेचिदादीनांधर्माणामपिसर्वशः / / ब्रह्मवैकंतदापूर्णसर्वस्यादेवकेवलं // 28 // दृश्यतोकारतोभेदोमुद्रिकाकटका है दिषु / / आदिमध्यावसानेषुवर्णमेवेतिनिश्वयः॥ 29 // जीवानांब्रह्मविज्ञानादानंदांशप्रकाशनात् ॥सर्वत्रलीलयाताह ब्रह्मैवैकंप्रतीयते // 30 // नानात्वमैच्छिकंमध्येऽचित्यत्वादृश्यतेमहत् // तमोनाशेशुद्धदृष्टेर्नेहनानास्तिकिंचन // 31 // रूपःसदासत्याप्रपंचस्तकतोऽखिलः // निरूप्यतेहिवेदादौशुद्धाद्वैतमतोमतम् // 22 // सत्यस्वरूपमेतत्स्वस्मादाविष्कृत स्वयंयेन // कर्तारंभत्तीरहर्तारंभजसदाललितलीलम् // 33 // ॥इतिश्रीमद्वल्लभाचार्य्यमतवत्तिश्रीब्रजवल्लभचरणानुचर / पंचनदीघनश्यामभद्दात्मजगोवर्द्धनशीघकविविरचितेवेदांतचितामणौसंक्षेपतस्विविधकार्यनिरुपणंनामतृतीयंप्रकरणं॥३॥ भगवत्समवायित्वात्ताइप्यात्सत्यएवहि ॥प्रपंचोयादृशंस्वर्णतादकस्यादेवकुंडलं // 1 // तंतुकार्यपटस्तत्वात्मकास्यस्तंतवो यथा / / मूक्ष्माःसिताश्ववस्त्रेऽपितत्तादृक्षत्वमीक्ष्यते // 2 // ऐतदात्म्यमिदंसर्वतत्सत्यमितिपठ्यते // यदिदंकिंचतत्सत्यमित्या छांदोग्येश्वेतकेतुविद्यायां 2 तैत्तिरीयब्रह्मवल्यां Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्षतइत्यपि // 3 // सर्वशब्देननिर्दिश्यदृष्टंश्रुतमदोऽखिलं // एतस्यब्रह्मरूपत्वंसत्यत्वंच निरुप्यते // 4 // कालत्रये प्यबाध्यंयत्सत्यमित्युच्यतेबुधैः // त्वय्ययआसीत्पद्येऽपिसदासत्ताभिधीयते // 5 // तस्मात्सनातन मिदमरलंडंबर्त्ततेस। Fदा // मध्येकार्यात्मनापूर्वोत्तरयोःकारणात्मना // 6 // विश्वहिब्रह्मतन्मात्रसंस्थितं विष्णुमायया // यथेदानीतथा चायेपश्चादप्येतदीदृशं // 7 // उक्तंतृतीयस्कंधेऽथसूत्रक श्रुतेर्बलात् // कारणानन्यतामस्योनासत्यत्वंप्रपंचितं // 8 ( अ० 2 पा० 1 सू० ) 14 तदनन्यत्वमारंभणशब्दादिभ्यः // 15 भावेचोपलब्धेः // 16 सत्वाचावरस्य // 17 // असद्यपदेशान्नेतिचेन्नधर्मातरेणवाक्यशेषात् / / 18 युक्तेःशब्दांतराच्च / 19 पटवञ्च // ब्रह्मानन्योस्तिसत्योयंभावेसत्यु पलभ्यते॥अवरस्यप्रपंचस्यसत्त्वमुक्तश्रुतौश्रुतं // 9 // असद्वाइदमित्येतदव्यारुतिपरंमत।।तदात्मानंस्वयमितिवाक्यशेषस्यस र गतेः // 10 // समवेतंभवेत्कार्ययुक्ति/जद्रुमादिवत् // वाक्यान्तराणिसत्यत्वबोधकानिबहूनिहि // 11 // पटोनुभूयतेसा / विस्तीर्णोनानभयते // संकोचेल्पतयातद्वत्सृष्टिप्रलययोर्जगत् // 12 // व्याख्यातमित्थंभाष्यसत्कार्यवादोविविच्यते // एवंसर्वत्रवेदादौयुक्तिभिश्वानुभूयते॥१३॥ आविर्भावतिरोभावाभ्यांनवास्तिह्मनित्यता // आविर्भावप्रतीयततिरोभावे तुनेच्छया // 14 ! आविष्कतानिभूतेभ्यःशरीराणीच्छयास्वयं // ईश्वरोजीवयुक्तानिनिमित्तीकत्यकेवलं // 15 // भूते भ्यआविष्कुरुतेतादृशानीतराण्यपि // तानिकर्मानुसारेणजीवान्प्रापयतिप्रभुः // 16 // देहाःसंत्येवभूतेषुभागैःकारणरूप तः // मध्येकार्यात्मनाभिन्नालीयंतेऽन्तेचकारणे // 17 // जीवस्तुनित्यएवास्तियोगोभगवदिच्छया // आविर्भावतिरो Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ doot INनावशालिनित्यमतोऽखिलं // 18 // व्यासेनभारतेयोधोयहतास्तेप्रदर्शिताः // इतिनित्यंतिरोभावेडपीच्छयादृश्यतेक्वचि प. त् // 19 // केचिदाहुर्जगन्मिथ्याभ्रमाद्ब्रह्मणिदृश्यते॥ यथेहरजतंशुक्तौयथारज्जौभुजंगमः // 20 // ब्रह्मादृश्यंसर्वथैवनि राकारंमतेचते // साकारदृश्यएवस्यादाश्रयेनिश्चितंभ्रमः // 21 // नधूल्याच्छन्नशुक्तौवावायौवाभांतिरिष्यते // किंचसा धर्म्यमूलोऽयंशुक्तौयच्चाकचक्यतः // 22 // किनान्यथागजभांतिर्मायिकंसगुणंजगत् // निर्धर्मकेविमायंतत्साम्यगंधो पिनानयोः // 23 // हट्टादौरजसत्यंवल्मीकादौचपन्नगः // दृश्यतेतज्जसंस्कारात्कल्पयेद्धीमषाश्रये // 24 // त Elथाभिन्नमऽतःसत्त्यं दृष्टंचेदीदृशंक्वचित् // तदाकल्प्येतसंस्कारादृश्यतेश्रूयतेनतत् // 25 // नन्वसत्योयथास्वमोग्रह वित्तादिलभ्यते // मिथ्यातंत्रननिद्रांततेदसत्यमिदतथा // 26 // इतिचेन्नतदोद्भूतैःपापैःपुण्यैर्नवैभवेत् // दुःखसुखं वातत्सर्वजगज्जाभ्यांतुजायते // 27 // दृष्टंजायदवस्थायांयद्यद्दटपटादिकं // संस्कारात्कल्प्यतेतत्तन्मोहनान्माययाम तः॥ 28 // अस्यजायदवस्थातुमोक्षस्तत्रनकिंचन || क्वत्यंसत्यंतदादृष्ट्वाऽत्राऽसत्यंपरिकल्पितं // 29 // नन्वदृष्टम पिस्वमेदृश्यतेभंगवाञ्छशः // चलन्वृक्षोगजःपीतइत्याद्यत्राविलंतथा // 30 // इतिचेन्नशशोरक्षोहस्तीशृंगंगतिक्रिया।। पीतवर्णइमेदृष्टायोगमातुकल्प्यते // 31 // गृहंसत्यं स्वयंसत्योयोगोममतयामधा // जीवःसत्यस्तनुःसत्याऽहंताराजत्वव हथा // 32 // सिद्धांतइतिचेतहिदृष्टांतउपपद्यते // पुराणेष्वप्येतदर्थस्वमानत्वंक्वचित्कृतं // 33 // अतःसूत्रेषुवैधा 1 स्वमे 2 स्वामिकवस्तु 3 विप्रादेःस्वमेराजैवाहमितिप्रतीतिवत् Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चनस्वमादिवत्त्वतः // निषिध्यतेऽधिकरणादसत्यत्वंतुवस्तुतः // 34 // स्वमेभुक्त्यंबुपानाभ्यांक्षुत्तृण्वनिवर्त्तते // तदादे / हकतैबंधात्कथंमुच्येतसाधनैः // 35 // तस्मादसत्त्यनैवेदंताद्रूप्यान्नित्यमेवहि // श्रुनिष्वनेकत्रसत्यत्वमुक्तंनान्यथाक्कचित P // 36 // (द्वादशस्कंधे) एतत्केचिदविद्वांसोमायासंमृतिमात्मनः // अनाद्यावत्तितंनृणांकादाचित्कंप्रचक्षते // 37 // सत्यमप्रतिष्ठतेजगदा हुरनीश्वरं // इत्यासुरेषुगणिताअसत्त्यत्वप्रवादिनः // 38 // दृढाहंतापदंदेहंगेहादिममतास्पदं // या दासत्त्यं विजानीयान्नविरज्येतकश्चन // 39 // वैराग्यार्थमसत्त्यत्वंपुराणेषुक्कचिवचित् // अभिप्रेत्यतिरोभावंकुत्रचित्सं तितथा // 4. क्रीडामयेप्रोरस्मिन्संयोगविगमास्पदे // तिरोभाविनिनोरागःकर्त्तव्यःक्षणिकेच्था॥११॥ शेषेणाप्या स्यनित्यत्वंनिश्चितंपस्पशान्हिके // नित्यःकार्योऽथवाशब्दइत्याकारविचारणे // 42 // नित्येशब्दार्थसंबंधइत्येतत्तुवि टण्वता ॥शब्दश्चार्थश्वसंबंधस्त्रयोनित्यानिरूपिताः॥४३॥ एवंसर्वत्रशास्त्रेषुनित्यमेवनिरूपितं आविर्भावतिरोभावाभ्यांमि तथ्याभात्यनित्यता॥४४॥ असच्छास्त्रेष्वनित्यत्वंन्यायादिषुविविच्यते / / सनास्तिक्येषमोहायमनिजिनिर्मितेष्विह // 45 // उत्तरोत्तरसर्गाथमोहनायमनीषिणाम् / / रुद्रादिदैवतैःकश्चिन्मतेषुरचितेषुच // 46 // तादृकूछास्त्राभ्यसनतोश्रांतचित्ताः स्वकर्मभिः // अप्राप्ततत्वाजायंतेनियंतेचमुहुर्मुहुः // 47 // (मार्कंडेये अ०८१ ) ज्ञानिनामपिचेतांसिदेवीभगवतीहि सा // बलादारुष्यमोहायमहामायाप्रयच्छति // 48 // केचिदेवतुवेदार्थप्रसादात्सद्गरोहरेः // विनिश्वित्यभजंतस्तंमुच्यतेप्रा / मवन्त्यपि // 19 // नित्यं स्वरूपमखिलमाविर्भाव्यस्वयंतिरोभाव्य // रममाणमविहतेच्छंदृत्पदकेहीरकंविरचयाच्छं। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .5 sh 50 // इतिश्रीवेदांतचितामणौप्रपंचसत्यत्वनिरूपणंनामतुर्यप्रकरणं // 4 // ननूत्पत्तिर्घटस्यास्तिध्वंसोप्यस्यविलोक्यते // कथंवाच्याप्रपंचांतःपातिनस्तस्यनित्यता॥१॥ अनंतसत्यनादित्वेनित्यमित्यु काच्यतेकथं // नश्वरंनित्यमितिचेद्यथैतत्कथ्यतेतथा॥२॥घटेनष्टेतुकिनष्टंनाकारोऽन्यत्रदृश्यते // नमृत्तिकाप्रस्थमिताचेताव त्येवलभ्यते॥शाननष्टाघटसंज्ञापिशब्दानांनित्यतायतः // सृष्ट्यारंभादनेकेस्युर्ध्वस्तास्तेसातुविद्यते॥४॥कित्वाकारमृदोर्यों भूसंज्ञायावाचकत्वतः।।तत्राकारतिरोधानेसंयोगःसनवर्त्तते॥५॥सर्वाकारोहरिःपूर्णएकैकाकारतःपृथका बहुत्वमिच्छन् पाणिचकारद्विविधान्यपि॥६॥सर्ववर्णानपूर्वीकैःशब्दैर्वाच्योऽर्थतःस्वयंव्यवहारायनामान्यप्येकैकस्येच्छयाव्यधात् ॥णा सर्वाणिरूपाणिविचित्त्यधीरःनामानिकत्वाभिवदन्यदास्ते / तद्धेदंत_व्याकतमासीत्तन्नामरूपाभ्यांव्याक्रियते // नामरूपे व्याकरवाणीत्याद्याःश्रुतयोऽवदन् / तच्चित्तौबृहदारण्येछांदोग्येन्यत्रचक्रमात् // 8 // कंबुग्रीवादिमांस्तेष्वाकारोयोनियतः पुरा // योगस्तावन्मृदस्तस्यचोत्पत्तिरितिकथ्यते // 9 // अयमर्थःपदादस्माद्बोध्यइत्थंचनामसु // स्वीयेष्वेकैकरूपेषसं यःपुराकतः // 10 // तस्मात्परंपराप्राप्नात्तथाव्यवहतेस्तयोः॥ योगंघटेत्यानुपूर्वीवक्तिवाच्यतयातदा // 11 // व्यवहारा भवंत्यस्मात्तेजलानयनादयः॥ यआकारानुसाराद्वासृष्वानियमिताःपुरा।।१२॥ अनंतरंतथेच्छातोनिमित्तीकत्यकिचन तिरोभाव्यतआकारःक्रियतेमुल्लयोमृदि // 13 // घटशब्दस्यवाच्यस्तुदृश्योयोगोवियोगतः // तत्राप्रत्तेःसंज्ञायानष्टोचा ___ 1 घटांतरेषु 2 चराचराणि. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टइतीरणा // 14 // पृथूदरत्वायाकारःसमयस्तुतिरोहितः // भिन्नभिन्नापआकारादृश्यतेऽवयवेषुते // 15 // पूर्वाकारांश भूनाहिघटस्यशकलाइव / तेषामपितिरोधानंयदाणुत्वंभवेत्तदा // 16 // वस्तुनोविद्यमानस्यजीवानुभवयोग्यता // आ विर्भावस्तिरोभावोऽतोऽन्यथेतिहिलक्षणं // 17 // आविर्भावतिरोभावावुत्पत्ति शइत्यपि // शास्त्रविद्भिविकल्प्येतेविदु ब्रह्मविदस्तुतौ // 18 // तदेतदक्षयंनित्यंजगम्मुनिवराखिलं॥ अविर्भावतिरोभावजन्मनाशविकल्पवत् ॥१९(अध्याय२२ लो०५९) इतिविष्णुपुराणेपिप्रथमांशेनिरूपितं // उक्तंभागवतेप्येतद्दशमेहरिणास्वयं॥२०॥खवायुयॊतिरापोभूस्तक / यथाशयं / / आविस्तिरोऽल्पोभूर्यकोनानात्वंयात्यसाबपि // 21 // छांदोग्येतस्यैवंविजानतएवंमन्वानस्येत्युपक्रम्य // आ विर्भावतिरोभावावात्मनोऽन्नमात्मनइतिश्रूयते // 22 // स्पष्टश्रुत्यंतरेकेनबृहदारण्यकादिमे // मार्कडेयपुराणेपितुर्येध्याय| PALIनिरुप्यते // 23 // (श्लो०३९) आविर्भावतिरोभावदृष्टादृष्टविलक्षणम् // वदंतियत्सृष्टमिदंतथैवान्लेचसंहतम् // पराणेब्रह्मवैवर्तेखंडेश्रीकृष्णजन्मनः // एकवितथाध्यायेनंदादीन्रुष्णआहतत् // 25 // (श्लो०९)स्थानेस्थाने थिव्यांचकालेकालेयथोचितम् // ईशेच्छयाविर्भूतंहिनभवेत्प्रतिबंधकं ॥२६॥तथा।। (श्लो० 121) ब्रह्मांडवाकतिविधमा विर्भूतंतिरोहितम् // विधेयावाकतिविधास्तस्यभूभंगलीलया // 27 // देहोपिपंचभूतेभ्यआविर्भूतस्तदिच्छया // योगो योग्यभागानांतेषांतत्ताहगाकतेः // 28 // कर्मानुसारतोजीवस्तावत्कालंभुनक्तितं // व्यवहारास्तदातस्मिन्स्युर्मनुष्यगा। वादयः // 29 // परतंत्रःसतांत्यत्वायदादेहांतरंबजेत् // वियुज्यंतेदह्यमानेदेहेतान्यारुतिस्तथा // 30 // आकारस्तुतिरो। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेचित्तेतेजोलीयेततेजसि // श्वासादिरूपोयोषायुःसोऽवशिष्टस्तुतंविशेत् // 31 // आकारबद्धआकाशस्तत्तिरोधानतोगतः०५ जलंतेजसिभूमौवाभूमि स्मादिरूपतः // 32 // वियुक्तान्यपिविद्यतेसंज्ञायाअप्रनितः // संयोगस्याभिधेयत्वान्नष्टोऽसा 4 वितिगद्यते // 33 // मुक्ताभिर्यथ्यतेमध्येनिधायपदकान्यपि // गुणस्तेषांससंयोगोहारइत्यभिधीयते // 34 // मुक्तादीनां वियोगे नहारसंज्ञाप्रवर्त्तते // संयोगविगमावेवतौनकस्यापिहिक्षयः // 35 // यथाकीडोपस्कराणांसंयोगविगमाविह॥ इच्छयाक्रीडितुःस्यातांतथैवेशेच्छयानृणां // 36 // इत्युक्तंप्रथमेस्कंधेतृतीयेपिविवेचितम् // तन्निरोधोऽस्यशयनमावि Tर्भावस्तुसंभवः // 37 // कार्यकारणरूपेणतिरोभावेतुविद्यते // आविर्भावततपंतदिच्छातोविभिद्यते // 38 // सएवप्रोया तेहार:पुनःप्रोतंयदीष्यते / / आविष्कुर्यात्तमेवबंदेहमिच्छेद्यदीश्वरः // 39 // मद्रिकानिष्ठमाणिक्यंकंडलेजटितंयथा // परी भवानीशितु वस्तjयातितथेतरां // 40 // वासांसिजीर्णानियथाविहायनवानिगृह्णातिनरोऽपराणि // तथाशरीराणिवि हायजीर्णान्यन्यानिसंयातिनवानिदेही // 41 // मुद्रिकायामिद्रमणिस्तस्यांजट्यतइच्छया॥ परकायप्रवेशादौजीवस्या वस्थितिस्तथा // 42 // तस्यांतदेवमाणिक्यंशक्यतेजटितुंपुनः॥ तथाविर्भाव्यतानेवक्वचिद्दर्शयतिप्रभुः // 13 // भारते। दर्शिताःसर्वेप्रादुर्भाव्यतएवहि // व्यासद्वारातुतत्स्पष्टंपर्वण्याश्रमवासिके // 14 // सर्वेभवंतोगच्छंतुनदीभागीरथीप्रति॥ ततोद्रक्ष्यथसर्वांस्तान्येहताःस्मरणाजिरे // 45 // ततःसर्वेसदारास्तत्रगत्वावगायरात्रौव्यासाश्रमंजग्मः // ततोव्यासोमहाते 1 परतंत्रः RA Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाःपुण्यंभागीरथीजलं॥ अवगाहाजुहावाथसल्लिोकान्महामुनिः॥ 46 // पांडवानांचयेयोधाःकौरवाणांचसर्वशः राजानश्चमहाभागानानादेशनिवासिनः // 47 // ततःसुतुमलःशब्दोजलांतेजनमेजय // प्रादुरासीद्यथापूर्वकुरुपांडव PIसेनयोः॥४८॥ ततस्तेपांडवाःसर्वेभीष्मद्रोणपुरोगमाः // ससैन्या:सलिलात्तस्मात्समुत्तस्थःसहस्रशः॥ 49 // इत्यादि नाप्रत्त्येकनाम्नानिरूप्योवाच // एकांरात्रिवित्दृत्यैवंतेवीरास्ताश्चयोषितः॥ आमंत्र्यान्योन्यमाश्लिष्यतनोजम्मुर्यथागतं rin 50 // एतदाकर्ण्यजनमेजयोऽन्वयुक्त // कथंचत्यक्तदेहानांपुनस्तद्रूपदर्शन मिति / / तदानीवैशंपायनउवाच ॥अवि पणाशःसर्वेषांकर्मणामितिनिश्चयः // 51 // कर्मजानिशरीराणितथैवाकतयोनृप / / महाभूतानिनित्यानिभूताधिपतिसं श्रयात् // 52 // इत्यादि / एतदये। अविनाशीतथानित्यःक्षेत्रज्ञइतिनिश्चयः // तानामात्मभावोयोध्रवोसौसंप्रजान / ताम // 53 // इत्यादिभारतेपोक्तमन्यत्रापिस्फुटंत्विदं // संग्रहीतमिदंविद्वन्मंडनेषभुभिःस्वयं // 54 // संयोगविगमौत / स्मादेहादेओष्यकत्ततः // व्यधात्वचिच्चसदसत्प्रपंचेगणनामपि // 55 // क्रीडार्थमाविर्भवतिनानास्पैनिजेच्छया / स वधर्मातिरोधत्तेशक्तिमान्भगवान् स्वयम् // 56 // आविर्भावतिरोभावीशक्तीवैमरवैरिणः // इत्याचार्यैःसंगृहीताद्वच नाच्छक्तितातयोः॥ 57 // परास्यशक्तिर्विविधैवश्रूयतइतिवृतिः॥ यःसर्वज्ञःसर्वशक्तिरितिसर्वास्विमावपि // 58 // आविर्भावयतीत्येकातिरोभावयतीतरा // तत्कार्यमाविर्भवनंतिरोभवनमप्यथ // 59 // यदपकर्मकमयमाविर्भवनामि में मच्छति // तयाविर्भावयतितत्तिरोभावेऽप्ययंकमः // 6 // नित्यतेभगवच्छतीनकार्ययगपत्तयोः॥ सर्वात्माशक्ति Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान्कितुयद्यत्कर्मकमिच्छति।। 61 // गमनादानशक्तीतुवर्ततेचरणेकरे // देहीच्छयातयोःकार्यंतदभावप्रसुप्तता // 62 // ब्रह्मनिष्ठमिदंसर्वतस्याविर्भवतीच्छया // जात उत्पन्नइत्याद्यातस्मिन्व्यवदतिस्तदा // 63 // आविर्भावोहिजननंप्रादु। वजनिर्यतः॥उत्पूर्वोवापदगताधातुरुत्पत्तिरुद्गमः॥६४ // नदृश्यतेतिरोभूतंवस्तुब्रह्मणितन्मयंयथाजवनिकाच्छन्नंपटा दिनविलक्ष्यते॥६५॥नाशमानोनाशमाप्तइतिव्यवदृतिस्तदा।।वस्तुतोऽदर्शनंनाशोनशधातुरदर्शने॥६६॥चेतनेव्यवहारस्तु / / मृतइत्यपिजायते॥प्राणत्यागेहिमृङ्प्राणःसंघातस्थोवियुज्यते॥६७ जीवोपाधिःससंघातोजीवनसहगच्छति।जीवदेहवि। योगोडतोमृतिरित्यभिधीयते॥ ६८॥तीधात्वर्थविचारतुव्यवहारेपिसिध्यतः।। नाशोत्पत्तिविकल्पस्त्वपरिनिष्ठधियामयम्। ॥६९||नाशात्पत्तिविदांशोकाऽप्यनित्यत्वधियानवेत्॥ नित्यत्वज्ञाब्रह्मनिष्ठानविमुझंतिकार्दचित्।।७०॥नित्यत्वंबोधितस्प टंगीतासुहरिणास्वयं // अज्ञानस्यविनाशायततोनष्टार्जुनस्यशुक् // 71 // नत्वेवाहंजातुनासंनत्वंनेमेजनाधिपाः॥1 नचैवनभविष्यामःसर्वेवयमतःपरं / / 72 // दृश्यमानप्रपंचस्यमिथ्यात्वंसुप्रमाणतः // महतवप्रपंचनभाष्यकारोनिरस्तवा मन् // 73 // विस्तृतरुपमनयोराचार्यचरणादिभिः॥ बालबोधोपयोग्येवसंक्षेपेणेहणितं // 74 // तस्मात्कीडास्पदंवि श्वंनित्यं भगवदात्मकम् // आविर्भावतिरोभावशालिवेदादिषुदितम् / / 75 // तत्ध्यानमानसःस्याएकोप्यविकारएवयोभ .टी. लिंगशरीरं. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वति // रमणेच्छयाबहुविधःकर्वश्चर्यामहाश्वर्याम्।। 76 // // इतिवेदांतचितामणौआविर्भावतिरोभावनामपंचमप्रकH रणसंपत्तिमानम् // 5 // // 5 // // // // // // // // यआविर्भावयत्यत्तिबाह्यांतररतीच्छया। समवाय्ययविरुतस्तस्मैजगवतेनमः॥१॥सर्वत्रवादत्रितयंतदत्रसविस्तरंशास्त्रग / गैरवणि // आरंजवादोथविवर्तवादस्तथातृतीयःपरिणामवादः // 2 // तत्रनित्यंवि नभोवारवादीनांविविच्यते // चतुर्णी यत्रपरमाणुरूपाणांतनित्यता // 3 // कार्यरूपाण्यनित्यानितेषामारंभतोऽभवन्॥ ईश्वरस्तुनिमित्तंवाब्रह्मभिन्नमिदंजग त् // 4 // नतदंशोविभुर्जीवःकालोद्रव्यांतरंचसः // इत्यादिरूपआरंवादस्तार्किकसंमतः // 5 // तदद्वैतश्रुतिशतैःखं डितंमोहनात्मकं / / आचार्यैःप्राक्तनैरत्रनविस्तरभियोच्यते।। 6 / / असत्यंकल्पितंविश्वंभ्रांत्यारज्जुभुजंगवत् // सशांकराणां विवर्त्तवादःप्रागिहदूषितः // 7 // प्राचीनाचाय्यचरणवन्हिवाग्बाधिद्धिते / खंडितोबहुधाशुद्धाद्वैतचंद्रोदयेमया // 8 // सर्वकार्यात्मनायत्रकारणंमृद्दटादिवत् // नानापरिणमत्येषपरिणामःप्रकीर्तितः॥ 9 // विकताविरुतत्वाभ्यांपरिणामो द्विधामतः // विरुतसत्परिणमत्कारणकार्य्यरूपतः॥ 10 // नपुनःकारणात्मत्वं विकतःसोभिधीयते // दुग्धाद्दधियथा जातंपुनर्दुग्धंनजायते // 11 // कार्यात्मनापरिणत्कारणत्वविकारिसत् // पुनःकारणरूपत्वमषोऽविकत उच्यते॥१२॥ नानाभूषादिरूपेणरजतंपरिणामिहि // मध्येतदेवचतिऽपितत्पन:म्याद्विलापने // 13 // असौवेदांतसिद्धांतःशुद्धांत. 1 1 भ्रमवादः विवर्तोत्रमः विरुद्धवर्तनं तदभाववतितत्प्रकारकज्ञानमितियावत. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करणप्रियः॥ परिणामोरविकतःसाक्षाच्छ्रत्यादिसंमतः // 14 // तदात्मानंस्वयमकुरुतेतिपरिणामिता|अतःसूत्रेप्यात्मक प्र तेःपरिणामादितीरणा॥१५|| सुवर्णमविकार्यवनानापरिणमत्यदः // शिष्यतेस्वयमेवतिमध्येव्यवहतिःपरा॥१६॥सर्वाका रब्रह्मतथैवैकंपरिणमत्यतः // विकारोनिर्विकारस्यकथंचिन्नैवजायते॥ 17 // यथासुवर्णसुकतंपुरस्तात्पश्चाच्चसर्वस्यहिर मयस्य // मध्येतदेवव्यवहार्यमाणंनानापदशैरहमस्यतद्वत् // 18 // इत्थंभगवतास्वस्याविकारित्वंसमन्वये // उक्तंस दृष्टांतमिदमन्यत्रापिबहुस्फुटं // 19 // उभयव्यपदेशात्वहिकुंडलवदित्यतः / / व्यासोधिकरणंप्राहाविकारायसमन्वये।। Kh20 // सनिर्गणोनंतगण:परिणाम्यविकारवान् // विरुद्धमित्यायुभयंवेदययपदिश्यते // 21 // तस्माद्ब्रह्मारिख / लाकारसरलाकतिरप्यहिः ॥स्वेच्छयाकुंडलाकारोऽविकार्येवप्रजायते॥२२॥ तैजसानांतुसर्वेषांभाष्येभाष्यविकारिता॥ दृष्टांताबहवःस्पष्टाःसुबोधिन्यादिषूदिताः // 23 // चितामणे:कल्पतरोःकामधेनोःसमुत्थिताः // पदार्थाःपरिदृश्यतेवि कियतेनतेक्वचित् // 24 // विकतःपरिणामस्तुनसब्रह्मणियुज्यते // वेदाद्यनपदोक्तस्याविकारित्वस्यबाधनात् // 25 // ( स्कंध 10 ) तथापिभमन्महिमागणस्यतेविबोद्धमहत्यमलांतरात्मभिः // अविक्रियात्स्वानुभवादरूपतोयनन्यबोध्या। स्मतयानचान्यथा // 26 // ब्रह्मज्यातिनगुणनिर्विकारमितिचांतिमे // अनेकत्रापिगीतायामविक्रियमदीर्यते // 2 // प्रलयःकिंचसर्वेषांनस्यात्तत्रतथासति // कार्याणांकारणात्मत्वासंभवाद्विकृतौपुनः // 28 // तजलान्यत्प्रयंतीत्यादिश्रु 1 भागवताख्येतुर्यप्रमाणे. . Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तौसतरूपितः। स्वस्मिन्विलापितेविश्वब्रह्मकमवशिष्यते // 29 // (स्कंध 10) नष्टेलोकेद्विपरार्द्धावसानेमहाभूतेष्वा / वादितंगतेषु // व्यक्त व्यक्तंकालवेगेनयातेभवानेकःशिष्यतेशेषसंज्ञः // 30 // क्रीडार्थमाविष्कृतवान्बहुत्वेच्छःस्वरूप तः // ऊर्णनाभिर्यथातंतूंस्ते हमविकारवान् // 31 // आविर्भावेरतीच्छेवहेतुःश्रुत्यादिसंमतः // यथाकाण्वश्रुतापूर्वरमणा / भावउच्यते // 32 // सर्वेनैवरेमेतस्मादेकाकीनरमतेसद्वितीयमैच्छन्सहैतावानास // एकाकिनोरत्यभावाहितीयेच्छावि / भोरभूत् // वस्तूतोनद्वितीयंतशुद्धाद्वैतस्यवर्त्तते // 33 // इतिसस्वयमेवासरूपनामविभेदतः // अनेकधाथवैचित्र्यंतत्त धर्मतिरोभवात् // 34 // सर्वधर्मतिरोधानात्तद्धर्मस्यैवदर्शनं / अन्यत्रान्यस्यधर्मस्यचेतिभेदोमहानिह // 35 // एवंवि प्रपंचेनस्वात्मनाक्रीडतिप्रभुः // क्रीडार्थमात्मन इदंत्रिजगत्तेतंयतः // 26 // क्रीडामांडमिदंविश्वमित्यादिष्विदमुच्य। एते // ऊर्णनाभिहिरमततंतुभिर्गेहतोऽथवा // 37 // सर्वशक्तेस्तथेच्छातोमूढे नेवदृश्यते // ब्रह्मवैकमिंदसर्ववस्तुतस्तुवि / / चारणे // 38 // यत्रयेनयतोयस्ययस्मैयद्यद्यथायदा॥ स्यादिदभगवान्साक्षात्प्रधानपुरुषेश्वरः // 39 // इत्यादिनाभा गवतेऽखिलस्यब्रह्मतामता॥ एवंचात्माकाय॑मितिसूत्रेऽप्येतन्निरूप्यते ॥४०॥कटकंमद्रिकांहेन कंडलंखंडकान पि॥ हिमत्वनैवगृह्णातियथाबुद्धिस्तदथिनः // 41 // तथाब्रह्मविदोबद्धिर्यत्त्वियतेंददर्शनं / एकस्योक्तंभागवतेतथाजानंतित ई // 42 // (स्कं. 12 अ० 4 श्लो. 30 ) यथाहिरण्यंबहुधासमीयतेनृभिःक्रियाभिर्व्यवहारवर्त्मसु // ए. 1 काण्वशाखीयोपनिषदिबृहदारण्यके पुरुषविधब्राह्मणे. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेचि-बचोभिभगवानधोऽक्षजोव्याख्यायतेलौकिकवैदिकैजनैः॥४३॥ एवंकीडन्प्रपंचात्मायदांतारतिमिच्छति // तदात्मप्र निबिलाप्येदरमतकारणेवशी // 44 // सुखार्थसर्घजीवानांकरोतिलयमात्मनि // व्यधाद्यथेहक्षणदांसुख्यंत्यात्मरती। हिते // 45 // आहुर्वेदाहियत्रतत्पुरुषःस्वपित्तीत्यतः // चितिलीनास्तदाजीवान विदतितुकिंचन // 16 // दुःखात्ययोय / थापंसामुषप्तावनु भयते // नानंदानुभवस्तत्रसतुमोक्षेप्रवक्ष्यते // 47 // अन्नेप्रलीयतेमर्त्य इत्यायुक्तप्रकारतः॥ जडानां उपलयस्तत्रसर्वेषांसर्वकारणे // 48 // आनंदांशांतरात्मानआनंदेचितिचेतनाः॥ जडाःसदंशेवततेविलीनाःसुप्तशक्तयः॥ HEM 49 // उद्गच्छंतितदिच्छातःपुनस्नेतत्तदंशतः // तत्तदंशेषुलीयंतऊर्णनाभ्यास्यतंतुवत् // 50 // यथोर्णनाभिःसृज तगृह्णतेचयथापृथिव्यामोषधयःसंभवंति // यथासतःपुरुषात्केशलोमानितथाऽक्षरात्संभवतीहविश्वम्॥ 51 // मुंडको पनिषद्यनगृहदारण्यकादिषु // श्रुतंभागवतेचेदंस्कंधएकादशेस्फुटं / 52 // यथोर्णनाभिर्हदयार्णासंतत्यवक्रतः॥ तया / विलयस्तांयसत्येवमधीश्वरः // 53 // तस्मात्सर्वलयस्थानंसर्वाविर्भावकारणं // चित्तेस्थिरंपरब्रह्मास्त्वचिंत्यानं तशक्तिमत् // 54 // यस्माज्जीवाःस्वांशाअणवोऽन्तर्यामिणोजडाश्वासन् // साकारंश्रुतिसारंवारंवारंस्मराखिलाधार / // 55 // ॥इतिवेदांतचितामणौअविकतपरिणामनिरूपणंनामषष्ठंप्रकरणं // 6 // // 7 // // 5 // अंशाजीवायतोवन्हेविस्फुलिंगवदुद्गताः॥ संसरंतिचमुच्यतेनमोऽस्मैसर्वशक्तये // 1 // व्योमेवव्यापकंब्रह्मसर्वत्रैकरसं 1 छांदोग्ये Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सदा // सच्चिदानंदरूपंचपूर्णनिर्बाधमक्षयम् // यचकिचिजगत्सर्वदृश्यतेश्रूयतेऽपिवा // अंतर्बहिश्चतत्सर्वव्याप्यनाराय। मणःस्थितः // 3 // सत्यं विज्ञानमानंदंब्रह्मपूर्णमदःश्रुतेः // सर्वक्रियाभिःसर्वत्रनित्यैर्धम्मैस्तथाखिलैः॥ 4 // सर्वतःपाणि पादांतंसर्वतोक्षिशिरोमुखं॥ सर्वतःश्रुतिमल्लोकेसर्वमारत्त्यतिष्ठति // 5 // माययासर्वतःसांशंस्वशत्याचित्यरूपधृत् // त स्याप्रतिहतेच्छस्यबद्वत्वेच्छोदिताभवत् // 6 // साबहुस्यांप्रजायेयेत्यादिश्रुत्यादिसंमता // तदेच्छयाप्रदेशेतदुगमार्थति तिरोदथे // 7 // सृष्टिकालेतएवांताःपरिच्छेदानिरूपिताःतथाहंततिरोसानीत्यादिवाक्यनिरूपितं // 8 // काण्वायुपनि पत्स्वतत्तथास्मृतिपुराणयोः // विभक्तिरप्रतय॑स्याविभक्तस्यापियुज्यते // 9 // अविभक्तं विभक्तेषुविभक्तमिवचस्थि नं / / चित्प्रधानाःपरिच्छिन्नाअंशाव्युदचरंस्ततः // 10 // जीवाःक्षुद्राविस्फुलिंगाःसुदीप्तात्पावकायथा // मुंडकोपनिष स्वेषदृष्टांतोन्यत्रचोदितः // 11 // द्वितीयमुंडके (खंड 1 ) तदेतत्सत्यं यथासुदीप्तात्पावकाद्विस्फुलिंगाःसहस्रशःप्रभ वसरूपाः / तथाक्षराद्विविधाःसोम्यक्षावाःप्रजायंतेतचैवापियंति // 12 // छांदोग्ये / / यथासुदीप्तात्पावकाक्षुद्रावि स्फुलिंगाव्यच्चरंत्यवंतस्मादात्मनःसर्वेप्राणाःसर्वेलोकाःसर्वेजीवा:सर्वएवात्मानोव्यच्चरंतिरमणीयचरणाःकुयचरणाइति // 13 // सर्वेन्तर्यामिणोजाताआनंदांशस्वरूपतः // सदंशेनजडायेभ्यःकतादेहाअनेकधा // 14 // तिरोभावय दानंदजीवतंचंचितंजडे // आनंदांशतिरोधानान्निराकारावभावपि // 15 // चतुर्भजादितयोस्तादग्भगवदारुतिः||आ 1 पुण्यचारत्राः 2 पापचरित्राः 3 पंचभूतप्रभृतयः 4 आनंदांशं 5 चिदंशं 6 जडजीवौ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेचि- नंदरूपमेवास्यहस्तपादादिकंयतः // 16 // प्रजायेयप्रकष्टोहंजायेयेतीष्टवास्तुयत् // ऐश्वर्यादेःसविषयत्वायधर्मास्त / थोकरोत् // 17 // षट्रधर्माभगशब्दनैश्वयंवीर्ययशस्तथा // श्रीनिंचविरागश्चनित्याभगवतोखिलाः॥ 18 // विष्णुपुरा जाणाऐश्वर्यस्यसमयस्यवीर्यस्ययशसःश्रियः ॥ज्ञानवैराग्ययोश्चैवषण्णांभगइतीरणा // 19 // ऐश्वर्यादितिरोभावाज्जीवा नांदीनतांदिकं // तिरोहितंततोरस्यसूत्रेबंधविपर्ययो॥२०॥ बंधश्वतष्टयाशावाद्याभावाद्विपर्ययः // पराभिध्याना तुतिरोहितंततोहस्यबंधविपर्ययौ // अत्रत्येश्रीमदाचार्भाष्येतत्सुप्रपंचितं // 21 // माययानिमितविद्याविद्यशक्ती प्रभोःस्वयम् // जीवस्यैवततोबंधोमोक्षोनांशांतरस्यसः॥ 22 // (स्कंध 11 अ० 11 श्लो०३४) विद्याविद्यममतन विध्युद्धवशरीरिणाम् // मोक्षबंधकरीआद्येमाययामेविनिम्मिते // 23 // एकस्यैवममांशस्यजीवस्यैवमहामते // बंधो स्याविद्ययानादिविद्ययाचतथेतरः॥ 24 // सुखदुःखाद्यनभवोऽपिजीवस्यैवकेवलं // चिदभावाज्जडेंतर्यामिण्यानंदा तिरोभवात् // 25 // स्वरूपाज्ञानमेकंहिपर्वदेहेंद्रियासवः // अंतःकरणमेषांहिचतुर्दाध्यासउच्यते // 26 // पंचपर्वात्व विद्येयंयदद्धोयातिसंसृति।।इत्यस्या:पंचपर्वाण्याचार्यपादान्यरुपयन् ॥२७॥अहंताममतारूपःसंसारोयोमषोदितः|| विद्योपाधितोमिथ्यामृगतृष्णेवदृश्यते॥२८॥विपरीतक्रमेणोक्तमध्यासानांचतुष्टयं॥एवंपर्वमुसिद्धेषुदेहेऽहंभावइष्यते॥२९॥ तत्संबंधिनिगेहादोममतापिततोमता // ससंसारोभ्रमःस्वमोमायेत्यादीहकथ्यते // 30 // अविद्योपाधितोोषोऽज्ञानात्मे 1 1 तिरोभावयत् 2 जातमितिशेषः 3 ऐश्वर्यादिषट्कं 1 ऐश्वर्यादिचतुष्कस्य 5 ज्ञानवैराग्ययोः / Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिप्रतीयते ॥कामलोपहिताक्षस्यशंखेपीतत्ववन्मषा // 31 // उपाधेःसाधन शेयथावस्थितमीक्ष्यते॥ब्रह्मत्वंकीडनार्थ त्वंतथाऽविद्यानिवर्नने // 32 // भागवतायाभसाप्रचलतातरवोऽपिचलाइव // चक्षुषाधाम्यमाणेनदृश्यतेचलतीवभूः // 33 // देहादीनांविरागार्थसदृष्टांतमसत्यता॥ संसारमेवतन्निष्ठमभिप्रेत्यकताक्कचित् // 34 // विप्रोऽषिमाययास्वमेरा जाहमितिमन्यते // तत्तदेहगतोनवंब्रह्मांशत्वंस्मरत्यसौ॥३५॥ (स्कंध१०) स्वमेयथापश्यतिदेहमीदृशंमनोरथेनाभि निविष्टचतनः। दृष्टश्रुताभ्यांमनसानुचितयन्प्रपद्यतेतत्किमपिसपस्मृतिः॥ 36 // इत्यहंभावमापन्नोदेहेमिथ्यावियो गिनि // अवशःकाय्यतेसर्वमीश्वरेणविमूढधीः // 37 // देहात्मभावोदेहेनेशेच्छयाकतकर्मसु // अहंकारविमूहात्माका साहमितिमन्यते // 38 // वस्तुतस्त्वीश्वरेणेहतत्तद्वारेच्छयाऽखिलं // कार्य्यतेक्रीडयातत्राहंकर्तेतिमतिर्मषा // 39 // फार लसाधनयोःप्रोक्तःकर्ताकारयिताहरिः॥ अहंसर्वस्यप्राबोमत्तःसर्वप्रवर्तते // ४०॥भागवायथादारुमयीयोषायथा / यंत्रमयोमृगः॥ एवंभूतानिभगवन्नीशतंत्राणिविद्धिोः // 11 // यथामरिकादृष्ट्याप्राम्यतीवमहीयते // चित्तेकती / / रितत्रामाकर्त्तवाहंधियास्मृतः॥४२॥ उद्दिश्यसंसृतिपदमहंताममतेअपि ॥सर्वत्रतनिरत्त्यैवमुक्तिनैवान्यथोच्यते // 43 // (स्कंध 7) एतहारोहिसंसारोगुणकर्मनिबंधनः॥ अज्ञानमूलोऽपार्थोऽपिपुंसःखमइवेयते // 44 // (स्कंधा १२)तएतदधिगच्छंतिविष्णोर्यत्परमंपदं॥ अहंममेतिदौराम्यनयेषांदेहगेहयोः॥ 45 ॥इत्यादिवचनस्तादधाप्रत्य रोगविशेषः Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेचियएवसः॥ तन्निवृत्त्यामतामुक्तिदेहादिस्तुनसंसृतिः // 46 // नैवात्मनोनदेहस्यसंमृतिःसुविविक्तयोः // अविवेकस्तयोर्यो / सावथतस्यैवसंसृतिः // 47 // एकादशस्याष्टाविंशइतिभेदनरूपणात् // दहादेःसंसृतित्वेतुजीवन्मुक्तिर्नयुज्यते॥ 48 // प्रत्यक्षएवदेहादिर्मक्तस्यापितुजीवतः // सतिसंसरणेमुक्तिःकुतःशास्त्रविरोधिनी॥ 49 // तस्मादहंतादेहादावध्यासाभा वतोनहि // ममताहंत्वमलाततन्नित्त्यानिवर्तते // 50 // आत्मलातुविद्यातोमुक्तोजीवनभविष्यति // देहसंसार दो तःसिद्धांतःश्रुतिसंमतः / / 51 // सम्यकप्रकारसरणस्वरूपाच्यवनंदृढं // ब्रह्मांशस्यान्यथाभावस्तसंसरणमुच्यते // 52 // असत्यासंमृतिःसत्यःप्रपंचइतिनिर्णयः // ऐंद्रजालिकवत्स्पष्टंसाऽसत्यापिप्रतीयते // 53 // जीवायस्यस्वांशानप्रतिबि / / बानचाभासाः // यत्कृतसंसरणास्तच्चरणंशरणंव्रजामिअवतरणं // 54 // ॥इतिश्रीवदांतचितामणौजीवोद्गमस / सारनिरूपणंनामसप्तमंप्रकरणं // 7 // // 7 // // // // // // // जीवांतर्यामिणोस्वांशावणुकौभोक्तसाक्षिणी / येनांतःस्थापितौज्ञाज्ञौनमस्तस्मैकपालवे // 1 // मुंडकोपनिषदिद्वासुप सयुजासखायासमानंदकंपरिषस्वजाते।एकस्तयोःपिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्योअभिचाकशीति॥ २॥एकादशस्कंधे।।। पर्णावतीसहजौसखायौयदृच्छयाकतनीडौचरक्षे // एकस्तयोःखादतिप्पिपलान्नमन्योनिरन्नोऽपिबलेनभयान्॥३॥ भि 1 नौप्रतिशरीरंतावेकैकस्मिन्द्वयोरपि // प्रवेशाद्धंसरूपेणदृदिनागवतेयथा ॥४॥(स्कंध४)॥हंसावहंचत्वंचार्यसखायौ 1 अध्याये Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - मानसायनौ // गुहांप्रविष्टावात्मानौसूत्रेऽप्येतद्हातुल्दृत् // 5 // वाजसनेयिशाखायां॥यथाव्रीहिर्वायवोवाश्यामाकोवा / श्यामाकतंडुलविवमयमंतरात्मन्पुरुषोहिरण्मयः॥६॥इत्यादिश्रुतिभीरूपंतस्योक्तंस्मृतिभिस्तथा ॥ईश्वरःसर्वभूतानांस्टद्दे||1|| शेऽर्जुनतिष्ठति // 7 // प्रथमस्कंधेशीष्मरुतस्तुतौहदिदृदिधिष्ठितमात्मकल्पितानांसविद्यमानानंदत्वादश्वर्य्याज्ञानतस्त था // नदुःखसुखभोक्तैषांसाक्षीद्रष्टैवकितुसः॥ 8 // तद्वेदवाक्येद्वावीशानीशौज्ञाज्ञावितिस्फुटं। ( अ० 1 पा०२/ ८)संभोगप्राप्तिरितिचेन्नवैशेष्याच्चसूत्रतः॥ 9 // वैशेष्यंजीवतस्तत्रानंदधर्माविलोपनात् ॥द्वतंसृष्टौतयोरेवनजीवन ह्मणोःक्वचित् // 10 // अंतर्यामिब्राह्मणेतर्यामिपादेचविस्तृतं / / रूपंतस्यततःस्पष्टंभाष्यादेरवधार्यतां / / 11 // सच्चिन्मा त्रश्चित्प्रधानोब्रह्मस्वांशोढदिस्थितः / / विसर्पिचैतन्यगुणोडणुर्जीवोऽविद्ययासितः // 12 // (मुंडके ) एषाणुरात्माचेतसावे| पदितव्योयस्मिन्प्राण:पंचधासंविवेशा॥इत्यादिश्रुतिभिस्तस्याणुमात्रत्वं निरूप्यते॥ 13 ॥(अ० 2 पा०३सू. 21) नाणु रतच्छ्रनेरितिचेन्नेतराधिकारात् // इत्यादिसूत्रतोव्यासचरणानरणायितत् // सएषआत्मादृदीत्यादिभिःश्रुतिभिरी // 14 // (अ० २पा.३ सु. 24) अवस्थितिवशेष्यादितिचेन्नाभ्युपगमाद्धदिहि // व्यासोप्यसूत्रयदितितस्माद्धये स्थितः // 15 // दत्स्थोगुणात्सचैतन्यांसंपूर्णांतनुतेतनुम् // कोणस्थितोयथादीपोऽखिलेगेहेप्रकाशते // 16 // कस्तूरि 1 अध्याय 1 पाद 2 स. ११गुहांपविष्टावात्मानौहितद्दर्शनात् 2 आनंदप्रचुरः 3 आनंदांशस्य ऐश्वर्यादिधर्माणांचातिरोभावात् 4 बद्धः 4.5 जीवः 6 चैतन्यसहिता विधेयविशेषणमेतत् - वसा Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 | वे-चि. कास्थितैकत्राशिव्यामोतिस्वगंधतः // देशमहांतदेहंसचैतन्येनतथाखिलं // 17 // व्यासोविसर्पिगुणतां( अ० 2 पा०३/०८ सू०२५) गुणाद्वाऽऽलोकंवत्तथा // (अ०३पा. 3 सू०२६) व्यतिरेकोगंधवच्चेत्यादिदृष्टांततोऽवदत्॥१८॥शांकरास्ता किकाजीवमेकव्यापकमालपन् / / जीवकत्वेसर्वमुक्तिरेकमुक्त्याभविष्यति।। १९||सतिबंधेनैवमोक्षायात्येकःपुण्यतोदिवं॥ अन्यःपापेननरकमितिश्रौतनयुज्यते // 20 // सर्वेजीवाबहुवचःश्रुत्युक्तंचविरुत्थ्यते // व्यापकस्योगमनैवनोपार्जीवक / Pल्पनात् // २१॥यत्प्रयंतीतिजीवानांप्रलयोनेहसंभवेत् // ज्ञानात्तत्रप्रवेशोऽपिविशतेतदनंतरं // 22 ॥किचजीवःस्वत / बोवाब्रह्मैवोपहितंतथा // आयेद्वैतंबंधमोक्षौनापिब्रह्मात्मताभवेत् // 23 // नस्यात्कस्यापिमरणंब्याने वस्यतादृशः॥ Fil द्वितीयेतुर्नतयाप्तिःकिंतुस्याद्ब्रह्मणोहिसा // 24 // आकाशव्यापकंव्याप्तिर्घटाकाशस्यनक्वचित् // उपाधिनाशोमोक्ष श्वेज्जीवनाशःसकथ्यतां // 25 // सर्वज्ञनिर्गुणंपूर्णब्रह्मबद्धमुपाधिना // तदेवोपाधितोमुक्तंसाधनविप्लबोमहान्॥२६॥ उकांतिगत्यागतयोवेदसूत्रादिसंमताः // व्यापकस्यनयज्यरंश्वेदुपाधेःप्रवेक्षिताः // 27 // तंप्राणोऽनकामतीतिश्रुति सस्तहिविरुत्थ्यते // श्रुतेःस्मृतेश्वसूत्राणांनव्याप्तिस्तस्यसमता // 28 // नित्यःसर्वगतस्थाणुर्ब्रह्मसर्वत्रयद्गत।। सहतिष्ठति 14 1 आलोकः प्रकाशः प्रकाशकद्रव्यंवा 2 उपाधेरेवोद्गमइतितुनवक्तुं शक्यं तस्यत्वन्मतेजीवश्रांतिकल्पितन्वात् 3 देहल्येदोपकपदस्योभयसंबंधः 1 जीवस्यध्यापकता 5 अभ्यापा० 3 उकांतिगत्यागतीनामिधिकरणेमसिद्धाः वदसि जीवस्य Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणुरचलैकार्थतान्यथा // 29 // शरीरेगुणतोव्याप्ने क्वचिद्यापकतोदिता // ब्रह्मवद्यापकत्वेतूक्तान्यश्रुत्यादिबाधा नं 30 // शांकाराणांमतेकर्तनप्रपंचस्योक्तच // धम्माकारक्रियात्यंताभाववद्ब्रह्मकथ्यते ॥३१॥मायायांप्रतिब। बोऽस्यतत्क"शबलाभिधः। प्रतिबिंबस्त्वविद्यायांतस्यजीवोभिधीयते।। 32 // तद्पोपाध्यवच्छिन्नेचैतन्येब्रह्मरूपिणि अथवातीघटमठोपहिताकाशवत्कृतौ // 33 // सत्त्वे तुशुद्धमलिनेमायाऽविद्येअनादिमे // तत्रावच्छिन्नपक्षस्तुसंक्षेपेण / निराकतः // 34 // दृश्यतेप्रतिबिंबस्तुनवाय्वादेनिराकतेः // नदृष्टोमलिनेप्येषमृदादावन्यथाभवेत् / / 35 // चेत्ता लणस्तत्रकिनस्याद्वायुदारुणोः॥ अलीकंप्रतिबिंबंनजीवस्यालीकताक्कचित् // 36 // श्रौतोगुहायनिकस्यांप्रवेश तिद्वयोः॥ इत्यादितत्त्वदीपेचोक्तं विद्वन्मंडनेबहु // 37 // अविद्योपाधिरचितंजीवत्वमिनितेजगः ॥पारतंत्र्यंभगवतोद्वैता पत्तिश्वतन्मते // 38 // अंशानांजीवभावस्त्वीशेच्छयोक्तप्रकारया // शक्याविद्योपाधिनातुसंसारइतिवैदिकं // 39 // तस्मादेवोद्गमस्तस्मिल्लयोमध्येचदृश्यते // कार्यात्मनेच्छयाभेदोजडजीवांतरात्मनां // ४०॥शुद्धाद्वैतमतःसिद्धंश्रुतिस्म त्यादिसंमतं // द्वीतंद्वयोरितंज्ञानंतद्वैतंद्वीतमेवयत् // 41 // कार्यकारणरूपंतदीशजीवात्मकंतथा / नामरूपात्मकंचेतित्रि विधंसमुदाहृतं / / 42 द्विविधंदूषितंतत्राप्ययेतद्रूषयिष्यते // नामरूपात्मकंद्वैतंशांकराणांयथोदितं॥ 43 // अस्तिभाति स्थावचलपदयोरेकार्थकतयापौनरुक्त्यं 2 चैतन्येन 3 निर्गुणस्य ४अयनंइतंभावतः 5 गन्यर्थकधातूनांज्ञानार्थकतायाअपिस्वीकाराज्ज्ञानमित्यर्थः Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Top p वे-चिं. प्रियंरुपनामचेत्यर्थपंचकं // आयंत्रयंब्रह्मरूपंमायारूपंततःपरं // 44 // अस्तिभातिप्रियवंत जातंकार्यात्मनेच्छया / सच्चिदानंदरूपस्यव्यारुतिर्नामरूपयोः॥४५॥ससर्वनामासचसर्वरूपइतिकीर्त्यते॥नामरूपेव्याकरवाणीतीच्छास्याभवत्यु रा॥ 46 // विभिद्यरूपमेकैकंशब्दजालाववाचकात् // तत्तद्वाचीनिनामानिव्यवहारायनिर्ममे // 17 ॥सर्वाणिरूपा णि विचित्यधीरइतिपौरुषं // सूक्तंश्रत्यंतराण्येवंतत्कौमैचोपबृंहितं // 48 // सर्वेषांतदधीनत्वात्तत्तच्छब्दाभिधेयता / / / न्येषांव्यवहारार्थमिष्यतेव्यवहर्तृभिः // 19 // अनामरूपतातस्यालौकिकत्वायवर्णिता || माहात्म्यबोधनायैवलौकि I कोऽस्तिघटोयथा // 50 // रूपंनियतमेवास्यतत्तिरोभावशालिच // द्विवाण्येवचनामानिनतथास्येतिनिश्चयः // 51 // व्यारुतिःसृष्टिकालेऽतःपूर्वमव्याकतिस्तयोः // द्वयोब्राँकनिष्ठत्वंबृहदारण्यकेस्फुटं // तद्धेदंतीव्याकतमासीत्तन्नामरू पाभ्यांव्याक्रियतेअसौनामायमिदरूपायमिति // 52 // एतन्मतेसुनिष्पन्नसांकर्यकार्यकारणे // तन्निसत्त्यर्थमा , चाय्य:पदंशुद्धंविशेषितं // 53 // शुद्धाद्वैतपदेज्ञेयःसमासःकर्मधारयः। अद्वैतंशुद्धयोःप्राहुःषष्ठीतत्पुरुषबुधाः॥५४॥ मायासंबंधरहितंशुद्धमित्युच्यतेबुधैः / कार्यकारणरूपंहिशुद्धब्रह्मनमायिकं // 55 // इतिश्लोकत्रयेणात्राद्वैतेशुद्धवि शेषणं // गोस्वामिभिर्गिरिधरैमार्तडेविटतंवके // 56 // अद्वैतेशुद्धताश्रीमद्वल्लभाचार्य्यरूपिते // मतांतरेषुसर्वत्र श्यतेद्वैतमेवयत् // 57 // दुर्मतनिरासकतिनामाचार्याणांहुताशनाख्यानां // अंतःकरणविभूषणसुरपतिरत्नंतमःसमेह त्यंश २शुद्धाद्वैतमार्तडाख्येस्वयंथे 3 नीलमणिः 4 अज्ञानमधंकारंच 5 श्रीकृष्णः india Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 50 // // इतिश्रीवेदांतचिंतामणौजीवांतर्यामिस्वरूपविवेकपूर्वकशुद्धाद्वैतार्थनिरूपणंनामअष्टमंप्रकरण।। // 8 // स्वाभिन्नाऽप्रारुतैर्धम्मैःश्रितंसविरोधिभिः॥शक्तिभिस्तादृशीभिस्तं वंदेनिर्दोषमद्वयं ॥१॥अप्राकताखिलाकारःश्रुति भिःप्रतिपाद्यते / माहात्म्यायस्फुटंभक्त्यैप्रारुतंतुनिषिध्यते // 2 // यत्पांचभौतिकंतस्येच्छयाषड्भावदर्शनं // मितं नियत कार्यंचतत्प्रारुतमुदात्त।। 3 ॥यथादेहोऽस्मदादीनांपंचभूतेभ्यउस्थितः।।अस्मिञ्जायतइत्याद्यादृष्टाविरुतयोऽपिषट् // 4 // मलिनोऽन्यनियम्यश्चमितःसाबितस्तिभिःश्रवसाश्रूयतेमानंदृश्यतेमात्रमीक्षया॥५॥नित्याधर्मानिजाऽजिन्नाःसर्वेसर्वत्र / / तस्यतु / / सर्वकामःसर्वरसइतिच्छांदोग्यरूपणात् // 6 // विश्वतश्चक्षुरुतविश्वतोमुखोविश्वतोबाहुँरुत विश्वतस्पात् // सं बाहुभ्यांधमतिसंपतत्रैवामीजनयन्देवएकः // 7 // सहस्रशीर्षापुरुषःसहस्राक्षःसहस्रपात् // सर्वतःपाणिपादांतमि तिश्रुत्यादयोऽवदन् // 8 // सर्वत्रसन्द्रियाणांतस्यतत्कार्य्यमीर्य्यते / सर्वज्ञस्याखिलंज्ञानंसर्वकर्तुःक्रियाखिला // 9 // नपांचभौतिकंतानिसर्गार्थसस्तोव्यधात् / / अजवादमृतत्वाच्चाविकारित्वान्नविकियाः॥ 10 // (स्कंध 8) त्वंब्रह्मपू ममृतंविगुणविशोकमानंदमात्रमविकारमनन्यदन्यत् // विश्वस्यहेतुरुदयस्थितिसंयमानामात्मेश्वरश्वतदपेक्षतयानपेक्षः 1 स्वाभिन्नाभिरपाकृतीभिः 2 माहात्म्यज्ञानपूर्वकसुदृढस्नेहस्यैवभक्तित्वं 3 जायते / अस्ति / वर्द्धते / अपक्षीयते / विपरिणमते / नश्यति FR1 परिच्छिन्नं 5 हस्त 6 मति 7 पृथ्वी 8 दर्शनादिकं 9 चाक्षुषादिः 10 गमनादानादि:११ भगवतोहस्तादिकं अस्मदादिवत्पांचभौतिक त तस्यानादित्वात् महाभूतानांच सृष्टिकालएवाविर्भूतत्वात् 12 स्वस्वरूपात विरुद्धःकार्यकारणभावइत्याशयः 13 जायतइत्यादयः F Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RON . 11 // अतएवनमालिन्यमैश्वाननियम्यता / व्यानेःपरिमितिनवमेतदपाकताकति // 12 // सर्वाकाराश्रयत्वंच / श्रतयोऽवर्णयन्समः // मशकेनसमोनागेनेत्यायास्तद्वि त्वतः॥१३॥प्रारुतंपरिमाणादिपांचभौतिकतादिकं / / तस्या स्थूलमनण्वादिश्रुतिभिःप्रतिषिध्यते // 14 ॥कियासुफलसंदेहोदेहेऽभिमतिरज्ञता / / ऊर्मयोलोकनिष्ठानांदोषांइत्यादयो | मताः॥१५॥ निष्फलंनिषक्रियंशांतंनिरवयंनिरंजनं // इत्यादिश्रुतयःसर्वन्यषेधस्तत्सदूषणं // 16 // तस्यपाकतशूर न्यत्वंतथाभागवतादिषु / (स्कंध 10 अध्याय 1.) गृह्यमाणैस्त्वमग्रारोविकारःप्राकृतैर्गुणैः।। १णाश्वेताश्वतरादौ अपाणिपादोजवेनोग्रहीतापश्यत्यचक्षुः संशृणोत्यकर्णः / / सबैत्तिवेद्यनचतस्यवेत्तातमाहुरय्यपुरुषमहांतं // १८॥पाणि पादनिषेधेऽपिगमनपहणोक्तितः॥ अस्मदादिसमंन्यूनंप्रारुप्रतिषिध्यतंत्॥१९॥विधीयतेश्रुतौसर्वाःसर्वशक्तेःक्रिया वाः // सर्वत्राबाधितंज्ञानंचैवंसर्वविदोखिलं॥ 20 // श्रुतौपंचरात्रेच॥निर्दोषपूर्णगुणवियहआत्मतंत्रोनिश्चेतनात्मकशरी | रगणैश्वहीनः // आनंदमात्रकरपादमुखोदरादिसर्वत्रचत्रिविधभेदविवजितात्मा // 21 // नियताकारकायंत्वन्योन्यबा धक्षयादयः // दोषागुणेषुदेहेषुप्रारूतेषुतदिच्छया // 22 // आनंदमात्राकारःसनिर्दूषणगुणाश्रयः // निर्दोषषियहः / स्यान्निश्चेतनाप्रकृतिर्जडा // 23 // नपाकतायुणास्तस्यनशरीरेंद्रियादिकं // इत्युक्तंभगवच्छास्त्रेयाज्ञवल्क्यस्मृताव 1 लोकवत्परिच्छेदः 2 समोमशकेनेतिबृहदारण्यके साम्यंचतत्तन्निष्ठा कारवत्त्वेन 3 कामक्रोधादयः 4 क्रियादिकं 5 गंता पाण्या द्विकं स्वगत 8 निर्दोषपूर्णेतिवचने 9 पंचरात्रे Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पि॥ 24 // अथवापरमात्मानंफरमानंदवियहं // इत्यानंदमयाकारःसर्वत्राप्राकृताखिलः॥ 25 // निषित्थ्यप्राकृत विधत्तेऽप्रारुतंश्रुतिः // सार्वत्रिकत्वकथनात्तस्याप्रारुततास्फुटा // 26 // सामान्योक्तनिषेधेषुलोकसिद्धांशसे Fधनं // निषिध्यधर्मान्सर्वत्रप्रायोधर्मान्हिवक्तिसा // 27 // नन्वानंदमयंब्रह्माऽऽप्राकृतप्राकृतजगत् // निरानंदंकथं ब्रह्मकाय॑तद्रूपमद्वयं // 28 // इतिचेदुक्तमेवैतद्वहुत्वायाखिलंकृतं // आनंदांशोऽखिलाधर्मास्तेतिरोभाविताइह / / // 29 // ब्रह्मधर्मतिरोनावादन्योन्याभावदर्शनात् // आविर्भावतिरोभावाभ्यामिदंदृश्यदूषणं ॥३०॥रागमात्रघटेमृत्स्ना सर्ववर्णाविलक्षणा॥ दृश्योनवास्तवोभेदस्तथात्राप्यवधार्यताम् // 31 // जगत्तुब्रह्मणोभिन्ननब्रह्मजगतःपृथक् // सृष्टि काले पिहिघटोमृदोभिन्नोनमृद्दटात्॥३२॥करस्त्ववयवत्वेनशरीराद्भिद्यतेऽशकः / शरीरंनकराद्भिन्तस्यावयवितांडशिता IF॥३३॥कार्याणिभिन्नभिन्नानितथात्वात्तस्यवीक्षया ॥प्रारुतानि विबुध्यतायथासामान्यदर्शनं // 34 // सर्वात्मकमनुस्य / सर्वत्रब्रह्मकारणम् // सर्वधर्माश्रयत्वेनातथात्वात्तदलौकिकं // 35 // उक्तवाक्येऽप्यतोरूपंनिरूप्याशंक्यभिन्नतां // सर्वत्रचस्वगतभेदविवजिततोच्यते // 36 // व्याप्नेर्दशमवाक्येऽपिगुणानांगृह्यमाणता // निरूपयंतिश्रुतयस्तस्मादुक्तव्य | 1 भगवतश्चक्षुरादेः 2 लोकतुल्यावयवनांनिषेधः 3 उपनिषन्मु 4 अतिः 5 तिरोहितचिदानंदत्वात्तिरोहितधर्मवाच्च 6 बहुस्यांप्रजायेयेति - सामान्यतोयथालोकदृष्ट्यादृश्यते ब्रह्मविदांत्विमान्येवामाकतानि 8 निदोषपूर्ण गुणेति 9 गृह्यमाणैस्त्वमयाझं 10 ब्रह्मकर्तृकामारुतगुणनिष्ठानतुगु *णकर्तृकाब्रह्मनिष्ठा 11 माकृतस्यनिषेधो प्राकृतस्यविधिः Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17 वे-चि.वस्थया // 37 // अवाहःशंकराचार्यानिराकारंपरंभवेत् // गुणक्रियाविशेषाणामत्यंताशाववन्मतं // 38 // तन्मात्र योपहितंसत्स्यादीश्वरःशबलाभिधः।मायासंबंधतःकतीभोक्तास्यश्रुतिभिःकृतः॥३९॥तदुपाधिगतधर्माद्यत्राध्यारोपयंति।। ताः॥वस्ततोऽपवदन्त्येतानिर्विशेषेनिषेधिकाः॥४०॥अध्यारोपापवादाभ्यांश्रत्योःस्यात्संगतियोः।लोकप्रदर्शनायेन्दो थाशाखापिदय॑ते // 41 // ज्ञानार्थचित्तशुद्धर्थोपास्तयेप्रथमंतथा // निरूप्यतेसधर्मत्वंजातेज्ञानेनिषिध्यते // 42 // इतिचेच्छ्रयतांमायासादिःसाऽनादिरेववा // आयेक तुकोब्रह्मातिरिक्ताभावतः परं // 43 // कर्तृत्वंनिर्विशेषस्यपुनः प्राप्नंद्वितीयके // द्वैतापत्तिःसंदेवेतिप्रभृतिश्रुतिबाधनं॥४४॥ ब्रह्माप्यनायनादिःसोपहितस्याप्यनादिता // सर्गोऽविरतमेव स्यान्नजातुप्रलयोभवेत्।।४ ५॥नित्यबद्धं भवेद्ब्रह्ममुक्तिस्तन्नाशनेयदि // श्रूयतक्कापितस्यापिजीववन्मुक्तिसाधनं // 46 // व्यासाचाय्यै प्रतिज्ञायनिर्गणस्यविचारणं // अथातोब्रह्मजिज्ञासेत्यत्रैतस्यैवलक्षणं // 47 // जन्माद्यस्ययतःशास्त्रयो नित्वादितिकथ्यते // प्रतिज्ञोपक्रमौभगौस्फुटव्यासस्यतेमते॥४८॥ निषेधत्येवकर्तृत्वप्रकत्युपहितस्यत / / गौणश्वेन्ना त्मशब्दादित्यादिनासूत्रकत्वयं // 49 // नसोऽकामयतेत्यादिरूपिताःकामनादयः // संभवंतिजडायानिर्धर्मत्वाद्ब्रह्मणो) 1 सविशेषनिर्विशेषवादितयाद्विविधयोः 2 ज्ञानसंपादिकाचित्तशुद्धिः तसंपादिकाचोपासना 3 निविशेषब्रह्मैवकर्तृस्यादिन्यर्थः 4 एकं 17 नवलपरामायेतिद्वैत ५सदेवसौम्येदमग्रआसीत् आत्मेवेदमपआसीत् आत्मावाइदमेकएवापासीदित्यादीनांसृष्टेः माग्वस्त्वंतरसत्तानिषेधक श्रुती-1 नांविरोधः 6 भबलाख्यापन * उपाधिभूतायामायायाः Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - --- नते // 50 // तस्योपाधिवशातत्त्वेनिर्विशेषविकल्पतां // ब्रह्मणोबाधतेयासानश्येत्तज्ज्ञानतःकथं // 51 // न्यायात्न क्षालनाद्धीतियध्यारोपापवादतः // धर्माणांलोकसिद्धानामपवादोऽस्तुकेवलं // 52 // मायागुणोपासनाम्चेन्मुक्तिःस्या द्वेयताकुतः // ज्ञानोद्भवेपराद्धंवाकिमायारूपयास्त्रिया।। 53 ॥इत्यादिदूषणगणैस्तन्मतंश्रुत्यसंमतं ॥आचार्यैःप्रभुभिश्वार न्यविस्तरेणनिराकतम् // 54 // तस्माद्रतीच्छयासर्वशक्तिरीश्वरआत्मनः // सर्वमाविश्वकारेदमित्येवश्रुतयोऽवदन्।। 55 // श्रुत्योरुभयवादिन्योनिर्णयेप्राहसूत्रहत् // तद्यवस्थामिमामेवश्रुतिभिःसैवसिध्यति॥ 56 / / (अ०३पा. २सू०२२) कतैतावत्त्वंहिप्रतिषेधतिततोब्रवीतिचभूयः॥ कर्ताधर्ताचोक्ताचनिहंतापिसएवहि // अहंसर्वस्यसइमाल्लोकानसृज तित्यपि // 57 ॥सर्वक सर्वभोक्ता भोक्तामहेश्वरः // असिभ्रियमाणोबिनीत्यादिवचोभरैः // 58 // स्वातं व्यंयुज्यतेकर्तःसृष्टोस्वातंत्र्यमीशितुः / / मायायास्तस्यशक्तित्वात्करणत्वपुराणतः // 59 // धर्माविर्भावतःस्वस्याप्राकता मत्वसिद्धये // पूर्वससेव्यतेजातेतादृत्वे निश्वलंपुनः॥६॥ अजानंस्तस्यमाहात्म्यनवसेवेतकश्चन // इतिमाहात्म्यबो धायपरत्ताःश्रुतयोऽखिलाः // 61 // (मुंडके ) दिव्योलमूर्तःपुरुषःसबाह्याभ्यंतरोयजः॥ अप्राणोझमनाःशुभ्र तिदिव्यस्त्वलौकिकः।।६२॥अजन्माऽप्राकततनुःशुद्धःप्राणीतरोऽमनाः॥पाणिनिःप्रारुतैःसेव्योऽशुद्धैन्यूँनैर्मनोवशैः॥६॥ यस्याऽप्राकृतधर्माआत्माभिन्नाश्वशक्तयःसर्वाः / सर्वांशभेदहीनलक्ष्मीनंभजमनोभवद्दीनम् // 64 // ॥इति 1. १कामादिमचे 2 मक्षालनाद्धिपकस्यदूरादस्पर्शनवर ---- - -- Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 वे-चि. श्रीवेदांतचितामणौब्रह्मसाकारत्वविवेकोनामनवमंप्रकरणम् // 9 // // // // शुद्धाद्वैतवस्तुतस्तुनानाभेदंनिजेच्छया // स्वाभिनशक्तिधर्माणंनुमोनानामतस्तुतं // 1 // ब्रह्मैवैकंप्रपंचस्यनिमित्तंसमवा यिच // पुराणेकरणंमायातच्छक्तिर्दवन्मता॥ 2 // अचित्याविविधानित्याःस्वाभाविक्योऽस्यशक्तयः // ज्ञानकि / यादिभेदेनस्वाभिन्नाःस्ववशाविभोः // 3 // श्वेताश्वतरेनतस्यकायंकरणंचविद्यतेनतत्समश्चाभ्यधिकश्वदृश्यते / परा स्यशक्तिर्विविधैवश्रूयतेस्वाभाविकीज्ञानक्रियाबलंच॥ 4 // यःसर्वज्ञःसर्वशक्तिरित्यादिश्रुतिभिःश्रुताः / तासुमायाप्य / घटितघदनायांपटीयसी ॥५॥(स्कंध१०)श्रियापुष्ट्यागिराकान्त्याकीया॑तुष्ट्येलयोर्जया॥ विद्ययाविद्ययाशक्त्यामाय / याचनिषेवितम् // 6 // इतिभागवतोक्तासुमुख्यासुद्वादशस्वियम् // गणिताकारणत्वेनपुराणेपरिवर्णिता // 7 // (प्रथ मस्कंधे ) सएववेदंससर्जायेभगवानात्ममायया // सदसदूपयाचासौगणमय्या गणोविक्षः॥८॥ सामर्थ्यसर्वभवनेतस्य / मायेतिकथ्यते // शक्तित्वात्तदभिन्नासाविचित्रपरिणामकृत् // 9 // क्वचिसंमोहिकामायाऽविद्यैवव्यपदिश्यते // बहवो Oहिमायायागीताभाष्येप्रदर्शिताः // 10 // मायाशब्दःक्वचिच्छास्त्रेहरिसामर्थ्यवाचकः // क्वाप्यविद्यामृषावाचीकपा कपटवित्तवाक् // 11 // शक्तिशक्तिमतो.दोवस्तुबोधायकेवलम् // अभेदोवस्तुतोनाक्ष्णोदृष्टिशक्तिःपृथग्भवेत् // // 12 / / नधर्मधर्मिणोद्वैतमप्यस्याप्राकृतस्यतु // (अ०३ पा०२ मू०२८)प्रकाशाश्रयवद्वातेजस्त्वादितिहिमूत्रितम्। 1 तत्वदीपिकाख्ये अजोपिसन्नव्ययात्मन्यस्यव्याख्याने 2 पुरुषधतवस्त्रवत्पृथक्कर्तुनशक्यते Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 // तेजःप्रकाशयो.दोनतेजरत्वाद्यथातथा // ब्रह्मणःशक्तिधर्माणांब्रह्मत्वेनभिदानहि // 14 ॥नभूमिर्गधतोभित नानगंधोभूमितःपृथक् // तद्वस्तुताहगेवेतिनद्वैतधर्मधर्मिणोः // 15 // अस्मिंस्त्वलौकिकचित्येऽद्वये दोनसर्वथा // सुविस्तृतमिदंभाष्येश्रीविद्वन्मंडनेतथा // 16 // माध्वाचार्याइहमाहर्जगत्कर्ताकलालवत्॥ भिन्नोनिमित्तमेवेशोवि कारात्समवायिनः // 17 // प्रकनिःस्यादुपादानंतत्तंत्रास्यजस्यत् // प्रकति_स्योपादानमितिभागवतोक्तितः // E18 // ब्रह्मणोजडजीवानांद्वैतमेवास्तिवास्तवम् // जीवब्रह्मभिदांवक्तिद्वासुपर्णाश्रुतिर्यतः॥ 19 // इतिचेच्या तामुक्त्वासूत्ररुह्मकारणम् // जन्माद्यस्येतिसूत्रेणकेवलंन निमित्तता // 20 // समवायित्वमप्यस्येत्याहतत्तुसमन्व यात् // रत्यभावोनयुज्येतनवरेमेश्रुतीरितः // 21 // अस्यैवाग्रेसहैतावानासेतिसमवायिता // पठ्यतेसमवायि / / त्वतैत्तिरीयादिषुस्फुटम् // 22 // असद्वाइदमयआसीत् // ततोवैसदजायत // तदात्मान स्वयमकुरुत।। तस्मात्तत्सुकत / समिति।आत्मानमित्यपादानंनिमित्तमकरोदिति॥ अभावोऽन्यनिमित्तस्यस्वयमित्यभिधीयते // २३॥ऐतदात्म्यमिदंसर्व / / आत्मैवेदंसर्वं // सर्वैखल्विदंब्रह्म। पुरुषएवेद:सर्व॥ यद्भूतंयच्चभव्यम्||श्रुतिभिःस्मृतिभिःप्रोक्ताजगतोब्रह्मरूपता|बाध्येत / प्रकृतिस्त्वाविरासास्यांश:सदात्मकः // 24 // अतस्त्वदुक्तवाक्येऽपिब्रह्मतत्रितयंत्वहम् ॥प्रकृतेःपुरुषस्यापिकालस्यहरि 1 ईश्वराधीना 2 जगत; 3 कारणसाधर्म्यादितिभावः 4 मुंडके पेंगिरहस्यब्राह्मणेचेदं 5 अकुरुतेत्यस्यार्थिकोनुवादः 6 दंडादितुल्यस्य 7 प्रतिहस्योपादानमितिवाक्ये 8 प्रकृति: पुषरुः कालश्चेति Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र वेचि.रूपता // 25 // यत्रयेनेतिपयोक्ताऽऽप्येतदर्शयिष्यते // सर्गातरेतात्वेऽपिनिर्दीनंतृतदेवहि // 26 // अंत्रोर्णनाभि टांतोऽप्यनेकत्रनिदर्श्यते // समवायऽप्यविकतिःपूर्वमेवपदार्शता // 27 // सर्वत्राद्वैतमेवोच्चैर्वदतिश्रुतयोऽखिलाः॥ पुमा र कथंचिदपिहिद्वैतज्ञानेऽपिदुष्यति // 28 // द्वासुपर्णाश्रुतौसृष्टौजीवांतर्यामिणोभिदा // पक्षाश्रयत्वसेंहजत्वादिनैवपर। स्ययत् // 29 // तत्त्वमस्यादिवाक्यानितदभेदंवदंतिच / / अभेदोंशांशिभावेनब्रह्मस्वांशःसयन्मतः॥ 30 // स्वांशत्वम शोनानाव्यपदेशादित्युपक्रमात् // व्यासेनबोधितसूत्रेस्तथास्मृतिपुराणयोः॥ ममैवांशोजीवलोकजीवभूतःसनातनः // मनःषष्ठानींद्रियाणिप्रकृतिस्थानिकर्षति // 32 // (स्कंध 10) स्वलतपुरेष्वमीष्वबहिरंतरसंवरणंतवपुरुषंवदंत्यखिल शक्तिधृतोंशरुतम् // इतिगतिविविव्यकवयोनिगमावपनंभवतउपासतेंघिमभवं विविश्वसिताः॥ 33 // भेदाभेदंब्रुवा तिआचार्यों निम्बार्कभास्करी // निम्बार्काणांमतभेदोवास्तवोमाध्ववन्मतः॥ 34 // पत्रादयोविभिन्नांशाःस्वांशाःकर पदादयः॥ विभिन्नांशाइमेजीवाइतिभेदोविनिश्चितः॥ 35 // एषांचित्त्वेनसाधादभेदोऽपिनिरूप्यते // मखस्याल्हा दकत्वेनसादृश्याञ्चंद्रतायथा // 36 // अंशत्वंमाध्ववत्तेषांभेदाभेदौव्यवस्थया // सिद्धांतवदणुत्वादितत्राप्यवहितःशृणु। For37 // स्वांशत्वमेवजीवानांममैवेत्येवकारतः // हेतुःसंगच्छतेनानाव्यपदशोनतेमते // 38 // पादोऽस्यविश्वातानीति निबंधे यत्रयेनयतोयस्येतिरोभागवतवचनव्याख्याने 2 कदाचित्पुरुषदारेतिनिबंधोक्तेः 3 प्रकृतेर्जगत्कारणत्वे 4 प्रकृतिकारणत्वाजग तआदिकारणं 5 ब्रह्मैव 1 अभिन्ननिमित्तोपादानत्वे 7 देहाश्रयन्वं 8 सदृश९ जीवः 10 उपक्रमंविधाय ल्यब्लोपेपंचमी मा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माना पादत्वेनचांशताम् // मंत्रवर्णादितिव्यासःखांशतवतथासति // 39 // वन्हिस्वांशोविस्फुलिंगोडतोदृष्टांतीकतःश्रुत अस्यावयवभूतैस्तुव्यातंकत्स्नमिदंजगत् // 40 // इत्यादिश्रुतिभिर्जीवाःस्वांशाअवयवोक्तितः // क्वाप्यश्रुतंविभिन्नांश त्वंसर्वत्राभिदानयोः॥ 11 // यत्त्वाहमाध्वोवनमालिदासोराश्येकदेशोंशइहास्तुचंद्रात्॥यथाशतांशोगुरुमंडलंस्यादित्य / मयान्यत्रतदप्यदूषि // 42 // यथासौम्येतिमृत्पिडदृष्टांतोऽत्रपराहतः॥ प्रतिज्ञहैकविज्ञानात्सर्वविज्ञानमित्यपि // 43 // अभेदएवश्रुतिषुतत्त्वमस्यादिषूदितः // बंधेद्वतधमोमोक्षेतन्निवृत्तिनिगद्यते // 44 // तैत्तिरीय।।यदायवैषएतस्मिन्नुदरमंतर / / कुरुते॥अथतस्यभयंभवति // बृहदारण्यकोयत्रहिंद्वैतमिवभवतितदितरइतरंपश्यतीत्यायुक्त्वायत्रत्वस्यसर्वमात्मैवाभूत्तत्के नकंपश्येदित्यादि।।तथायोऽन्यांदेवतामुपास्तेऽन्योऽसावन्योऽहमस्मिनसवेदयथापशुः // 45 // निदंतिश्रुतयोद्वैतंदोषोज्ञा तथामहान् // श्रौतंब्रह्मप्रपंचैक्यं घटतेनमतेचते / / 46 // सप्तमस्कंधे ( अ० 9) यस्मिन्यतोयहिचयनयस्ययस्मैयस्मा यथायदुतयस्त्वपरःपरोवा // भावःकरोतिविकरोतिपृथकूस्वभावःसंचोदितस्तदखिलंभवतःस्वरूपम् // 47 // भास्क राणांमतभेदऔपाधिकउदीरितः // अभेदस्त्वंततोजीवोव्यापकोलिंगतोडणुता // 18 // इहापिव्यापिताजीवतयाब सूत्रेषुद्वितीयस्यतृतीयपादेमाहेतिशेषः 3 जीवब्रह्मणोः 3 द्वैतमतेभेदाभेदमतेच 1 छांदोग्येअपिवातमादेशममाक्षोयेनाश्रुतश्रुतंभवत्यमत मतमविज्ञातविज्ञातमिति मुंडकादिषु कस्मिन्नुखलुभगवोविज्ञातेसर्वमिदंविज्ञातस्यादित्यादि 5 निगदेनमतिपाद्यते 6 उच्छेब्दो प्यर्थेअरमल्पमपि HOLअंतरभेदं 7 उपाधिनाशे 8 आणुत्वश्रुतिर्लिगशरीरकृतपरिच्छेदाभिमायेण Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- वे-चिं. ह्मतयाथवा // आयेनैयायिकेवेशोद्वितीयेशांकरतथा // 49 // परानिराकताव्याप्तिद्विधोपाधिकताणता॥ नित्य स्वाभाविकश्वर्यज्ञानादेयंदिराधकः // 50 // घटेतोपाधिरवान्योनाबाधाखिलधामणः // अद्वयस्यस्वतंत्रस्यदूरे तन्मलिकाभिदा // 51 // ( स्कंध 10) व्रजस्तिष्ठन्पंदेकनयथैवैकेनगच्छति // यथातृणजलौकैवंदेहीकर्मगति गतः // 52 // इत्यादिनावक्तिनानातस्यभागवतंगतीः // अन्यानिसंयातिनवानिदेहीत्यादिकास्मृतिः॥ 53 // पूर्व त्यागोगतिर्देहान्तरेव्याप्तस्यनोचिता / / इदंलिंगस्यचे याद्देहःकर्मगतिगतः // 54 // अत्रैदेहीतिसंघातदेहवान्भिन्नउच्या ते // त्याज्यप्राप्यत्वकथनास्थूलदेहस्यनेहसः॥ 55 // इत्यादिश्रुत्यादिमलैर्मतान्येतानिदूषणैः // प्राचामाचारतो चामर्वाचामपिसुस्फुटैः॥ 56 // समनद्यपृथङमाध्वकिरणादिषुविस्तरात् // निरस्तानिमयाशुद्धाद्वैतचंद्रोदयादिषु // 5 अभेदोवास्तवोब्रह्मजगतोरैच्छिकीजिदा // जीवाःस्वांशाःप्रवेशादिसिद्धांतःश्रुतिसंमतः // 58 // निबंधे।सजातीयविजा | तीयस्वगतद्वैतवाजतं // ब्रह्मोक्तंश्रीमदाचार्यद्वैतगंधोपिनास्तिनः // 59 // तत्रजीवाःसजातीयाविजातीयाजडामताः॥ स्वगताअंतरात्मानोभिन्नाघटशराववत् // 6. // अभिन्ना ह्मणोमृत्त्वाइटादेरभिदायथा // सजातीयादिभेदानांवर रूपंचयथोदितम्॥ 51 // टॅक्षस्यस्वगतोभेदःपत्रपुष्पफलादिषु।।रक्षांतरात्सजातीयोविजातीयःशिलादितः // 62 // शु। / 1 प्रवेशः 2 जीवत्वेनब्रह्मत्वेनच 3 त_तिशेषः 4 शुकः 5 वाक्ये 6 जलेसैधवखिल्यवत्जीवानांब्रह्मणिप्रवेशः वन्हेविस्फुलिंगवत्ततोनिर्ग मइति 0 विद्यारण्यादिभिः कथितं 8 विद्यारण्यकारिकयं Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वाद्वय यजयकंदययाभयदृद्भवप्रभवभाजाम् // कारणमाहयमेकर्तेमनुत्सेकंजस्वसविवेकम् // 61 // // इतिश्री / वेदांतचिंतामणौशक्तिधर्माभेदनिरूपणपूर्वकद्वैतमतनिराकरणंनामदशमंप्रकरणं // 10 // // // 7 // यपश्चिदचित्सर्गःस्पृष्टःसृष्टौनतेनयः॥ सर्वत्रसन्नविज्ञातोऽस्मैनमोऽनुप्रवेशिने // 1 // यःसर्वत्रैवसंतिष्ठन्नंतरःसंस्पृशे नतत् / / शरीरंतन्नवेदेत्थंयोऽनुविश्यप्रकाशते // 2 // इत्याहुःश्रीमदाचार्याःशास्त्रार्थेब्रह्मरूपणे // संगृह्मकथ्यतेऽत्रार्थोयः पृथिव्यामितिश्रुतेः // 3 // ब्रहदारण्यकेऽध्यायेपंचमेतच्चसप्तमे॥ब्राह्मणेपठ्यतेवाक्यमंतर्यामिनिरूपके॥४॥(पृ०६१६) यःपृथिव्यांतिष्ठन्पृथिव्याअंतरोयंपृथिवीनवेदयस्यपृथिवीशरीरंयःपृथिवीमंतरोयमयत्येषतआत्मांतर्याम्यमृतइत्यादि // रामानुजावदंतीहविशिष्टाद्वैतवादतः॥ श्रुतावस्यांपृथिव्यादिसप्तम्याऽऽधाररूपणात्॥ ५॥अंतस्छस्योच्यते दोयथाऽऽस्ते भूतलेघटः // इतिवाक्यभूमितलाइटभेदःप्रतीयते // 6 // अतःपृथ्थ्यादिकंव्याप्यंभिन्नमेवाखिलंपरान् // ब्रह्मणोहिशरी / रद्वेनित्येचिदचितीमते // 7 // सूक्ष्मकारणरूपेतेयाभ्यांस्थूलमभूजगत् // चिच्छरीरात्तचित्कार्यमचिच्चाचिच्छरीरतः। विभागानहतानामरुपयोःसूक्ष्मतामता॥ नामरुपव्याकरणंतस्यैवस्थौल्यमुच्यते॥ 9 // ब्रह्मैवंसूक्ष्मचिदचिद्विशिष्टंका रणभंतेः। कार्यचस्थलचिदचिद्विशिष्टमितिनिर्णयः॥१०॥ विशिष्टौद्वतमनयोरद्वैतंतद्विशिष्टयोः।विशेषणेचिदचिती 1 सिद्धांतः 2 अर्थातश्रीमदाचार्याःश्मातांतरेषुजगत्कारणतयोक्तानामविद्यातदुगमरूतिचिदचिच्छरीरप्रकृतीनांच्यातनायकमितिश्पुरुषोत्तम 5 जडजीवसर्गः 6 प्रपंचसत्ताकाले 7 जडजीवाभ्यांबुद्धः 8 निबंधश्लोकोऽयं शास्त्रार्थमकरणे परमात्मनः ११षष्ठ्यंतमिदं शरीरद्वयस्य 13 उक्तवाक्यात् तच्चवैशिष्ट्येप्रमाणं Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केचि ब्रह्मणःकारणात्मके // 11 // सूक्ष्मेस्थूलेतुतेकार्यात्मकेकार्यविशेषणे // जीवस्तुस्थूलचित्स्थूलमचित्पृथ्व्यादिकंमतं // 011 // 12 // अंतःस्थितोनियंतेहाऽनुप्रविष्टोविभागकंत् / उक्तश्रुतौपृथिव्यादर्जडस्यांतःस्थितःश्रुतः॥१३॥जीवस्यापितथा। काण्वैोविज्ञानइतीरणात् / / यआत्मनीतितत्पाठभेदान्माध्यंदिनेश्रुतम् // १४॥शरीरत्वंचतत्रैवश्रुतंतस्यैतयोर्द्वयोः॥जीवो जडोंतरात्मेतिभोक्तभोग्यनियामकाः // 15 // कमात्रयःपदार्थास्तर्मतास्तत्कारिकायथा // ईश्वरश्चिदचिच्चेतिपदार्थ / त्रितयंहरिः।।ईश्वरश्चितइत्युक्तोजीवोदृश्यमचित्पुनः॥१६॥द्रव्याद्रव्यप्रदायितमजयविधंतद्विधंतत्त्वमाहुव्यद्वेधाविभ तंजडमजडमितिप्राच्यमव्यक्तकालौ // अंत्यप्रत्यकूपराकूचप्रथममुभयथातत्रजीवेशभेदान्नित्याभूतिर्मतिश्चेत्यपरमि हजडामादिमांकेचिदाहुः // 17 // तत्र // द्रव्यंनानादशावत्प्रकृतिरिहगुणैःसत्त्वपर्वैरुपेताकालोब्दाद्याकतिःस्यादणुरवगा। तिमाञ्जीवईशोन्यआत्मा // संप्रोक्तानित्यभूतिस्त्रिगुणसमधिकासत्त्वयुक्ताथवज्ञायावज्ञासामतिरितिकथितंसंग्रहा व्यलक्ष्म / / 18 // इत्थंवेंकटनाथायाविस्तराच्छतियुक्तिभिः॥ तत्स्रग्धरासहस्रादौपदार्थव्याजंतते // १९॥लयेक्रम, | 1 चिदचितोः 2 रूपनामव्याकर्ता 3 अंतस्थितः 4 योविज्ञानेतिष्ठनविज्ञानाईतरइत्यादिकाण्वानांबृहदारण्यकेपार: 5 यात्म नितिष्ठन्नात्मनोनरइत्यादि 6 वाक्यं 7 माध्यंदिनबृहदारण्यके 8 एतयोर्जडजीवयोस्तस्यब्रह्मणःशरीरभूतत्वं 9 यस्यपृथ्वौशरीरमित्या दिभिर्जडस्ययस्यविज्ञानं शरीरंयस्यआत्माशरीरमितिजीवस्य 10 अस्तीतिपृथग्वाक्यं ११इदमुत्तरान्वयि तेष्वीश्वरस्तुहरिरित्यर्थः नत्विहपदार्थत्रय स्यहरित्वं विधीयते द्वैतभंगापत्तेः Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवजडौशरीरेचित्यऽचित्यपि // विलीयेतेनामरूपाऽविभागेनप्रवेशतः // 20 // वस्तुतोभिन्नमेवैतद्ब्रह्मणश्चिदचित्सदा // स्वरूपतःस्वभावाद्यैःशरीरत्वाद देवाक् // 21 // सूक्ष्मेचिदचितीब्रह्मतत्त्वानित्रीणिकारणे // स्थूलेंतेचतदंतस्थःकार्यतत्त्व त्रयंमतम् // 22 // तत्स्थूलसूक्ष्मचिदचिद्विशिष्टकार्यकारणे / / कमात्तयोरदस्तुविशिष्टाद्वैतमीर्यते // 23 // चिच्छरीरे Pणचित्कार्यस्याचितोचिच्छरीरतः // अंतस्थेनपरस्यैक्यंनत्रयाणांपरस्परं // 24 // अस्मन्मतेपिजेदश्वेजडजीवांतरात्म नां // निबंधेतन्मतंतत्त्वत्रयस्यादितिचेन्नहि|२५|| जडोजीवोंतरात्मेतिकार्यमेवत्रिधामतं // कारणंत्वेकमेवेदमद्वैतैकरसंपर F॥२६॥सबहुस्यांप्रजायेयतीच्छामूल:परस्परा।कार्यमात्रत्वतोभेदस्तेषांघटशराववत्॥२णाननित्योवास्तवस्त्वेषांभेदःकुड्य कुमूलवत्।।मृत्त्वेनाभेदवत्तेषामभेदोत्रास्तिवास्तवः।। २८॥सर्वपुरुषएवेदनेहनानास्तिकिंचनामृत्योःसमृत्युमामोतियइहां नानेवपश्यति ॥२९॥द्वैतदृष्टेद्वितीयोवैभयंभवतिसर्वथा ॥आत्मेतिपगच्छंतियाहयंतिचतद्विदः // 30 // बृहदारण्यके। रुषविधब्राह्मणे // (पृ. 215) तद्योयोदेवानांप्रत्यबुत्थ्यतसएवतदभवत्तथाऋषीणांतथामनुष्याणांतद्वैतत्पश्यन्ऋषि / मदेवःप्रतिपेदेहंमनवमूर्यश्चेति तदिदमप्यताहियएवंवेदाहंब्रह्मास्मीतिसइद सर्वभवति तस्यहनदेवाश्चना 1 नामरूपविभागोच्छेदकात्मवेशात् 2 पंचमीयं३ सृष्टिप्राक्काललयोत्तरकालयोरपिनाभेदहातभावः 4 इमेभेदेहेतवः 5 ब्रह्माभेदीक्तिस्तयोः / शरीत्वाभिमायादौपचोरिकी 6 चिदचिती 7 जडजीवांतर्यामिणां 8 घटादोनां ९जडादिषु 10 अनौपचारिकः 11 कठस्थवाक्यद्वयं१२ बृहदारण्य स्फुटमिदं 13 (अ.४ पा. 10 ३याहयंतिचेत्यतंसूत्र Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ALLA I ईशतआत्माह्येषा सभवति अथयोन्यांदवतामुपास्तेऽन्योऽसावन्योहमस्मीतिनसवेदयथापशुरेव सदेवानामित्यादि .11 ब्रह्मविद्वक़वभवतीत्यादिश्रुतिषुस्फुटं // कार्येपिभिन्नचिदचिद्वैशिष्ट्यतेनवारितम।। 31 ॥अथब्रह्मातिरिक्तस्यकारणत्वनि मवारये।।एकमेवाद्वितीयंतद्वेदेब्रह्मैवकारणं॥ ३२॥नासदासीन्नोसदासीन्नान्यत्किंचिन्मिषत्तदा स्वभिन्नचिदचित्सत्त्वत्वेको / महमितिबाध्यते // 33 / / बृहदारण्यके (पृ. 125 ) आत्मैवेदमग्रआसीत्पुरुषविधःसोनुवीक्ष्यनान्यदात्मनोपश्यत्॥ त व (पृ० 198 ) ब्रह्मवाइदमपआसीत्तदात्मानमेवावेदहंब्रह्मास्मीतितस्मात्तत्सर्वमभवत् // तत्रैव (पृ. 257) आत्मैवेदमयआसीदेकएवसोकामयतेत्यादि / च्छांदोग्येश्वेतकेतुविद्यायां (खंड 2 ) सदेवसौम्येदमग्रआसीदेकमेवानी द्वतीयं. सत्त्वेवसोम्येदमग्रआसीदेकमेवाद्वितीयं तदैक्षतबहुस्यांप्रजायेयेति // तत्तेजोऽसृजत // बढुचानामैतरेयोप निषदि // आत्मावाइदमेकएवायआसीनान्यत्किचनमिषत् सऐक्षतलोकान्नुसृजाइतिसइमाँल्लोकानसृजतेत्यादि / तित्तिरीये // तस्माद्वाएतस्मादात्मनआकाशःसंभूतइत्यादि // तथा / सोकामयत बहुस्यांप्रजायेयेति ॥सतपोतप्यत॥सती पस्तत्वा॥इद:सर्वमसृजताअयो।तदात्मानस्वयमकुरुतातस्मात्तत्सुकतमुच्यतइति।स्वयंपर्यणमद्ब्रह्मजगद्रूपेणकेवलं / / ब्र ह्मणोन्येशरीरेतुयुज्यतेनेजीववत् // ३४॥अशरीरंशरीरेषुअनवस्थेष्ववस्थितं // महांतं विभुमात्मानंमत्वाधीरोनशोचति // 22 1 निबंधेकायर्यावस्थायांचिदचिद्वैशिष्ट्यकथनेपितत्रतात्विकभेदानंगीकारानिबंधाविरोधायभिन्नपदं 2 लोकाअंभःप्रभृतयःपदार्थास्तत्रम सिद्धाः 3 भयोजनशून्यं 4 सूक्ष्मशरीररहितं 5 शरीरिभिन्ने Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 35 // शरीराभावमेतस्ययत्पठंतिकठादयः॥ नेदंजीवपरंवाक्यंब्रह्मप्रश्नोत्तरेस्थितं // 36 // ( अ० 1 पा० ४सू०६) त्रयाणामेवचैवमुपन्यासःप्रश्नवाइतिसूत्रस्फुटमिदंविभुत्वंचेहबाधकं // आनंदमात्रकरपादमुखोदरएवसः॥३णासाका र:श्रूयतेजीववद्भिन्लावयवोनसः // सूत्रेतदतएवाहचतन्मात्रमितिस्फुटं // 38 // शरीरेष्वित्युक्तितस्तेकल्प्येतेचेद्वहूंक्तितः / अनवस्थत्वोक्तितोद्वेएवनित्येचतेकुतः॥ 39 // किचकिपरिच्छिन्नेनवाईयेपरिमातृका | अणुर्वामध्यमानवसाप्रसि द्वातयोःक्वचित् // 40 // परिच्छिन्नतयानंतविश्वोत्पत्तौक्षयोऽनयोः // किचैतयोरधिष्ठानवाच्यंब्रह्मैवचेवयोः॥४१॥ शरीरयोरधिष्ठानंशरीरीतिनसंगतं // अपरिच्छिन्नपक्षेतुसांकर्यनकुतोभवेत् // 42 // अन्योन्यस्मिन्यतोन्योन्यंवि नास्तिसर्वदा // अतोविभाजकंकिस्याद्देशकालाद्यसंभवात् // 43 // देशादेप्यसांकर्यवित्वंचनमर्तयोगादृश्यतेऽथोद्ग मार्थचासांकर्यार्थजडात्मनोः॥४४॥ तिरोभावादिवक्तव्यतत्प्रसिद्धंनतेमते॥इत्यादिदूषणैर्वक्तंनशक्येचिदचित्तनू॥४५॥ नापिशक्यौतयोःसत्तासृष्टेःप्रागब्रह्मभिन्नयोः॥ आत्मैवेदमग्रआसीत्सदेवत्येवकारतः॥४६॥ एकमेवाद्वितीयंतदित्यादि 1 वाक्यजीवपरत्वे आवयोःसिद्धांतेतस्याणुत्वात् 2 सूक्ष्मशरीरे 3 शरीरेष्वितिबहुवचनाद्वेएवकुतः अनवस्छत्वाच्चनित्येकुतइत्यन्वयः 4 परिच्छेदपक्षे 5 श्रुत्यादौ 6 वाच्यमित्यंतंपृथग्वाक्यं 7 इदमुत्तरान्वयि 8 विभुत्वाद्देशस्यविभाजकत्वमसंभवि सार्वदिकत्वाच्चकालस्य सृष्टेःमाक्कालादीनांसुतरामसंभवश्च 9 विस्फलिंगवदुद्गम्यपतनार्थ देशांतरमपेक्षित मितितदर्थ 10 परस्परतोवलक्षण्यानुभवार्थ उभयोविभुत्वे सदन नुभावापत्तेः 11 जडजीवयोः 12 तिरो सानोतिश्रुत्यायथाब्रह्मणःपूर्वमुपपादितंतथा 13 वक्तमितिशेषः Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MAH. वैचि. श्रुतिकोपनात् // इहसत्तत्त्वमस्यादौतच्चब्रह्मैवंगीयते // 47 // ओतत्सदितिनिर्देशोब्रह्मणस्त्रिविधःस्मृतः // अहमेवासमेवानी यिनान्यद्यत्सदसत्परं / / 48 // पश्चादहंयदेतञ्चयोवशिष्येतसोस्म्यहं।। श्रूयतेसोऽनुवीक्ष्यान्यन्नात्मनोऽपश्यदित्यपि॥४९॥ सतीस्वान्येचिदचितीदृष्टेनान्वीक्षयापिचेत् // सर्वज्ञत्वंव्यापकत्वमीशत्वंतस्याज्यते // 50 // द्वितीयेच्छारत्यभावमलिक काकिनाश्ता / एकांकित्वंरत्यभावोद्वितीयेच्छाचंबाधिताः॥ 51 // नन्वेकएवाहमासमित्यादौदेहजीवयोः॥ द्वयोः / सत्वेप्येकपदंतदभेदाश्रयाद्यथा // 52 // तथाद्विदेहयगब्रह्माऽत्रात्मशब्दनगृह्यते / तथैकोहंस्थलेडतोन्यन्नासीविचित्त दितिचेत् // 53 // मैवंजीवस्यदेहेऽहंप्रत्ययोऽध्यासजोमृषा // अविद्ययेशेच्छयास्तीत्येकत्वंप्रयनक्तिसः // 54 // नत / थाब्रह्मणोमिथ्याऽध्यासोऽज्ञानैकहेतुकः // स्थिराइवध्यसंख्येयकल्याणगुणशालिनः॥ 55 // सर्वज्ञस्याडविलिप्तस्य स्वतंत्रस्यनियामिनः॥ स्वाधीनाऽविद्यादिशक्तनित्यमुक्तस्ययुज्यते // 56 // अथात्मैवेदमित्यादौसर्वस्याप्यात्मरूपता॥ पाकुसर्गाच्छूयतेनान्यचिदचिद्रूपताक्वचित् // 57 // विरुद्धाब्रह्मभिन्नत्वाद्वस्तुतोजडजीवयोः // आत्मशब्दस्यचिदचि 1 सदेवसोम्येतिवाक्ये 2 गीतायांप्रतिपाद्यते 3 गीतावाक्यमिदं 4 आथिकानुवादाभिप्रायात्पदविपर्यासःछंदोनुरोधात् श्रुतौतुनान्यदात्मन इतिपाठात् 5 विद्यमाने 6 स्वप्रतियोगिकतात्विकभेदवती 7 सवैनैवरेमेतस्मादेकाकीनरमतेसद्वितीयमच्छत् सहैतावानासेति बृहदारण्यके 8 चिद चित्सत्वादकाकिन्वस्य ताभ्यांसहवरतिसंभवात्तदभावस्यततएव द्वितीयेच्छायाश्च बाधः 9 चकारान्सर्वरूपणभवनमपिबाधितं 10 लौकिकमयोगेश 1 सोनुवीक्ष्यनान्यदात्मनइत्यादौ 12 अविद्याकरणकबंधे यहेतु: 13 जीवः 14 मन्येकमियत्तारहितः 15 जडजीवयोर्ब्रह्मात्मकता Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परत्वंतुनशक्यते // 58 // निर्गुणःपरएवैकस्तदर्थदतिनिर्णयात् // गौणश्वेन्नात्मशब्दादित्यादौतत्सर्वसंमतं // 59 // उ / पादानंसहैतावानासेत्युक्यातदेवहि // तथाऽभिन्ननिमित्तोपादानदृष्टांतपूर्वकं / / 60 // सर्वेषांजडजीवानांततएवैकतः / श्रुतः॥ उद्गमोनतुतद्भिनचिदचिबेहतःक्वचित् // 61 // बृहदारण्यकेदृप्तबालाकिब्राह्मणाख्येचतुर्थाध्यायप्रथमब्राह्मणे D( पृ. 372 ) सयथोर्णनाभिस्तंतुनोच्चरेद्यथाग्नेःक्षुद्राविस्फुलिंगाव्युच्चरंत्येवमेवास्मादात्मनःसर्वेप्राणाःसर्वेलोकाःस / देवाःसर्वाणिभूतानिव्युच्चरंतीति // अनेकोपनिषहुष्टमेतार्कबहुविस्तरात् // नचजीवप्रकरणाद्वाक्यंजीवपरंत्विदं / / 62 // अणुमात्रात्ततःसर्वानुद्गमाल्लिंगबाधनात् // जवेल्लिंगप्रकरणाद्वलिष्ठंपूर्वतंत्रतः // 63 / / सुषुप्तौब्रह्मलीनस्यततउ / // सर्वेषामुद्गमस्तस्मात्पठ्यतेपरमात्मनः // 64 // अथोत्पत्त्यप्ययाधारतमेवोक्त्वातदात्मता। श्राव्यतेतैत्तिरीया / भतभाविनां // 65 // महानारायणोपनिषदि // यस्मिन्निदश्संचविचैतिसर्वयस्मिन्देवाअधिविश्वनिषेदुः॥ तदेवभूतंतदुभन्यमाइदंतदक्षरेपरमेव्योमन्॥(अ०१पा० 4 सू 0 2 3 )प्रतिश्वप्रतिज्ञादृष्टांतानुपरोधादित्यादि।तस्याऽ / जिन्ननिमित्तोपादानतांपाहसूत्ररुत् // अभेदश्रुतयःसर्वाःसंगच्छंतेनचान्यथा // 66 // पुमांश्वप्रकृतिःसूक्ष्मतनूइत्यपिनो आत्मशब्दार्थः 2 ब्रह्मैव 3 महतांमाणलोकादीनांजीवसकाशादृद्मासंभवात् 4 श्रुतिलिंगवाक्यमकरणस्थानसमाख्यानांसमवायेपारदौ ल्यमर्थविप्रकर्षादितिपूर्वमीमांसासूत्रात् 5 जीवस्य 6 ब्रह्मतः 7 समेतिव्योतच 8 जगतःप्रकृतिरुपादानकारणंचानिमित्तकारणंचब्रह्मैव एवमेवस तिएक विज्ञानेनसर्वविज्ञानप्रतिज्ञा यथासीम्यकेनमृत्पिड़ेनसमृण्मयं विज्ञातस्यादित्यादिदृष्टांतश्चनोपरुत्थ्यते Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केचि. चितम् / / यद्वक्ष्यतेब्रह्मतयोरुपादानंलयास्पदं // 67 // घटतेतेनचिदचिंद्वशिष्ट्यं नैवकारणे॥ अंतर्यामिब्राह्मणंनसूक्ष्मतद्दे प्र.१० साधकं // 68 // आम्नायतेत्ररत्तांतःसर्गादुत्तरकालिकः / तिष्ठन्यमयतीत्येवंवर्तमानेशताचलट ॥६९॥कालांतरेवि भोभिन्नंकिंचिद्याप्यंन विद्यते॥सर्वस्यपूर्णब्रह्मत्वात्परिच्छेदाद्यावतः॥७॥पृथ्व्यादिनामानर्हचतादृयूपानुपाश्रयात्॥यं तव्याभावतस्तत्रनियमोपिनयुज्यते॥७१॥सृष्टिकालेसमुद्भूनंभूतप्राणेंद्रियादिक।।जीवाश्वततएवात्रयेशरीरतयोदिताः७२|| तित्तैरीयब्रह्मोपनिषदि।तस्माद्वाएतस्मादात्मनआकाशःसंभूनः ॥आकाशाद्वायुरित्यादि।मुंडकोपनिषदिद्वितीयमुंडकप्रथा। मखंडे|एतस्माजायतेप्राणोमनःसर्वेद्रियाणिचखंवायुर्योतिरापःपृथिवीविश्वस्यधारिणीत्यादिषु ॥अनेकत्रस्फुटमिदंशा स्वमीमांसितंतथा|आचार्येणांत्ययोःसम्यक द्वितीयाध्यायपादयोः।७३॥इदानीमैच्छिका दादूपनामविभागतःस्वात्मक स्यपृथिव्यादेःसतम्याधारतोचिता।।७४ ॥तत्रव्याप्यस्थितःकत्स्नेप्राणनार्थनियामकःअनप्रविष्टःसृष्ट्वदंभरणायन लिप्य / ते॥ 75 // तत्तत्सृष्ट्वातदेवानुप्राविशच्छृतितःस्मृतेः। योलोकत्रयमाविश्यबिभर्त्यव्ययईश्वरः।। 76 // तैत्तिरीयेनारायण / / | 1 ब्रह्मदेहयोः 2 यःपृथिव्यांतिष्ठन्नित्यादिवाक्येषु 3 प्रपंचस्यव्याकतनामरूपतयास्थित्यधिकरणकालातिरिक्तं 4 आदिशब्दादानंदांशतिरोभा वादीनांसंग्रहः 5 ब्रह्मकर्तृकः 6 अंतर्यामिब्राह्मणे 7 ब्रह्मसूत्रेषु८ व्यासेन 9 तृतीयचतुर्थयोः 10 अयमैच्छिकभेदेहेतुः भेदश्चाधाराधेयभावे 11 यः / पृथिव्यांयोप्सुइत्यादिरूपया 12 सर्वस्यजीवनार्थको वान्यात्कःपाण्याद्यदेषआकाशआनंदोनस्यादितिश्रुतेः 13 गीतावाक्यात् Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतःसमद्रागिरयश्वसर्वेस्मात्स्यंदंतेसिंधवःसर्वरूपाः॥ अतश्चविश्वाओषधयोरसाच्चयेनैषअतस्तिष्ठत्यंतरात्मा|आ नंदादितिरोभावाकीडनार्थपृथक्कृताः // जडाजीवाश्चनिःसंगस्वांतस्थितमधोक्षजं // 77 // तेंदिच्छयानजानंतीतिन / वेदेतिभण्यते / शरीरमितिभेदस्तसृष्टिकालेपिलप्यते // 78 // पृथ्व्यादीनांत्वन्मतेपिस्थलानामेववर्ण्यते / शरीरतात्रेति तननसूक्ष्मेसिध्यतस्तन // 79 // भावत्कौसूक्ष्मदेहीद्वदाभिप्रायगोचरौ // तदायश्चितितिष्ठन्योचितितिष्ठन्नितिद्वयं // // 80 // एवंढयांतत्तुनोक्तंतस्मात्तौश्रुत्यसंमतौ // कारणेतेनजीवानामतंत्रत्वन्मतंत्रयम् // 81 // याऽधारत्वनियम्यत्व व्याप्यत्वैर्दर्शिताभिदा // उपक्रमोपसंहारविचारेसानवास्तवी // 82 // यथाउपक्रमे ( पृ० 614 ) सोब्रवीत्पतंचलं काप्यंयार्शिका श्वयोवैतत्काप्यसूत्रविद्यात्तंचांतर्यामिणमितिसब्रह्मवित्सलोकवित्सदेववित्सभूतविन्सआत्मवित्ससर्ववि दिति तेभ्योब्रवीत्तदहवेद // इत्येकस्यैवविज्ञानात्सर्वविज्ञानमीर्यते // सर्वस्यतदुपादानकत्वेसत्येवसंभवेत् // 83 // एकम पिडविज्ञानाद्विज्ञातस्यात्तुमृन्मयं।एकेनलोहमणिनासर्वलोहमयंयथा // 84 // उपसंहारे (पृ. 622 ) अदृष्टोद्रष्टा / तश्रुतःश्रोताऽमतोमंताऽविज्ञातोविज्ञातानान्योऽतोस्तिद्रष्टानान्योतोस्तिश्रोतानान्योतोस्तिमंतानान्योतोस्ति विज्ञतिषलआ | 1 प्रथमार्थपंचमी कठे रसाश्चेतिपाठात् 2 आदिशब्दादैश्वर्यादीनांजडेचिदंशस्यचतिरोधानं 3 अधस्तादक्षजयस्मात्तं इंद्रियजन्यज्ञानाविषय 4 ब्रह्मेच्छया 5 शरीरत्वकथनेन 6 त्वयास्थलवेनाभिमतानांपृथिव्यबग्निप्रभृतीनां 7 अंतर्यामिब्राह्मणे 8 भवदभिमतौ 9 वाक्यद्वयमेवब्रूयातून पृथिव्यादिवाक्यानि 10 तादृशंवाक्यद्वयंतुनैवोक्तं 11 श्रुतेरविवक्षितं Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केच मांतर्याम्यमृतइति // कर्तारोदर्शनादीनांजीवाःस्वांशतयाऽखिलाः॥ ब्रह्माऽभिन्नाविस्फुलिंगवदित्येवेहबोत्थ्यते॥ 85 // d011 नचेत्तादृग्जीवसत्त्वान्नोपपद्येततात्त्विकः // सेधोद्रष्ट्रतरादीनांतस्मात्सर्वतदात्मक।। 86 / / सृष्टिकालेपरिच्छेदोभेदोऽचित्त्व / / विशक्तता // अनुप्रवेशोनियमोनपूर्वापरकालयोः॥ 87 // इदानीमेवेदमतएकदेश्येवतन्मतम् // तेदावरणभंगेऽपिदर्शि 25 TEतास्यैकदेशिता // 8 // ननसर्वमतान्येवंदूषयन्द्वेषरुद्भवान् // इतिचेन्नविनोदोऽयंविदुषांतत्त्वनिर्णये॥ ८९॥भक्ति। ज्ञानेयप्रविष्णोर्यत्रवेदःपराप्रमा / / मतानितानिसर्वाणिजीवोद्धारस्यहेतवः।।९०॥सत्त्वादिभेदतोजीवाश्वित्रप्रकतयोऽखि लान् // उद्धर्तुप्रभुणानानासंप्रदायाःप्रकाशिताः।। 91 // यथाऽधिकारतेष्वेतेप्रवर्ततेततःफलं // ऐहिकामष्मिकंमोक्षोवि विधश्वयथायथं // 92 // ब्रह्मण्यलौकिकेऽचित्येस्वाभिन्नानंतशक्तिनिद्रूपस्यव्यवस्थानमभेदाच्छ्रतिषूदितम्।। 93 // || वितरतियत्स्वयमगुणंविविधेभ्यःकामनानाना॥ सगुणैःशिवादिरूपैस्तदंशिभूतंभजेपरब्रह्म।। 94 // // इतिश्रीमहा। ITलभाचार्यमततिश्रीव्रजवल्लभचरणानचरपंचनदिघनश्यामभहात्मजगोवर्द्धनशीघकवेःकतीवेदांतचितामणौविशिष्टाद्वै| तविचारोनामैकादशंप्रकरणं // 11 // // // // // // // // 5 // लीलायैशिवशक्त्यायाःकतायेनविभूतयः // नैर्गुण्यहेतुंभक्तानांनमामोनिर्गुणपरं // 1 // शैवारामानुजमततस्कराःसर्व : १अनौपचारिकः 2 निषेधः 3 तत्तस्मात् अथवातस्ययःसर्वत्रेतिश्लोकस्यव्याख्यानभूते४ निर्णयनिमित्तं५ संप्रदायेषु 6 तदभिन्नस्यमपंचस्य Tनीलकठादयः Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाङ्मयम् / / योजयित्वाशिवपरंविशिष्टाद्वैतमैरयन् // 2 // निर्गुणंस्यात्परंब्रह्मश्रुतेर्निर्गुणमुक्तिरुत् / / शंभोस्तमःप्रधानस्य / ब्रह्मत्वंनतंथोचितम् // 3 // निर्गुणःस्यात्परशिवोव्यूहादिस्थोगुणीतिचेत् // नसूतसंहितादौवःसगुणःसोऽपिकथ्यते // 4 // र उमार्द्धविपहःश्रीमान्सोमार्द्धकतशेखरः॥ ब्रह्मविष्णुमहेशानैरुपास्यःपरमेश्वरः // 5 // ऋतसत्यंपरब्रह्मपुरुषंसांबमी / श्वरं // अष्टमेनवमेऽध्यायेतन्महोपक्रमात्स्फुटं // 6 // महेशानोपास्यलिंगाबाक्येपरशिवःस्फुटः // साहित्यात्सर्वदाश शकेःसगुणत्वंदृढीकतं // ७॥शक्तेःपरस्वरूपेऽपितेद्रहस्यनिरूपितम् // सर्वस्यायामहालक्ष्मीस्त्रिगुणापरमेश्वरी // 8 // ( स्कंध 10 ) शिवःशक्तियुतःशश्वबिलिगोगुणसंटतः // वैकारिकस्तैजसश्चतामसश्चेत्यहंत्रिधा // 9 // ततोविकारा अभवन्षोडशामीषुकंचन / / उपधावन्धिभूतीनांसर्वासामभुतेफलं // 10 // हरिर्हिनिर्गुणःसाक्षात्पुरुषःप्रकतेःपरः // स सर्वदृगुपद्रष्टातंभजन्निर्गुणोभवेत् // 11 ॥श्रीमद्भागवतेऽप्युक्तं सगुणत्वंशिवस्यतु // वैष्णवांनांयथाशंभुक्तिःपरशिवः / परम् // 12 // व्युहवर्तीतुसंहारशक्तिकार्येनिरूपितः // तत्पायब्रह्मवैवर्तपंचरात्रादिवाक्यतः // अनेकदागश्चमया न्यत्रप्रपंचितं // कृष्णएवपरब्रह्मसदानंदस्तथाश्रेतिः॥ 13 // कृषि वाचकःशब्दोणश्व निर्दतिवाचकः॥ तयोरैक्यं परंब 1 ब्रह्ममीमांसाभाष्यशिवतत्त्वविवेकलिंगार्चनचंद्रिकादिषु 2 अतितः 3 चरमकोटिक विभूतित्वेनतूचितमेवेतिभावः 1 अष्टमाभ्यायस्थ मिदं 5 नवमाध्यायस्थमिदं 6 तांत्रिकोयंरहस्यभागःसमशतीपामेत्तरंपच्यमानःमसिद्धः * त्रिगुणात्मकत्वमुक्तं 8 द्वादशस्कंधस्थोयंचरणः 9 तापनीयस्था Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे. चिमकण्णइत्यभिधीयते // 14 // शिवादिरूपैःसगुणैःकामान्पूरयतिप्रभुः // स्वयंतुनिगुणोदेवोभक्तानांनिर्गुणत्वकत्॥१५॥ (स्कंध १०)उत्तरार्द्ध।यस्यांघिपङ्कजरजोऽखिललोकपालैौल्युत्तमैघृतमुपासिततीर्थतीर्थम् // ब्रह्माभवोऽहमपियस्यक लाःकलायाःश्रीश्चोद्वहेनचिरमस्यनृपासनक्क १६॥(स्कंध १०)पूर्वार्द्धात्वामेवान्येशिवोक्तेनमार्गेणशिवरूपिणं|श्रीमद्भागा / वितेऽस्येतिभगवद्रूपतामता // 17 // येऽप्यन्यदेवताभक्ताइतिगीतासुचोदितम् / / पादमेकातिकमाहात्स्येप्रथमाध्यायई> d ति // 18 // (श्लो. 26 / 27) सौराःशैवाश्चगाणेशावैष्णवाःशक्तिपूजकाः॥मामेवप्रामवंतीहवर्षाम्नःसागरंयथा / / IF // 19 // एकोहपंचधाजातःक्रीडयानामभिःकिल|| देवदत्तोयथाकश्चित्पत्राद्याव्हाननामभिः // 20 // इत्थंभगवताप्रो / ताशिवादीनांनिजांशता // शिवादिरूपंशैवाद्याभजंतःप्रामुवंतितं // 21 // विष्णुःसत्वगुणोपाधिस्तद्भक्ताईहवैष्णवाः // शंभोरुपासनंचर्कआसुरान्मोहयक्वचित् // 22 // उत्तरोत्तरसर्गार्थतत्पादोस्पष्टमच्यते // विष्णोनीमसहस्रेतुशिवेनगि में रिजांप्रति // 23 // प्रोच्यतपंचरात्रेचयत्वस्मैहरिणोदितं // त्वामाराध्यतथाशंभोयहीष्यामिवरंसदा // 24 // स्वांगमैः / कल्पितैस्त्वंचजनान्मद्विमुखानकरु // मांचगोपययेनस्यात्सृष्टिरेषोत्तरोत्तरा // 25 // खंडितःपंडितकरभि दिपालेप्रहा। 1 भगवंत 2 सौराःशैवाइतिपायवाक्येपंचायतनोपासकनिरूपणेनसाहचर्यात्सगुणोपासकाएववैष्णवाबोध्यानतुपुरुषोत्तमोपासकाः 3 ननु / रामाद्यवतारेषुभगवताशिवभक्तिकरणानसेव्यसेवकभावविपर्ययएवकुतोनेत्याशंक्याह शंभोरिति 4 भगवान्कृतवान् 5 पायेशिवेनपार्वतीमति विष्णुनामसहस्रमुक्तंतदेवाक्षरशोनारदपंचरात्रेप्युपलभ्यते तत्रोभयत्रेदभगवदनुवादरूपंशिववचनमस्ति 6 शैवादिशास्त्रः -- -- - - Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्ततः / आष्यप्रकाशेतद्वादोविस्तरात्पुरुषोत्तमैः।।२६ // शाक्ताजगदुपदानंजल्पत्यल्पश्रुताहरिम् // कल्पयंतिनिमित्तंच शक्तितापरतःपराम् // 27 // देवीसूक्तादिनाश्रुत्यामाकडे यादिषूदितं / विशेषतश्वतंत्रेषुतत्स्वरूपंनिरूप्यते // 28 // तां| परांकारणंप्राहसप्तशत्यांस्तुवन्विधिः॥ परापराणांपरमात्वमेवपरमेश्वरी॥ 29 ॥त्वयैतद्धार्यतेविश्वंत्वयैतत्सृज्यतेजगत्॥ त्वयैतत्पाल्यतेदेवित्वमत्स्यंतेचसर्वदा // 30 // इतिचेच्छ्रयतांमूढशक्तयोब्रह्मणस्तुयाः // तदभिन्नाश्वतद्रूपाःश्रुर्त्यांपूर्वनि रुपितं // 31 // गंणात्मकमचिपंप्ररुतिःसृष्टिकालिकं // शक्तिप्रकृत्योर्दुर्गातुविभतिःकार्यमिष्यते॥ 32 // रत्यै बिभि सुनासर्वास्तिरोभाव्यापितेनताः // तैदशाःस्व विभूतिभ्योदत्ताःकेचनकेचन // 33 // आदायामरशक्तीनामंशान्सी / 1 निर्मितापुरा // महिषासुरनाशायेत्यस्यास्तच्छक्तिकार्यता // 34 // मुख्यत्वेनगुणाश्चांशास्त्रिगुणोपाधिधारिणाम् // याणामागतार्त।त्यस्याःप्रकृतिकार्यता // 35 // कार्याणिकार्यरूपायांशक्तीनांप्रकृतेरपि // ततोऽस्यामपचर्या तिमाहात्म्यख्यातयेक्वचित् // 36 // उक्तंद्वितीयेऽध्यायेतत्सप्तशत्याःसमोहितः // प्रथमाध्यायनान्तस्तट्टीकायांम| यापुनः // 37 // देवी सूक्तस्वमाहात्म्यंदे व्यवोत्वाततोमम // योनिरस्वतःसमुद्रइत्युक्ताहरिकार्य्यता || 38 // 1 तांशीक्तचपरात्परांकल्पयंतीतिपृथग्वाक्यं 2 पुराणभागेषु 3 शक्तिवरूपं 4 परास्यशक्तिरित्यादिरूपया 5 इतीतिशेषः 6 सत्वादिरूप रमणार्थमात्मानंभेत्तुमिच्छता नानारूपंचिकीर्षतेतियावत् 8 कार्येषु 9 ब्रह्मणा 10 सर्वाःखालौकिकशक्तीः 11 वशक्त्यंशाः १२दुर्गा 13 ब्रह्म | विष्णुमहेश्वराणां 14 देव्यां 15 इदमुत्तरान्वयि१६ऋग्वेदमसिद्धे 17 ब्रह्मरुद्रात्पादकत्वादिरूपं 18 इदंकर्तृपदंउक्तेत्यनेनान्वेति 19 अहमेवरचय | मिदंवदामिजष्टदेवेभिरुतमानुषेभिरित्यादिनाका Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -चि. तस्मात्सृज्यतयानैवघटतेऽस्यानिमित्तता // शक्तिमत्पारतंत्र्यंचशक्तित्वावधोदितं // 39 // तन्नात्रविस्मयःकार्यो / योगनिद्राजगत्पतेः // महामायाहरेश्वैषातयासमोझतेजगत् // 40 // इत्युक्तंप्रथमाध्यायेतथानारायणीस्तवे // या| देवीसर्वभूतेषुविष्णुमायेतिकथ्यते // 41 // परत्वंतत्रशक्तित्वाभिप्रायेणनिरूपितं // त्वयेतिकरणजे यशक्ते!कर्तृतो / चिता / / 42 // विसृष्टीसृष्टिरूपात्वंस्थितिरूपाचपालने / तथासंदृतिरूपतिजगतोऽस्यजगन्मये // 43 ॥जगन्मयेभगव तित्रिधाशक्तिस्तुयास्थिता / / तद्रूपात्वमितिस्तुत्यात्वयेतिकरणंध्रुवम् // 44 // समवायिनिमित्तंचब्रह्मैवश्रुतिसंमतं / वि भूतीनांचमाहात्म्यंब्रह्ममाहात्म्यबोधकं // 45 // राज्ञःस्तुतावमात्यादिप्रशंसापर्य्यवस्यति // स्तुतःक्वचित्पुराणेषुतत्तद्रूप। स्ततोहरिः॥ 46 // आकाशात्पतितंतोयंयथागच्छतिसागरं // सर्वदेवनमस्कार केशवंप्रतिगच्छति // 47 // येयथामा प्रपद्यतेतांस्तथैवभजाम्यहं / इत्यादौफलदःपूज्यस्तत्तदंशीसएव हि // 48 // पूर्वोक्तपायवाक्ये पिस्फुटाभगवदंशता / / तंत्रशास्त्राण्ययुक्तानिमोहनायकतानियत् // 49 // अतस्तदनुसारेणमद्यमांसंचमैथुनम् // मन्वानाउत्तमकौलाऽऽयायां / तियमयातनाः // 50 // तच्छाक्तकिरणेतंत्रकिरणेऽन्यत्रदुर्मतं // दुर्गापाठविश्त्यादौविस्तराषितंमया // 51 // तस्मा त्तदद्वयंब्रह्मलीलायभावितद्वयं // विमोहशास्त्रसंधांतरशक्यंज्ञातमासरैः।। 52 ॥दैवाभजंततत्स्वाचार्योक्ताक्यापरा त्परम् // सदानंदवेदरीत्यानथमंतुचमोहकैः॥ 53 // पडारपदेयोऽध्यात्मेकीडतिसदास्वरूपेण // अधिभूतक्षरकर्त्तापुरु , त्वयैतद्धार्यतइतिवाक्ये 2 समभ्यंतमिदं / सौराःशवाइतिवाक्ये 1 स्वरूपभूते 5 अक्षराख्ये 6 स्वधाम्नि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोत्तममाधिदैविकंवंदे // 54 // ॥इतिश्रीवेदांतचितामणौशैवशाक्तमतविचारोनामद्वादशंप्रकरणं // 12 // 7 // बल्लवीवल्लभोनानाधामन्यक्षरनामनि // कलयललितालीलाःसदासस्तादनुपही।। 1 // अधिदैवादिभेदेनब्रह्मणोऽस्तित्रि / रूपता / क्षरोऽक्षरइतिद्वधातथाचःपुरुषोत्तमः॥२॥ पूर्णानंदमयाकारःसर्वाकारानुभावनः // सच्चिदानंदरूपोऽसत्पदा स्पृष्टविपहः // 3 // अलौकिकीभिःस्वाजिन्नाभिनित्यानंतशक्तिभिः // स्वाभाविकीभिरपराहतकार्याभिराश्रितः।। Home // विरुद्धसर्वधर्माणामेकाधारोऽविरोधतः // अप्राकताखिलगुणोनिर्गुणोऽविकतोविभुः // 5 // नित्यःपूर्णोऽव्ययो / dव्यामएकएकरसःसदा // क्षेयःकृष्णःपरंब्रह्मप्रमासुपुरुषोत्तमः॥ 6 // अन्यत्तस्याक्षररूपंसच्चिदानंदमात्रकं // तद्रूपंगेणि तानंदपूर्णानंदोहरिःस्वयं // 7 // सैषानंदस्यमीमांसाभवतीत्यादिनाश्रुतौ // विध्योनंदाच्छतगुणोऽक्षरानंदोहिगण्यते // 8 // आनंदमात्रकरपादमुखोदरताहरेः / तदानंदमयोऽभ्यासादितिसूत्रेसमर्थितम् // 9 // अन्येतुभगवद्धर्माःसर्वेत हरीच्छया // आविर्भावतिरोभावशालिनःक्रीडनास्पदे // 10 // व्याप्तोऽक्षरःस्वयंव्याप्तोव्याप्तिर्दुग्धांबुवढ्योः // उभे ! -- 1 गोपीप्रियः 2 विविधाः इदंलीलाविशेषणं 3 सदेतिपृथक्पदं दाससहितइतिवा अस्मिन्पक्षेएतत्तदोःमुलोपइत्यस्यामवृत्तावपिखपरेशरिवा कविसर्गलोपोवक्तव्यइतितल्लोपः 1 पूर्णत्वंअक्षरवद्गणनाशून्यत्वमानंदे 5 सत्वादिगुणत्रयरहितः 6 वेदादिप्रमाणेषु 7 पुरुषोत्तमस्य 8 अक्षराख्यं 9 शारीरादिसर्वसुखोपेतचक्रवर्त्यानंदापेक्षयासहस्रगुणितपरार्द्धगुणानंद श्रुतौब्रह्मवल्लयां 11 प्रजापल्यानंदात् 12 पुरुषोत्तमस्य१३यतोवाचइति लोके वाचनसनिवृत्तिकथनात्परानदेवाग्विषयगणनाराहित्यमित्यादि 14 अक्षरे - Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पियथैकस्मिन्कलशेव्याप्यतिष्ठतः॥ 11 // यथेारसयोःसर्पिर्दनोश्व तिलतैलयोः // अलोकोव्यापिवैकंठःक्वचिरोलो कइत्यपि // 12 // तदेवपरमव्योमपरंधामपरंपदं / अक्षरंबृहदव्यक्तंपर्यायःपरिकीर्त्यते // 13 // परमात्मापरब्रह्मेत्या दिभिःपुरुषोत्तमः // बहुस्फुटीकतवेदोदौतद्रूपंतथास्मृतिः॥ 14 // अव्यक्तोक्षरइत्युक्तस्तमाहुःपरमांगति // यद्गत्वाननि / वर्ततेतद्धामपरममम // 15 // पुरुषःसपरःपार्थअत्यालभ्यस्त्वनन्यया।इत्युक्तोसत्येकलभ्योऽपरःपुरुषोत्तमः।।१६॥ तेदास्थायनिजधामेच्छानुरूपविधायक // लीलानित्याःस्वयंशुद्धाअनिरुद्धादधातिसः॥ 17 // अनागंतकधर्मत्वात्त। लीलास्वखिलास्वपि // नशुद्धाद्वैतबाधःस्याद दाद्धर्मधर्मिणोः // 18 // ननचेदक्षरंनित्यनित्यश्चपुरुषोत्तमः // भेदः / स्याद्वास्तवोद्वैतंनचेन्यूनोऽक्षरःकथं // 19 // इतिचेन्नहरिय॑त्रप्रियमोदःप्रमोदवान् // आनंदात्मापक्षिरूपस्तैत्तिरीयेषुप / / / ठयते // 20 // ब्रह्मपुच्छंप्रतिष्ठेतिपुच्छंतत्राक्षरंश्रुतं / / नपुच्छंपक्षितोमिन्ननाक्षरंपुरुषोत्तमात् // 21 // सर्वावयववान्प / / / क्षीस्वतंत्रःपुच्छतोधिकः // पुच्छंत्ववयवत्वेनन्यून दोनवस्तुतः // 22 // अल्पधर्मकमेकांशभूतंन्यूनंतथाक्षरं // सर्वधा / 1 अवतिलेषुतैलंदधनीवसपिरित्यादिश्रुत्यनुग्रहोपिद्रष्टव्यः 2 पश्यतांसर्वलोकानामलोकंसमपद्यतेतिभागवतादौ 3 बृहदामनपचंरावादिषु 1 ||4 अक्षरब्रह्मैव 5 तदक्षरेपरमेव्योमन् ऋचोअक्षरपरमेच्योमनप्रतिष्ठिताइत्यादिश्रुतिषु 6 अव्यक्तोक्षरइत्युक्तइतिगीतादौ . तयोरैक्यपरब्रह्म उत्तम पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदात्हतः ब्रह्मेतिपरमात्मेत्यादिश्रुतिस्मृतिपुराणेषु 8 पर्यायः 9 मुंडकाद्युपनिषत्सु 10 गीतावाक्यं" अक्षरं 12 पुरुषोतमः 13 ब्रह्मवल्लयां 14 अन्योत्तरआत्मानंदमयः तस्यपियमेवशिरइत्यादिना Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मश्रियःसोऽस्मादंशतोऽधिकःश्रतः॥२३॥ नभेदोजमवत्सच्चिदानंदा माइक्षरोऽपियत् // पच्छंपक्षिपदार्थान्नविभक्त मिहतत्तथा // 24 // अतोऽक्षरस्यचरणत्वमपिक्कंचिदुच्यते // प्रतिष्ठतिपदात्तस्यप्रोक्तैवोत्तमधामता // 25 // स्वाभिन्न एकांशभूतेसच्चिदानंदधामनि॥आत्मतंत्रःसर्वधर्मासर्वदारमतेविक्षः॥ 26 // भागवते(स्कंध २)नमोनमस्तेस्तषभायसा त्वतांविदूरकाष्ठायमहुःक्योगिनाम् // निरस्तसाम्यातिशयेनराधसावधामनिब्रह्मणिरंस्यतेनमः // 27 // यदाबहीरि सुःस्यात्स्वरूपादक्षरात्मकात् // तिरोभावेनधर्माणांप्रपंचंस जतिक्षरम् // 28 // नन्वक्षरमुपादानंनिमित्तंपुरुषोत्तमः॥ है तदाऽभिन्ननिमित्तोपादानवादःकथं भवेत् // 29 // एवंचेच्छृणुचेद्धेमकुटात्तत्पिडउद्धृतः // सृज्यतकटकायेस्मान्नकूटः / / समवायिक // 30 // ऊर्णनाभिःसृजआलंलालयास्वांशतया। लीलयाऽभन्नकितस्योपादानंसजविष्यति॥ 31 // lals उपक्रम्याक्षरब्रह्म मुंडकेष्वाद्यमुंडके / यद्भूनयोनिपरिपश्यंतिधीराइतीर्यत // 32 // तथाक्षरासंभवतीहविश्वमितिचोच्या ते // तथाक्षराद्विविधाःसोम्य नावाःप्रजायंतेतत्रचैवापियंति // 33 // द्वितीयमुंडकेप्युक्तंतस्मात्सर्वपरात्मकं // अतः पुरुषएवेदंविश्वंतत्रैवपठ्यते // 34 // तदाहुरक्षरंब्रह्मसर्वकारणकारणं / विष्णोर्धामपरंसाक्षात्परुषस्यमहात्मनः॥३५॥ 1 दृदोपगुहार्हपदंपदेपदेइतिभागवतादौर सुवर्णपिंडात् 3 सुवर्णराशिस्तत्कटकादेःसमवायिकारणभवत्येव अतएवसमवायीतिल्लीवप्रयोगः जालस्य एवंचौर्णनाभिवत्परः लालादक्षरं जालवत्मपंचः 5 अक्षरस्यपुरुषोत्तमाभिन्नत्वेनजगतिपुरुषोत्तमोपादानकत्वानपममात् 6 द्वितीका यमुंडकमथमखंडसमानौ 7 सर्वस्यजगतःकारणानांचमहाभूतादीनां Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयस्कंधएकादशाध्यायइतिकारणं / / तदेवजगतोधामास्यचोक्तहरिणातथा // 36 // अव्यक्तादीनि भूतानिव्यक्तमासीत्र ध्यानिभारत / / अव्यक्त निधनान्येवतत्रकापरिदेवना॥ 37 // अव्यक्ताद्यक्तयःसर्वाःप्रजवंत्यहरागमे // रात्र्यागमेप्रलीया तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके // 38 // तस्माद्विश्वक्षरमिदमाविनावितमक्षरात् // क्षरणंतुतिरोभावःक्षरत्यतततःक्षरं // 39 // न / धाम्नोस्तितिरोभावःकदाचिदितिसोऽक्षरः॥ एतावतीतःपुरुषोत्तमोगीतासुरूपितः // 40 // द्वाविमापुरुषोलोकेक्षरश्वाक्ष रएवच // क्षरःसर्वाणिभतानिकटस्थोऽक्षरउच्यते // 11 // उत्तमःपुरुषस्त्वंन्यःपरमात्मेत्युदाहृतः // योलोकत्रयमावि श्यबिभर्त्यव्ययईश्वरः // 42 // यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपिचोत्तमः // अतोऽस्मिलोकवेदेचप्रंथितःपुरुषोत्तमः॥४३॥ क्षरौत्पुरुषोताभ्यामेषयदुत्तमः // लोकेंवेदकमात्तस्मात्पुरुषोत्तमउच्यते।। 44 ॥(अ. 4 श्लो. 18) नतस्यका लावयवैःपरिणामादयोगुणाः // अनाद्यनंतमध्यक्तं नित्यकारणमव्ययं // 45 // नयत्रवाचोनमनोनसत्त्वंतमोरजोवामा हदादयोऽमी // नपाणबुद्धीद्रियदेवतावानसन्निवेशःखललोककल्पः // 46 // नवमजायन्नचतत्सुषुमनखंजलंभूरनिलो निरर्कः / / संसुप्तवच्छन्यवदप्रतय॑तन्मलभतंपदमामनंति // 47 // इतिभागवतेस्कन्धेद्वादशेवर्ण्यतेऽक्षरम् // तदेवपरम धामगीतासुबहुरूपितम् // 48 // यदक्षरंवदविदोवदन्तिविशंतियद्यतयोवीतरागाः // यदिच्छन्तोब्रह्मचर्यचरन्तितत्तेपद कारणामन्यनेनान्वेति 2 परस्य 3 अव्यक्ताक्षरइत्युक्तइतिवाक्यादक्षरः 4 लये 5 क्षरणवत्वाद्धेतोः 6 ऐच्छिकभेदवान् . क्षराती|| तत्वेनलोकपातंजलादिदर्शनेप्रथितः अक्षरवदुत्तमत्वेनतुवेदे Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रहेणप्रवक्ष्ये // 19 // इत्यादिनाऽऽहप्रणवाभिधेयंस्वपदहरिः // यदक्षरंतर्देवतत्कठवल्लीषुपट्यते॥ 50 // सर्वेवेदायत्पनी B. दमामनन्तितपांसिसर्वाणिचयद्वदन्ति / यदिच्छन्तोब्रह्मचर्यचरन्तितत्तेपदसंग्रहेणंब्रवीम्योमित्येतत्॥ 51 ॥एतत्ध्येवाक्ष रब्रह्मएतदेवाक्षरंपरम् // एतत्ध्येवाक्षरंज्ञात्वायोयदिच्छतितस्यतत् // 52 // एतदालम्बनंश्रेष्ठमेतदालम्बनपरम् / / एतदा लम्बनंज्ञात्वाब्रह्मलोकेमहीयते // 53 // इतिवल्ल्यांद्वितीयस्यांतृतीयस्यांचमण्यते // यःसेतुरीजानानानामक्षरंब्रह्मयत्प रम् // 54 // इत्यक्षरंनिरुप्यास्यप्राप्त्यप्राप्योश्चकारणे / सोऽध्वनःपारमामोतितद्विष्णोःपरमपदम् // 55 // इत्यन्तेनो है दितेतैस्मादुत्तमोऽपरःश्रुतः // महतःपरमव्यक्तमध्यक्तात्पुरुषःपरः॥ 56 // पुरुषान्नपकिचित्साकाष्ठासापरागतिः॥ इतिश्रुत्युदितोदेवोगीतासुबहुणितः // 57 // पुरुषःसपरःपार्थक्त्यालभ्यस्त्वनन्यया॥ मुंडकोपनिषद्युक्त्वाऽक्षरंप्रोक्तः परःपुमान् / / 58 // दिव्यायमूर्तःपुरुषःसबाह्याभ्यन्तरोझजः / अप्राणोह्यमनाःशुभोरक्षरात्परतःपरः॥ 59 // इत्यादि। नाविविच्योक्तौस्पष्टतपराक्षरौ // एकस्यैवैच्छिकाद्भेदाच्छुद्धाद्वैतंचदर्शितं // 6 // पराक्षरविवेकोयंकार्यादेस्तारतम्य को समान मा १पदंपदनीयंप्राप्यं 2 यत्प्राप्त्यर्थानीतिभाष्याशयः 3 तुभ्यंनचिकेतसे 4 भगवद्धाम 5 भगवद्धाम्नःप्रणववाच्यत्वंभागवतद्वादशस्कंधेपिप्रसि पद्धं स्वधाम्नोब्रह्मणःसाक्षााचकःपरमात्मनइति 6 ओंकारवाच्यं 7 क्षरजगदपेक्षयापरं८ भगवन्निलयः ९ब्रह्माभिज्ञजनेषु यद्वा ब्रह्माख्यलोके परब अणोवालोके 10 विज्ञानाविज्ञानादिरूपे 11 कथिते 12 अक्षरात 13 वेदांतेष्वक्षरशब्दस्पप्रधानपरत्वनिरासस (अ. 1 पा०३ सू०१०) अ. शरभंबरांतधृतेरियधिकरणएवकतः 14 क्षरात्परंयदक्षरंतस्मादपिपरः 15 मुंडके Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे. चितः // कठमुंडकमांडूक्यबृहदारण्यकादिषु / / 61 // छांदोग्यकौषीतकीशावास्यतित्तिरिषुस्फुटः ॥आम्नायतेतैत्तिरीयेप्रश्न 4. नारायणाभिधे / / 62 / / सब्रह्मसशिवःसहरिःसेंद्रःसोक्षरःपरमःवराट् // गीतायां ( अ० 10 श्लो० 12) परब्रह्मपरंधा / मपवित्रपरमभवान् / पुरुषंशाश्वतं दिव्यमादिदेवाजंत्रिमं॥६३ // आइस्त्वामृषयःसर्वेदेवर्षि रदस्तथा (अ.११ श्लो. 18) त्वमक्षरंपरमवेदितव्यं त्वमस्यविश्वस्यपरंनिधानं ॥त्वमव्ययःशाश्वतधर्मगोप्तासनातनस्त्वपुरुषोमतोमे॥६॥ तथा (श्लो० 37 ) त्वमक्षरंसदसत्तत्परंयत्॥एवंदेरशेदोऽस्यशुद्धःकृष्णेनकथ्यते॥संएवाक्षरसंज्ञोऽतएकांशेप्रतिपादितः / + // 65 // तस्मादेकाहमित्यादिनैवकिंचनबाध्यते // बहुत्वंततिरोभावादिष्टंनासीत्पुराहितत् // 66 // तंत्राधिदैविकंसूपं सदानंदःपरःपुमान् / / अध्यात्ममक्षरंधामप्रपंचस्त्वाधिभौतिकं // 67 ॥रूपत्रयविवेकायदृष्टांतःसरि तोदिवः // श्रीम पद्धताशनाचाय्र्यैर्मुक्तावल्यांनिदर्शितः // 68 // प्रथमंवारिसामान्यतथातीर्थात्मकपरं // देव्याख्यंचतृतीयस्यादधिभूता / दितक्रमात् // 69 // दृष्ट्यातपेषुयहृद्धिक्षययुक्चोपयुज्यते // व्यवहारेषुसर्वेषुतद्भातिकॅजलंमतं // 70 // यच्चमाहा 1 पुरुषोत्तमः 2 अक्षरंचभवानेव 3 पुरुषोत्तमं 4 सदसत्क्षरंतथाअक्षरंततःपरश्चत्वमेव 5 अक्षरस्यपुरुषोत्तमेनसहाभेदः 6 पुरुषोत्तमः 7 वि। Cणुपुराणादौ 8 चिदानंदादितिरोभावहतुकंबहुत्वं 9 तेषुक्षराक्षरपुरुषोतमेषु मध्ये 10 कृष्णशब्दार्थवक्तुंयोरुक्तिः वस्तुतस्तुपूर्णसच्चिदानंदः 11 रू पविशेषणवाक्लोबत्वं 12 गंगायाः 13 आधिभौतिकं 11 आध्यात्मिकं 15 आधिदैविकं 16 सर्वपदादनिष्टेष्वपि 17 मावृड्ग्रीष्मयोःमाहा म्यवृद्धिक्षयप्रयोजकन्वामसिद्धेःतीर्थस्यामेभ्यसंसर्गासंभवाच्चेतिभावः Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म्यसंयुक्तस्नानस्पर्शादिकर्मसु।। यद्विहारास्पदंदव्यास्तद्रूपंच निरूप्यते // 71 // यात्रिकैःपूज्यतेदेव्यभेदबुत्थ्याफलेप्सु। भिः॥ मार्यादिकन विधिनायत्तेभ्योभोगमोक्षदम् // 72 // रूपंतीर्थात्मकंतस्यास्तदाध्यात्मिकमुच्यते // तस्थिताम तिमतीदेवीस्यादाधिदैविकी॥७३॥ सितमकरनिषण्णांशुभ्रवर्णात्रिनेत्रांकलशजलजहस्तामौक्तिकै षितांगी। अभयव रदपाणिसेंदुकोटीरजटांवसितसितदुकलांजान्हवींतांनमामि।७४॥शेरच्चंद्रश्वेतांशशिशकलश्वेतालमकटांकरैःकंभांजोजे / वरजयनिरासौचदधती // सुधाधाराकाराभरणवसनांशुधमकरस्थितांत्वांयेध्यायंत्युदयतिनतेषांपरिभवः // 75 // इ त्यायुक्तस्वरूपायाक्कंचिद्भक्त्यैवदृश्यते // सुलझानाखिलानांसतिफलंतीर्थरूपतः // 76 // आविर्भावीतिरोभावीशोक मोहादिदषितः // पदाववानप्रपंचस्तरूपस्यादाधिभौतिकं // 77 // योगीतबहमाहात्म्यःसकाभैर्मोक्षकामकैः // सेव्य मानश्वफलदोधामाध्यात्मिकमक्षरः // 78 // पुरुषोत्तमआनंदाकारःस्यादाधिदैविकः // भक्तिमात्रेणलभ्यःसो 11गमोक्षीततोऽक्षरात् // 79 // श्रद्धालःसलिलंतीर्थपश्यन्कल्याणवान्भवेत् // तथाऽक्षरात्मकंपश्यन्विश्वज्ञानीविम व्यते // 80 // ( स्कंध 12 अ०६ श्लो०३२)परंपर्दवैष्णवमामनंतितयन्नेतिनेतीत्यर्तंदुत्सिसक्षवः / विसृज्यदौरात्म्य 1 . 1 देवीरूपं 2 लोकशास्त्राभ्यां 3 निरतिशयमशून्येन तीर्थागपूजाप्रकारेण 4 तीर्थजले 5 गंगालहरीश्लोकोऽयं 6 प्रवाहादौ 7 भक्त्या उभ्यस्त्वनन्ययेत्यादिवाक्यैः 8 अततीत्यतदस्थिरंसंसारादिकं अथवातद्ब्रह्मततोन्यदतत् Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LA थे-चिं. 31 RAVIRA मनन्यसौददातदोपगुह्यावसितंसमाहितः // 81 // इतिभागवतेविष्णुपुराणेप्रथमांशके // अक्षरात्मकमेतद्धीत्युक्तमन्य प्र. चस्फुटं // 82 ॥अधिभूतादिभावोयमित्थंगीतासुरुप्यते ॥(अ०८ श्लो०३)अक्षरब्रह्मपरमस्वभावोध्यात्ममुच्यते॥८३ भूतभावोद्भवकरोविसर्गःकर्मसंज्ञितः / / अधिभतक्षरोभावःपुरुषश्चाधिदैवतं / / 84 // योनिर्गणोपिनिगुणधामापिजगत्स सर्जसगणमिदाबेहदात्मैक्यादगणान्कर्वाणोविजयतेवरंणसुलभः // 85 // इतिश्रीवेदांतचितामणोक्षराक्षरपुरुषोत्त मविवेकोनामत्रयोदशंप्रकरणं // 13 // // 5 // // // // // // नमोस्तुज्ञान्य लभ्यायत्येकसुलभाययः॥ प्रकृतिपुरुषकत्वानिर्मातिसगणंजगत् // 1 // सत्वरजस्तमइतित्रिभिा जगद्गुणैः // जीवाश्वत्रिविधादेवास्त्रयस्तत्तन्नियामकाः॥ 2 // ननुस्यान्निर्गुणंब्रह्मस्वयंधामात्मकंतथा // ब्रह्माभिन्नोत्र मकार्यःप्रपंचःसगुणःकुतः // 3 // अत्रोच्यतेगुणामायाकार्याव्यामोहिकाहिसा // जीवानांतादृशीत्तीरात्मकाय्य करो १नास्त्यन्यस्मिन् अनन्यवा सौदभक्तिर्येषांते 2 योवेदनिहितं गुहायामितिश्रुत्यातुल्यार्थमिदं द्वितीयस्कंधेतु ( अ०२ श्लो०१८) हृदो पगुहार्हपदंपदेपदेइतिपाठः अर्हस्यहरे पदंचरणं 3 निश्चितं यदा अवघद्धं आत्मतयागृहोतं 4 विष्णुपुराणस्थोयंचरणः तदेतदक्षरंनित्यंजगन्म निवराखिलमितिपाठश्चश्रीधरस्वामिविष्णुचित्त्यादिभिव्याख्यातः 5 अक्षरब्रह्मणासहजीवस्यैक्यसंपादनात् 6 भगवत्कर्तृकोजीवस्यस्वीयतयां गीकारोवरणं अनेकलभ्यत्वं साधनांतराऽलभ्यत्वोक्तिपूर्वकं यमवैषवृणतेतेनलभ्यइतिश्रावणात् * अविज्ञातं विजानतां क्लियंतियेकवलबीपलब्ध यइत्यादिश्रुतिपुराणवाक्येभक्तिरहितशुष्कज्ञानिभिःपुरुषासमोनलभ्यतेषामक्षरेलयात् 8 भक्क्याहमकयायाझइत्यादिवाक्यैः ९ब्रह्मविष्णुशिवाः Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तितैः // 4 // मायायांतेविलीयतेकार्यत्वात्प्रलयेगुणाः / / शांताविरतकार्यत्वात्सुप्तवतंत्रतिष्ठति // 5 // सर्गमिच्छति // चेदेवःपुरुषंकुरुतेऽक्षरात् / / चिद्रूपंतीचिद्रूपांजडांचप्रकतिपुनः / / 6 / / ( स्कं० 11 अ० 24 श्लो• 2 ) आसीना नमेथोलएकमेवाविकल्पितं // यदाविवेकनिपुणाआदौलतयुगेयुगे // 7 // तन्मायाफलरूपेणकेवलंनिर्विकल्पितावा || मनोगौचरातीतंद्विधासमभवत्वृहत् // 8 // तयोरेकतरोयर्थःप्रकृतिःसोभयांत्मिका // ज्ञानंत्वन्यतमोभावःपुरुषःसोशि धीयते // 9 // इतिभागवतेपाहतेदवागवान्स्वयं // तिरोहितचिदानंदासदंशात्प्रकतिर्जडा // 10 // सत्वरजस्तमइतिष ते त्मनोगुणाः / प्ररुतिगुणसाम्यस्यादितिभागवतोक्तितः॥ 11 // समग्राणांसमानानांत्रिगुणानामबाधतः // ऐक्य / तच्छक्तिमायात्माजडाप्रतिरुच्यते // 12 // प्रकृतिलस्योपादानमाधारःपुरुषःपरः // संतोभिव्यंजकःकालोब्रह्मतबित यंत्वहं // 13 // तेहाराविष्कृतंअतादिकंतत्सगणंमतं // ततोमहदहंतस्मादितिसांख्येक्रमःस्मृतः॥ १४॥प्रत्यानिर्मित FI गुणैः 2 ब्रह्मणि 3 माया 4 द्रष्टा 5 अयोशब्दःकाय सर्वोप्योंद्रष्ट्रदिनीयब्रह्मलीनसदभिन्नएवासीत् 6 कदैवमितिचेत्तत्रकालत्रय माह यदेति अयुगे युगाभाववतिसृष्टिपाकाले तथासृष्ट्यारंभकतयुगे इदानीमपिब्रह्माभेदविवेकेसतिच 7 उभय विषयानतीतं गोचरंसत्यमितिपारे। तुतगोचरंयथाभवतितथा 8 अक्षरं 9 सदंशरूपः . कार्यकारणरूपा " चिद्रूपः 12 भागवतस्थंभागवतवचनमेतत् 13 ब्रह्मरूपतयानित्य // स्थिवजगतआविर्भावहेतुःसृष्टिकाल: 14 वस्तुतःप्रकृतिपुरुषकालानामपिब्रह्मांशत्वात्सर्वभगवानेव 15 प्रतिद्वारा 16 आकाशादि 17 प्रतितो का महत्तच्वंततस्विवियोहंकारः 18 नतुश्रुतिसंमतः (अ.२ पा० 1 सू०२) इतरेषां चानुपलब्धेरित्यादौतन्निषेधात् Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 32 त्वेनप्रारुतत्वाद्गुणान्वयात् // धर्मांतरतिरोभावाजडमब्रह्मजासते // 15 // तस्याअप्यंशभूतत्वाजडेब्रह्मसमन्वयं // तन्मूलकेसदंशेनवक्तितत्तुसमन्वयात् // 16 // जीवास्तु निर्गुणाःस्वांशाआरताःप्रारुतैर्गुणः // सृष्ट्यारम्भेनारदीयेपंच रात्रेस्फुटतथा // 17 // त्रिविधाजीवसंघास्तुदेवमानुषदानवाः // तत्रदेवामुक्तियोग्यामानवेषूत्तमाअपि // 18 // म ध्यमामानुषायेतुर्टेतियोग्याःसदेवहि / / अधमानिरयायैवदानवास्तुतमोलयाः // 19 // श्रुतावपित्रयःप्राजापत्याइति / कानदुच्यते // तेदंतःकरणादीनितादृशानिभवंतिहि // 20 // जीवाःकर्माणिकर्वतिस्वभावानुगुणान्यतः // फलंवांच्छंतिता दक्षप्राप्यमुख्यतितंत्रते // 21 // सत्वाद्युपाधिमादायविष्णुर्ब्रह्माशिवस्तथा // तत्तन्नियमनायाभूस्थित्यादिकतयेपृथक // 22 // (स्कंध 1 अ० 2 श्लो. 23 ) सत्वरजस्तमइतिप्रकतेगुणास्तैर्युक्तःपरःपुरुषएकइहास्यधत्ते // स्थित्या। दयेहरिविरंचिहरेतिसंज्ञाःश्रेयांसितत्रखलुसत्त्वतनोनृणांस्युः // 23 // चिच्छक्तिःपुरुषोनारायणोब्रह्माततोऽभवत् // ब्र मादिद्वारकःसर्गःपुराणादोपरिस्फुटः // 24 // ( स्कं. 1 अ. 3 श्लो. 1 ) जगृहेपौरुषरूपंजगवान्महदादिभिः॥ संभूतंषोडशकलमादौलोकसिसक्षया / / 25 // यस्यांजसिशयानस्ययोगनिद्रांवितन्वतः // नाभिहदांबुजादासीद्ब्रह्मा विश्वसृजापतिः // 26 // गुणाविलीयजायतेशून्यवत्प्रकृतौलये // प्रकृतिीयतेऽव्यक्तपुरुषश्वतथास्मृतिः // 27 // 1 प्रतिमूलकेजडे 2 श्लोकयमिदंनिबंधेपिसर्वार्थनिर्णयेउदात्तं 3 साविकराजसतामसाः 1 मध्यमलोकेषुभ्रमणं 5 तत्रैवाव। वारणभंगोक्तायां 6 सात्विकादि जीवानांअंतःकरणेंद्रियाणिसाचिकादीनि 7 स्वगुणानुरूपफलेषु८ क्रमान्सात्विकादिनियमनाय 9 अक्षरे Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिःपुरुषश्चोभौलीयेतेपरमात्मनि // कदाचित्पुरुषद्वारेत्युक्तःसर्गोऽयमीरितः // 28 // ननुलीनागुणायंत्रलीयतेप्रक / तिर्यदि / साऽक्षरेसगुणंधामभवेदेवेतिचेन्नहि // 29 // जगतःसगुणत्वंतुगुणबंधोऽनुभूयते // नतस्यवश्यमायस्यबंध / गंधःस्वर्शक्तिजैः // 30 // (स्कं. 11 अ. 11 श्लो 1) बद्धोमक्तइतिव्याख्यागणतोमेनवस्तुतः॥ गुणस्यमायाम लत्वान्नमेमोक्षोनबंधनं // 31 // सृष्टावेवोद्भवत्येतेपाकता सतिसल्लयात् / / साप्यनद्भूतरूपाचेत्तत्कार्याणिकुतस्तरां // // 32 // किंचतत्तवृत्तिरूपाःसंभवत्यधनैवते / / जीवष्वेवविमूढेषुकीडार्थलिंगवत्सुच / / 33 // नहिज्ञानघनेनाना यज्यतेत्तयःपरे // गणानांतत्तिरूपत्वंसांख्यविद्भिर्विविच्यते // 34 // प्रीत्यत्रीतिविषादात्मका:प्रकाशप्रवृत्तिनियमा / र्थाः // अन्योन्याभिभवाश्रयजनन मिथनरत्तयश्चगणाः॥ 35 // सत्वंलघुप्रकाशकमिष्टमपष्टंभकंचलंचरजः॥ गुरुव रणकमेवतमःप्रदीपवञ्चार्थतोटत्तिः // 36 // तस्मादचित्यमहिमाभगवान्पुरुषोत्तमः // विरुद्धधर्माधारे स्मिन्युक्तं सर्वम / लौकिके // 37 // (स्कंध 1 अ.२ श्लो०३० ) सएवेदंससर्जायेभगवानात्ममायया ॥सदसद्रूपयाचासौगुणमय्याऽगु / 1 शास्त्रार्थतत्त्वदीपेषोढासगैषुप्रकृतिपुरुषद्वारकोप्येकःसर्गउक्तः कदाचित्तादृशसर्गेच्छायामित्थमपिसृष्टिर्भवति 2 यस्यां 3 तदेतिशेषः / N गुणैः 5 सदंशेजडमात्रस्यलयात 6 गुणादीनि 7 गुणाः 8 लिंगशरीरं 9 पंचशिखाचार्यकृतार्यास्विदमायायं १०निरोधः 1 आच्छादनं 12 तैलवादीनामन्योन्यविरुद्धत्वेपियथासंयोगेनदीपाख्यकार्योत्पादकत्वं विशेषतीर्थस्वेत द्याख्यायांवाचस्पतिमिश्रकृतसांख्यतत्वकौमुद्यांद्र टव्यः३ भगवति - - Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केचि. गोविशुः ॥३८॥तयाविलसितेष्वेषुगुणेषुगुणवानिवा|अंतःप्रविष्टआभातिविज्ञानेन विजूंभितः॥३९॥यथासवहितोवन्हि प्र०१४ रुष्वेकःस्वयोनिषु॥नानेवभातिविश्वात्माभूतेषुचतथापुमान् // 40 // असौगुणमयैर्भावैर्भूतसूक्ष्मेंद्रियात्मभिः // स्वनि / 33 मितेषुनिर्विष्टोभुक्तभूतेषुतद्गुणान्॥४१॥ भावयत्येषसत्वेनलोकान्वैलोकभावनः // लीलावतारानुरतोदेवतिर्यङ्नरादिषु / Em 42 // इत्युक्तं सर्वमुदितंश्रीमद्भागवतादिषु // श्रुतिप्रसिद्धंतत्सिद्धंशुद्धमद्वैतमुज्ज्वलं // 43 / / चतुष्टयेप्रमाणानामविरो धाद्विचारिते // श्रीमदाचार्यसिद्धांतान्नवर्णोऽप्यन्यथाभवेत् // 44 // सर्वप्रमाणविषयःसर्वशक्तिःस्वयंप्रभुः॥ पूर्णानंद रसात्मासौक्रीडत्यध्यात्मधामनि // 45 // यादृशंधामतत्तत्रयथाकीडायथाहरिः।। लीलार्थतस्यरूपाणियथानानातथा खिलं॥ 46 // बृहद्वामनसंज्ञेतत्पुराणेखिल्यउत्तरे // ब्रह्मभृग्वादिसंवादेस्पष्टतदिहलिख्यते // 17 // ब्रह्मोवाच // षष्टिवर्षसहस्राणिमयातनंतपःपुरा // नंदगोपनजस्त्रीणांपादरेणूपलब्धये ॥४८॥तथापिनमयाप्राप्तास्तासांवपादरेणवः ॥श्रुत्वैतद्ब्रह्मणोवाक्यंभृगुःपाहाथसादर।।४९:वैष्णवानांपादरजोगृह्यतेत्वद्विधैरपि ॥संतितेबहवोलोकेवैष्णवानारदादयः // 50 // तेषांविहायगोपीनांपादरेणस्त्वयापियत् // गृह्यतेसंशयोमेऽत्रकोहेतुस्तद्वदप्रभो // 51 // ततोब्रह्माभृगपाहाँचता यित्वापरातनी / / कथांसर्वश्रुतीनांचरहस्यं परमाद्भुतं // 52 // श्रीब्रह्मोवाच // ॥नस्त्रियोव्रजसुंदर्यःपुत्रताःतयःकि ल // नाहंशिवश्वशेषश्चश्रीश्वताभिःसमाःक्वचित् // ५३॥पाकतेप्रलयेप्राप्नेव्यक्तेऽव्यक्तंगतेपुरा ॥शिष्टेब्रह्मणिचिन्मात्रेका ! 1 अत्रपूर्वमुक्तं 2 रसोवैसइतिब्रह्मवल्लीश्रुतेः 3 पुराणस्थंकिंचिदाख्यानं 4 थे 5 ब्रह्मायुःसमामिरूपे 6 आविर्भूतेजगति * अक्षर 8 प्रविष्टे L Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लमायायगोचरे / / 54 // ब्रह्मानंदमयोलोकोव्यापिवैकुंठसंज्ञकः // निर्गुणोऽनाद्यनंतश्ववर्त्ततेकेवलेऽक्षरे // 55 // अक्षरंब्रह्मपरमंवेदानांस्थानमुत्तमं // तल्लोकवासीतत्रेस्थैःस्तुतोवेदैःपरात्परः // 56 // चिरंस्तुत्याततस्तुष्टःपरोक्षपाहता निगरा।। तुष्टोस्मितभोपाज्ञावरंयन्मनसीप्सितं // 57 // श्रुतयऊचुः // // नारायणादिरूपाणिज्ञातान्यस्माभिरच्युत। सगुणंब्रह्मसर्वेषांवस्तुबुद्धिर्नतेषुनः // 58 // ब्रह्मेतिपठ्यतेस्माभिर्यदूपंनिर्गुणंपरं // वाङ्मनोगोचरातीतंततोनज्ञानयतेतु / / तत् // 59 // आनंदमात्रमितियद्वदंतीहपुराविदः // तद्रूपंदर्शयास्माकंयदिदेयोवरोहिनः॥ 60 // श्रुत्वैतद्दर्शयामास / खेलोकंप्रकृतेःपरं / केवलानुभवानंदमात्रमक्षरमध्यगं // 61 // यत्रदंदावनंनामवनंकामदुर्घद्रुमैः // मनोरमनिकुंजाती यंसर्वर्तुसुखसंयुतं / / 62 // यत्रगोर्द्धनोनॉमसुनिर्झरदरीयुतः // रत्नधातुमयःश्रीमान्सुपंक्षिगणसंकुलः // 63 // यत्र / निर्मलपानीयाकालिदीसरितांवरा // रत्नबद्धोभयतटीहंसपद्मादिसंकुला // 64 // शैश्वद्रासरसोन्मत्तंयत्रगोपीक दंबकं / लसत्कदंबमध्यस्थःकिशोराकतिरच्युतः॥६५॥ दर्शयित्वेतिचपाहब्रूतकिकरवाणिवः // दृष्टोमदीयोलोकोयंय तोनास्तिपरंवरं / / 66 // श्रुतयऊचुः॥ ॥कोटिकंदर्पलावण्येत्वयिदृष्टेमनांसिनः॥ कामिनीभावमासाद्यस्मरक्षुब्धा 1 तिगेक्षरे 2 मये 3 के 4 चोअक्षरेपरमेव्योमन्प्रतिष्ठिताइतितैत्तिरीयश्रुतेः 5 अक्षरेस्थितैः 6 आधिभौतिकजगदपेक्षयापरादाभ्या त्मिकादक्षरादण्याधिदैविकत्वेनपरः 7 वेदान् 8 अशेषाणांनोस्माकं 9 निर्गलितवस्तुत्वबुद्धिः 1. गिरिरितिशेषः 11 मुपदंकाकादिव्या / / Hत्तये 12 नॉनारा 13 समूहः 14 कदंबवृक्षाः वस्तुतस्तुगोपीवृंदं तत्कदंबकमध्यस्थइत्यपिपाठः१५ कंदर्पकोटीतिक्वचित् - -- - Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेचिन्यसंशयं // 6 // यथावल्लोकवासिन्यःकामतत्त्वेनगोपिकाः // अजंतिरमणमत्वाचिकीर्षाऽजनिनस्तथा // 68 // प०१४ श्रीभगवानुवाच // // दुर्लभोदुर्घटवैवयुष्माकंसुमनोरथः // मयानुमोदितःसम्यक्सत्योजवितुमर्हति // 69 // आगा। मिनिविरंचौतुजातेसृष्ट्यर्थमुद्यते // कल्पंसारस्वतंप्राप्यव्रजेगोप्योभविष्यथ // 70 ॥पृथिव्यांभारतक्षेत्रमाथुरेमममंडले // ३४दावनेअविष्यामिप्रेयान्वोरासमंडले // 71 // जारधर्मेणसुमसुदृढसर्वतोधिकं / / मयिसंप्राप्यसर्वेपिकतकत्याभविष्य Lथ / / 72 / / ब्रह्मोवाच // // श्रुत्वैतच्चितयंत्यस्तारूपभगवतश्चिरं / / उक्तकालंसमासाद्यगोप्योभूत्वाहरिंगताः // 73 // स्त्रियोवापरुषाश्चापितद्भावनैवकेशवं // दृदिकत्वागतियांतिश्रुतीनांनात्रसंशयः।। 74 / / तासांपादरजःस्तुत्यं नित्यंदंदाव: सनिअवि // तत्प्राप्यतामनयायांत्यहोगोपिकागति // 75 // नंदगोपव्रजस्त्रीणामतःपादरजोमया // वांछितंपुत्रकाःस म्यक्यद्धिताःश्रुतयोमताः // 76 // श्रुत्वैतदृषयोवाक्यंब्रह्मणःपरमेष्ठिनः // सर्वात्मनाप्रपन्नास्तेश्रीगोपीजनबल्ल // 1 // 77 // इत्युक्तमुत्तरेखिल्येबृहद्वामनसंज्ञके / / प्रभुपादादिभिरिदंसंगृहीतंस निर्णयं // 78 // ऋगादीनामुपनिषत्सुपृथा / नामपूर्वकं // तत्रत्यंवर्ण्यतेसर्वतद्प्यादभिदोदिता // 79 // भाष्यादौश्रीमदाचाय्यदर्शितंप्राभिस्तथा // तन्नित्य लीलावादादावन्यत्रान्यैस्तदीक्ष्यतां // 8 // तद्विष्णोःपरमंपदंसदापश्यंतिसूरयः // दिवीवचक्षुराततं // ऋग्भिनिरूपिते / 34 1 यथेच्छं 2 भक्तिलक्षणं माहात्म्यज्ञानपूर्वस्तसुदृढःसर्वतोधिकः स्नेहोभक्तिरितिभोक्तइतिपंचरात्रोक्तेः 3 श्रुतिरूपादिगोपीनां 4 पुरुषोत्तम प्राप्तिकामनया 5 गोपालभट्टादिकतबहिर्मुखध्वंसादिषुसंगृहीतत्वादादिपदं 6 भगवद्धामवृत्तं 7 तत्रत्यवस्तूनांसाक्षाद्भगवद्रूपत्वात् - - Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्यात्माऽभिन्नेऽचित्यधर्मवान् // सर्वात्मकःसर्वलीलोनित्यभक्तनिजात्मभिः // 81 // अखंडःपूर्णएवासौरमतेससमंस दा || भक्त्येकलभ्योभगवान्नान्यथादृश्यतेपरः // 82 // इत्यवश्यंसेवनीयःपरमानंदसिद्धये // स्वाभाविकरूपाशक्ति जीवःसेवार्थनिर्मितैः // 83 // यत्तेनोद्रमितदिवाःसेवनायैवचेतनाः // दास भूतोहरेरेवेतिपादोजीवलक्षणं // 84 // जी वाःस्वांशायतःसृष्टामोक्षेऽप्यक्षररूपिणः // अतोपिभजनंयुक्तंयोयदंशःसतंभजेत् // 85 // शक्तिगणैरममाणंतनुवित्तज जनजातपरक्या / / सेवध्वंसंसारंभित्त्वाब्रह्मक्यभावनाभूयः॥ 86 // ॥इतिवेदांतचितामणीप्रकृतिपुरुषदि ग्दर्शनपूर्वकागवद्धामोदाहरणनामचतुदृशंप्रकरणं // 14 // // // // // // // सर्वात्मार्पणतःसेवारसैमक्त्यधिकैःकतः / स्वाचाय:सुलभोयःसश्रीकृष्णःशरणंमम ॥१ननतोगोपिकानित्यानित्यंकी। डादिकंयदि // शुद्धद्वैतमिदंजातंशुद्धाद्वतंकुतःपुनः // 2 // नाशंकनीयमित्येवंशक्तिशक्तिमतोहतः // सूत्रेषुश्रुतितोभेदः / ALKबोधिन्यांन्यरूपयन् // 3 // अधिदेविकशक्तित्वंतासांकृण्णमखाग्नयः॥ वासुदेवोपनिषदिश्रयतेशक्तिरूपता // 4 // Nगोप्योनामविष्णुपत्न्यस्तासांचंदनमाल्हादनं कश्वाल्हादएषब्रह्मानंदरूपः काश्चविष्ापल्योगोप्योनामजगत्सृष्टिस्थि / 1 वाक्यमिदं 2 बृहामनायुक्ताः 3 निरस्तः 4 वेणुगीतादिव्याख्याने पादोयमुत्तरत्रान्वयी 5 आथर्वणीयेयमुपनिषत् गोपीचंदनोपनिषदि यपिकथ्यते ॐनमस्कृत्यभगवंतनारदःसर्वेश्वरवासुदेवंपप्रच्छेत्यादि ॥इयंशंकराचार्याद्यनुसारिभिर्बहुभियाख्याता भागवततत्वभास्करादिषुसर्व साधारणग्रंथदादृताच 472 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यंतकारिण्यः प्रकृतिमहदहमाद्यामहामायाः कश्चविष्णुःपरंब्रह्मैवविष्णुरिति / तत्रैवायेआपोहवाअयेआसन्नित्यपत्र म्याताश्वोपनिषद्वैवस्वतेंतरेसगणंब्रह्मविधिनानंदैकरूपंपुरुषोत्तमरूपेणमथुरायांवसुदेवसमन्याविर्भविष्यतितत्रभवत्यःस लोकोत्कृष्टसौंदर्यक्रीडाभोगंगोपिकाः स्वरूपैःपरब्रह्मानंदैकरूपंकणंभजिष्यथा|तत्रश्लोकौ॥इतिब्रह्मवरंलब्ध्वाश्रुतयो 35 ब्रह्मलोकगाः।कण्णमाराधमासुर्गोकुलधर्मसंकुले॥श्रीकृष्णाख्यंपरब्रह्मगोपिकाःश्रुतयोभवन्।एतत्संभोगसंभूतंचंदनंगोपि / चंदनमिति॥शागवते (स्कंध १०प०) ताभिर्विधतशोकाभिर्भगवानच्यतोरतः / / व्यरोचताधिकंतातपरुषःशक्तिभिर्यथा APlu 5 // इतिपुंशक्तिवल्लीलाशक्तिभिःसहशंसिता // मूत्तिमत्त्वंतुशक्तीनामप्राकततयेच्छया // 6 // यथामूर्ति वर्णानां लौकिकानामलौकिके // वेदायथामत्तिधरास्त्रिपृष्ठेतदिदंतथा // 7 // मर्मयोऽकरदृष्टानांशक्तीनामपिवर्णिताः // ता धिदैविकीनांततात्वेकोनसंशयः॥८॥ (स्कंध१०अ० ३३श्लो०१७) एवंपरिष्वंगकराभिमर्शस्निग्धेक्षणोद्दामविला सहासैारेमेरमेशोव जसुंदरीभिर्यथाकःस्वप्रतिबिंबविभ्रमः।। ततभक्तास्तदात्मानोनजिदाडण्वपिवर्त्तते ॥इत्यभेदेक्रीड नेचर्दृष्टांतंशुकउक्तवान्।॥ १०॥लीलामात्रैर्धर्मभूतैःकामादिभिरलौकिकैः।।अबद्धस्यस्वतंत्रस्यबाधःसर्वाश्रयस्यतैः॥११॥ नाचित्यस्याप्रमेयस्यशुद्धाद्वैतस्यकश्चन ॥अतोभागवतेऽप्युक्तमात्मारामोव्यरीरमत् ॥१२॥रसोवैसइतिश्रुत्यारूपितास्य / 1 भागवतस्थोमिद्रवजाचरणः 2 सत्यलोकादौ 3 मूर्तिमग्वे 4 शिशुमतिबिंबदृष्टांत Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTरसात्मता // सर्वकामःसर्वरसइतिधर्मत्वमीर्यते॥ 13 // विरुद्धधर्माधारत्वंब्रह्मत्वमितिलक्षणात् // कामादयोज्ञानघनेभ पणंनतुदूषणं // 14 // शक्तिशक्तिमतोèदोनैवेशुद्धंतर्दद्वयं // तंत्रत्येषुतिरोभावोनधर्माणांतवस्तुषु // 15 // अनीश्व रानप्रकष्टांस्तिरोहितगुणान्बहून् // यदेच्छतिप्रजायेयेतितदाकुतेजगत् // 16 // तेतिरोभूततद्धर्माबद्धाःसंसारमाय Eया // दृढाईत्वाच्छरीरेत्राचिरापेक्षणभंगुरे // 17 // नाव्यकस्यामिवारोहात्प्रपायामिवसंगमात् // वियोक्ष्यमाणेष्वचि रान्मिलितेष्वधुनैवच // 18 // तेनस्यादिषुसंबंधंकल्पयित्त्वाचपण्येवत्।। गतागतेषुवित्तेषुममत्वाचितयाकुलाः॥ 19 // संसक्तादेहगेहादावकतार्थाअतर्पणाः॥ बलेनमृत्युनानीताःप्रापिताःपारवश्यतः ॥२०॥पुनर्जन्मपुनःसक्तास्तत्रत्येषुगृहा / दिषु // नीयमानाःपुनस्ते पापपुण्यानुरोधतः / / 21 // आपन्नानरकंस्वर्गनानोद्विनास्थामुड्डः // क्वचित्सुखंक्वचिदुःखं / / क्वचिन्मोहमुपागताः // 22 // एवंपरवशाःप्राप्ताजन्ममृत्युपरंपराम् // व्यूह्यमानाइवौघेनघटीयंत्रमिवश्रिताः // 23 // जीवाःक्लिश्यंतिदुःखस्यनशिपुनरनुद्भवे // तद्भक्तिरेवपरमंकारणंहरितोषिणी॥ 24 // महाभारतेनामसहस्र // नकोधो / 1 सर्वकामःसर्वगंधःसर्वरसइतिच्छांदोग्येपंचमपाठके ( खं.१४) शांडिल्यविद्यायांदिवारमाम्नानं 2 भेदस्यायंनिषेधः 3 तस्मात् भेदाभावाद्धेतोः शुद्धाद्वैतसिध्यति 4 परधामस्थेषुलीलोपयोगिषु 5 तत्रत्यवस्तुषुत्वित्यन्वयात् लौकिकवस्तुव्यावृत्तिः 6 संसारहेतुभूतया सब घद्वारभूतशरीरेण 8 पत्नीन्वपुत्रत्वादिलक्षणं ९ऋय्यवस्तुविवगतागतेषु 1. पुनजन्ममापिताइन्ययेणान्वयः 1 तजन्मभवेषु 12 मृत्युना |13 सुखादीनिसत्वरजस्तमोजन्यानि क्रमातूतेषांसुखदुःखमोहस्वभावत्वंसांख्यतत्वकौमुद्यादिषुप्रसिद्ध 14 नाशेडनुद्भवेचकारणमित्युत्तरेणान्वयः / / लौकिकोपायै शेपिदुःखस्यपुनरुद्भवोदृष्टइत्युभयग्रहणं Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 वे.चि. नचमात्सर्यनलोभोनाशुभामतिः // अवंतिकृतपुण्यानांभक्तानांपुरुषोत्तमे।।२५॥पुरुषोत्तममापन्नोनपुनदुःखमानुयात्। प्राप्योभत्यैवसतथागीताभागवतादिषु // 26 // नाहंवेदनतपसानदानेननचेज्यया // शक्यएवं विधोद्रष्टदृष्टवानसिमां यथा // 27 // अक्त्यात्वनन्ययाशक्यअहमेवंविधोर्जुन // ज्ञातुंद्रष्टुंचतत्त्वेनप्रवेष्टंचरंतप // 28 // भक्त्याहमेकयायालो भक्त्यालभ्यस्त्वनन्यया // भक्त्यैवतुष्टिमभ्येतिविष्णुर्नान्येनकेनचित् // 29 // नदानंनतपोनेज्यानशौचनव्रतानिच ॥प्री। यतेऽमलयाभक्त्याहरिरन्यद्विडंबनम् // 30 // अत्यातुतोषभगवान्गजयथपाय // इत्यादौनक्तिरेवास्यपुरुषार्थ रोमतः / सम्यक्त्वसिद्धयेज्ञानंसाधनंभक्तिसूत्रतः // 31 // तत्सोमख्यतरापेक्षितत्वादित्थमपक्रमात् // ब्रह्मका तस्यानुज्ञानायसामान्यादित्यंत भक्तादिशेषित्वंवक्तिसंपूर्णमान्हिकं // 32 // पदार्थएवनज्ञातोयःसेव्यःसकथंभवेत्॥ अत्यऽसंपादकंज्ञानं केवलंतुविनिदितम् // 33 // ( स्कंध 10) ब्रह्मस्तुतौ॥श्रेयःमुर्ति भक्तिमुदस्यतेविझोक्लिश्यंतियेकवल *बोधलब्धये // तेषामसौक्लेशलएवशिष्यतेनान्यद्यथास्थूलतुषावघातिनाम् // 34 // प्रथमस्कंधेनारदः।निष्कर्म्यमप्यच्यु तभाववर्जितंनशोभतेज्ञानमलंनिरंजन।कुतःपुनःशश्वदभद्रमीश्वरेनचापितंकर्मयदप्यकारणं॥३५॥गीतायांतपस्विभ्योऽ धिकोयोगीज्ञानिभ्योऽपिमतोऽधिकः॥ कर्मिभ्यश्चाधिकायागीतस्माद्योगीभवार्जुन // 36 // योगिनामपिसर्वेषांमदते भक्तेर्दाढदिसिद्धये 2 (अ०१०१०) सामुख्येतिभक्तिरेवमुख्या इतरैज्ञानादिभिःखांगितयातस्याएवापेक्षितत्वात् 3 ज्ञानकांडतुभक्तौ भगवत्स्वरूपानुज्ञापकतयोपयुज्यते यागेइतिकर्तव्यतायनुज्ञापकतयापूर्वकांदमिव 4 भक्तिमीमांसाप्रथमाध्यायस्यद्वितीयमान्हिक 3 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नांतरात्मना // श्रद्धावान्जजतेयोमांसमेयुक्ततमोमतः / / 37 // (अ 0 1 0 23 / 24 ) तदेवकर्मिज्ञानियोगि। भ्यआधिक्यशब्दात् // प्रश्ननिरुपणाभ्यामाधिक्य सिद्धेः॥ इतिस्मृत्त्यनसारेणशांडिल्यमनिनोदितं // माहात्म्यबोधके / ज्ञानेभक्तिसाधनतोचिता॥३८॥माहात्म्यज्ञानपूर्वस्तुसुदृढःसर्वतोऽधिकः // लेहोभक्तिरितिप्रोक्तस्तयामुक्तिर्नचान्यथा / // 39 // नारदीयेपंचरात्रतेस्यालक्षणमीरितं / / ( अ० 1 सू०२) सांपरानुरक्तिरीश्वरे // इत्युक्तंभक्तिसूत्रेषु दागवतेतथा // 10 // (स्कंध. 2) देवानांगणलिंगानामानश्रविककर्मणां // सत्त्वएवैकमनसोरत्तिःस्वाभाविकी या // 41 // अनिमित्ताभागवतीभक्तिस्सिद्धेगरीयसी // इतिनिष्कामनःस्नेहोभक्तिराथर्वणेतथा / / 42 / / भक्तिरस्य जनंतदिहामुत्रोपाधिनैराश्येनमनःकल्पनमिति // चतुर्विधाभजतेमांचतुर्धे त्यधिकारिषु // नसंमतोर्थार्थ्यार्त्तश्चज्ञानी जिसासुरुत्तमः // 43 // अत्यासंजातयात्येत्येकाशक्तिस्तसाधनं // फलामिकापराभक्तिर्मानसीप्रेमलक्षणा॥४४॥ जाननुजावित्तजासेवातस्याःसाधनमच्यते // सर्वद्रियैःशुद्धभावात्तत्परःसेवनाऽदिमा॥ 15 // तदिच्छाप्नस्वसर्वस्वोत्थैस्से | / भक्तयोगायपेक्षयामुख्यत्वं 2 शब्दस्तूक्तगीतावास्यरूपः 3 अर्जुनभगवत्कर्तृकाभ्यां 1 भक्तिमीमांसामथमाभ्यायउक्तं 5 मुख्य भक्तेः 6 पुरुषोत्तमेयापरानुरक्तिःसापराभक्तिरितिखमेश्वरादयोव्याख्यातारः . गीतायां चतुर्विधाभजतेमांजनाःसुकृतिनोर्जुन // आतो जिज्ञासुरार्थीज्ञानीचभरतर्षभेत्यादि 8 उत्तमतयानाभिप्रेतः सकामत्वात् 9 भागवते स्कंध भ. 3 श्लो. 3) भक्त्यासंजातयामत्या विभ्रत्युत्पुलकांतनुमिति "मानस्याः "भागवतादिषु 12 तनुजा 13 भगवदिच्छयालन्धैः Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र.१५ वैचि. वावैभवैःपरी / / उ अपिप्रमाणोक्तेप्रथमंतनुजायथा // 46 // ऋग्वेदे / / तमुस्तोतारःपूय॑क्रतस्यगर्भजनुषापिपर्त्तन // आस्यजानंतोनामचिद्विवक्तनमहस्तेविष्णोसुमतिभजामहे // भागवते // करौहरमंदिरमार्जनादिषु।।शावौकरौनोकरुतः सपाम् // वाणीगणानुकथनेश्रवणीकथायाम्॥करौचतत्कर्मकरीमनश्च / / गृहशुश्रषंणमादासवद्यदमायया / आ दरःपरिचर्य्यायाम् // इत्यादोप्रथमाप्रोक्ताद्वितीयाप्युच्यतेयथा // सर्वलाभोपहरणपत्रपुष्पंफलंतथा // 17 ॥तजन्म तानिकर्माणितदायस्तन्मनोवचः।। नृणांयेनहिविश्वात्मासेव्यतेहरिरीश्वरः॥ 48 // मुकुंदसेबीपयिकंस्पृहाहिनः // rसन्धियमाणोबित्ति // योगक्षेमवहाम्यं / / इत्यादावपरोक्तैतेएकीभूयसुदुर्लभाम् // अंकृत्यशेषांकुर्तिदंशमी / मलक्षणाम् // 49 // सर्वार्पणात्परत्तस्यसेवनेप्रेमनिर्मलम् // अवेदेवगुणांसोधौहरौस्यान्मानसीततः // 50 ॥(स्कंध) नारदः / / एवंप्रदत्तस्यविशुद्धचेतसस्तद्धर्मएवात्मरुचिःप्रजायतइति // स्कं. 11) योगीश्वरः।। इत्यच्यतांघितोऽन रत्याभक्तिविरक्तिगवत्प्रबोधइति // अवांतरेफलेद्वेस्तःप्राङ्मुख्यफलतोऽनयोः।संसारदुःखविलयोबेहदात्मैक्यबोधनं / / // 51 // (स्कंध 6 )चित्रकेतुःनि हिमगवन्नघटितमिदंत्वदर्शनान्नृणामखिलपापक्षयः॥यन्नामसरुद्हणात्पुल्कसोपिवि 1 वित्तजा 2 तनुजा 3 वित्तजा 1 भागवतस्थमेतत् 5 पपुष्पंफलंतोययोमेभक्त्याप्रयच्छतीतिभगवद्वाक्यं 6 तित्तिरिश्रुतिः - गीता MT तनुजवितजसेवे 9 नासिकम्पशेषोयस्यां * श्रवणादिनवविधभक्तिभ्धःपरां "तनुजवित्तजसेवेकुर्वतः 12 फलरूपामानसी 13 allमानसीतः 14 उक्तसेवयोः 15 अक्षरब्रह्मणासहजीवाभेदज्ञानं Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मच्यतेसंसारात् // 52 // अहैतुक्यव्यवहितायाभक्तिःपुरुषोत्तमे / जनयत्याशुवराग्यंज्ञानंयत्तदहैतकम् // 53 // मांच योऽव्यभिचारेणभक्तियोगेनसेवते // सगुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयायकल्पते // 54 // इत्युक्तोभक्तितोबंधनाशोब्रह्मा त्मबोधनं / / संसारोऽविद्ययाशक्त्यारुतापूर्वप्रहत्तये // 55 // स्वरूपंविस्मरम्मूढोऽन्तःप्राष्विद्रियेतनौ ॥क्रमादध्यास तोवेत्तिदेवदत्तोहमित्यसौ // 56 / / देहसंबंधिगेहादौममत्वेनानुषजते // अहंममात्मकस्तहिसंसारइतिकथ्यते // 5 // सर्वात्मनाप्रटत्तस्यसेवनायांनिरंतरं।। देहादीनांतदीयत्वभावनादहमोहतिः॥५८|तन्मूलिकातुममताविहताऽहंकतेर्हतेः // मामेवयेप्रपद्यन्तेमायामेतांतरंतिते // 59 / / अविद्यानाशइत्युक्तोभक्तानांस्वप्रपत्तितः // संसारकारणलयान्नतस्यपुन रुद्भवः / / 6. // अविद्याकालकर्मादिनवशक्नोतिबाधितुं / एकांतात्येकनिष्ठंजनमेतदतिस्फुटम् // 61 // संसारोमाय यामिथ्याश्रमोमध्यान्तरायरुत् // ब्रह्मज्ञानेजवनिकातन्नाशेब्रह्मविद्भवेत् // 62 // सर्पज्ञानेहतेरज्जज्ञानस्यात्तत्कृतंभय।। नश्येदेवतथैवंदेश्रीभागवतईय॑ते / / 63 // (स्कं. 12 अ० 4 श्लो. 31 // 32 // 33) यथाधनोऽर्कप्रावोऽर्कदर्शितो , द्विविधसेवातः 2 सृष्टचारंभे 3 अन्यथाब्रह्मांशानामित्थंप्रवृत्त्यसंभवादितिभावः 4 स्वरूपाज्ञानमध्यासचतुष्टयंचेतिपंचाविद्यापर्वाणि 5 अंतःकरणे 6 अहंतायाः 7 भगवद्वाक्यं 8 शरणागतितः 9 अविद्यानाशात् 10 तस्यसंसारस्य 11 कर्तृ आदिशब्देनदेशविशेर पादयः 12 एकांतोनिश्चयात्रेति 13 नस्येदेवेत्युत्तरान्वपि 14 सर्पस्थाने अहंता रजुस्याने अक्षरात्माजीवः संसारश्रमनाशेस्वात्मनिमपंचेचाक्षरत्र HEलात्मकतामतीतिः Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाचन 38 कौशभूतस्यचचक्षुषस्तमः॥ एवेत्वहब्रह्मगुणस्तदीक्षितोब्रह्मांशकस्यात्मभआत्मबंधनः // 64 // घनोयदार्कप्रभवोवि दीयतेचक्षुःस्वरूपरविमीक्षतेतदा // यदासहकारउपाधिरात्मनोजिज्ञासयानश्यतितर्सनुस्मरेत् // 65 // यदैवमेतेनविवेक। तिनामायामयाहंकरणात्मबंधनं // छित्वाऽच्युतात्मानुभवावतिष्ठतेतमाहुरीत्यंतिकमंगसंप्लवं // 66 // धामाप्तिःसंहते। शेब्रह्मत्वंत्वक्षराऽऽत्मता // तत्वष्ठेपंचमेध्यायेद्वादशस्कंधउच्यते // 67 // (अ० 6 श्लो. 33) तएतदधिगच्छंति / विष्णोर्यत्पमंपदं / अहममेतिदौर्जन्यनयेषांदहगेहजं // 6 // (अ. 5 श्लो. 11 ) अहंब्रह्मपरंधामब्रह्माहंपरमंपा। दं // एवंसमीक्षन्नात्मानमात्मन्याधायनिष्कले॥ 69 उपाधिनाशेविज्ञानेब्रह्मात्मत्वावबोधने ॥गंगातीरस्थितोयद्वद्देवता तपश्यति // 70 // तथारुणंपरब्रह्म स्वस्मिज्ञानीप्रपश्यति // इत्युक्तंश्रीमदाचाय्र्यैर्जीवन्मुक्तिरियंपरा // 71 // 1 क्षरंजानतःसर्वभवेदक्षररूपता // ब्रह्मविद्ब्रह्मैवभवतीतिश्रुत्यातथोदितम् / / 72 // आनंदादितिरोभावाज्जीवभावोविचारि तः॥ भयोभक्त्यानंदलाभादैश्वांदेश्वसंभवात् // 73 // अतेरसोवायंलब्ध्वानंदीभवत्यतः // अपिवातमादेशमप्राक्षो येनातंश्रतंभवत्यमतमतेमविज्ञाविज्ञातं ॥इतिस्याद्ब्रह्मताधामत्वाकृष्णस्फुर्तिरुज्वला // 74 / / स्वयंतदात्मनाते प्र सूर्याऽधिभौतिकरूपस्य / सूर्यदर्शनप्रतिबंधकः 3 अहंकारः 1 भगवत्कृतः 5 जीवस्य 6 कर्तृ 7 भगवतः 8 भात्यंतिकसंप्लवोमोम 9 साईश्लोकोयंसिद्धांतमुक्तावलीस्थः 1. गंगायाःपरमभक्तः " मूर्तिमतीगंगा 12 प्रवाहादौ 13 अपचं 14 ब्रह्मवल्लीश्रुतेः 15 अयं / तिरोहितानंदोपिजीवीरसंआनररूपंपरंलन्भ्वापुनरानंदांशवानभवति 16 छांदोग्याष्ठमाभ्यायश्रुतिः 17 अक्षररूपेण 18 जीवन्मुक्तेन Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोऽप्यक्षरात्मकः॥ सर्वोपिशक्यतद्रष्टमबाध्यज्ञानचक्षुषा / / 75 // सर्वब्रह्मात्मकंपश्यन्सर्वत्राइविहताहरेः॥लीलावि लोकयंस्तास्तानकिचिदपिकांक्षति // 76 // (स्कं. 1 अ. 7) आत्मारामाश्चमनयोनिर्यथाअप्युरुक्रमे। हैतुकीजक्तिमित्थंभूतगुणोहरिः॥ 77 // तत्तल्लीलापरंपश्यन्सर्वत्रपुरुषोत्तमम् // शब्दांस्तवाचकान्शृण्वन्सदाचरतिनिः / स्पृहः / / 78 // कृष्णप्रेमामृतास्वादादारभ्यैहिकवैभवम् // तृणप्रायाणिगणयन्मोक्षांतानिसुखान्यपि // 79 // विकलो यंदांभिकोयमहात्मायंहरेर्जनः // इतिनानाजनोक्तिभ्योनशोचतिनदृष्यति // 8 // सख्यास्वस्वामिनास्वातिप्रियेण हरिणासदा / / भगवतासहसंलापइत्यायुक्तदशांगतः // 81 // एकादशस्कंधेनवयोगीश्वरप्रसंगे।क्वचिद्रुदन्त्यच्युतचित | याक्वचिद्धसंतिनंद तिवदंत्यलौकिकाः // नृत्यंतिगायत्यनुशीलयंत्यजभवंतितूष्णीपरमेत्यनिर्दताः // 82 / / शृण्वन् सुभद्रा / मणिरथांगपाणेर्जन्मानिकर्माणिचयानिलोके // गीतानिनामानितदर्थकानिगायन्विलजोविचरेदसंगः // 83 // एवंव्रतः / स्वप्रियनामकीर्त्याजातानागोद्रुतचित्तउच्चैः / / हसत्यथोरोदितिरौतिगायत्युन्मादवन्नृत्यतिलोकबासः // 84 // खंवा युमानिस लिलंमहींचज्योतीषिसत्वानि दिशोगुमादीन् // सरित्समुद्रांश्चहरेःशरीरंयत्किचभूतंप्रणमेदनेन्यः // 85 // गृही / विधातशून्याः 2 प्रथमस्कंधेसूनोक्तिरियं 3 अविद्याग्रंथिरहिताः 4 विरुद्धांशपरिहारेणशब्दमात्रतत्तल्लीलाविशिष्ट भगवदभिधायकमवग मच्छन् 5 हेतोः 6 ऐहिकवैभवंमानुपानंदमारभ्य . शुष्कज्ञानिमोक्षपर्यनानि 8 वेणुगीतसुबोधिनीस्थोयगाथाछंदश्चरणः 9 भगवद्यति रिक्तभानशूभ्यः / * पाय Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे-चिं. 39 Pावापौद्रियैरर्थानित्यारभ्यसभवतिभागवतप्रधान उक्तइत्यंतम् // कृष्णपहगृहीतात्मानवेदजगदीदृशं // इयमेवपराशक्ति " प्र.१५ नसीत्यभिधीयते॥ 86 // एतसिद्धौपुनःकिचित्कर्तव्यंनावशिष्यते // चेतस्तत्प्रवणंसेवेत्याचाय्यैर्लक्षणंकतम् // 87 विठ्ठलेशैःसंगृहीतंवक्तुंतल्लक्षणंयथा // तामेवाहबजस्थानांश्रीगोपीजनवल्लभः॥ 98 // (स्कंध 11 अ. 12 श्लो 12) तानोंविदन्मय्यनुषंगबद्धधियःस्वमात्मानमदस्तथेदम्॥यथासमाधौमुनयोऽब्धितोयेनद्यःप्रविष्टाइवनामरूप॥८९॥ एतत्प्रकाराबहवोऽदयंताऽप्राकतॉग्निभिः // स्वानुभूत्येकवेद्यासावक्तुंशक्येतकिमया // 90 // एवं विहरतोदेहःपतेद्यदि तिदिच्छया / परमानुगृहीतस्यदेहोऽपिस्यादलौकिकः॥ 91 // आत्माऽभिन्नोमहानंदोहरेश्वरणरेणुजः // देहमाहादिम स्कंधेद्विविधंविधिनंदनः // 92 // प्रयुज्यमानेमयितांशुद्धांभागवतींतनुम् // प्रारब्धकर्मनिर्वाणोन्यपतत्पांचभौतिक In 93 // निर्गुणोऽप्रारुतःसोऽस्माच्छून्यैःपुण्यैश्वपातकैः / सगुणात्कर्मबद्धान्नःशरीराद्यतिरिच्यते॥ 94 // (स्कं. 10) / जहुर्गुणमयंदेहंसद्यःप्रेक्षीणबंधनाः॥ इत्युक्त्यानिर्गुणप्राप्पिस्तासांसुव्यज्यतेयतः // 95 // सूत्रष्वेतरफैलाध्यायेस्पष्टत्वेन / 39 , चेसिस्तस्मिन्भगवतिमवणमूच्यामिवसूत्रस्य भगवत्मवणंचेतएवसेवेत्यपरे 2 सिद्धांतमुक्तावल्यांकतं 3 तानाविदन्नितिवचनं T: मानसीलक्षणं 5 गोप्यः 6 फलरूपभक्तिभकाराः 7 श्रीमदाचार्यः 8 मानसीसंपन्नस्य 9 मारुताप्राकृतभेदेन 10 नारदः " एतरहवावनतपति | किमह साधुनाकरवं किमहंपापमकरवमितीत्यादिश्रुतिभ्यः 12 रासपंचाध्याय्यामतर्गृहगतागोप्यः 13 ब्रह्मसूत्रेषु 14 तुर्याध्यायेचतुर्थपादे दिन Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचितम्॥(अ.१पा० २०२)विवक्षितगुणोपपत्तेश्च॥इत्यायध्यायांतरेऽपितद्विनिर्णीयतेश्रुतेः // 96 // परब्रह्मैतरध्याय || तिरसतिभजतिसोऽमृतोभवति॥ ब्रह्मसंस्थोऽमृतत्वमेति॥(अ.१सू०३)तत्संस्थस्याऽमृतत्वोपदेशात्॥(स्कं.१० )कुरुक्षेत्र समागमप्रसंगे॥मयिक्तिहितानाममृतत्वायकल्पते ॥इत्यादावमृतत्ववप्राकताकारउच्यते॥९॥दुःखैर्जन्मजरामृत्यु मोहसंदोहदोहँदैः ॥रहितेमहितेऽन्वर्थाऽमृतत्वमितितत्रवाक् ॥९८॥कहिचिन्नभवेद्भूयःपर्यावर्तोऽस्यसंसतेः॥आमेडिनिस / पुनरावर्ततइतिश्रुतौ॥९९॥गीतायांआब्रह्मभुवनाल्लोकाःपुनरावत्तिनोऽर्जुन।मामुपेत्यतुकौंतेयपुनर्जन्मन विद्यते॥१०० / / तसे काहयाऽऽनंदमय्यानिर्दोषयातया ॥भगवद्रूपयातन्वासेवासित्थ्यतिसासदा।। 10 1 // निर्गुणापरमांमुक्तिरियमेवाखि / लाधिका // यथैतदानंदवल्ल्यातैपिरीयेतथोच्यते // 102 // ब्रह्मविदामोतिपरम् // 'तेदेषाभ्युक्ता ॥सत्यज्ञानमनंतंब्रह्म योवेदनिहितंगुहायांपरमेव्योमन् // सोश्नुतेसर्वान्कामान्सह // ब्रह्मणाविपश्चितेति // इतिमंत्रेणसंक्षिप्यवर्णितंविस्तरा / / | एतमितःमेत्याभिसंभवितास्मीत्यादिभ्योविषयवाक्यश्रुतिभ्यः 2 आथर्वणश्रुतिः 3 छांदोग्यश्रुतिः संस्थाभक्तिः 4 भक्तिमीमांसासूत्र ऐहिकजन्मादिकमेवनिषिद्धंनत्वतारवदैच्छिकंतदितिभावः 7 द्विरुक्तं 8 छांदोग्यांते 9 अलौकिक्यान रूपया 10 श्रुतौअस्माल्लोकात्मेत्येतिजीवन्मुक्तिव्यावर्तनात्परा 11 अक्षरपुरुषोत्तमयोर्शीतापुरुषोत्तममाभोति 12 पूर्वोक्तमभिमुखीकृत्य / / व्याख्यानरूपैषासत्यज्ञानमितिकगुक्ता 13 सच्चित्वर्णगणितानंदंदेशकालाऽपरिछिन्नमक्षरंतत्रनिहितपरंचयोवेदसःगुहायांन्ददिआविर्भूतेअक्षरधा 21 स्निपुरुषोत्तमेनसहकामानुपभुक्ते Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनः / / समयोपनिषत्माहबहुनोक्तेनकिमम // १.३॥यञ्चरणान नेशरणास्तस्करुणामंदमकरंदात् // मायंतिदैवमधुपाः // 015 स्वीयेरुपयंतुमयिनिजाचार्य्याः // 104 // निर्गुणमपिगुणपूर्णतूर्णवरणाद्विधायशरणानम् // तत्परवंतंतनुतेभगवंतंभाव है। दासमेभूयात् 105 // सित्थ्यत्त्येतद्धररेवानुमहादेवकेवलम् // नसाधनांतरंकर्तुकिचिजीवेनशक्यते ॥१०६॥कठमुंडका योनायमात्माप्रवचनेनलभ्योनमेधयानबहुनाश्रुतेन / यमेवैषर्णतेतेनलभ्यस्तस्यैषआत्माटणुततर्नुस्खाम् // तलवा ! कारोपनिषदिायस्यामतंतस्यमतंमतंयस्यनवेदसः // गीतायांनाहवेदनतपसा( स्कं०११ अ. 12 श्लोक) नरो धयतिमांयोगोनसारख्यधर्मउद्धव / / इत्यसाधनतामाहसाधनानांहरिःस्वयं॥ १.७॥सेवातुसाधनंतन्वाऽस्माभिर्यत्किचि दर्पितं / लौकिकरुपयासेवात्वेनसोंगीकरोतिचेत् // 108 // किमासनतेगरुडासनाकिभूषणंकौस्तुभभूषणाय // ल क्ष्मीकलत्रायकिमस्तिदयंवागीशकितेवचनीयमस्ति // 109 // भागवते॥विनयेयतउपसेदुरीश्वरीनमन्यतेस्वयमनुवर्त तीभवान्।। योगिनामप्यलभ्यस्यसर्वेशस्यपरस्यहि|आत्मपूर्णस्यलाभायदीनानुपाहिणःश्रुतौ॥१०॥सुगमंसाधनंत्रोक्तंस।। थाशरणागतिः // तस्यैवाकैतवोपाधिस्वसर्वस्वनिवदनं // 11 // गोपालपूर्वतापनीये // योब्रह्माणंविदधातिपूर्वयोनि / यास्तस्मैगोपायतिकृष्णः।।यस्तदेवमात्मवृत्तिप्रकाशंमुमुक्षुर्वेशरणमनुव्रजेत्।।१२।।आरंभेपि|श्रीकृष्णोवैपरमदैवतम्।।श्वेता सम्बादिरहितं ऐश्वर्यादिगुणपूर्ण र अंगीकारात् 3 निर्गुणोकतभक्तस्याधीनं 4 स्वीयतयांगीकरोति 5 मानसपूजास्थवचनमिदंनिबंधे 40 धृतं 6 भगवतएव शरणागतिः Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वतरादौ।मुमुक्षुर्वैशरणमहंप्रपये।। गीतायो॥सर्वधर्मान्परित्यज्यमामेकंशरणंवज ॥अहंत्वांसर्वपापेभ्योमोक्षयिष्यामिमा / पशुचः॥ 11 // ( स्कंध 11) // तस्मात्त्वमुद्धबोत्सृज्यचोदनांप्रतिचोदनां / प्रत्तिचनित्तिचश्रोतव्यंश्रुतमेवच // 114 // मामेकमेवशरणमात्मानंसर्वदेहिनां // याहिसर्वात्मजावेनयास्यसेसकुतोभयं // 115 // (स्कंध 2) // ये दारागारपुत्राप्तान्प्राणान्वित्तमिमपरं // हित्वामांशरणंयाताःकथंतांस्यक्तुमुत्सहे // 116 // (स्कंध 11) नवयोगी श्वरप्रसंगे।इष्टदत्तपोजतंटतंयच्चात्मनःप्रियं / / दारान्सुतान्ग्रहान्प्राणान्यत्परस्मै निवेदनं // 117 // बृहदारण्यकेमधु विद्यायां // सवाअयमात्मासर्वेषांभूतानामधिपतिःसर्वेषांभूतानांराजातद्यथारथनाभौरथने मौचाराःसमपिताएवमेवा तस्मिन्नात्मनिसर्वेप्राणाःसर्वेलोकाःसर्वेदेवाःसर्वाणिभूतानिसर्वएवात्मानःसमर्पिताः॥ इत्यादिषदितंतत्रप्रथमंशरणागतिः॥ ततःसमर्पणंयेनार्ण्यमाणांगीकतिर्भवेत् // 118 // एतत्सर्वहरेस्तोषादिनसिध्येदृतेगुरुं / अतस्तद्वद्धिराचार्यतादृशंसततं विजेत् / / ११९||मुंडकोपनिषदि।तद्विज्ञानार्थसगुरुमेवाभिगच्छेत्समित्पाणिःश्रोत्रियंब्रह्मनिष्ठम्॥श्वतकेतु विद्यायांआचा। र्यवान्पुरुषोवेद // एकादशस्कंधे // आचार्यचैत्यवपुषास्वगतिव्यनक्ति // आचार्यमांविजानीयात् // श्वेताश्वतरे ॥य स्यदेवेपराभक्तिर्यथादेवतथागरौ // तस्यैतेकथितार्थाःप्रकाशंतेमहात्मनः // 120 // (स्कंध 11) योगीश्वरप्रसंगे। | 1 मीसमर्प्य दानविषयेपित्यागार्थकधातुप्रयोगात् 2 क्रमनियमेहेतुः शरणागन्यावस्तूनांभगवदगीकारार्हत्वसिद्धेः३ गुरौहरिबुद्धिः 4 शास्त्रो|| तलक्षणकं 5 पुरुषोत्तमे 6 उपनिषत्मभृतिषुक्ताः - - Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे.चि भयंद्वितीयाभिनिवेशतःस्यादीशादपेतस्यविपर्ययोऽस्मृतिः // तन्माययातोबुघआभजेत्तंभक्त्यैकयेशंगुरुदेवतात्मा // // 121 // परशरमाधवीयप्रथमाध्यायेपुराणसारे // गुरावतुष्टेतुष्टाःस्युःसर्वेदेवाद्विजोत्तमाः॥ तुष्टेतुष्टायतस्तस्मात्सर्वदेवा / मयोगुरुः // 122 // श्रेयोर्थीयदिगुर्वाज्ञांमनसापिनलंघयेत्।। गुर्वाज्ञापालकोयस्माज्ज्ञानसंपत्तिमश्नुते।।१२३॥आदित्यपु / राणेपायेरुष्टहरस्त्राताहरेरुष्टेहरिस्तथा ॥हरौरुष्टेगुरुस्वातागुरौरुष्टेनकश्चन।। १२४॥इत्यवश्यंब्रजेच्छास्त्रविज्ञवैष्णवसद्गुरुंग निर्णतव्यमयाऽन्यत्रेदकिंचिदिहदर्श्यते // 125 // गौतमीयतंत्रे ॥अवैष्णवोपदिष्टेनमंत्रणनिरयंव्रजेत् ॥पुनश्वविधिनासम्या / / ग्राहयेद्वैष्णवाद्गुरोः // 126 // महाकुलेप्रसूतोऽपिसर्वशास्त्रेषुदीक्षितः // सहस्रशाखाध्यायीचनगुरुःस्यादवैष्णवः / / // 127 ॥षट्शास्त्रज्ञोभवेद्विप्रोवेदवेदांतपारगः // अवैष्णवोगुरुर्नस्याद्वैष्णवःश्वपचोगुरुः // 128 // इत्यादिवचनैस्ता गुरुसंगम्यतेउभे / कुर्वीतकृष्णमंत्राभ्यांनान्यथातेभविष्यतः / / 129 // पुनर्गौतमीयतंत्रेप्रथमाध्याये // गाणपत्ये / / पुशैवेषुतथाशाक्तेषुसुव्रत // सर्वेषुमंत्रवर्गेषुवैष्णवंश्रेष्ठमुच्यते // वैष्णवेषुचमंत्रेषुकृष्णमंत्रा:फलाधिकाः // 130 // अन्य। वापि // कृष्णमंत्रविहीनस्यपापिष्ठस्यदुरात्मनः / श्वानविष्ठासमंचानंजलंचमदिरासमं // 131 // इति // अष्टोत्तरेणश भारणपंचाक्ष-संपूवर्या गच्छेत्समर्पयेत्सर्वश्रुतिस्मृत्युद्धृताविमौ // 132 // उद्धाराद्यनयोश्चक्रेगोस्वामिपुरुषोत्तमैः।उपदे| 1 सर्वशक्तेब्रह्मणःसकाशादुगतस्याध्यासचतुष्करूपीविपर्ययःस्वरूपा स्मरणंचतन्माययाभवति 2 ससिद्धांतमार्तडादियथेषु 3 वैष्णवत्रा Mellह्मणादेवशरणादिमंत्रागाह्माइत्येवंतात्पर्यकोर्थवादायं 4 भगवतःशरणगमनमात्मनिवेदनंच 5 गद्यसहितया 6 मंत्री Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शादिविषयशंकानिरसनेस्फुटम् // 133 // अधिक्रियेतसेवायांसद्गुरोःकृष्णमंत्रतः॥ वैष्णवःसन्यथाश्रौतेगायच्यध्ययने द्विजः // 134 // एकादशे // एवंधर्मेमनुष्याणामुद्धवात्मनिवेदिनाम् / / मयिसंजायतेभक्तिःकोऽन्योऽर्थोऽस्यावशिष्यते / Hu 135 // गीतायां // महिपार्थव्यपाश्रित्ययेऽपिस्युःपापयोनयः // स्त्रियोवैश्यास्तथाशूद्रास्तेऽपियांतिपरांगति // 136 // किपुनर्ब्राह्मणा:पुण्याभक्ताराजर्षयोऽमलाः // अनित्यमसुखंलोकमिमंप्राप्याजस्वमां // 137 // तत्रैव // अपिचेत्सुदुराचारोभजतेमामनन्यभाक् / / साधुरेवसमंतव्यःसम्यग्व्यवसितोहिसः // 138 // क्षिप्रभवतिधर्मात्माशश्व च्छांतिनिगच्छति // कौंतेयप्रतिजानीहिनमेभक्तःप्रणश्यति // 139 // इतिसर्वेपिभगवत्सेवायामधिकारिणः // ततोग ज्ञयादेवंशुद्धःसेवेतशक्तितः॥ 140 // कालनिर्णयदीपिकायांनारदीये // प्रातमध्यंदिनेसायंविष्णुपूजांसमाचरेत् // यथासंध्यातथानित्याविष्णुपूजास्मृताबुधैरिति // 141 // मंत्रैःसद्गुरुणासम्यमूर्तावाविष्कृतहरि // भजेत्प्रेम्णासदात तदुपचारैर्महोत्सवैः॥ 142 // कालनिर्णयदीपिकायांप्रातःकाले / पूजनप्रतिमायांतुउत्तमंपरिकीर्तितम् // इतिविष्णु धर्मोत्तरात् // (स्कं. 11) // मल्लिगमद्भक्तजनदर्शनस्पर्शनार्चनैः / इतिप्रक्रम्यहरिणानिरणायीहंसेवना // 143 // - 1 यथाजन्मनाशूमायोपिगायत्रीग्रहणेन द्विजःसन्वेदाध्ययनादावधिक्रियते 2 कृतात्मनिवेदनानामेवश्रवणकीर्तनादिधर्भक्तिरुद्भवति 3, व्यपाश्रयःशरणागतिः 4 चातुर्वणिकाः 5 प्रतिमाशालग्रामगोमतीचक्रादीनि 6 मतिमादौ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SABA वेचिं. ममा स्थापनेश्रद्धास्वतःसंहत्यचोयमइत्यादिभिः // गुर्वाज्ञोक्तप्रकारेणसदासेवेतसंस्मरेत् // कीर्तयेत्तद्भक्तगीनःसंच्छा 14015 स्वैःशृणुयात्परं / / 144 // यथाधिकारंलीलास्ताःक्रमशोभावयन्दृढम् // निःसाधनोऽपितात्मादिर्दैन्यात्याणेश्वरंश्रितः lillu145 // सर्वदादेहगेहादौतदेकार्थत्वभावनः॥ (स्कंध 7) // यस्तआशिषआशास्तेनसभृत्यःसंवैवणिक // 146 // इत्यायुक्त्यासुनिष्कामोभृत्यभावादकैतवः // सर्वलौकिककर्माणिताटस्थ्येनैवनाटयन् // १४७॥लाभालाभौसमौकुर्वन् / समन्वानस्तद्वशंजगत् // विवेकधैर्य्याश्रयादियुक्सञ्चितनतत्परः॥१४८॥पत्रेकृष्णप्रियेप्रीतोनप्रीतस्तत्परामरखे // उदासीने / स्वयंकुर्वन्प्रतिकूलेगृहंत्यजन् // 149 // वर्तेतवैष्णवाचारैःश्रीमदाचार्य्यदर्शितैः।सप्रमाणैर्गुरोभक्तोजिज्ञासुस्तन्मुखाच्छ्रुतेः / / // 150 // गृहादिबाधकंयत्तत्तत्परत्वेनयुंजतः // सर्वात्मनाचाजतोभवेत्प्रत्युतसाधकं ॥१५१॥(स्कंध 5) // भयंप्रमत्ता स्यवनेष्वपिस्याद्यतःसआस्तेसहषट्रसपत्नः // जितेंद्रियस्यात्मरतेव॒धस्यगृहाश्रमःकिनकरोत्यवद्यम् // 152 // उपदेशवादे ब्रह्मवैवर्तब्रह्मखंडीयैकादशाध्यायेनारदंप्रतिब्रह्मवाक्यानि ॥वैष्णवानांहरेर तपस्याचौथता // वैष्णवस्त्वंगृहनि करुकृष्णपदार्चनं // 153 // अंतर्बाह्येहरिय॑स्यकितस्यतपसासुत // नांतोिहरिय॑स्यकितस्यतपसास्था // 154 // पसाहरिराराध्योनान्यःकश्चनवियते // यत्रतत्रकृतंकण्णसेवनंपरमंतपः॥ 155 // इत्यादीनि // निवेदिभिःसमप्यवस संस्कृतैःमाहतैश्चकीर्तयेत् 2 वेदब्रह्मसूत्रभागवतादिशास्त्रैःपुरुषोत्तमंशृणुयात् 3 विवेकस्तुहरिःसर्वनिजेच्छातःकरिष्यतीत्यादिनाश्रीमदा नाचार्योक्तः 1 गुरुमुखाच्छूतेःसकाशात् 5 भगवन्मात्रीपयोगित्वेन 6 भगवति भक्तिमतः अपरोक्षज्ञानिनः 8 कृतात्मनिवेदनैःसहसर्वकुर्यात् Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वकर्यादितिस्थितिः / / इतिनिर्वाहआचार्यरुक्तआहेदमुद्धवः // 156 // (स्कंध 11 अ०६)॥ त्वयोपभुक्तस्रग्गन्धवा / सोडलंकारचर्चिताः // उच्छिष्टोजिनोदासास्तवमायांजयेमहि // 157 // महोपनिषदिश्रूयते // एकएवनारायणआसी नब्रह्मानयावापृथिवीसर्वेदेवाःसर्वेपितरःसर्वेमनुष्या:विष्णुनाऽशितमतिविष्णुनाऽऽघातंजिघ्रतिविष्णनापीतंपिबंतिवि| णुनारसितंरसयंतितस्माद्विद्वांसोविष्णूपत्तंभक्षयेयुरिति // कृष्णाप्रसादभूतंयदनंदुष्टस्यसंगतिः // अन्यदेवाश्रयश्चे तिसर्ववैतत्रयंत्यजेत् // 158 // आचारप्रकाशेभगवत्पूजानिरूपणब्रह्मांडे // पत्रंपुष्पंफलंतोयमन्नंपानीयमौषधं // आ निवेद्यनअंजीतयदाहारायकल्पितं // 159 // तत्रैवकौम // अनर्पयित्वागोविदेयैर्भक्तधर्मवजितं / शुनोविष्ठासमंचान्न नीरंचसुरयासमं // 16 // इत्यन्ननियततोडक्संग:सर्वत्रवर्जितः / उक्तमस्मद्रुश्रीमद्वजवल्लभशर्मभिः // 161 // अग्निवद्भगवद्भावोदुःसंगोजलमेवहि // सत्संगव्यवधानेननाशयेत्तुनचान्यथा // 162 // भागवते // प्रसंगमजरंपाशमा मनःकवयोविदुः॥ सएवसाधुषुकतोनिःसंगत्वायकल्पते // 163 // (स्कंध 5) // रहूगणैतत्तपसानयातिनचेज्यया निर्वपणाद्ग्रहाद्वा // नच्छंदसानैवजलाग्निसोमैविनामहत्पादरजोऽभिषेकम् // 164 // (स्कंध 4) क्षणार्द्धनापितुलये नवगैनापुनर्भवं // भगवत्संगिसंगस्यमानांकिमुताशिषः॥ 165 // इतिसर्वत्रसत्संगःसाधनंभरममतं // देवास्तत्तसा 1 भगवत्प्रसादः 2 अनिवेदितमन्नादिदुष्टानांसंगश्च 3 समर्पणमंत्रोपदेष्टारोस्यकवेर्मातामहागोस्वामिविशेषाः 1 भगवद्दत्तशक्तेः Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे.चि. मांदेकैकमितकामदाः // 166 // दातुंशक्तानभक्तिंचमुक्तिमीशोऽपिभोगदः // खटांगमुचुकुंदादिभ्योनमुक्ति / 015 मददुस्ततः॥ 167 // अलौकिकःकल्पतरुःस्वाभाविकरुपांबुधिः // प्रारषेण्योनवोमेघःसर्वकामांबुवर्षणे // 168 // व्यःसदासएवैकोऽसोम्याधिक्योऽखिलेश्वरः॥ मकुंदएवशनोतिदातुंमुक्तिस्वसेवनम् // 169 // वैष्णवानांकष्णएवस्व दिवंतदतिक्रमे // दोषःकांडेद्वितीयस्मिन्संहितायांश्रुतोहिनः // 170 // योवैस्वांदेवतामतियजते // प्रस्वायैदेवतायैच्यव ते // नपरांपामोति // पापीयान्भवतीति // स्वल्पदान्सुलभक्रोधान्दुःखसाध्यास्तदंशकान् // त्यत्कासर्वप्रदंस्वल्पतोष।। सेवध्वमंशिनं // 171 // पांडवगीतायां / / वासुदेवंपरित्यज्ययोन्यदेवमुपासते // तृषितोजान्हवीतीरेकपंखनतिदुर्मतिः॥ // 172 // द्वितीयस्कंधे // अकामःसर्वकामोवामोक्षकामउदारधीः // तीव्रणशक्तियोगेनयजेतपुरुषपरम् // 173 // निष्कामोऽपितेदंगत्वंमत्वासेवेतचेदृथा / यथातरोर्मूलनिषेचनेनेतिगतार्थता // 174 // तस्मादनन्यभावेनमेवैकंयआ 1.श्रितः॥ दैन्यान्निःसाधनंहष्णःसंसारात्किनमोचयेत् // 175 // अभेदाद्भजतोमत्तांवेवंसंभाषणादिकः॥ साक्षात्कारो भवेत्तस्यभगवान्परवानिव // 176 // यथार्मुरारिदासाद्याःस्वाचार्यरुपयाऽगमन् // एतद्रहस्यं परममनुभूयैवबुत्थ्यते॥ शिवः 2 नतत्समश्चाभ्यधिकश्चदृश्यतइतिश्वेताश्वतरादिश्रुतिभ्यः ३.तीयस्यङिस्मूपसंख्यानमितिवात्तिकात्साधः 1 अस्माकंतैत्तिरीयाणां 42 5 देवानांभगवदवयवरूपत्वं 6 यथातरोमूलनिषेचनेनतृप्यंतितत्स्कंधभुजोपशाखाः // प्राणोपहारोबलिरिद्रियाणांतथैवसाईणमच्युतेज्येतिभा गवतायुक्तन्यायात् 7 कृष्णं 8 जीवं 9 साक्षाद्भगवानेवायमितिबुझ्या . एषामाख्यायिकाश्चरित्रग्रंथेभ्योञयाः Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 177 // नतेचतुर्विधांमुक्तिवांछंतिमनसाक्वचित् // तदुक्तंहरिणासेवारसरितरैरपि // 178 // सालोक्यसाटि सामीप्यसायुज्यैकत्वमप्युत // दीयमानगृण्हति विनामत्सेवनंजनाः // 179 // मधुद्विट्रसेवानुरक्तमनसामभवोऽ पिफल्गः // नयोगसिद्धीरपुनर्भवंवा० // नेच्छंतिसेवयापूर्णाःकिमन्यत्कालविद्रुतम् // इतिमोक्षेऽप्यनाकांक्षालौकि Hकतकतस्तराम् // 180 // सर्वब्रह्मात्मकंतत्रसलीलंपुरुषोत्तमं // पश्यन्नतिदृढस्नेहोऽप्यलक्ष्यचरितोभवेत् // 181 // तेन H.जातःपरांभक्तिमहोयांतिगृहेस्थिताः / श्रीमदाचार्यरुपयानान्यथातपसावने // 182 // अणोरणीयान्महतोमहीया नात्मागुहायांनिहितोऽस्यजंतोः / / तमक्रतुंपश्यतिवीतशोकोधातुःप्रसादान्महिमानमीशं // 183 // प्रभवोभक्तिहेतौतत्सि ॥द्धिमाकुरनुपहात् // नसाधनैर्जीवरुतैस्तनुजाद्यप्यनुग्रहात् // 184 // मुंख्यंहितस्यकारुण्यं भक्तिसूत्रेऽपिवर्णितम् // पु ष्टिमार्गोऽयमेवस्यात्पोषणंतदनुपहः // 185 // एतादृशस्यभगवदत्यंतरुपयायदि // गृहस्थास्तादृशाःसर्वेतदानत्यागइ। भाष्यते // 186 // नियतंकुरुकर्मत्वंसंगत्यकासमाचरेत् // इतिगीतासुनिर्णीतंत्रोमोक्षमि मंजगौ // 187 // (स्कं. पश्यन्नपिविक्षिमवद्भासमानः 2 शारीरसेवातः 3 तैत्तिरीयेनारायणोपनिषदिकिंचित्पाठभेदेनकठवल्लीषुचपठ्यते 1 भगवतोऽनुग्रहा सत् 5 प्रभवःश्रीविठ्ठलाचार्याः 6 ग्रंथविशेषे 7 भक्तिसिद्धि 8 ननुद्दिविधसेवातस्तरिसद्धिःपूर्वमुक्तेतिचेत्सत्यं परंतयोरप्यनुग्रहसाध्यत्वादनुग्रहकै निदानकत्वंभक्तरक्षतमितिभावः 9 अ०२मू 19 शांडिल्यमुत्र मुख्यंनिदानम् 10 पुष्टिरनुग्रहस्तत्मधानोमार्गः 11 द्वितीयस्कंधवचनमिदं 12 स्त्री पत्रादयः १३भिन्नवाक्यस्थंपादद्वयं 14 स्वगृहेप्रेमपूर्णसर्वचित्तकारणभगवगुणगानादिरूपं Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A 015 RT 1p final बेच अ० 11) ममोत्तमश्लोकजनेषुसख्यंसंसारचक्रे भ्रमतःस्वकर्मभिः // त्वन्माययात्मालजदारगेहेष्वासक्तचित्तस्य ननाथभूयात् // 188 // नचेदेवंत्यजेद्हंजेदेकोनिजेश्वरम् // व्रजेद्यथारुचिस्थानंव्रजेत्रायोवसंतिते // 189 // सर्वत्रवाश्रमेद्भूमौसंगंकाततादृशां // लोकदृष्ट्यासुखंदुःखं मित्रवद्धरयेवदेत् // 19 // पारतंत्र्यंभगवतःस्वातंत्र्यंतस्य जायते / तादृशानांदशामाहस्वयंदुर्वाससंहरिः॥१९१॥ (स्कंध 8) अहंभक्तपराधीनोझस्वतंत्रइवद्विज // साधभियी स्तदृदयोभक्तैर्भक्तजनप्रियः॥ 192 // नाहमात्मानमाशासेमद्भक्तैःसाधुभिविना // श्रियंचात्यंतिकीब्रह्मन्येषांगतिरही परा॥१९॥येदारागारपुत्रानान्प्राणान्वित्तमिमपरं // हित्वामांशरणंयाताःकथंास्यक्तुमुत्सहे // 194 // मयिनिर्बद्ध दयाःसाधवःसमदर्शनाः // वशेकुर्वतिमांभक्त्यासस्त्रियःसत्पतियथा // 195 // मत्सेवयाप्रतीतंचसालोक्यादिचतुष्टयम् // नेच्छंतिसेवयापूर्णाःकुतोऽन्यत्कालविद्रुतम् // 196 // साधवोदयंमांसाधूनांदृदयंत्वहं // मदन्यत्तेनजानंतिनाते भ्योमनागपि // 197 // इति|महानुभावाभाषतेजीवन्मुक्तिमिमापराम् // अमृतत्वंपरामुक्तिःसआकारस्त्वलौकिकः॥ T198 // आनंदाशतिरोधानेनिराकारत्वमीरितं // पुनस्तदाविर्भवनेभवेदप्रारुताकतिः॥ 199 // तेननास्यपरिच्छेदो / नभेदोहयहस्तिवत् // नावन्मात्रताऽऽकारेजरादीनांकसंभवः // 2.. // भाष्यादौस्पष्टमेवैतत्तेननात्रप्रपंच्यते // धर्मावि सर्वानकल्यनचेत् 2 परमभक्ताबहुशात्रजदेविचरंति 3 मुक्तस्यवस्तुतःसुखदुःखादिवाभावात् 4 हयादीनामन्योन्यभेदवदीश्वरानेदः जीवदेहविभागश्च 5 कामान्नीकामरूप्यनुसंचरन्नित्यादौकामरूपत्वभवणादाकारेनियतत्वं 6 आनंदस्यैश्वर्यादिधर्माणांच 44 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितोजातेऽक्षरत्वेतलीयते // 201 // अंशोबृहतितद्धानिजले सँधैवखिल्यवत् // तदोद्धृत्यरूपांसोधिःसायुज्येनानुभा वयेत् / / 202 // लीलाःसर्वाःसदादेवीगोपानुदधरयथा / ( स्कंध 10) // दर्शयामासलोकंस्वंगोपानांतमसःपरं // 203 / / सत्यंज्ञानमनंतंयद्ब्रह्मज्योतिःसनातनं // यद्धिपश्यंतिमुनयोगुणापायेसमाहिताः // 2.4 // तेतुब्रह्महदंनी तामनाःकृष्णेनचोद्धताः॥ गोस्वामिििगरिधरैरूपितारीतिरुद्धृतेः // 205 // उद्धृतोपरम क्लेशोविरहानलसंभवः // यदा दिहादिनाशायसमर्थोजायतेतदा // 206 // निजंश्रीमत्कृष्णचंद्रःस्वाधिकारानुसारतः // परमानंदलीलांवामनुभावय तिप्रभः॥२०७॥ शुद्धाद्वैतविचारार्कइदंश्लोकद्वयंस्थितं ॥(अ.२सू. 44) शांडिल्यसूत्र्यां॥ संमानबहुमानप्रीतिविरहे। तरविचिकित्सामहिमख्यातितदर्थप्राणस्थानतदीयतासर्वतद्भावाप्रातिकूल्यादीनिचस्मरणेभ्योबाहुल्यात् // विरहोभक्तिमा / त्रोक्तस्तथाऽतप्ततनुश्रुतेः॥२०॥तापल्लेशोप्रजायेतांततोऽससौयदातदा।। क्रमादन्नमयाद्यात्माविशेदेहादिपंचकं॥२०९॥ (अ०४ पा. 4 मू०१) संपद्याविर्भावःस्वेनशब्दात् // इत्यादिनासूत्रकताऽक्षरसंपत्त्यनंतरं // आविर्भावःपरेच्छातःकी। .1 अक्षरेअंशोजीवः 2 लवणशकलवत् यथासैंधवखिल्यउदकेमास्तउकमेवानुविलीयेतेत्यादिश्रुतिभ्यः 3 अक्षरातपृथक्त्त्य 4 सोश्रुते // सर्वानकामान्सहेतिश्रुत्युक्तेन 5 नित्यक्रीडादिविशिष्टःपरः 6 सत्यज्ञानमनंतंब्रह्मेन्यादिश्रुत्युक्तमक्षर 7 अक्षररुपमगाधस्थान 8 यतोवाचइत्युक्तो। +गणितानंदः 9 अतप्ततनूनतदामोअश्रुतइन्यादि 10 देहमन्नमयःप्राणप्राणमयःमनइंद्रियाणिचमनोमयःतेनतेषांतत्तदात्मकत्वंजीवोअक्षरात्मकत्वा द्विज्ञानमयः आनंदमयःपरःसहाशितापुरुषोत्तमःखतंत्र: Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चे. चिडाचोक्ताश्रुतौमता // 210 // अस्माल्लोकात्येत्यलीनोऽक्षरेऽतःपुनरुद्धृतः // तनूंचरणरेणूत्थांलब्ध्वाविरहतापितः // 211 // प्र०१५ उपसंक्रम्यान्नमयादीनानंदमयंपरं॥ कामजोगीकामरूपीकामान् क्तपरेणसः॥२१२॥ तैत्तिरीयेब्रह्मभृगुवल्लयोःसूत्रे चस्फुटं / सर्वोपनिषदश्वाहुःशक्तोवक्तुंनमादृशः॥२१३॥ नातःपरतरंकिचिन्नारत्तिनगुणोद्भवः / इदंश्रीवल्लभाचार्य रुपयैवान्यथानहि // 214 // दैवोद्धारप्रयत्नात्माभगवद्वदनानलः / / तस्याज्ञयाप्रादुरासीद्वस्तुतःकृष्णएवसः॥२१५॥ चरित्रचितामण्यादौपानादिवचनैर्दृढम् / / सर्वाचार्यकथापूर्वनिर्णीतंचानुभूयते // 216 // नमोब्रह्मणेनमोअस्त्वनये / नमःपृथिव्यैनमओषधीभ्यः॥ नमोबाचेनमोवाचस्पतयेनमोब्रह्मणेबृहतेकरोमि // ब्रुवंतीत्यादयोवेदास्तत्स्वरूपंसनातन म् // इतिश्रुतिरहस्येतत्प्रकाशादिषुनिश्चयः // 217 // प्रसंगाद्वैष्णवाचाराविविच्यतेऽत्रकेचन // धारयेत्सर्वदामाला मामंत्रग्रहणाद्गुरोः // 218 // तुलसीकाष्ठजांकंठेक्षणार्धनत्यजेत्तथा // तन्मार्गशीर्षमाहात्म्येस्कांदेप्रावोचदच्युतः // in 219 // तुलसीकाष्ठजांमालांकंठस्थांवहतेतुयः // अप्यशौचोऽप्यनाचारोमामेवैतिनसंशयः // 220 // धारयति / नयमालांहतुकाःपापबुद्धयः॥ नरकान्ननिवर्ततेदग्धाःकोपानिनामम // 221 // इत्यधारणतःप्रत्यवायान्नित्यत्वमी रितं // मरणावसरेप्येषानत्याज्यामोक्षदायिनी // 222 // काशीखंडएकोनविशाध्याये // हरिनामाक्षरमुखंभाले I . भगवतः 2 कथापूर्वकं 3 अद्यापितन्नामजपादिभ्योयथोक्तफललाभात् 1 आचार्यस्वरूपं 5 गोस्वामिगिरिधरैःकाश्यैःकतेथे 6 म ग्रहणमारभ्य 7 सदैवकंठेस्थितां अन्यथाकंठेवहतइत्येववदेत् वचन मिविष्णुधर्मोत्तरेयस्ति Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगोपीमृदांकितम् // तुलसीमालिकोरस्कंनस्पृशेयुर्यमोद्भटाः // 223 // गारुडेमाकंडेयः // निवेयकेशवेमालांतुलसी काष्ठसंभवां // वहतियेनराभक्त्यातेषांवनास्तिपातकं // 224 // तदाप्रीतमनास्तस्मिन्कृष्णोदेवकिनंदनः / / तुलसी काष्ठसंभूतंशिरोबाहुविभूषणं // 225 / / तुलसीकाष्ठमालांतुप्रेतराजस्यदूतकाः // दृष्वानश्यंतिदूरेणवातोद्भूतंयथारजः // 226 // तुलसीकाष्ठसंभूतेमालेकृष्णजनप्रिये / बिमित्वामहंकंठेकुरुमांकृष्णवल्लभम् // 227 // तुलसीदलजामाला 2 निषिद्धाकालपंचके / होरीतनशिवःपाञविधत्तेतद्धतिसदा // 228 // स्नानकालेतुयस्यांगेदृश्यतेतुलसीशुभा // गंगा दिसर्वतीर्थेषुस्नातंतेजनसंशयः // 229 // तुलसीमालिकांधृत्वायोभुंक्ते गिरिनंदिनि // सिक्थेसिक्थेसलभतेवाजपेयफ। शुभं // 230 // बहुनाकिमिहोक्तेनशृणुत्वंवरवणिनि // विडुत्सर्गादिकालेपिनत्याज्याकंठमालिका // 231 // तथा यत्कंठेनुलसीनास्तितेनरामूढमानसाः // अन्नविष्ठाजलंमूत्रंपीयूषंरुधिरंभवेत् // 232 // ततःसर्वेषुकालेषुनत्याज्याकंठ मालिका // क्षणार्द्धतद्विहीनोऽपिविष्णुद्रोहीनसंशयः // 233 / / स्कांद। तुलसीकाष्ठमालांयोधृत्वाभुंक्तेद्विजोत्तमः।। सि PI क्थेसिक्थेसलभतेवाजपेयफलंमने // 234 // तुलसीकाठमालांयोधृत्वास्नानसमाचरेत् // पुष्करेचप्रयागेचस्नातंतेन / तुनीश्वर / / 235 // तत्रैव / / यज्ञोपवीतवद्धार्याकंठेनुलसिमालिका // नाशौचंधारणेतस्यायतःसाब्रह्मरूपिणी // 236 // 1 लानभोजनमैथुनमलमूत्रविसर्जनकालेषु 2 स्वस्मृतौ ३स्नानभोजनादिकालेष्वपितकाष्ठमालाधृति ? आदिपदान्मैथुनमूत्रोन्सर्गादिसंग्रहः। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - वे-चि. पूजांगंशंखचक्रादिगोपीचंदनमृत्ाया // कुर्यान्निषेधस्तमायाःपूजाशून्येक्वचिन्मृदः // 237 // आचारप्रकाशेऊर्ध्व |.15 पुविधौहलायुधीये। गोपीचंदनमुद्रांचकत्वाश्रमतिभूतले॥ सोपिदेशोभवेत्पूतःकिपुनर्यत्रसंस्थितः / / 238 // पाझे // कृष्णनामाक्षरैर्गात्रमंकयेच्चंदनादिना // सलोकपावनोभूत्वातस्यलोकमवामुयात् // 239 // तथाभगवद्वचः // मात्र माऽवतारचिन्हानिदृश्यंतेयस्यविग्रहे॥ मोमोनविज्ञेयःसननंमामकीतनः // 240 // नीलकंठान्हिकेचसनत्कुमा / रः // कृष्णायुधांकितेदेहेतोयचंदनमृत्स्नया // प्रयागादिषुतीर्थेषुसगत्वार्किकरिष्यति // 241 // यदायदाप्रपश्य / तदेहंशंखादिचिन्हितं / / तदातदाजगत्स्वामीतृष्टोहरतिपातकम् // 242 // पादोभगवान् // गोपीचंदनमृत्स्नायालिखि यस्यवियहे / शंखचक्रगदाप तस्यदेहेभवाम्यहं // 243 // सौवर्णराजतंताम्रकांस्यंमृन्मयमेववा // चक्रंकत्वातुमे धावीधारयेत विचक्षणः // 244 // उपवीतादिवद्धाऱ्याःशंखचक्रगदादयः॥ ब्राह्मणस्यविशेषेणवैष्णवस्यविशेषतः॥ Bilm 245 // इत्थंविधीयतेमुद्रामृन्मयीधातुचक्रतः // द्विजानामपिधर्मोयमुपवीतातिदेशतः // 246 // मार्गशीर्षमाहा म्यतृतीयाध्याये // चकलांछनहीनस्यविप्रस्यविफलंभवेत् / / क्रियमाणंचयत्कर्मवैष्णवानांविशेषतः॥२४७ // इ. त्यावश्यकतास्कांदेवर्णिताविप्रधर्माता // प्रस्तुत्यमृन्मयींमुद्रांपूजांगत्वंयथोदितं // 248 // शंखचकादिरहितःपूजांय स्तुसमाचरेत् // निष्फलंपूजनंतस्यहरिश्चापिनतुष्यति // 249 // यस्तुसंतप्तशंखादिलिगांकिततनुर्नरः // ससर्वयातना 1 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोगीचांडालोजन्मकोटिषु // 250 // इदंबृहन्नारदीयंपृथ्वीचंद्रोदयेस्थितं // अंकनंतप्तमुद्रास्याच्छूद्रतांत्रिकयोश्च / सा // ऊर्ध्वपुंडंतुभगवत्प्रसादद्रव्यतोमतं // वैष्णवानांचशैवानांद्विजानांनित्यमुच्यते // 251 // मदनपारिजातेच ब्राह्मे // यागोदानंतपोहोमःस्वाध्यायःपितृतर्पणं / अस्मीभवतितत्सर्वमूर्ध्वपुंडविनाकतं // 252 // स्कांदमार्गशीर्षमाहा।। म्येऽपीदमेववाक्यम् / / धर्मप्रत्तौस्मृतिसारसमुच्चयेऊर्ध्वपुंडविधिप्रक्रम्य // ललाटेतिलकंरुत्वाकुर्युःशैवाश्ववैष्णवाः॥ तर्पणंचापिवैश्राद्धमन्यथानिष्फलंभवत् // 253 // आचारमयूखेचशौनकः // ऊर्ध्वपुंइंशिवस्यैवंविष्णोःकुर्युश्चवाब धाः // मूधिमूलेनमंत्रणशेषंद्वादशनामभिः // 254 // धर्मप्ररत्तौस्मृतिसारसमुच्चये // ऊर्ध्वपुर्बुद्विजातीनामग्निहोत्रस मोविधिः // इत्यावश्यकतासिद्धासर्वथासांतरंतुतत् // 255 // चतुर्विशतिमतव्याख्यायांमदनपारिजातसंग्रहः॥ एका तिनोमहाभागाःसर्वभूतहितेरताः // सांतरालंप्रकुर्वतिपुंड्रहरिपदाकति // 256 // इत्यादि // पाद ऊर्ध्वपुंड्राध्याये // ऊ / @पुंड्तुसर्वेषांननिषिद्धंकदाचन // धारयेयुःक्षत्रियाद्याविष्णुभक्ताभवंतिये // 257 // इतिसर्वेषुवर्णेषुवैष्णवानांतदी रितं / निषिध्यतेशिवेनैवपालेभस्मत्रिपुंडकं // 258 // विषाणांनैवधाय॑स्यात्तिर्यक्पंडादिधारणं // नारायणात्परब मादन्येषामर्चननहि // 259 // ब्राह्मण:कलजोविद्वान् भस्मधारीभवेद्यदि // वर्जयेत्तादृशंदेविमयोच्छिष्टंघटयथा // PA // 26 // त्रिपुंडशूद्रकल्पानांशूद्राणांचविधीयते // त्रिपुंडधारणाद्विप्रःपतितःस्यान्नसंशयइति // 261 // त्रिपुंड १नांकन विमहेवेदपथानमाश्रितइत्यादौ वृषोत्सर्गादौतथामसिद्धेः Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 47 विधिःशै'वेनिषेधःसर्ववैष्णवे // अवैदिकेतशैवेवानिद्वादशनामभिः // 262 // अतआवश्यकंमालामुद्रावक/प्र.१५ तिलकंशुश // तत्पायउत्तरेखंडएकीकत्यप्रशंसितम् // 263 // (अध्याय 10 ) येकंठलग्नतुलसीनलिनाक्ष TEM मालायेबाहुमलपरिशोभितशंखचकाः // येवाललाटफलकेलसवडास्तेवैष्णवाभवनमाशुपवित्रयंति // 26 // यमकैकवादेननिबंधस्यानसारतः // पुरुषोत्तमपादःसप्रमाणौघंदृढीकतम् // 265 // तथाश्रुतिरहस्यादौमयाप्य न्यत्रवारितः // संशयस्तिलकद्रव्येरुद्राक्षस्याप्यधारणे // 266 // आचारैरीदृशैःशुद्धैःश्रोतःस्माते:पुराणजैः॥ सार दाचाराऽऽगतैःशुद्धःसेवेतोक्तप्रकारतः // 267 // लीलास्वादोऽनुभूत्येकवेद्योऽस्यस्यादनुग्रहात् // ब्रह्मादिभिःप्रार्थ्य मानोऽप्येषामत्यंतदुर्लभः // 268 // नवमेऽप्यक्षरजुषांकेवलज्ञानिनामयं / / मन्वतेपरमंमोक्षंब्रह्माहंभानमेवते // H // 269 // अहंब्रह्मेतिसंसिद्धावक्षरत्वंभविष्यति / नतेऽक्षरात्परंकंचिजानंतिपुरुषोत्तमं // 270 // इत्यात्मलाभसंतु .टाःसात्विकाभक्तिवर्जिताः॥ लीयंतेतेऽक्षरेज्ञानघनेसर्वेचिदंशकाः॥२७१॥नावर्त्ततेपनमग्नाःसुखसंसुप्तवत्ततः॥ ददा। तिजगवान्यायोमक्तिंभक्तिःसुदुलभा // 272 // भगवान्भजतांमुकुंदोमुक्तिंददातिकहिचित्स्मनभक्तियोगं // अनिच्छतो 12 उभयत्रवैषयिकमधिकरणं जात्यभिमायादेकवचनं सर्वेवैदिका वैदिकाः 3 शिवपूजादिकर्मभेदादिच्छातश्चतिर्यगूर्ध्वपुंड्योर्विकल्पः ४ऊ पुंड्राणि 5 ललाटेकेशवंविद्यान्नारायणमथोदरइत्यादिनोक्तैर्बहुग्रंथप्रसिद्धेः 6 ग्रंथांतरेषु इदानीससिद्धांतमार्तडेप्ययंविषयोनिनकविनासम्यनि / गीतः 7 नतुनिर्गुणाः सत्त्वात्संजायतेज्ञानं कैवल्यंसात्विकंज्ञानमित्यादिवचोभ्यः 8 जीवाः Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गतिमण्वीप्रयुंक्ते // भक्तस्यकृष्णसायुज्याद्रसपानंतटस्थवत् // मनवज्ञानिनांनतत्तापशांतियोःफलम् // 273 // इ. तिश्रीवल्लभाचार्यचारुभाव द्विकासितम् // सिद्धांतानंभजध्वंभोदैवशृंगारसाथिनः॥२७४ // बालानांबोधनायेहदि मात्रंदार्शमिया // प्राक्तनेषुप्रबंधेषुविस्तरस्तुविलोक्यताम् // 275 // तदुच्छिष्टोपभोगेनशुद्धबुद्धेममापिये // चंद्रोदया / दयोग्रंथाअनुगृहीततानपि // 276 // प्रथमेयत्प्रकरणेप्रोक्तंसंक्षिप्यतत्पुनः // प्रपंचितंप्रकरणैश्चतुर्दशभिरुज्ज्वलं॥ 277 // पीनपयोधरकांतौसंहदावन विलासरुचौ // राधायांश्रीकृष्णरचयरतिदर्पकोपमानपदे // 278 // नोल्लासिते, नदीनेकतेऽपिभंगेर्नवारिजातानां / / द्विजराजशब्दनाजोनमामिसैदिनोदयान्निजाचार्यान् // 279 // श्रीमद्भक्तिसुधा ब्धिवर्द्धन विधौसंपूर्णचंद्रायितंदुर्वादोत्कटकुंभिदंशदलनेशार्दूललीलायितं // पादाभजतामशेषविदुषांमस्तेषुमालायि तयैर्वाचोविसराजयंतिरुचिरास्ते विठ्ठलेशप्रभोः // 28 // यःश्रीमद्वजवल्लभाभिधगुरोःस्पृष्टःकृपादृष्टिभिर्बाल्येऽगान्नि 1 जलंपिवतस्तीरस्थस्येव 2 रसास्वादनं 3 भक्तज्ञानिनोःसंसारतापस्यतटस्थनिमनयोष्मितापस्यचशांतिः 4 रसोभक्तिः पुरुषोत्तमोवा पक्षेमरंद: 5 कुचौमेघाश्च 6 समीचीनंवृंदावनं सतांवृदस्यावनंरक्षणंच 7 भक्ति ८रूपादिगर्वरोषप्रणयकलहानां दर्पकस्यकामस्योपमायाश्च 9 नदोपतौसम वस्तुतस्तुदैन्यवानेवोल्लासितीनन्वदीनः 10 कमलानां वस्तुतस्त्वाचीनदुर्वादरूपवैरिसमूहानाम् 11 चंद्रोब्राह्मणश्रेष्ठश्च 12 दिव। PAIसेयउदयस्तत्सहितानितिविरोध: वस्तुतस्तसतविदानांइनस्यहरेरुदयःकलोमकाशीयेभ्यस्तान् // // आत्रेयगोत्रेजातेनगोपीनाथांगजन्मना त देवकीनंदनाख्येनगोवर्द्धनगुरोर्मुखात् // अधीत्यतत्कृतंयंथस्वस्यैवस्मृतयेमया // द्रुतंकृतस्फुटमुक्ष्मसरलंटिप्पणशुभम् // श्रीरस्तुश्रीःशुभम् // Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे-चि. खिलाऽऽगमांश्चनिपुणताताहनश्यामतः // तूर्णवर्णयतेबहूनियुगपच्छोबिष्टवस्तूनियोनानाकाव्यनिबंधकत्ससमभूगोवर्ध| | प्र०१५ नाख्यःकविः॥२८१॥ पंचनदान्वयजनुषातेनांधेनापिसत्कपैकदृशा॥ भू १दृशिरदुर्गादशशि १मितविक्रमवर्षेव्यधायि / चदशी // 282 // योगोवर्द्धनवाकूसुधोदधिभवःसद्वांछितार्थप्रदःस्वांतथ्वांतनिवारकोगुरुघनश्यामोक्तिशाणोज्वलः // का विद्वद्भिःकरुणापरैर्ट दिधृतःसोऽयंमहीमंडलेयावच्चंद्रदिवाकरविजयतविदांतचितामणिः॥ 283 // इतिश्रीमद्वेदव्यासवि ष्णस्वामिमतपंडरीकमंडलमंडनमार्तडश्रीमद्वल्लभाचार्यचरणानचंचरीकचित्तेन मोक्षगुरुवमातामहगोस्वामिश्रीव्रजवल्ल चरणैकतानेन तैलंगवेल्लनाटीज्ञातीयतित्तिरिशाखीयापस्तंबबाधूलसगोत्रोद्भवपंचनापनामकघनश्यामभद्दात्मजेन स्व / पितृसकाशाल्लब्धविद्येन गोवर्द्धनाशुकविना कते वेदांतचितामणी साधनफलादिविवेकोनाम पंचदशंप्रकरणंसंपूर्ण॥ सं पूर्णश्चायंवेदांतचितामणिः॥ // 5 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ హcs Good-000000 social పంది ఈ రహదం వరకు ని 406626 నుండి हा ग्रंथ मुंबईत गणपत कृष्णाजी यांच्या छापखान्यांत एग्झिक्युटरम् यांच्या हुकमावरून ना. क. दुमाळे यांणी छापिला. संवत् 1926 शके 1792 ज्येष्ठ वद्य : जून ता० 18 सन 1870. నాకు నాకు నాకు 80 అంగం &a - ఆనంద తాం హువారం అరహం మూడు Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a1 c 2020 ଓ 2021 1022 1076 107 g1 100 2001 202 201 21 21 ଓ 12 ତୁତ୍ 120 021 1012 ପରିଚୟ 4 / g ziatsfm:19: // / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- _